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Friday, 5 July 2019
श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है
बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा कि, ‘हे कृष्ण हमे अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने को जाना है, और ये यमुना जी बीच में पड़ती है | अब तुम बताओ हम कैसे जाएं?
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो उनसे कहना कि, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमें रास्ता दो | गोपियाँ हंसने लगी कि, लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है कभी मटकिया फोड़ता है … खैर फिर भी हम बोल देंगी |
गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दें, और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया | गोपियाँ तो सन्न रह गई ये क्या हुआ ? कृष्ण ब्रह्मचारी ? !!! अब गोपियां अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापस आने लगी तो उन्होंने अगस्त्य ऋषि से कहा कि, अब हम घर कैसे जाएं ? यमुनाजी बीच में है | अगस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्यजी निराहार है तो हमें रास्ता दें |
गोपियाँ मन में सोचने लगी कि अभी हम इतना सारा भोजन लाई सो सब गटक गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं? गोपियां यमुना जी के पास जाकर बोली, हे यमुना जी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दें, और यमुना जी ने रास्ता दे दिया |
गोपियां आश्चर्य करने लगी कि जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है? और जो दिन रात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो कृष्ण ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है? इसी उधेड़बुन में गोपियों ने कृष्ण के पास आकर फिर से वही प्रश्न किया |
भगवान श्री कृष्ण कहने लगे, गोपियों मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नहीं है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ | मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा मैं तो निर्मोही हूँ | इसीलिए यमुना ने आप को मार्ग दिया |
तब गोपियां बोली भगवन, मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वो बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हो तो हे यमुना मैया मार्ग दें! और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुना ने मार्ग दे दिया! श्री कृष्ण हंसने लगे और बोले कि, अगत्स्य आजन्म उपवासी हैं | अगत्स्य मुनि भोजन ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं | और उनका भोजन में कोई मोह नहीं होता उनको कतई मन में नहीं होता कि में भोजन करूं या भोजन कर रहा हूँ | वो तो अपने अंदर रह रहे मुझे भोजन करा रहे होते हैं, इसलिए वो आजन्म उपवासी हैं | जो मुझसे प्रेम करता है, मैं उनका सच में ऋणी हूँ, मैं तुम सबका ऋणी हूँ...जय जय श्री राधेकृषणा जी।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि, जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो उनसे कहना कि, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमें रास्ता दो | गोपियाँ हंसने लगी कि, लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है कभी मटकिया फोड़ता है … खैर फिर भी हम बोल देंगी |
गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दें, और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया | गोपियाँ तो सन्न रह गई ये क्या हुआ ? कृष्ण ब्रह्मचारी ? !!! अब गोपियां अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापस आने लगी तो उन्होंने अगस्त्य ऋषि से कहा कि, अब हम घर कैसे जाएं ? यमुनाजी बीच में है | अगस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्यजी निराहार है तो हमें रास्ता दें |
गोपियाँ मन में सोचने लगी कि अभी हम इतना सारा भोजन लाई सो सब गटक गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं? गोपियां यमुना जी के पास जाकर बोली, हे यमुना जी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दें, और यमुना जी ने रास्ता दे दिया |
गोपियां आश्चर्य करने लगी कि जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है? और जो दिन रात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो कृष्ण ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है? इसी उधेड़बुन में गोपियों ने कृष्ण के पास आकर फिर से वही प्रश्न किया |
भगवान श्री कृष्ण कहने लगे, गोपियों मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नहीं है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ | मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा मैं तो निर्मोही हूँ | इसीलिए यमुना ने आप को मार्ग दिया |
तब गोपियां बोली भगवन, मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वो बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हो तो हे यमुना मैया मार्ग दें! और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुना ने मार्ग दे दिया! श्री कृष्ण हंसने लगे और बोले कि, अगत्स्य आजन्म उपवासी हैं | अगत्स्य मुनि भोजन ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं | और उनका भोजन में कोई मोह नहीं होता उनको कतई मन में नहीं होता कि में भोजन करूं या भोजन कर रहा हूँ | वो तो अपने अंदर रह रहे मुझे भोजन करा रहे होते हैं, इसलिए वो आजन्म उपवासी हैं | जो मुझसे प्रेम करता है, मैं उनका सच में ऋणी हूँ, मैं तुम सबका ऋणी हूँ...जय जय श्री राधेकृषणा जी।
Thursday, 31 August 2017
॥ राधा चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
श्री राधे वृषभानुजा, भक्तिन प्राणाधार।
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रणवौं बारंबार॥ कृष्णा
जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम॥
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रणवौं बारंबार॥ कृष्णा
जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम॥
॥ चौपाई ॥
जय वृषभानु कुँवरि श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा॥ (१)
नित्य बिहारिनि श्याम अधारा, अमित मोद मंगल दातारा॥ (२)
रास विलासिनि रस विस्तारिनि, सहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥ (३)
नित्य किशोरी राधा गोरी, श्याम प्राण धन अति जिय भोरी॥ (४)
करुणा सागर हिय उमंगिनि, ललितादिक सखियन की संगिनी॥ (५)
दिनकर कन्या कूल विहारिनि, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥ (६)
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैं, राधा राधा कहि हरषावैं॥ (७)
मुरली में नित नाम उचारें, तुम कारण लीला वपु धारें॥ (८)
प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी, श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी॥ (९)
नवल किशोरी अति छवि धामा, धुति लघु लगै कोटि रति कामा॥ (१०)
गोरांगी शशि निंदक बदना, सुभग चपल अनियारे नयना॥ (११)
जावक युत युग पंकज चरना, नुपूर धुनि प्रीतम मन हरना॥ (१२)
संतत सहचरि सेवा करहीं, महा मोद मंगल मन भरहीं॥ (१३)
रसिकन जीवन प्राण अधारा, राधा नाम सकल सुख सारा॥ (१४)
अगम अगोचर नित्य स्वरूपा, ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा॥ (१५)
उपजेउ जासु अंश गुण खानी, कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥ (१६)
नित्य धाम गौलोक विहारिनि, जन रक्षक दुख दोष नसावनि॥ (१७)
शिव अज मुनि सनकादिक नारद, पार न पायँ शेष अरु शारद॥ (१८)
राधा शुभ गुण रूप उजारी, निरखि प्रसन्न होत बनवारी॥ (१९)
ब्रज जीवन धन राधा रानी, महिमा अमित न जाय बखानी॥ (२०)
प्रीतम संग देइ गलबाँही, बिहरत नित्य वृन्दावन माँही॥ (२१)
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा, एक रूप दोउ प्रीत अगाधा॥ (२२)
श्री राधा मोहन मन हरनी, जन सुख दायक प्रफ़ुलित बदनी॥ (२३)
कोटिक रूप धरें नंद नंन्दा, दर्श करन हित गोकुल चन्दा॥ (२४)
रास केलि करि तुम्हें रिझावें, मान करौ जब अति दुख पावें॥ (२५)
प्रफ़ुलित होत दर्श जब पावें, विविध भाँति नित विनय सुनावें॥ (२६)
वृन्दारण्य विहारिनि श्यामा, नाम लेत पूरण सब कामा॥ (२७)
कोटिन यज्ञ तपस्या करहू, विविध नेम ब्रत हिय में धरहू॥ (२८)
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें, जब लगि राधा नाम न गावें॥ (२९)
वृन्दाविपिन स्वामिनि राधा, लीला वपु तब अमित अगाधा॥ (३०)
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा, और तुम्हैं को जानन हारा॥ (३१)
श्री राधा रस प्रीति अभेदा, सादर गान करत नित वेदा॥ (३२)
राधा त्यागि कृष्ण को भजि हैं, ते सपनेहुं जग जलधि न तरि हैं॥ (३३)
कीरति कुँवरि लाड़िली राधा, सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा॥ (३४)
नाम अमंगल मूल नसावन, त्रिविध ताप हर हरि मनभावन॥ (३५)
राधा नाम लेय जो कोई, सहजहिं दामोदर बस होई॥ (३६)
राधा नाम परम सुखदाई, भजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥ (३७)
यशुमति नन्दन पीछे फ़िरिहैं, जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं॥ (३८)
रास विहारिनि श्यामा प्यारी, करहु कृपा बरसाने वारी॥ (३९)
वृन्दावन है शरण तिहारी, जय जय जय वृषभानु दुलारी॥ (४०)
॥ दोहा ॥
श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरन्तर वास मैं, श्री वृन्दावन धाम॥
श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरन्तर वास मैं, श्री वृन्दावन धाम॥
॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥
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