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Wednesday, 26 July 2017

फिटकरी का उपाय आपको धनवान बना देगा !(wealth remedies in indian jyotish)

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फिटकरी का छोटा सा उपाय आपको धनवान बना देगा !


आज के जीवन में पैसा सबसे अहम माना जाता है. यह सच भी है की जिसके पास पैसा नहीं होता है उसे कोई पूछता तक नहीं है. इसलिए इंसान हमेशा पैसा कमाने में लगा रहता है.(wealth remedies in indian jyotish) पैसा आजीविका कई साधन ही नहीं समाज में अपना नाम बनाने का भी साधन है. अगर कहा जाए तो यह गलत नहीं की आज पैसे के बैगेर इंसान कुछ भी नहीं है. अगर आप भी पैसों की तंगी से परेशान हो तो आपको आज मैं एक ऐसा उपाय बताने वाला हूँ जिसे करने के बाद आपको पैसों की तंगी नहीं झेलनी पड़ेगी. यह फिटकरी के हम कुछ उपाय बता रहे है, यह बहुत ही कारगार है उपाय है जो बहुत से लोगों को पैसों की तंगी से उबार चूका है.
वास्तुदोष से छुटकारा दिलाता है फिटकरी का यह उपाय – यदि आपके घर में किसी भी तरह का वास्तु दोष है तो आपको फिटकरी का छोटा सा उपाय करना चाहिए.50 ग्राम फिटकरी का टुकड़ा लेकर आप अपने ऑफिस या अपने घर में रख सकते हो. ऐसा करने से घर का और ऑफिस का वास्तु दोष किसी भी तरह से प्रभावी नहीं होता है.
व्यवसाय में उन्नति के लिए – यदि आपका व्यवसाय मंदा हो गया है तो फिटकरी का यह उपाय आपको मंदी से छुटकारा दिला सकता है. आपको सिर्फ काले कपड़े में फिटकरी को बांधकर अपने कार्यस्थल पर रखना है. आपको इसका फल बहुत ही जल्द देखने को मिलेगा.(wealth remedies in indian jyotish)
बुरे सपनों से छुटकारा – यदि आपको या आपके परिवार के सदस्य को बुरे सपने आते है या डर लगता है तो फिटकरी का एक छोटा सा टुकड़ा आप कपड़े में बांधकर अपने सिरहाने रख सकते हो. ऐसा करने से किसी भी तरह का डर या डरावना सपना आपको नहीं आएगा.
बुरी एनर्जी से छुटकारा – जैसा की अब होली आ रही है, कहा जाता है की होली के दिन यदि फिटकरी का एक टुकड़ा अपने सभी परिवार वालों के सर के उपर से सात बार घुमाकर और काले कपड़े में बांधकर पानी में तेरा दिया जाए तो बुरी शक्तियों का नाश हो जाता है.(wealth remedies in indian jyotish)
पर्स में रखे फिटकरी – विद्वानों के अनुसार पर्स में फिटकरी का एक छोटा सा टुकड़ा रखने पर  आपका पर्स कभी खाली नहीं होगा. माना जाता है की फिटकरी साथ में रखने से किसी भी गलत जगह पैसा नहीं लगता है.

नवरात्रि में कर्ज से मुक्ति के सरल उपाय

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नवरात्रि में कर्ज  से मुक्ति के सरल उपाय

नवरात्रि में अवश्य आजमाएं कर्ज से मुक्ति के सरल उपाय
* हर तरह का कर्ज मिटेगा इन उपायों से, नवरात्रि में अवश्य आजमाएं...
चैत्र नवरात्रि को सिद्ध नवरात्रि माना जाता है। इन 9 दिनों में मां अंबे की कृपा से ऐसे संयोग बनते हैं जिनमें यदि सही तरह से पूजन-पाठ किया जाए तो मनवांछित फल प्राप्त होते हैं। यदि कोई जातक कर्ज से परेशान है तो निम्न उपायों को पूरी श्रद्धा और भक्ति से किया जाए तो प्रत्येक प्रकार के कर्ज से मुक्ति मिलती है।
आटे से उपाय- नवरात्रि में गेहूं आटे को स्वच्छ जल में गूंथकर उसकी एक लोई बना लें व इसे बहते जल में प्रवाहित कर दें। मान्यता है कि ऐसा करने से मां की कृपा होती है व जल्द ही अच्छे परिणाम मिलने लगते हैं।
कमलगट्टे से उपाय- कमलगट्टे को पीसकर उसमें देशी घी से बनी सफेद बर्फियां मिलाकर इसकी 21 आहूतियां दें।
गुलाब के फूलों से उपाय- एक सफेद वस्त्र लें और इसमें 5 फूल गुलाब के, 1 चांदी का टुकड़ा, कुछ चावल व थोड़ा गुड़ रखकर इसे बांध लें। अब 21 बार सही उच्चारण करते हुए गायत्री मंत्र का पाठ करें व कर्ज से मुक्ति की कामना करते हुए इसे पानी में बहा दें।
लौंग व कपूर से उपाय- कमल के फूल की पत्तियां लें। अब इन पर मक्खन व मिस्री लगाएं। अब 48 लौंग व 6 कपूर की माता को आहूति दें। मान्यता है कि ऐसा करने से जल्द ही कर्ज का बोझ कम होने लगता है।
इसके अलावा नवरात्र के प्रारंभ में केले के पेड़ की जड़ में चावल, रोली, फूल, पानी अर्पित करें व नवमी वाले दिन इसी पेड़ की थोड़ी-सी जड़ अपनी तिजोरी में रखें। मान्यता है कि इससे धन में वृद्धि होने लगती है।
रोली, चावल, फूल, धूप, दीप आदि से पीली कौड़ी अथवा हरसिंगार की जड़ की पूजा कर उसे धारण कर लें, धारण न करना चाहें तो जेब में भी रख सकते हैं। कर्ज से मुक्ति के लिए यह उपाय भी कारगर सिद्ध होता है।

कैसे हुआ द्वारिका का अंत, how the ancient holy city dwarka finshed

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यूँ तो द्वारिका की समाप्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है, लेकिन मुख्य रूप से द्वारिका के अंत के लिए दो ही कारण ज्यादा महत्व रखते हैं, एक तो, गांधारी द्वारा दिया गया श्राप और दूसरा कारण कृष्ण पुत्र साम्ब को ऋषि मुनियों द्वारा दिया गया श्राप,  यही दो कारण मुख्यतः जिम्मेदार हैं इस नगरी के विध्वंस के लिए, आईये इन दोनों कारणों के बारे में ही विस्तार से जानते हैं कि क्यों और कब हुआ ऐसा और इसके कारण क्या थे :

बात तब की है जब महाभारत युद्ध पश्चात युधिष्ठिर के राज तिलक की तैयारी चल रही थी, लेकिन इस सबसे गांधारी बहुत दुःखी थी और उन्होंने इस युद्ध के लिए श्री कृष्ण को जिम्मेदार ठहराते हुए समस्त यदुवंशियों को श्राप दिया कि जिस प्रकार से कौरवों के वंश का नाश हुआ है उसी प्रकार से ही यदुवंशियों का भी नाश हो जाएगा। इस तरह ये तो प्रथम कारण हुआ।

अब दूसरा कारण यह था कि महाभारत युद्ध को बीते हुए ३६ वर्ष हो गए थे, और द्वारिका में तरह तरह के अपशकुन भी होने लगे थे, एक बार, टहलते - टहलते ऋषि विश्वामित्र, कण्व ऋषि और नारद द्वारिका आ पहुँचे, किन्तु वहां पहुँचने पर कुछ एक द्वारिकावासियों ने उनका उपहास उड़ाने को सोचा, इसी से प्रेरित होकर उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को स्त्री भेष में ऋषियों के पास ले गये, और कहने लगे कि मुनिवर यह स्त्री गर्भवती है कृपया बताइये इसके.गर्भ से क्या उत्पन्न होगा, लेकिन ऋषि यों को ये बात तुरंत पता लग गई, और उन्हें इस तरह खुद का उपहास उड़ाना अच्छा नहीं.लगा, तो उन्होंने क्रोधित होकर श्राप दे दिया और कहा की कृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अँधकवंशियों का नाश करने के लिए यह मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे दुष्ट व क्रूर लोग स्वयं
के कुल का नाश कर लोगे, और इस मूसल के प्रभाव से केवल व.केवल कृष्ण और बलराम ही बच पाऐगें, और जब यह बात कृष्ण को पता चली तो उन्होंने कहा कि, ये बात अवश्य ही सत्य होगी, व अगले ही दिन साम्ब को मूसल उत्पन्न हुआ और जैसे ही मूसल उत्पन्न हुआ, महाराज उग्रसेन ने मूसल को समुद्र में डलवा दिया और कृष्ण व उग्रसेन ने राज्य मे यह घोषणा करवा दी कि, आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा नहीं बनाएगा ऐसा आदेश मान सबों ने मदिरा बनाना बंद कर दिया, और कुछ दिन बाद वहाँ भयंकर अपशकुन होने लगे, प्रतिदिन ही आँधियां चलने लगीं, खूब सारे चूहे हो गये, और इनकी इतनी अधिकता हो गई, कि सड़कों पर मनुष्यों से ज्यादा तो चूहे दिखने लगे, एवं ये चूहे सोते हुए मनुष्यों के बाल व नाखून तक कुतर डालते थे। गायों के पेट से भैसे, घोड़ीयों के गधे पैदा होने लगे, और उस पर यदुवंशियों को पाप करते शर्म भी नहीं आती थी, जब कृष्ण ने इन होते अपशकुनों को देखा और विचार किया कि गांधारी के श्राप का समय आ गया है, ऐसा जानकर पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर कृष्ण जी काल की अवस्था पर विचार करने लगे, और उन्होंने गांधारी के श्राप को सत्य जानकर सभी यदुवंशि
-यों को तीर्थ जाने के लिए आज्ञा दी, यह आज्ञा पाकर सभी लोग प्रभास तीर्थ आके निवास करने लगे एक दिन वृष्णि, अँधकवंशी आपस में बात कर रहे थे कि बातों ही बातों में सत्यकि ने कृतवर्मा का अनादर कर दिया जबाव में कृतवर्मा ने भी बुरा भला कहा, व इससे सत्यकि को क्रोध आ गया, और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया यह देख अंधकवंशी  सत्यकि को घेरकर मारने लगे उसको अकेला जानकर कृष्ण पुत्र प्रद्दुम्न उसे बचाने दौडे़, और सत्यकि व प्रद्दुम्न अकेले ही सबसे लड़ गये किंतु वे सबों का सामना न कर पाये, और वे अंधकवंशियों के हाथों मारे गये, अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार पा करके कृष्ण क्रोधित हो गये और उन्होंने एक मुठ्ठी एरका घास उखाड़ ली, और हाथ में आते ही वह घास भयंकर मूसल में बदल गयी अब श्री कृष्ण उसी मूसल से सभी का वध करने लगे, अब तो जो भी घास उखाड़ता वो मूसल में बदल जाती इस तरह से ही सब आपस में लड़ने लगे, और एकदूसरे का वध करने लगे, लेकिन इस युद्ध में कृष्ण ने जब सांब, चारूदेष्ण, अनिरूद्द व
गद को मृत्यु शैय्या पर देखा तो वे और अधिक क्रोधित हो गये, जिससे उन्होंने भयंकर रूप धर सभी का संहार कर डाला, अब केवल कृष्ण के सारथी दारूक ही शेष बचे थे, उन्होंने तत्काल हस्तिनापुर जाकर अर्जुन को सारी बात बताकर लेकर आने को कहा, और बलराम को वहीं रूकने को कहकर स्वंय द्वारिका चले गए, वहाँ पहुँच कर उन्होंने सारी घटना अपने पिता वासुदेव को बतायी और उन्होंने वासुदेव से अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करने को कहकर स्वयं बलराम से मिलने फिर पहुँच गये, और जब वे बलराम के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि बलराम जी समाधि में लीन है, और देखतें हैं कि, बलराम के मुँह से एक भयंकर सर्प निकला और समुद्र की ओर चला गया, और उसके स्वागत को स्वयं समुद्र हाथ जोडे़ं खड़े हैं। तब कृष्ण ये सब देख कर आगे चले गये, और एक उचित स्थान देख विश्राम करने लगे, और गाँधारी के श्राप के बारे में विचार करने लगे और धीरे-धीरे देह त्यागने की इच्छा से अपनी इंद्रियों को संयंमित करके महासमाधि की अवस्था में लेट गये, कि तभी जरा नाम का एक बहेलिया हिरन समझ उन
पर बाण चला दिया, लेकिन जब पास आकर कृष्ण को देखा, तो वो हाथ जोड़कर माफी व पश्चाताप करने लगा, परंतु तब भगवान श्री कृष्ण उसको आश्वासन देकर अपने परमधाम को चले गये, वहाँ सभी देवतागणों ने उनका स्वागत किया। इधर जब दारूक अर्जुन को लेकर द्वारिका पहँचे तो वहाँ की हालत और कृष्ण की रानियों को देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ, और जब अर्जुन अपने मामा वासुदेव से मिले, तो वे भी बिलख कर रोने लगे और फिर वासुदेव ने श्री कृष्ण के संदेश को बताया, और तब अर्जुन ने कृष्ण के इस आदेश हेतु द्वारिका के सभी मंत्रियों की सभा बुलाई, और सब द्वारिकावासियों को सातवें दिन द्वारिका छोड़कर इंद्रप्रस्थ चलने का आदेश दिया, अगले दिन वासुदेव जी ने भी प्राण त्याग दिये और उनकी सभी रानियों ने भी चिता में जलकर आहुति दे दी अर्जुन ने इन सभी का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर, यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। और, ठीक सांतवें दिन वे भगवान कृष्ण और सभी द्वारिका वासियों को ले करके इंद्रप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया, और ठीक सातवें दिन पूरी द्वारिका नगरी भी आश्चर्यजनक रूप से समुद्र में डूब गयी ।

                   इस तरह से यही वो कारण जान पड़ते है जो द्वारिका के सर्वनाश के लिए उत्तरदायी थे।