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Saturday, 12 May 2018

मुस्लिम वशीकरण

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मुस्लिम वशीकरण

सिद्ध वशीकरण मन्त्र
“बिस्मिल्लाह कर बैठिए, बिस्मिल्लाह कर बोल। बिस्मिल्लाह कुञ्जी कुरान की, जो चाहे सो खोल। धरती माता तू बड़ी, तुझसे बड़ा खुदाय। पीर-पैगम्बर औलिया, सब तुझमें रहे समाएँ। डाली से डाली झुकी, झुका झुका फूल-से-फूल। नर बन्दे तू क्यों नहीं झुकता, झुक गए नबी रसूल। गिरा पसीना नूर का, हुआ चमेली फूल। गुन्द-गुन्स लावने मालिनी पहिरे नबी रसूल।”
विधि- बहते पानी के समीप १०१ दाने की माला से प्रातः सायं २१ माला, ४१ दिन तक जपे, ४१वें दिन सायं को हलवा प्रसाद में ले आए। मन्त्र के बाद कुछ हलवा पानी में छोड़ दे और शेष बच्चों में बाँट दे।
जिस पर प्रयोग करना हो, तो मन्त्र को कागज पर केसर-स्याही से लिखे। ‘नर-बन्दे’ के स्थान पर उसका नाम लिखे। मन्त्र को पानी में घोल के साध्य व्यक्ति को पिलावे, तो वशीकरण होगा।

प्रबल पुष्प वशीकरण

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पुष्प द्वारा वशीकरण के लिए मन्त्र
|| ॐ नमो आदेश गुरु का
कामरू देश कामक्षा देवी
तहां ठे ठे इस्मायल जोगी
जोगी के आंगन फूल क्यारी
फूल चुन चुन लावे लोना चमारी
फूल चल फूल फूल बिगसे
फूल पर वीर नाहरसिंह बसे
जो नहीं फूल का विष
कबहुं न छोड़े मेरी आस
मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मन्त्र इश्वरोवाचा || 
विधि :- पहले इस मन्त्र को शुभ महूर्त में 11 माला जप करके सिद्ध कर ले फिर गुलाब का फूल लेकर उस पर 21 बार मन्त्र पढकर फूंके और ये फूल जिस स्त्री को दिया जायेगा वो लेने वाले के वश में रहेगी | सोच समझ कर ही ये प्रयोग करे अगर कोई पीछे
पड़ गयी तो छुड़ाना मुश्किल हो जायेगा

पानी का आकर्षण मन्त्र

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पानी द्वारा आकर्षण मन्त्र
|| ॐ नमो त्रिजट लम्बोदर वद वद अमुकी आकर्षय आकर्षय स्वाहा || 
विधि :- इस मन्त्र को जल पर 108 बार पढ़ फूंके, फिर अपने सिरहाने की तरफ रखकर सो जाये और मध्य रात्रि में उठकर इस पानी को पी ले ऐसा 21 दिन तक करे तो वह स्त्री स्वयं आपके पास चली आएगी | अमुकी की जगह उस स्त्री का नाम लेवे जिसका आकर्षण करना हैं |

वशीकरण टोटके

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रविवार के दिन पुष्प नक्षत्र में जब अमावस्या हो उस दिन अपना वीर्य अच्छी मिठाई में मिलाकर जिस स्त्री को खिला दिया जाय ,वही वश में हो जाता  है
करवीर पुष्प,गोघृत दोनों मिलकर जिस किसी स्त्री का नाम लेकर हवन किया जय और यह क्रम प्रतिदिन सात दिन लगातार १०८ बार हवन किया जय तो सात दिन के अन्दर वह स्त्री वष में हो जाती है
उल्लू पक्षी की रीढ़ की हड्डी ,केसर ,कस्तूरी और कुंकुम सबको एक साथ घिसकर ललाट पर तिलक लगाकर जिस भी स्त्री के सामने जाय  भी वशीभूत हो जायगा
पुष्प नक्षत्र में धोबी के पैर की धूल जिस किसी सुंदरी के सर पे डालोगे वही स्त्री आपके वश में हो जाएगी
शनिवार के पुष्प नक्षत्र में भोजपत्र पर लाल चन्दन से शत्रु का नाम लिखकर शहद में डूबा देना चाहिए यह जब तक वह शहद में डूबा रहेगा ,तब तक शत्रु वश में रहेगा
उल्लू पक्षी का सुखा विष्ठा पान में रखकर यदि शत्रु को खिला दिया जाये तो शत्रु शत्रुता छोड़कर वशीभूत हो जाता है
सहदेवी और अपामार्ग बूटी के रस को लोहे के पात्र में अच्छी तरह घोंटकर उसका तिलक लगाकर शत्रु के सामने जाने से शत्रु आत्म समर्पित करता है
ब्रह्म डंडी ,वच और कूट इस तीनो के चूर्ण को पान में रखकर जिसको खिला दिया जाय वह सदा के लिए वशीभूत हो जाता है

भैरव वशीकरण तंत्र साधना

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भैरव वशीकरण तंत्र साधना

भैरव वशीकरण तंत्र साधना- भैरव तंत्र साधना सभी तरह की तंत्र साधनाओं में सबसे महत्वपूर्ण है. हमारे जीवन में होने वाली सुख दुःख की घटनाएँ भी तंत्र से ही प्रभावित होती हैं. इसलिए भैरव तंत्र साधना के प्रयोग से कई तरह से आपने उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है|
मनुष्य को अपने जीवन में हर तरह की परेशानियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इन समस्याओं से निजात पाने के उपायों में भैरव तंत्र साधना का विशेष महत्व है. जीवन में आये दुःख, हानि, चिंता, बीमारी, प्रेत-बाधा आदि से निजात दिलाने में भैरव तंत्र साधना का अति विशिष्ट महत्व है. शत्रुओं से मुक्ति में भैरव की साधना बहुत उपयोगी साबित हुई है. भैरव तंत्र साधना के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि इसको करना बहुत ही सरल है. बहुत ही थोड़े प्रयासों से इसे साधा जा सकता है. शिव-पुराण में तो भैरव को भगवान शिव का अवतार भी बताया है|
भैरव हर तरह की परेशानी और चिंता को हरने वाले हैं. भैरव से मौत भी खौफ़ खाती है, दुश्मन कांपने लगते हैं और भूत-प्रेत तुरंत भाग जाते हैं. भैरव को काल भैरव और आमर्दक भी कहा जाता है| “काली खंड” के अनुसार भैरव की उत्पत्ति सभी देवताओं के शरीर से निकली तेज-धार के कारण हुए थी. इस तेजधार से बकुट का जन्म हुआ था. बकुट ने “आपद” नाम के राक्षस का संहार किया और देवताओं को उसके भय से मुक्त किया था. भैरव तंत्र साधना में किसी भी महाविद्या को साधने के साथ उससे सम्बंधित भैरव को साधना भी अनिवार्य होता है|
भैरव की साधना के संबंध में लोगों की सोच ये है कि यह कठिन और भयभीत कर देने वाली है. लेकिन सच ये है कि भैरव की साधना सौम्य, सरल और तत्काल फल देने वाली है. कोई साधक सरल प्रयोग विधियों से इसको साध सकता है| इस भैरव तंत्र साधना और वशीकरण मन्त्र अपने आप में बहुत उपयोगी हैं, लेकिन इसे करने से पहले साधक को कुछ नियमों को समझ लेना चाहिए. ये नियम इस प्रकार हैं –
  1. भैरव की साधना किसी कामना की पूर्ति के लिए की जाती है.
  2. भैरव की साधना के लिए रात का समय उत्तम माना गया है. इसलिए आप इस साधना को रात में ही करें.
  3. भैरव की साधना में भोग के रूप में सोमवार को लड्डू, मंगलवार के दिन लापसी, बुधवार के दिन दही-चिवडा, वृहष्पतिवार के दिन बेसन का लड्डू चढ़ाया जाता है. भुने चने शुक्रवार और उड़द के पकौड़ शनिवार के दिन तथा रविवार को खीर नैवेद्य के रूप में लगाते हैं.
  4. भैरव की साधना में पूजा संपन्न होने पर प्रसाद को वहीँ पर ग्रहण कर लेना चाहिए. प्रसाद को पूजा के स्थल से दूर लेकर जाना वर्जित है.
  5. भैरव की साधना में अगरबत्ती, धूप, तेल का दीया प्रयुक्त होता है.
  6. भैरव की साधना में काले रंग की हकिक माला का प्रयोग करना चाहिए.
भैरव साधना की विधि
भैरव तंत्र साधना के लिए रविवार का दिन उत्तम होता है. इस दिन रात में नहाकर स्वच्छ कपड़े पहन लें. अब जिस भी स्थान पर आप साधना करने वालें हैं उसे भी साफ़ स्वच्छ कर दें. भैरव की साधना दक्षिण के तरफ़ मुख करने करनी चाहिए. अपने सम्मुख एक बजोट को रखें और इसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बिछा दें. इसके बाद इसके ऊपर गुरु का चित्र और गुरु चरण पादुका रख दें. अब गुरु के चित्र के सम्मुख पूजन पंचोपचार विधि से करें. एक ताम्बे का पात्र लेकर इसके ऊपर कुंकुम के प्रयोग से एक त्रिभुज बना दें. इसके बाद भैरव यंत्र को स्थापित करें. अब बजोट के ऊपर कुंकुम, पुष्प आदि चढ़ा दें|
आप भैरव तंत्र साधना में इस मंत्र का उच्चारण करें –
“ओम हिं बटुकाय आपदूब्द्रणाय कुरू कुरु बटुकाय हिं ओम स्वाहा!”
इस मंत्र का 21 बार माला के साथ उच्चारण करके आप इसे सिद्ध कर सकते हैं. इस तरह से पूजन और माला जप करने से साधक की मनोकामना पूरी हो जाती हैं. ये साधना लगातार 30 दिन तक करें और उसके बाद पानी में प्रवाहित कर दें.
शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना का बहुत अधिक महत्व है. भैरव की साधना शत्रु के द्वारा किये गए हर तरह के प्रभावों को नष्ट करने में सक्षम है. अगर आपको व्यापार में हानि, घर में कलह और चिंता और बीमारी बनी रहती है तो आपको भैरव तंत्र साधना के प्रयोग से आप इससे मुक्ति पा सकते हैं| वशीकरण करने के लिए भी भैरव की उपासना की जाती है. भैरव वशीकरण मन्त्र के प्रयोग से धन प्राप्ति, प्रेम, शत्रु आदि से जुड़ी समस्याओं से आपको निजात मिलती है. वशीकरण करने के लिए आप यहाँ दिए गए प्रयोग को करें. ये बहुत ही सरल प्रयोग है इसका असर तत्काल ही नज़र आने लगता है|
इस प्रयोग को करने के लिए मंगलवार या रविवार का दिन चुनें. इस दिन आप रात को 10 बजे के बाद करें. आप आपने घर पर किसी स्वच्छ स्थान पर बैठ कर एक बजोट को रख दें. बजोट के ऊपर एक लाल रंग का कपड़ा बिछा दें. एक पीपल का पत्ता लेकर उसे कपड़े के ऊपर रख दीजिये. अब जिस भी पुरुष या स्त्री पर ये वशीकरण का प्रयोग करना चाहते हैं उसका नाम इस पत्ते पर लिख दें. आसन पर भैरव वशीकरण की गुटिका भी स्थापित करें. इसके बाद आप विधि पूर्वक धुप-दीप, अक्षत, कुंकुम, फूल आदि सामग्री से पूजन करें. इस साधना को करते समय आपका मुख उत्तर दिशा की तरफ़ होना चाहिए. इसके बाद आपको एक हीरक (काले रंग) की माला से निम्न मंत्र का जाप 3 बार माला जाप करें.
मंत्र – ओम नम: रुद्राय कपीलाय भैरवाय त्रिलोक नाथाए हिं फट स्वः
इस मन्त्र से 3 माला जाप संपन्न होने पर भैरव गुटकी के ऊपर 21 लौंग चढ़ाएं. लौंग चढ़ाते हुए ऊपर दिए मंत्र का भी उच्चारण करते रहें. इस तरह साधना के पूरा होने पर पूजन की वस्तुओं को किसी कपड़े में बांधकर चौराहे पर प्रातः काल रख कर आ जाएँ| आप हर तरह के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भैरव तंत्र साधना का प्रयोग कर सकते हैं. घर में हर तरह की समस्या से मुक्ति के लिए भैरव की साधना की जाती है. भैरव की साधना पूरे नियमों का पालन करते हुए करने पर शीघ्र ही आशा के अनुरूप परिणाम प्राप्त होने लगते हैं|

Tuesday, 8 August 2017

बच्चे को वश् मे करने का उपाय

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गर बच्चा आपसे दूर जाने की कोशिश करे 
 

बच्चे को वश में करना है या कन्ट्रोल में लाना है तो श्री कृष्ण का स्मरण कर तीन इलायची अपने बदन से स्पर्श करती हुई शुक्रवार के दिन छुपा कर रखें। जैसे अगर साड़ी पहनतीं हैं तो अपने पल्लू में बांध कर उसे रखा जा सकता है और अन्य लिबास पहनती हैं तो रूमाल में रखा जा सकता है। 

शनिवार की सुबह वह इलायची पीस कर किसी भी व्यंजन में मिलाकर खिला दें। मात्र तीन शुक्रवार में स्पष्ट फर्क नजर आएगा।

 

शुक्ल पक्ष के रविवार को ५ लौंग शरीर में ऐसे स्थान पर रखें जहां पसीना आता हो व इसे सुखाकर चूर्ण बनाकर दूध, चाय में डालकर जिस बच्चे को पिला दी जाए तो वह वश में हो जाता है।

 

 बेटे को वश में करे

1 काली मिर्च 

41 साबुत काले उड़द के दाने 

50 ग्राम गुड 

2 लोहे की कीलें 

1 सरसों के तेल का दिया 

थोडा सा सिंदूर 

कच्चा पापड़ 1 पीस 

इन सब सामान को इकठ्ठा कर लें l इन सब वस्तुओं को कच्चे पापड़ पे रखके, थाली में रख लें । दिन छिपने के बाद पापड़ को पीपल के पेड़ के नीचे रख लें व दीपक को जला दें । अपने इष्ट देव से बच्चे को ठीक करने की प्रार्थना करें । उसके बाद पीछे देखे बगेर चुपचाप घर आ जाएँ । घर आके हाथ मुंह धोलें । इस कार्य को शनिवार के दिन करना है गुप्त रूप से । यह क्रिया 5 शनिवार करें । कार्य पूरा होने पर, बजरंग बलि के मंदिर में प्रशाद अवश्य चढ़ाएं।

अगर बच्चा आपसे दूर जाने की कोशिश करे 

अगर बच्चा आपसे दूर जाने की कोशिश करे या घर छोड़ने की कोशिश करे या घर में उसका मन न लगे या सिर्फ अपने दोस्तो की बातें करे तो बच्चे की फोटो और १ सुपारी अपने इष्ट के सामने रख दे बाकि सब भगवान पर छोड़ दे. 

बच्चे के हाथ से बिना धोयी हुई रुमाल में उरद की दल बांधकर किसी गरीब को दे दे .

 

तीन महीने में १ बार चाँदी का १ छोटा सा टुकड़ा बच्चे के हाथ से बहते जल में बहाएं.

 

दीपावली, ग्रहण या किसी शुभ मुहूर्त्त में इस मन्त्र को सिद्ध कर लें। अमुक के स्थान पर जिस बच्चे को वश में करना है या कन्ट्रोल में लाना है उसका नाम लें। 

मन्त्र की दस माला करने के बाद लौंग, इलायची या मिसरी को 21 बार मन्त्र पढ़कर अभिमन्त्रित कर लें। बाद मे जिसका नाम लें उसे चाय में या प्रसाद में देकर खिला दें। वह बच्चा वश में हो जाएगा और आज्ञा मानेगा। यह प्रयोग पहली बार में सफल न हो तो पुनः करें।

 

मन्त्र इस प्रकार है-

ऊं क्लीम् क्लीम् अमुकं मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा।

वशीभूत व मंत्रमुग्ध करने के अचूक टोटके

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सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं।

यदि सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाएगी।

राई और प्रियंगु को ÷ह्रीं' मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके किसी स्त्री के ऊपर डाल दें तो वह वश में हो जाएगी।

शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाएं जिसका नाम लिखा है। फिर उस पुतली को छाती से लगाकर रखें। इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी।

बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ पीसकर जिसे सुंघाया जाए वह वशीभूत हो जाएगा।

नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेप माथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।

नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें। लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।

शुभ दिन एवं शुभ लग्न में सूर्योदय के पश्चात उत्तर की ओर मुंह करके मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप शुरू करें। ३१ दिनों तक ३ माला का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र सिद्ध करके वशीकरण तंत्र की किसी भी वस्तु को टोटके के समय इसी मंत्र से २१ बार अभिमंत्रित करके इच्छित व्यक्ति पर प्रयोग करें। अमुक के स्थान पर इच्छित व्यक्ति का नाम बोलें। वह व्यक्ति आपके वश में हो जाएगा। मंत्र इस प्रकार है -

ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुक महीपति मे वश्यं कुरू कुरू स्वाहा।

रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं। फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें। इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है। ऐसा काजल किसी को नहीं देना चाहिए।

अनार के पंचांग में सफेद घुघची मिला-पीसकर तिलक लगाने से समस्त संसार वश में हो जाता है।

कड़वी तूंबी (लौकी) के तेल और कपड़े की बत्ती से काजल तैयार करें। इसे आंखों में लगाकर देखने से वशीकरण हो जाता है।

बिल्व पत्रों को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। इसका तिलक करके साधक जिसके पास जाता है, वह वशीभूत हो जाता है।

कपूर तथा मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक लगाने से साधक को जो भी देखता है, वह वशीभूत हो जाता है।

केसर, सिंदूर और गोरोचन तीनों को आंवले के साथ पीसकर तिलक लगाने से देखने वाले वशीभूत हो जाते हैं।

श्मशान में जहां अन्य पेड़ पौधे न हों, वहां लाल गुलाब का पौधा लगा दें। इसका फूल पूर्णमासी की रात को ले आएं। जिसे यह फूल देंगे, वह वशीभूत हो जाएगा। शत्रु के सामने यह फूल लगाकर जाने पर वह अहित नहीं करेगा।

अमावस्या की रात्रि को मिट्टी की एक कच्ची हंडिया मंगाकर उसके भीतर सूजी का हलवा रख दें। इसके अलावा उसमें साबुत हल्दी का एक टुकड़ा, ७ लौंग तथा ७ काली मिर्च रखकर हंडिया पर लाल कपड़ा बांध दें। फिर घर से कहीं दूर सुनसान स्थान पर वह हंडिया धरती में गाड़ दें और वापस आकर अपने हाथ-पैर धो लें। ऐसा करने से प्रबल वशीकरण होता है।

प्रातःकाल काली हल्दी का तिलक लगाएं। तिलक के मध्य में अपनी कनिष्ठिका उंगली का रक्त लगाने से प्रबल वशीकरण होता है।

कौए और उल्लू की विष्ठा को एक साथ मिलाकर गुलाब जल में घोटें तथा उसका तिलक माथे पर लगाएं। अब जिस स्त्री के सम्मुख जाएगा, वह सम्मोहित होकर जान तक न्योछावर करने को उतावली हो जाएगी।

प्रेमिका वा सौतन से छुटकारे हेतु उपाय

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अगर आपका जीवनसाथी, प्रेमिका, प्रेमी , भाई ,बहन, बेटी, बेटा ,रिश्तेदार, पति आप से दूर चला गया हो और वो आपको संपर्क न करे तो आप यह सरल प्रभावकारी टोटका कर सकते है ! आपका बॉस आपसे खुश नहीं रहता या आप की तरफ ध्यान नहीं देता तो भी आप यह कर सकते है !

आप सबसे पहले किसी भी अमावस्या के दिन दो सूखे हुए पीपल के पत्ते तोड़ ले, नीचे ज़मीन से न उठाए, जो कुछ पीले/सूखे से हो पेड़ से ही तोड़ेँ, आप जिस से प्यार करते है, या जिस व्यक्ति को प्रभावित करना चाहते हो उस का नाम दोनों पीपल के पत्तो पर लिख देँ, एक पत्ते पर काजल से लिखेँ और उसको वहीँ पीपल के पेड़ के पास उल्टा कर के रख दे और उस पर भारी पत्थर रख दे, और दूसरे पत्ते पर लाल सिँदूर से लिखेँ और उसको लाकर अपने घर की छत पर उल्टा कर के रख देँ और उस पर भी पत्थर रख दे, ये आपको आगामी पूर्णिमा तक करना है यानि 16 दिन और प्रतिदिन पीपल के पेड़ में अपने साथी को वापस पाने की प्रार्थना करते हुए पानी भी चढायेँ ।

कुछ दिन बाद आपने जिसका नाम लिखा था वह व्यक्ति आपसे संपर्क करेगा और वो आपकी तरफ पुनः आकर्षित होने लगेगा । फिर सभी पत्ते एकत्र कर किसी शुद्ध स्थान पर गड्ढे मेँ दबा देँ। 

अगर पति या प्रेमी का पत्नी या प्रेमिका के प्रति प्यार कम हो गया हो तो श्री कृष्ण का स्मरण कर तीन इलायची अपने बदन से स्पर्श करती हुई शुक्रवार के दिन छुपा कर रखें। जैसे अगर साड़ी पहनतीं हैं तो अपने पल्लू में बांध कर उसे रखा जा सकता है और अन्य लिबास पहनती हैं तो रूमाल में रखा जा सकता है।

शनिवार की सुबह वह इलायची पीस कर किसी भी व्यंजन में मिलाकर पति या प्रेमी को खिला दें। मात्र तीन शुक्रवार में स्पष्ट फर्क नजर आएगा। 

शुक्ल पक्ष के रविवार को ५ लौंग शरीर में ऐसे स्थान पर रखें जहां पसीना आता हो व इसे सुखाकर चूर्ण बनाकर दूध, चाय में डालकर जिस किसी को पिला दी जाए तो वह वश में हो जाता है।

कुछ रामबाण उपाय हर समस्या के लिए

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रामबाण उपाय

जीवन में हमें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ परेशानियां स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं जबकि कुछ समस्याओं के निदान के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। तंत्र शास्त्र के माध्यम से जीवन की कई समस्याओं का निदान किया जा सकता है। गोमती चक्र एक ऐसा पत्थर है जिसका उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। यह बहुत ही साधारण सा दिखने वाला पत्थर है लेकिन इसका यह बहुत प्रभावशाली है। इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-

1- यदि बार-बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।

2- यदि कोई कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाए तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।

3- यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है उतने गोमती चक्र लेेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे।

4- यदि पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलूं बलजाद कहकर फेंद दें, मतभेद समाप्त हो जाएगा।

5- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।

6- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।

7- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।

Wednesday, 26 July 2017

गोविंद दामोदर स्तोत्र (कृष्ण स्तोत्र), govindam damodar stortar

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गोविंद दामोदर स्तोत्र (कृष्ण स्तोत्र)

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गोविंद दामोदर स्तोत्र


अग्रे कुरूनाम् अथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृत वस्त्रकेशा ।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथ गोविंद दामोदर माधवेति ॥
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे ।
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति ॥
विक्रेतुकाम अखिल गोपकन्या मुरारी पदार्पित चित्तवृत्त्यः ।
दध्योदकं मोहवसादवोचद् गोविंद दामोदर माधवेति ॥
जगधोय दत्तो नवनीत पिण्डः गृहे यशोदा विचिकित्सयानि ।
उवाच सत्यं वद हे मुरारे गोविंद दामोदर माधवेति ॥
जिह्वे रसाग्रे मधुरा प्रिया त्वं सत्यं हितं त्वं परमं वदामि ।
अवर्णयेत मधुराक्षराणि गोविंद दामोदर माधवेति ॥
गोविंद गोविंद हरे मुरारे गोविंद गोविंद मुकुंद कृष्ण ।
गोविंद गोविंद रथांगपाणे गोविंद दामोदर माधवेति ॥
सुखावसाने त्विदमेव सारं दुःखावसाने त्विदमेव गेयम् ।
देहावसाने त्विदमेव जप्यं गोविंद दामोदर माधवेति ॥
वक्तुं समर्थोपि नवक्ति कश्चित् अहो जनानां व्यसनाभिमुख्यम् ।
जिह्वे पिबस्वमृतमेतदेव गोविंद दामोदर माधवेति ॥



सन्तानगोपाल स्तोत्र, santan gopal strota

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 सन्तानगोपाल स्तोत्र

॥ सन्तानगोपाल स्तोत्र ॥
सन्तानगोपाल मूल मन्त्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।



सन्तानगोपालस्तोत्रं
श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् ।
सुतसंप्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥१॥
नमाम्यहं वासुदेवं सुतसंप्राप्तये हरिम् ।
यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम्॥२॥
अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥३॥
गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् ।
पुत्रसंप्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम् ॥४॥
पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम् ।
देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥५॥
पद्मापते पद्मनेत्रे पद्मनाभ जनार्दन ।
देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते ॥६॥
यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
अस्माकं पुत्र लाभाय नमामि श्रीशमच्युतम् ॥७॥
श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिर्हरणाच्युत ।
गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन ॥८॥
भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥९॥
रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा ।
भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः ॥१०॥

देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥११॥
वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥१२॥
कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥१३॥
लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥१४॥
कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा ।
नमामि पुत्रलाभार्थ सुखदाय बुधाय ते ॥१५॥
राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे ।
तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे ॥१६॥
अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते ॥१७॥
श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥१८॥
अस्माकं पुत्रसंप्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन ।
रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ॥१९॥
वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव ।
पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो ॥२०॥

डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन ॥२१॥
नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते ।
कमलनाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित ॥२२॥
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।
सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे ॥२३॥
यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनं ।
वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा ॥२४॥
नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो ।
रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते ॥२५॥
पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव ।
अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते ॥२६॥
गोपाल डिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते ।
अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते ॥२७॥
मद्वाञ्छितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत ।
मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन ॥२८॥
याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसंपदम्।
भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो ॥२९॥
आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम् ।
अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन ॥३०॥

वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम् ।
अस्माकं पुत्रसंप्राप्त्यै सदा गोविन्दमच्युतम् ॥३१॥
ॐकारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम् ।
क्लींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम् ॥३२॥
वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत ।
देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो ॥३३॥
राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो ।
समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा ॥३४॥
अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते ।
देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव ॥३५॥
नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥३६॥
दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत ।
गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम् ॥३७॥
यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत ।
देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक ॥३८॥
अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते ।
भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते ॥३९॥
रमाहृदयसंभारसत्यभामामनः प्रिय ।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ॥४०॥

चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव ।
अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते ॥४१॥
कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित ।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन ॥४२॥
देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते ।
समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा ॥४३॥
भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव ।
देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते ॥४४॥
श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन ।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो ॥४५॥
जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे ।
वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो ॥४६॥
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥४७॥
दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥४८॥
गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥४९॥
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन ।
मत्पुत्रफलसिद्ध्यर्थं भजामि त्वां जनार्दन ॥५०॥

स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखांबुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलाङ्गम् ।
स्पृशन्तमन्यस्तनमङ्गुलीभिर्वन्दे यशोदाङ्कगतं मुकुन्दम् ॥५१॥
याचेऽहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥५२॥
अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते ।
शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित ॥५३॥
वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम ।
कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित ॥५४॥
कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दनम् ।
मह्यं च पुत्रसन्तानं दातव्यंभवता हरे ॥५५॥
वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत ।
देहि मे तनयं राम कौशल्याप्रियनन्दन ॥५६॥
पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव ।
देहि मे तनयं सीताप्राणनायक राघव ॥५७॥
कञ्जाक्ष कृष्ण देवेन्द्रमण्डित मुनिवन्दित ।
लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा ॥५८॥
देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन ।
सीतानायक कञ्जाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद ॥५९॥
विभीषणस्य या लङ्का प्रदत्ता भवता पुरा ।
अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव ॥६०॥

भवदीयपदांभोजे चिन्तयामि निरन्तरम् ।
देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव ॥६१॥
राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद ।
देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित ॥६२॥
राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे ।
भाग्यवत्पुत्रसन्तानं दशरथप्रियनन्दन ।
देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव ॥६४॥
कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शङ्कर ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥६५॥
गोपबाल महाधन्य गोविन्दाच्युत माधव ।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते ॥६६॥
दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोऽयं
दिशतु दिशतु शीघ्रं भाग्यवत्पुत्रलाभम् ।
दिशतु दिशतु शीघ्रं श्रीशो राघवो रामचन्द्रो
दिशतु दिशतु पुत्रं वंश विस्तारहेतोः ॥६७॥
दीयतां वासुदेवेन तनयोमत्प्रियः सुतः ।
कुमारो नन्दनः सीतानायकेन सदा मम ॥६८॥
राम राघव गोविन्द देवकीसुत माधव ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥६९॥
वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७०॥

ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७१॥
चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७२॥
विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा ।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो ॥७३॥
नमामि त्वां पद्मनेत्र सुतलाभाय कामदम् ।
मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम् ॥७४॥
भगवन् कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद ।
देहि मे तनयं स्वामिंस्त्वामहं शरणं गतः ॥७५॥
स्वामिंस्त्वं भगवन् राम कृष्न माधव कामद ।
देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गतः ॥७६॥
तनयं देहिओ गोविन्द कञ्जाक्ष कमलापते ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७७॥
पद्मापते पद्मनेत्र प्रद्युम्न जनक प्रभो ।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥७८॥
शङ्खचक्रगदाखड्गशार्ङ्गपाणे रमापते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥७९॥
नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन ।
सुतं मे देहि देवेश पद्मपद्मानुवन्दित ॥८०॥

राम राघव गोविन्द देवकीवरनन्दन ।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुरार्चित ॥८१॥
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥८२॥
मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥८३॥
गोपिकार्जितपङ्केजमरन्दासक्तमानस ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥८४॥
रमाहृदयपङ्केजलोल माधव कामद ।
ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गतः ॥८५॥
वासुदेव रमानाथ दासानां मङ्गलप्रद ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥८६॥
कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥८७॥
पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥८८॥
पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥८९॥
दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥९०॥

पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम् ।
वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्र लाभ प्रदायिनम् ॥९१॥
कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये ।
नमस्ते पुत्रलाभाय देहि मे तनयं विभो ॥९२॥
नमस्तस्मै रमेशाय रुमिणीवल्लभाय ते ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥९३॥
नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च ।
पुत्रदाय च सर्पेन्द्रशायिने रङ्गशायिने ॥९४॥
रङ्गशायिन् रमानाथ मङ्गलप्रद माधव ।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक ॥९५॥
दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव ।
सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते ॥९६॥
यशोदातनयाभीष्टपुत्रदानरतः सदा ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥९७॥
मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥९८॥
नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजापते ।
भगवंस्त्वत्कृपायाश्च वासुदेवेन्द्रपूजित ॥९९॥
यःपठेत् पुत्रशतकं सोऽपि सत्पुत्रवान् भवेत ।
श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च ॥१००॥

जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम् ।
ऐश्वर्यं राजसम्मानं सद्यो याति न संशयः ॥१०१॥


नोट: उत्तम संतान की प्राप्ति व संतान सुख हेतु संतान गोपाल स्तोत्र का नियमित पाठ करने से शीघ्र लाभ प्राप्त होता हैं।