महाभारत में दो पात्र हैं जिन्हें बिना किसी किसी भी गलती के भी सदैव अपमान तिरस्कार प्राप्त हुआ।
एक है द्रौपदी । उसके पास पांच पति थे - फिर भी रक्षा के लिए कोई नहीं, उसके पांच बेटे थे - फिर भी युद्ध समाप्ति के बाद कोई भी जीवित नहीं। द्रौपदी एक राजकुमारी , जिसके पिता ने सदैव द्रोपदी का इस वजह से तिरस्कार किया क्युकी वह एक पुत्र चाहते थे परन्तु उन्हें द्रोपदी के रूप में कन्या प्राप्त हुई।
दूसरा कर्ण है। वह कभी भी अपने भाइयों के लिए भाई नहीं था और कुंती के सबसे बड़े बेटे होने के बावजूद एक सूत के पुत्र होने के लिए उसे द्रौपदी के स्वयंवर में द्रौपदी द्वारा अपमानित किया गया था। कर्ण के कवच भी कृष्णा द्वारा छल से ले लिए गए। और छल से ही कर्ण को मारा गया।
द्रौपदी एक अतयंत सुन्दर राजकुमारी थी जिस के कारन प्रत्येक राजकुमार और राजा उस से विवाह करना चाहता था। द्रोपदी के भरी सभा मे सभी बड़े बुजुर्ग , गुरु और पिता समान व्यक्तियों के आगे अपमानित किया गया और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की गई। यह सब उसके पतियों की आँखों के सामने हुआ कित्नु वह कुछ न कर सके। उनमे से एक भी द्रोपदी के मान और सम्म्मान के लिए न सका न शास्त्र उठा सका। अतयंत सुन्दर, राजकुमारी, होने के बाद भी भरी राजसभा मे ऐसा अपमान।
कर्ण, जिसका जन्म कुंती ने दिया परन्तु लोक लाज के डर से उस जीवित पुत्र को नदी मे बहा दिया। कारण जिसे सर्व शक्तिशाली ब्रह्माश्त्र की विद्या गुरु परशुराम द्वारा प्रदान की गई परन्तु साथ ही परशुराम ने उसे श्राप भी दे दिया के यह विद्या मुसीबत के वक्त उसे याद नहीं आएगी। सूर्य पुत्र होने के कारन उसे सूर्य द्वारा कवच और कुण्डल प्राप्त हुए लेकिन इंद्रा ने छल द्वारा यह उस से ले लिए। कारण जो के दानवीर था परन्तु इसी दान शीलता को कर्ण की कमजोरी बनाकर इंद्रा ने साधु के वेश मे आकर उस से यह कवच और कुण्डल दान मे मांग लिए। पांचो पांडवो से अधिक शक्तिशाली और समर्थ होने के बावजूद उसे द्रोपदी ने स्वयंवर में सूत पुत्र कहकर प्रतियोगिता से बाहर कर दिया।
वास्तव मे इन्ही दो पात्रो का अपमान और हीनभावना ही महाभारत की युद्ध की मुख्या वजह बानी।
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