Jeevan Dharm

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Friday 5 July 2019

संत एकनाथ जी का एक स्मरण

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(((( मृत्यु का पुण्य स्मरण ))))
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संत एकनाथ जी के पास एक बूढ़ा पहुँचा और बोलाः-
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आप भी गृहस्थी, मैं भी गृहस्थी। आप भी बच्चों वाले, मैं भी बच्चों वाला।
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आप भी सफेद कपड़ों वाले, मैं भी सफेद कपड़े वाला।
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लेकिन आपको लोग पूजते हैं, आपकी इतनी प्रतिष्ठा है, आप इतने खुश रह सकते हो, आप इतने निश्चिन्त जी सकते हो और मैं इतना परेशान क्यों.?
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आप इतने महान् और मैं इतना तुच्छ क्यों.?

एकनाथजी ने सोचा कि इसको सैद्धान्तिक उपदेश देने से काम नहीं चलेगा, उसको समझ में नहीं आयेगा।
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कुछ किया जाय…
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एकनाथ जी ने उसे कहाः चल रे सात दिन में मरने वाले..!
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तू मुझसे क्या पूछता है अब क्या फर्क पड़ेगा ? सात दिन में तो तेरी मौत है।
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वह आदमी सुनकर सन्न रह गया। एकनाथ जी कह रहे हैं सात दिन में तेरी मौत है तो बात पूरी हो गई।
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वह आदमी अपनी दुकान पर आया लेकिन उसके दिमाग में एकनाथ जी के शब्द घूम रहे हैं- सात दिन में मौत है.......
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उसको धन कमाने का जो लोभ था, हाय-हाय थी वह शान्त हुई।
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अपने प्रारब्ध का जो होगा वह मिलेगा। ग्राहकों से लड़ पड़ता था तो अब प्रेम से व्यवहार करने लगा।
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शाम होती थी तब दारू के घूँट पी लेता था वह दारू अब फीका हो गया।
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एक दिन बीता….दूसरा बीता….तीसरा बीता….।
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उसे भोजन में विभिन्न प्रकार के, विभिन्न स्वाद के व्यंजन, आचार, चटनी आदि चाहिए था, जरा सी कमी पड़ने पर आग-बबूला हो जाता था।
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अब उसे याद आने लग गया कि तीन दिन बीत गये, अब चार दिन ही बचे।
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कितना खाया-पिया ! आखिर क्या.?
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चौथा दिन बीता….पाँचवाँ दिन आया…।
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बहू पर क्रोध आ जाता था, बेटे नालायक दिखते थे, अब तीन दिन के बाद मौत दिखने लगी।
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सब परिवारजनों के अवगुण भूल गया, गद्दारी भूल गया।
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समाधान पा लिया कि संसार में ऐसा ही होता है। यह मेरा सौभाग्य है कि वे मुझ से गद्दारी और नालायकी करते हैं तो उनका आसक्तिपूर्ण चिन्तन मेरे दिल में नहीं होता है।
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यदि आसक्तिपूर्ण चिन्तन होगा तो फिर क्या पता इस घर में चूहा होकर आना पड़े या साँप होकर आना पड़े या चिड़ियाँ होकर आना पड़े, कोई पता नहीं है।
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पुत्र और बहुएँ गद्दार हुई हैं तो अच्छा ही है क्योंकि तीन दिन में अब जाना ही है।
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इतने समय में मैं विट्ठल को याद कर लूँ- विट्ठला… विट्ठला….विट्ठला… भगवान का स्मरण चालू हो गया।
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जीवन भर जो मंदिर में नहीं गया था, संतों को नहीं मानता था उस बूढ़े का निरन्तर जाप चालू हो गया।
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संसार की तू-तू, मैं-मैं, तेरा- मेरा सब भूल गया।
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छट्ठा दिन बीतने लगा।
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ज्यों-ज्यों समय जाने लगा त्यों- त्यों बूढ़े का भक्तिभाव, नामस्मरण, सहज-जीवन, सहनशक्ति, उदारता, प्रेम, विवेक, आदि सब गुण विकसित होने लगे।
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कुटुम्बी दंग रह गये कि इस बूढ़े का जीवन इतना परिवर्तित कैसे हो गया ?
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हम रोज मनौतियाँ मनाते थे कि यह बूढ़ा कब मरे, हमारी जान छूटे।
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बहुत पसारा मत करो कर थोड़े की आश।
बहुत पसारा जिन किया वे भी गये निराश।।
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उस बूढ़े का छट्ठा दिन बीत रहा है। उसकी प्रार्थना में उत्कण्ठा आ गई है कि "हे भगवान ! मैं क्या करूँ ? मेरे कर्म कैसे कटेंगे.?
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विठोबा… विठोबा… माजा विट्ठला… माजा विट्ठला…. जाप चालू है। रात्रि में नींद नहीं आयी।
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रविदास की बात उसको शायद याद आ गई होगी, अनजाने में उसके जीवन में रविदास चमका होगा।
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रविदास रात न सोइये दिवस न लीजिए स्वाद,
निश दिन हरि को सुमरीए छोड़ सकल प्रतिवाद।
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बूढ़े की रात अब सोने में नहीं गुजरती, विठोबा के स्मरण में गुजर रही है।
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सातवें दिन प्रभात हुई।
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बूढ़े ने कुटुम्बियों को जगायाः “बोला माफ करना, किया कराया माफ करना, मैं अब जा रहा हूँ।“
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कुटुम्बी रोने लगे किः अब तुम बहुत अच्छे हो गये हो, अब न जाते तो अच्छा होता।
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बूढ़ा कहता हैः गोबर से लीपकर चौका लगाओ, मेरे मुँह में तुलसी का पत्ता दो, गले में तुलसी का मनका बाँधो, आप लोग रोना मत।
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मुझे विठोबा के चिन्तन में मरने देना।
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कुटुम्बी सब परेशान हैं, इतने में एकनाथ जी वहाँ से गुजरे। कुटुम्बी भागे एकनाथजी के पैर पकड़े, आप घर में पधारो।
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एकनाथजी ने घर आकर बूढ़े से पूछाः क्यों, क्या बात है, क्यों सोये हो.?
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महाराजजी ! आप ही ने तो कहा था कि सात दिन में तुम्हारी मौत है। छः दिन बीत गये यह आखिरी दिन है।
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एकनाथजी उस बूढ़े से कहने लगेः तुमने मुझसे कहा था कि आप में और मुझमें क्या फर्क है।
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मैंने तुम्हें कहा कि तुम्हारी सात दिन में मौत होगी, तुमने अपनी मौत को सात दिन दूर देखा।
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अब बताओ, तुमने सात दिन में आने वाली मौत को देखकर कितनी बार दारू पिया ?”
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“एक बार भी नहीं।“
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“कितनी बार क्रोध किया ?”
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“एक बार भी नहीं।“
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“कितने लोगों से झगड़ा किया ?”
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“किसी से भी नहीं।“
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“तुमको सात दिन, छः दिन, पाँच दिन, चार दिन दूर मौत दिखी।
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जितनी- जितनी मौत नजदीक आती गई उतना उतना तुम ईश्वरमय होते गये, संसार फीका होता गया। यह तुम्हारा अनुभव है कि नहीं ?
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हाँ महाराज ! मेरा अनुभव है।
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सात दिन मौत दूर है तो संसार में कहीं रस नहीं दिखा, भगवान् में प्रीति बढ़ी, जीवन भक्तिमय बन गया।
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भगवान् का नाम सदा याद रखो हमारी मृत्यु सात क्या किसी भी पल आ सकती है...
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सदा याद रखना है कि हम सब सात दिन में मरने वाले हैं।
राम राम जी
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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प्रेरणादायक कहानी

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एक चोखी पोस्ट के साथ विराम.... 👌

एक बादशाह सर्दियों की शाम जब अपने महल में दाखिल हो रहा था तो एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के सदर दरवाज़े पर पुरानी और बारीक वर्दी में पहरा दे रहा था...।

बादशाह ने उसके करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उस बूढ़े दरबान से पूछने लगा...

"सर्दी नही लग रही ?"

दरबान ने जवाब दिया..... "बोहत लग रही है हुज़ूर ! मगर क्या करूँ, गर्म वर्दी है नही मेरे पास, इसलिए बर्दाश्त करना पड़ता है।"

बादशाह ने कहा "मैं अभी महल के अंदर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूँ तुम्हे।"

दरबान ने खुश होकर बादशाह को फर्शी सलाम किया और आजिज़ी का इज़हार किया।

लेकिन...... बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, दरबान के साथ किया हुआ वादा भूल गया।

सुबह दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश मिली और करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखी गई ये तहरीर भी......

"बादशाह सलामत ! मैं कई सालों से सर्दियों में इसी नाज़ुक वर्दी में दरबानी कर रहा था, मगर कल रात आप के गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी।"

✍✍"सहारे इंसान को खोखला कर देते है और उम्मीदें कमज़ोर कर देती है"

"अपनी ताकत के बल पर जीना शुरू कीजिए,  खुद की सहन शक्ति,  ख़ुद की ख़ूबी पर भरोसा करना सीखें"

आपका, आपसे अच्छा साथी, दोस्त, गुरु, और हमदर्द कोई नही हो सकता।।👏🏻👏🏻👏🏻


हनुमान कथा

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श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा केसाथ सिंहासन पर विराजमान थे,
निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे।
तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु,
आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था,
सीता आपकी पत्नी थीं।
क्या वे मुझसेभी ज्यादा सुंदर थीं?
द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसेभी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है।
इधर सुदर्शनचक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है।
क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?
भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।
वे जान रहे थे कि उनके इनतीनों भक्तों को अहंकार हो गया है औरइनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि हे गरुड़!
तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम,माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीशने राम का रूप धारण कर लिया।
मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार परपहरा दो।
और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा केबिना महल में कोई प्रवेश न करे।
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार परतैनात हो गए।
गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कररहे हैं।
आप मेरे साथ चलें।
मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।
हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं।
गरुड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा।
खैर मैंभगवान के पास चलता हूं।
यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता सेद्वारका की ओर उड़े।
पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु केसामने बैठे हैं।
गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया।
तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन पुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?
क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान नेकहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था,
इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आगया।
मुझे क्षमा करें।
भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे।
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया हेप्रभु!
आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।
अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी।
उन्हें सुंदरता का अहंकार था,जो पलभर में चूर हो गया था।
रानी सत्यभामा,सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे।
तीनों की आंख सेआंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।
अद्भुतलीला है प्रभु की। अपने भक्तों के अंहकार को अपनेभक्त द्वारा ही दूर किया।...
जय हो भक्त शिरोमणि
*जय जय वीर हनुमाना जय श्री राम*


आधुनिक शिक्षा

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कोचिंग का इंजेक्शन लगा कर लौकी की तरह भावी इंजीनियर और डॉक्टर की पैदावार की जाती है। अब नेचुरल देसी नस्ल छोटी रह जाती है जो तनाव में आकर या तो मुरझा जाती है या बाजार में बिकने लायक ही नहीं रहती ।
अब मैं आपको बीस साल पहले ले जाता हूँ  जब सरकारी स्कूलों का दौर था । जब एक औसत लड़के को साइंस ना देकर स्कूल वाले खुद ही लड़के को भट्टी में झोकने से रोक देते थे। आर्ट्स और कामर्स देकर लड़कों को शिक्षक बाबू,पटवारी,नेता और व्यापारी बनाने की तरफ मोड़ देते थे,मतलब साफ है कि पानी को छोटी-छोटी नहरो में छोड़ कर योग्यता के हिसाब से अलग अलग दिशाओ में मोड़ दो ताकि बाढ़ का खतरा ही पैदा ना हो ।
शिक्षक लड़के के गलती करने पर उसको डंडे से पीट-पीटकर साक्षर बनाने पर अड़े रहते और तनाव झेलने के लिये मजबूत कर देते थे और पापा-मम्मी से शिकायत करो तो दो झापड़ पापा-मम्मी भी जड़ देते थे और गुरुजी से सुबह स्कूल आकर ये और कह जाते थे कि अगर नहीं पढ़े तो दो डंडे हमारी तरफ से भी लगाना आप । अब पक्ष और विपक्ष एक होता देख लड़का पिटने के बाद सीधा फील्ड में जाकर खेलकूद करके अपना तनाव कम कर लेता था।खेलते समय गिरता पड़ता और कभी-कभी छोटी-मोटी चोट भी लग जाती तो मिट्टी डाल कर चोट को सुखा देता,पर कभी तनाव में नहीं आता और दसवीं तक आते-आते लड़का लोहा बन जाता था। तनावमुक्त होकर मैदान में तैयार खड़ा हो जाता था ,हर तरह के तनाव को झेलने के लिए.........।
फिर आया कोचिंग और प्राईवेट स्कूलों का दौर यानी कि शिक्षा स्कूल से निकल कर ब्रांडेड शोरुम में आ गई । शिक्षा सोफेस्टीकेटेड हो गई। बच्चे को गुलाब के फूल की तरह ट्रीट किया जाने लगा। मतलब बच्चा 50% लाएगा तो भी साइंस में ही पढ़ेगा। हमारा मुन्ना तो डॉक्टर ही बनेगा। हमारा बच्चा IIT से B.tech करेगा । शिक्षक अगर हल्के से भी मार दे तो पापा-मम्मी मानवाधिकार की किताब लेकर मीडिया वालों के साथ स्कूल पर चढ़ाई कर देते हैं कि हमारे मुन्ना को हाथ भी कैसे लगा दिया? मीडिया वाले शिक्षक के गले में माइक घुुसेड़ कर पूछने लग जाते हैं कि आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यहाँ से आपका बच्चा सॉफ्ट टॉय बन गया बिलकुल टेडी बियर की तरह । अब बच्चा स्कूल के बाद तीन-चार कोचिंग सेंटर में भी जाने लग गया। खेलकूद तो भूल ही गया । फलाने सर से छूटा तो ढिमाके सर की क्लास में पहुंच गया। बचपन किताबों में उलझ गया और बच्चा कॉम्पटीशन के चक्रव्युह में ही उलझ गया बेचारा।क्यों भाई आपका मुन्ना केवल डॉक्टर और इंजीनियर ही क्यों बनेगा वो आर्टिस्ट,सिंगर,खिलाड़ी,किसान और दुकानदार से लेकर नेता और कारखाने का मालिक क्यों नहीं बनेगा। हजारों फील्ड हैं अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करने के वो क्यों ना चुनो। अभी कुछ दिनों पहले मेरे महंगे जूते थोड़े से फट गऐ पता किया एक लड़का अच्छी तरह से रिपेयर करता है कि ये पता ही नहीं चलता कि जूते रिपेयर भी हुए हैं । उसके पास गया तो उसने 200 रुपये मांगे रिपेयर करने के और कहा एक हफ्ते बाद मिलेगें जी। उस लड़के की आमदनी का हिसाब लगाया तो पता चला की लगभग एक लाख रुपये महीने कमाता है। यानी की पूरा बारह लाख पैकेज । वो तो कोटा नहीं गया । उसने अपनी योग्यता को हुनर में बदल दिया और अपने काम में मास्टर पीस बन गया। कोई शेफ़ बन कर लाखों के पैकेज़ में फाइव स्टार होटल में नौकरी कर रहा है तो कोई हलवाई बन कर बड़े-बड़े इवेंट में खाना बना कर लाखों रुपये ले रहा है कोई डेयरी फार्म खोल कर लाखों कमा रहा है। कोई दुकान लगा कर लाखों कमा रहा है तो कोई कंस्ट्रक्शन के बड़े-बड़े ठेके ले रहा है। तो कोई फर्नीचर बनाने के ठेके ले रहा है। कोई रेस्टोरेंट खोल कर कमा रहा है तो कोई कबाड़े का माल खरीद कर ही अलीगढ़ जैसे शहर में ही लाखों कमा रहा है तो कोई सब्जी बेच कर भी 20-25 हजार महीने का कमा रहा है तो कोई चाय की रेहड़ी लगा कर ही 40-50 हजार महीने के कमा रहा है तो कोई हमारे यहाँ कचोरी-समोसे और पकोड़े-जलेबी बेच कर ही लाखों रुपये महीने के कमा रहा है। मतलब साफ है भैया कमा वो ही रहा है जिसने अपनी योग्यता और उस कार्य के प्रति अपनी रोचकता को हुनर में बदला और उस हुनर में मास्टर पीस बना । जरुरी नहीं है कि आप डॉक्टर और इंजीनियर ही बनें आप कुछ भी बन सकते हैं आपमें उस कार्य को करने का जुनून हो बस। हाँ तो अभिभावकों/प्रियजनों अपने बच्चों को टैडीबीयर नहीं बल्कि लोहा बनाओ लोहा। अपनी मर्जी की भट्टी में मत झोंको उसको। उसे पानी की तरह नियंत्रित करके छोड़ो वो अपना रास्ता खुद बनाने लग जाएगा। पर बच्चों पर नियंत्रण जरुर रखो । अगर वो अनियंत्रित हुआ तो पानी की तरह आपके जीवन में बाढ़ ला देगा।
कहने का मतलब ये है कि शिक्षा को नेचुरल ही रहने दो,क्योंकि सिंथेटिक बना कर बच्चे का जीवन और अपनी खुशियों को बरबाद कर रहे हो।  बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार

आगे बढ़ने में सहयोग दें.. धन्यवाद..
किसी नेक दिल के नेक विचार


तुलसी सेवा

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तुलसी की दो सेवायें हैं

प्रथम सेवा -->
                 तुलसी की जड़ो में ...
         प्रतिदिन जल अर्पण करते रहना !केवल एकादशी को छोड़ कर।

द्वितीय सेवा -->
           तुलसी की मंजरियों को तोड़कर
          तुलसी को पीड़ा मुक्त करते रहना ,
           क्योंकि ~
             ये मंजरियाँ तुलसी जी को
             बीमार करके सुखा देती हैं !

    जब तक ये मंजरियाँ तुलसी जी के
शीश पर रहती हैं , तब तक तुलसी माता
               घोर कष्ट पाती हैं !

            इन दो सेवाओं को ...
             श्री ठाकुर जी की सेवा से
                कम नहीं माना गया है !  
            इनमें कुछ सावधानियाँ रखने की
                        आवश्यक्ता है !

जैसे ~    तुलसी दल तोड़ने से पहले
         तुलसीजी की आज्ञा ले लेनी चाहिए !
            सच्चा वैष्णव बिना आज्ञा लिए ...
       तुलसी दल को स्पर्श भी नहीं करता है !

रविवार और द्वादशी के दिन तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए , तथा
कभी भी नाखूनों से तुलसी दल को नहीं तोड़ना चाहिए ! न ही एकादशी को जल देना चाहिये क्यो की इस दिन तुलसी महारानी भी ठाकुर जी के लिये निर्जल व्रत रखती हैं।ऐसा करने से महापाप लगता है !
कारण --> तुलसीजी श्री ठाकुर जी की
             आज्ञा से केवल इन्ही दो दिनों
                 विश्राम और निंद्रा लेती हैं !
बाकी के दिनों में वो एक छण के लिए भी
सोती नही हैं और ना ही विश्राम लेती हैं !
      आठों पहर ठाकुर जी की ही ...
          सेवा में लगी रहती हैं !🙏🙏

🌹🌿🙏 जय श्री राधेकृष्णा🙏🌿 🌹
🌹🌿 🙏जय श्री राधे राधे जी🙏🌿 🌹
🌹🌿 🙏हरि बोल🙏🌿 🌹


श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है

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 बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा कि, ‘हे कृष्ण हमे अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने को जाना है, और ये यमुना जी बीच में पड़ती है | अब तुम बताओ हम कैसे जाएं? 

भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो उनसे कहना कि, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमें रास्ता दो | गोपियाँ हंसने लगी कि, लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है कभी मटकिया फोड़ता है … खैर फिर भी हम बोल देंगी |

 गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दें, और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया | गोपियाँ तो सन्न रह गई ये क्या हुआ ? कृष्ण ब्रह्मचारी ? !!! अब गोपियां अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापस आने लगी तो उन्होंने अगस्त्य ऋषि से कहा कि, अब हम घर कैसे जाएं ? यमुनाजी बीच में है | अगस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्यजी निराहार है तो हमें रास्ता दें | 

गोपियाँ मन में सोचने लगी कि अभी हम इतना सारा भोजन लाई सो सब गटक गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं? गोपियां यमुना जी के पास जाकर बोली, हे यमुना जी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दें, और यमुना जी ने रास्ता दे दिया | 

गोपियां आश्चर्य करने लगी कि जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है? और जो दिन रात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो कृष्ण ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है? इसी उधेड़बुन में गोपियों ने कृष्ण के पास आकर फिर से वही प्रश्न किया | 

भगवान श्री कृष्ण कहने लगे, गोपियों मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नहीं है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ | मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा मैं तो निर्मोही हूँ | इसीलिए यमुना ने आप को मार्ग दिया | 

तब गोपियां बोली भगवन, मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वो बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हो तो हे यमुना मैया मार्ग दें! और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुना ने मार्ग दे दिया! श्री कृष्ण हंसने लगे और बोले कि, अगत्स्य आजन्म उपवासी हैं | अगत्स्य मुनि भोजन ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं | और उनका भोजन में कोई मोह नहीं होता उनको कतई मन में नहीं होता कि में भोजन करूं या भोजन कर रहा हूँ | वो तो अपने अंदर रह रहे मुझे भोजन करा रहे होते हैं, इसलिए वो आजन्म उपवासी हैं | जो मुझसे प्रेम करता है, मैं उनका सच में ऋणी हूँ, मैं तुम सबका ऋणी हूँ...जय जय श्री राधेकृषणा जी।