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Thursday 30 November 2017

शनि अमावस्या

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श्री शनिदेव भाग्यविधाता, न्याय के देवता हैं, शनि अमावस्या को किये गए उपाय सफलता प्राप्त करने एवं ग्रहों के दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होते है।


शनि अमावस्या (Shani Amavasya) का ज्योतिष एवं तन्त्र शास्त्र में बहुत महत्व है। इस दिन किये गए उपायों से शनि देव (Shani Dev) प्रसन्न होते है ।

शनिवार की अमावस्या पर पड़ने वाले इस श्रेष्ठ संयोग में किये गए उपायों से ना केवल शनि देव की (Shani Dev) ही कृपा प्राप्त होगी वरन शनि अथवा कुंडली के किसी भी ग्रह के अशुभ प्रभावों में निश्चय ही कमी आएगी ।

वैसे तो सभी लोगो को शनि अमावस्या (Shani Amavasya) को उपाय करने चाहिए लेकिन जो लोग शनि की साढ़ेसाती (Shani ki Sade Sati) और ढैय्या से पीड़ित हैं उन्हें तो शनिश्चरी अमावस्या पर विशेष उपाय अवश्य ही करने चाहिए।

पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आवाहन और उनके दर्शन करे ।


श्री शनिदेव का आह्वान करने के लिए हाथ में नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत व जल लेकर इस मंत्र अदभुद वैदिक मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करें-

"ह्रीं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायार्मात्ताण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्"।।

ह्रीं बीजमय, नीलांजन सदृश आभा वाले, रविपुत्र, यम के अग्रज, छाया मार्तण्ड स्वरूप उन शनि को मैं प्रणाम करता हूं और मैं आपका आह्वान करता हूँ॥


शनि अमावस्या (Shani Amavasya) के दिन प्रात: जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके सात परिक्रमा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे अनुकूल मंत्र है --
"ॐ शं शनैश्चराय नम:।"
इस मंत्र की एक माला का जाप अवश्य करें
इस दिन आप श्री शनि देव के दर्शन जरूर करें।

शनिदेव की दशा में अनुकूल फल प्राप्ति कराने वाला मंत्र -
ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:

शनि अमावस्या के दिन बरगद के पेड की जड में गाय का कच्चा दूध चढाकर उस मिट्टी से तिलक करें। अवश्य धन प्राप्ति होगी।

उड़द की दाल की काला नमक डाल कर खिचड़ी बनाकर संध्या के समय शनि मंदिर (Shani Mandir) में जाकर भगवान शनि देव का भोग लगाएं फिर इसे प्रसाद के रूप में बाँट दें और स्वयं भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करें ।

शनि अमावस्या (Shani Amavasya) के दिन संध्या के समय पीपल के पेड़ पर सप्तधान / सात प्रकार का अनाज चढ़ाएं और सरसों या तिल के तेल का दीपक जलाएं, इससे कुंडली के ग्रहो के अशुभ फलो में कमी आती है। जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।

शनिवार के दिन काले उड़द की दाल की खिचड़ी काला नमक डाल कर खाएं इससे भी शनि दोष (Shani Dosh)के कारण होने वाले कष्टों में कमी आती है।

इस दिन मनुष्य को सरसों का तेल, उडद, काला तिल, देसी चना, कुलथी, गुड शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री अपने ऊपर वार कर शनिदेव के चरणों में चढाकर शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए।
शनिश्चरी अमावस्या को सुबह या शाम शनि चालीसा का पाठ या हनुमान चालीसा (Hanumaan Chalisa), बजरंग बाण का पाठ करें।

तिल से बने पकवान, उड़द से बने पकवान गरीबों को दान करें और पक्षियों को खिलाएं .

उड़द दाल की खिचड़ी दरिद्रनारायण को दान करें।

अमावस्या की रात्रि में 8 बादाम और 8 काजल की डिब्बी काले वस्त्र में बांधकर संदूक में रखें। इससे आर्थिक संकट दूर होते हैं नौकरी, व्यापार में धनलाभ, सफलता की प्राप्ति होती है ।

शनि अमावस्या के दिन संपूर्ण श्रद्धा भाव से पवित्र करके घोडे की नाल या नाव की पेंदी की कील का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करें।

शनि अमावस्या के दिन 108 बेलपत्र की माला भगवान शिव के शिवलिंग पर चढाए। साथ ही अपने गले में गौरी शंकर रुद्राक्ष 7 दानें लाल धागें में धारण करें।

जिनके ऊपर शनि की अशुभ दशा हो ऐसे जातक को मांस , मदिरा, बीडी- सिगरेट नशीला पदार्थ आदि का सेवन न करे ।

गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध क्यों माना जाता है |

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गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध क्यों माना जाता है |

  


                एक समय देवताओं  ने एक सभा का आयोजन किया ।उसमे सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया था ।सभी देवगण समय से सभा में पहुच गए ,लेकिन गणेशजी अभी तक नहीं पहुचे थे । उनका इंतजार हो रहा था, कि गणेशजी दोड़ते-दोड़ते सभा में पहुचे ।क्योकि एक तो उनकी सवारी एक बेचारा छोटा सा चूहा और गणेशजी इतने भारी भरकम । गणेशजी जी की यह दशा देखकर चंद्रमा को हँसी आ गई ।इस पर गणेशजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया "कि आज से जी भी तुम्हें देखेगा उस पर चोरी का इल्जाम लगेगा ।अब ये सब सुनकर सारे देवता हैरान रह गये, की ऐसा कैसे हो सकता है चंद्रमा तो रोज रात में उदय होता है और रोज सब लोग इसे देखेगे तब तो सारी दुनिया ही कलंकित हो जाएगी ।
              
 अब सभी देवताओ ने मिलकर गणेशजी से प्रार्थना की "कि प्रभु अगर ऐसा हुआ तो चंद्रमा कभी उदय नहीं होगा और यदि उदय हुआ तो सारी दुनिया ही कलंकित हो जाएगी । जब गणेशजी का गुस्सा शांत हुआ तो वे बोले "कि श्राप तो वापस नहीं हो सकता लेकिन मैं इसे कम कर सकता हूँ ।भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मेरा जन्म दिन आता है 
उस दिन जो चंद्रमा को देखेगा उसे कलंक जरूर लगेगा "।
               देवताओं ने कहा ठीक है फिर पूछा "कि इससे बचने का कोई उपाय है प्रभु "।तब गणेशजी बोले "कि मेरी जन्म तिथि से पहले जो दूज तिथि आती है उस दिन चाँद के दर्शन कर लेगा उस पर इस श्राप का असर नहीं पड़ेगा "। इस प्रकार गणेशजी के श्राप की वजह से ही गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना जाता है ।

माही चौथ की कहानी

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माही चौथ व्रत विधि 
                    माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है इस को तिल कुट्टा चौथ भी कहते है । यह व्रत महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र व स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती है । इस दिन कच्चे तिल को कूट कर उसमें गुड मिलाकर तिल कुट्टा बनाया जाता है फिर इससें ही कहानी सुनते है और पूजा करते है  कहानी सुनने के लिए मिट्टी से चार कोण का चोका लगाये ,चारो कोणों पर रोली से बिंदी लगाये । बीच मिट्टी या सुपारी से गणेशजी बनाकर रखे और रोली ,मोली व चावल से गणेशजी की पूजा करे ।अब पानी का कलश ,पताशा व चाँदी की अँगूठी चोके पर रखे । अपने हाथ में थोड़ा सा तिल कुट्टा ले और कहानी सुने । चौथ की कथा सुनने के बाद जो तिल कुट्टा हमने हाथ में लिया था उसे संभाल कर रख ले (क्योकि रात में हम चंद्रमा के अर्ग इसी से देगें ) । चार दाने गेहूं के लेकर गणेशजी की कहानी सुने और उसके बाद सूर्य को अर्ग दे ।जो चाँदी की अँगूठी हमने पूजा में रखी थी उसे भी अर्ग देते समय हाथ में ले लेवे ।रात चन्द्रमा के अर्ग ( जल चडाकर ) देकर बायना निकालते है जिसे अपनी सास ,ननद या अपने से बड़ा जो भी हो उसे देकर पैर छुते है उसके बाद व्रत खोला जाता है । व्रत तिल कुट्टा खाकर ही खोलते है ।
                    इसका उद्यापन भी होता है इसमें 13 सुहागन महिलाओं  को खाना खिलाया जाता है ।एक महिला को साड़ी उसपर सुहाग का सभी सामान दिया जाता है  बाकि महिलाओं  को एक ब्लाउज पीस व उस पर यथा शक्ति सुहाग का सामान रख कर दिया जाता है । कई जगह यह व्रत पुत्र के लिए भी किया जाता है ।                          
                                                माही चौथ की कहानी 
                 एक साहूकार था । उसकें  कोई संतान नही थी । एक दिन सहुकारनी ने चौथ माता  से प्रार्थना की ,कि " हे चौथ माता आप मुझे बेटा दोगी तो में आपके सवा मन (40 किलो ) तिल कुट्टा चड़ाउगी "। पहले के लोग दिल से भोले होते थे इसलिये भगवान भी उन पर जल्दी प्रसन्न हो जाते थे ।
   चौथ माता की कृपा से नवें महीने ही उसके बेटा हो जाता है । अब सहुकारनी कहती है कि "माता जब मेरा बेटा बड़ा होगा और इसकी शादी होगी तब मैं आपके दुगना तिल कुट्टा चड़ाऊँगी । बेटा बड़ा हो जाता है और उसकी शादी तय हो जाती है । लेकिन शादी के समय भी सहुकारनी चौथ माता को तिल कुट्टा चड़ाना भूल जाती है ।  तब चौथ माता ने सोचा कि ये तो मुझे भूल ही गई । इसको कुछ चमत्कार दिखाना चाहिए वरना मुझे कौन मानेगा ।
             चौथ माता ने शादी के समय उसके बेटे को फेरों में से गायब कर दिया । सब लोगो ने लडके को बहुत तलाश किया पर लड़का नही मिला क्योकि चौथ माता ने सबकी आँखों के सामने माया का पर्दा डाल दिया था ।बारात वापस लौट गई । जिस लड़की की साथ उस लड़के की शादी हो रही थी वह तालाब पर पानी भरने जाती तो उसे आवाज आती -"एक फेरा , दो फेरा ,तीन फेरा आ मेरी अध  ब्याही "। लड़की रोज इस आवाज को सुनती ,इससे वो परेशान रहने लगी ।
           उसकी माँ ने जब उसे उदास देखा तो पूछा कि "बेटी क्या बात है तू आजकल बहुत उदास दिखती है मुझे बता क्या बात है "। तब लड़की ने अपनी माँ से कहा कि "जब में पानी लेने तालाब पर जाती हूँ तो मुझे एक आवाज सुनाई देती है कि -"एक फेरा , दो फेरा ,तीन फेरा आ मेरी अध  ब्याही "। माँ ने कहा की "कल जब तुझे ये आवाज सुनाई दे तो तुम पूछना 'की तुम कॊन हो और मुझे ऐसा क्यों कहते हो , सामने आकर बात करो "।दुसरे दिन जब लडकी तालाब पर गई तो फिर उसे वो ही आवाज आई , तो उसने पूछा की "तुम कोंन  हो सामने आकर बात करो "
          तब एक लड़का उसके सामने आकर बोला की "मैं तेरा पति हूँ " ।लडकी ने कहा की "तुम तो फेरो में गायब हो गये थे "। तो लड़का बोला की " मेरी माँ ने चौथ मत से मन्नत मांगी थी की वो तिल कुट्टा चड़ाएगी ,लेकिन उसने ऐसा नही किया ,इस लिए चौथ मत ने मुझे फेरो से उठा लिया "।तब लडकी ने पुछा की "अब तुम  वापस कैसे आओगे "।लडके ने बताया की "जब मेरी माँ ,माता  के बोला हुआ पूरा कर  देगी तब मैं वापस आ जाऊँगा "।लडकी ने घर जाकर अपनी माँ को सारी  बात बताई , और बोला मुझे ससुराल जाना है ।
          लकड़ी ने ससुराल जाकर पानी सास को सारी बात बताई ,तब उसे याद आया की मैने मन्नत माँगी थी ।
तब सास और बहु दोनों ने मिलकर जितना तिल कुट्टा बोल था उससे दुगना तिल कुट्टा बनाया और बैंड - बाजा बजाते हुए चौथ माता को चडाने को लेकर गये ।
        चौथ मत ने इससे खुश होकर उसके बेटे को वापस कर दिया । सब लोग बहुत खुश होकर और लडके को लेकर घर आ गये और ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे ।
 हे चौथ माता जैसे उसे अपनी नाराजगी दिखाई वैसे किसी को मत दिखाना और बाद में उसे ख़ुशी दी वैसे सब को देना     

सोमवती अमावस्या व्रत की कहानी

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दोस्तों, सोमवती अमावस्या की अलग अलग कहानी प्रचलित है, ये कहानी भी सोमवती व्रत की अन्य कहानियो से थोड़ी से विभिन्न है तो विषय को समझते हए ध्यान से पढ़िए 

सोमवती  अमावस्या व्रत की कहानी 
                     एक साहुकार था उसके सात बेटे ,बहु और एक बेटी थी ।साहुकार के यहाँ एक जोगी भिक्षा मांगने आता था । जब साहुकार की बहुए जोगी को भिक्षा देती तो वो ले लेता लेकिन जब बेटी भिक्षा देती तो नहीं लेता , कहता कि तू  अभागी है तेरे हाथ से भिक्षा नही लूगां ।उसकी यह बात सुन-सुनकर बेटी सूखकर कांटा हो गई ।
                  एक दिन उसकी माँ ने पूछा कि "बेटी तुझे अच्छा खाने को मिलता है अच्छा पहनने को मिलता है फिर भी तू सुखकर कांटा हो रही है ! अगर तुझे कोई परेशानी है तो हमें बता "। बेटी बोली माँ हमारे यहां जो जोगी भिक्षा मांगने आता है वो भाभियों से तो भिक्षा ले लेता है पर जब मैं भिक्षा देने जाती हूँ तो कहता है " कि तू अभागी है "  तेरे हाथ से भिक्षा नही लूगाँ "।
                  दुसरे दिन जोगी जब भिक्षा लेने आया तो साहुकारनी बोली " कि एक तो मेरी बेटी तुझे भिक्षा देती है ऊपर से तू उसे ही अभागी कहता है "। जोगी बोला " कि मैं तो जो इसके भाग्य में लिखा है वो ही कहता हूँ "  तब साहुकारनी बोली कि जब तुझे इतना पता है तो इसको दूर करने का उपाय भी पता होगा ।वह बोला " कि उपाय तो है पर बहुत कठिन है "। वह बोली " कि तू बता मैं मेरी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ "। तब जोगी बोला " कि सात समुद्र पार एक सोभा धोबन रहती है ।वह सोमवती  अमावस्या का व्रत करती है वो ही इसे सुहाग दे सकती है । अन्यथा जब इसकी शादी होगी, तब इसके पति को फेरों में सांप काट लेगा और ये विधवा हो जाएगी । इतना सुनना था कि वह उठी और अपने बेटों को ये बात बताई ,और साथ चलकर सोभा धोबन को ढूढने के लिए कहा । सबने एक-एककर मना कर दिया तो वह अपनी बेटी को लेकर चल पड़ी सोभा धोबन को ढूढने ।
                  चलते-चलते वे समद्र के किनारे तक आ पहुची ।और सोचने लगी की अब आगे कैसे चले , इतना विशाल समुद्र कैसे पर करें । वहां एक बड़ का पेड़ था वही दोनों माँ-बेटी बैठ गई । उस पेड़ के ऊपर एक हंस का जोड़ा रहता था और नीचे पेड़ की जड़ में एक सांप रहता था । जब हंस का जोड़ा दाना चुगने जाता तो सांप हंस के बच्चो को खा जाता था ।हंस उसे देख नहीं पाते थे ।उस दिन भी सांप हंस के बच्चो को खाने के लिए पेड़ पर चढ  रहा था कि हंस के बच्चो की आवाज सुनकर माँ-बेटी ने देखा, कि सांप हंस के बच्चो को खाने जा रहा है तो उन्होंने सांप को मार दिया । शाम को जब हंस का जोड़ा आया तो उन्होंने माँ-बेटी को वहा बैठा पाया तो सोचा की ये ही मेरे बच्चो को मार देते है । जैसे ही वे उन माँ-बेटी को मारने को तैयार हुए कि पेड़ पर से बच्चो की आवाज सुनाई दी ।तो उन्हों ने देखा की हमारे बच्चे तो जिन्दा है तब बच्चो ने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे माँ-बेटी ने उनकी जान बचाई ।हंस ने उन्हें धन्यवाद दिया और उनका यहाँ आने का कारण पूछा ।माँ ने सारी बात बताई और बोली कि हम यहां तक तो आ गए पर समझ में नही आ रहा की आगे कैसे जाये ।तब हंस बोले की आप हमारे ऊपर बैठ जाओ हम आपको समुद्र पार पहुचा देते है ।इस तरह दोनों समुद्र पार पहुच गई ।उसने सोभा धोबन का घर ढूंढ़ लिया ।अब वह सवेरे जल्दी उठकर सोभा धोबन के घर का सारा काम करने लगी खाना बनाना , झाड़ू - पोछा , पानी भरना कपड़े धोना ।सोभा धोबन के सात बेटे-बहु थे । उसकी बहुए बहुत काम  चोर थी काम को लेकर वे आपस में बहुत झगड़ा करती थी ।लेकिन इधर कुछ दिनों से सोभा धोबन देख रही थी कि वे सब बिना झगड़ा किये सारा काम कर लेती है ।एक दिन उसने बहुओ से पूछा कि क्या बात है आजकल तुम सब मिलकर ख़ुशी-ख़ुशी सारा काम कर लेती हो और झगड़ा भी नही करती हो ।
                  इस पर उसकी सब बहुओ ने मना कर दिया की हम तो बहुत दिनों से काम करते ही नहीं है तब उसने सोचा की जब मेरी बहुएँ काम नहीं करती तो फिर कौन हैं जो मेरे घर का काम करता है ।ये तो मालूम करना होगा ।दुसरे दिन वह सुबह जल्दी उठी और उसने देखा की , एक औरत और एक लड़की घर का सारा काम करके वापस जा रही है । तो उसने उन दोनों को रोका और पुछा "की तुम कौन हो और मेरे घर का काम क्यों कर रही हो "! तब साहुकारनी  ने बताया कि ये मेरी लड़की है लकिन इसके भाग्य में सुहाग नहीं है और तुम सोमवती अमावस्या का व्रत व पूजा करती हो ,एक तुम ही हो जो मेरी बेटी को सुहाग दे सकती हो ।इसीलिए हम तेरे घर का सारा काम करती है ।       
                इस पर सोभा धोबन ने कहा कि "ठीक है तुमने इतने दिन मेरे घर का काम किया है, मैं तेरी बेटी को सुहाग जरूर दूँगी ,जब तेरी बेटी की शादी तय हो जाये तो उसके पीले चावल समुद्र में डाल देना मैं शादी में पहुचं जाऊँगी '। दोनों माँ-बेटी अपने घर आ गई । जब लड़की की शादी तय हुई तो माँ ने समुद्र में पीले चावल डाल दिए ।
               सोभा धोबन जब अपने घर से रवाना होने लगी तो बोली की मेरे जाने के बाद यदि घर में कुछ भी टूटता-फूटता है उसे जैसा हो वैसा ही रहने देना मेरे आने तक ,तुम लोग कुछ भी मत करना ।अपने घर वालो को ये हिदायत देकर वह साहुकार की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए रवाना हो गई ।
              जब साहुकार की बेटी के फेरें हो रहें थे तब सांप ने दुल्हे को डस (काट) लिया ।अब सब रोने-धोने लगे तब लड़की की माँ ने सोभा धोबन से कहा "कि आज के दिन के लिए मैंने तेरे यहाँ काम किया था ताकि तू मेरी बेटी को आज सुहाग दे सके "। सोभा धोबन ने कहा " कि तू चिंता मत कर "।वह उठी दुल्हे के पास गई और अपनी मांग में से सिंदूर लिया , आँख में से काजल और छोटी अँगुली से मेहंदी ली व  दुल्हे के छिटे दिये और बोली कि " आज तक मैंने जो सोमवती अमावस्या की उसका फल साहुकार की बेटी को जाना और आगे जो करू वह मेरे धोबी को जाना "।उसके ऐसे करते ही दुल्हा ठीक हो गया ।सब लोग बड़े खुश हो गये ।
             जब बारात विदा हो गई तो सोभा धोबन जाने लगी ,तब सबने कहा की अभी तो आपको विदा ही नही किया है अभी आप कैसे जा सकती है ।सोभा धोबन ने कहा कि मैं मेरे घर को ऐसे ही छोड़ कर आई थी।पता नही मेरे पीछे से वहा क्या हो रहा है ।आप विदा ही करना चाहते है तो मुझे एक मिट्टी का कलश देदो ।
            कलश लेकर वह घर के लिए रवाना हो गई ।रास्ते में सोमवती अमावस्या आई ,तो उसने कलश के 108 टुकड़े किए ,पीपल की पूजा की और परिक्रमा करके बोली " भगवान आज से पहले जो अमावस्या की ,उसका फल साहुकार की बेटी को दिया ,आज जो मैंने अमावस्या की उसका फल मेरे पति को देना फिर  कलश के टुकड़ो को खड्डा खोदकर गाड दिया और  घर के लिए चल दी।उधर घर पर उसका धोबी मर गया ।सब धोबन का इन्तजार कर रहे ।क्योकि वो कह कर गई थी कि मेरे पीछे से तुम लोग कुछ भी मत करना । जब वह घर पहुची तो देखा की उसका धोबी मरा पड़ा है और सब लोग रो रहे है ।उसने कहा कि सब लोग चुप हो जाओ । वह अपने धोबी के पास आई और अपनी मांग में से सिंदूर लिया ,आँख में से काजल और छोटी अंगुली में से मेहँदी निकालकर छिटे दिये ,और बोली भगवान आज से पहले जो अमावस्या की उसका फल साहुकार की बेटी को दिया ,आज जो मैंने अमावस्या की उसका फल मेरे पति को देना ।ऐसा करते ही उसका पति उठकर बैठ गया ।इतने में ब्राह्मन आया और बोला जजमान अमावस्या का दान दो ,धोबन बोली की मैंने तो पीपल के पेड़ के पास गाड दी, वहा से निकाल लो ।ब्राह्मन ने वहा जाकर देखा तो सोने की 108 मोहरे हो गई ।पूर गावँ में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सोमवती अमावस्या का व्रत ,पूजा करे व दान दे ।
           हे सोमवती माता जैसे आपने साहुकार की बेटी को सुहाग दिया और धोबी को जीवन दान दिया वैसे ही सबको देना ।कहते को सुनते को व हुंकारा  भरते को । घटती हो तो पूरी करे पूरी हो तो मान रखना भगवान ।

सोमवती अमावस्या की कथा, SOMVATI AMAVASYA KI KATHA

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सोमवती अमावस्या की कथा

एक साहूकार के सात बेटे और सात ही बहुओं के साथ एक बेटी भी थी. साहूकार के घर रोज एक जोगी आता था जिसे साहूकार की बहू भिक्षा देती थी. उस जोगी को जब साहूकार की बेटी भिक्षा देने आती तो वह उससे भिक्षा नहीं लेता था और कहता कि तेरे भाग्य में सुहाग की जगह दुहाग लिखा है. लड़की को उस जोगी की यह बात बहुत बुरी लगती और एक दिन वह अपनी माँ से रोते-रोते जोगी की बात बताती है. सारी बात सुनकर माँ कहती है कि कल जब जोगी आएगा तब मैं सुनती हूँ कि वह क्या कहता है और क्यूँ कहता है?
अगले दिन फिर जोगी आता है तो साहूकारनी छिपकर बैठ जाती है और लड़की को भिक्षा देने भेजती है. जोगी उससे भिक्षा नहीं लेता और फिर वही बात दोहराता है कि तेरे भाग्य में सुहाग की बजाय दुहाग लिखा है. लड़की की माँ बाहर निकल कर आती है और जोगी से कहती है कि एक तो हम तुझे भिक्षा देते हैं और तू हमें गाली देता है! जोगी कहता है कि मैं गाली नहीं दे रहा हूँ जो बात सच है वही कह रहा हूँ. इसके भाग्य में जो लिखा है मैं वही सच आपको बता रहा हूँ.
सारी बातें सुनने पर लड़की की माँ कहती है कि जब तुझे सारी बात पता है तो इससे बचने का उपाय भी पता होगा वह बता? जोगी कहता है कि सात समंदर पार एक धोबन रहती है जिसका नाम सोना है. वह सोमवती अमावस्या का व्रत करती है, अगर वह आकर इसे फल दे दे तब ही इसका दुहाग टल सकता है अन्यथा विवाह के समय सर्प काटने से इसके पति की मृत्यु हो जाएगी. सारी बात सुनकर माँ रोने लगी और सोना धोबिन की तलाश में निकल गई.
चलते-चलते रास्ते में तेज धूप पड़ रही थी जिससे बचने के लिए वह एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गई. उसी वृक्ष पर एक गरुड़ के बच्चे अपने घोसलें में थे. एक साँप आया और गरुड़ के बच्चों को खाने के लिए लपका लेकिन साहूकारनी ने उस साँप को मारकर बच्चों की रक्षा की. कुछ देर बाद गरुड़नी आई और सब जगह ज्गून देखकर साहूकारनी को चोंच से मारने लगी. साहूकारनी बोली कि एक तो मैंने तेरे बच्चों को साँप से बचाया और तू मुझे ही मार रही है. सारी बातें जानने पर गरुंड़नी बोली कि तूने मेरे बच्चों की रक्षा की है इसलिए माँग जो चाहती है.
साहूकारनी गरुड़नी से कहती है कि मुझे सात समंदर पार सोना धोबिन के यहाँ छोड़ दो और गरुड़नी ने वैसा ही किया. साहूकारनी वहाँ पहुंच तो गई लेकिन सोचने लगी कि इसे कैसे मनाऊं? सोना धोबिन की भी सात बहुएँ थी लेकिन घर के काम को करने के लिए सदा आपस में ही लड़ती-झगड़ती रहती थी. रात को जब सब सो जाते तो साहूकारनी आती और चुपके से सारा काम कर उजाला होने से पहले चली भी जाती. सारी बहुएँ भी आपस में यही सोचती कि कौन सी बहू है जो सारा काम कर देती है लेकिन एक-दूसरे से पूछने की हिम्मत किसी की भी नहीं होती.
काम करने की बात सोना धोबिन ने भी देखी कि आजकल बहुएँ लड़ती भी नहीं है और काम भी सारा हो जाता है. सोना धोबिन ने सारी बहुओं को बुलाया और पूछा कि आजकल तुम लड़ती भी नहीं हो और घर का सारा काम कौन करता है? बहुएँ सास से झूठ कहती हैं कि लड़ाई करने से क्या फायदा इसलिए हम मिलकर काम कर लेती हैं. सोना धोबिन को अपनी बहुओं की बात पर विश्वास नहीं होता और वह रात में जागकर वह स्वयं सच देखना चाहती है कि कौन काम करता है!
रात होने पर सोना धोबिन छिपकर बैठ जाती है कि देखूँ कौन सी बहू काम करती है. रात हुई तो वह देखती है कि एक औरत चुपके से घर में घुस रही है. वह देखती है कि उसने घर का सारा काम कर दिया है और जाने की तैयारी में है. जैसे ही साहूकारनी जाने लगती है तो सोना धोबिन उसे रोकती है और पूछती है कि तुम कौन हो़? और क्या चाहती हो? साहूकारनी कहती है कि पहले तुम वचन भरो तब बताऊँगी. वह वचन भरती है तब साहूकारनी कहती है कि मेरी बेटी के भाग्य में दुहाग लिखा है लेकिन तुम सोमवती अमावस्या करती हो तो मेरे साथ चलकर उसे सुहाग दे दो.
सोना धोबिन वचन से बँधी थी तो वह साहूकारनी के साथ चलने को तैयार हो जाती है. जाते हुए सोना धोबिन अपने बेटों व बहुओं से कहती है कि मैं इस औरत के साथ इसकी बेटी को सुहाग देने जा रही हूँ लेकिन अगर मेरे पीछे से तुम्हारे पिताजी मर जाएँ तो उन्हें तेल के कूपे में डालकर रख देना. धोबिन साहूकारनी के घर पहुँच जाती है. साहूकरनी अपनी बेटी का विवाह करती है तो फेरों के समय सोना धोबिन कच्चा करवा, दूध तथा तार लेकर बैठ जाती है. कुछ समय बाद साँप आया और दूल्हे को डसने लगा तो सोना धोबिन ने करवा आगे कर तार से साँप को बाँध दिया और साँप मर गया. अब सोना धोबिन ने लड़की को सुहाग दिया और कहा कि जितनी अमावस्याएँ मैने की हैं उन सभी का फल साहूकार की इस लड़की को मिलेगा. अब आगे जो अमावस्याएँ मैं करुँगी उनका फल मेरे पति व बेटों को मिलेगा.
सभी लोग सोमवती अमावस्या की जय-जयकार करने लगे. सोना धोबिन अपने घर वापिस जाने को तैयार हुई तो साहूकारनी ने कहा कि तुमने मेरे जमाई को जीवनदान दिया है इसलिए तुम जो चाहो माँग लो. सोना धोबिन बोली कि मुझे कुछ नहीं चाहिए और वह चली गई. रास्ते में चलते हुए फिर से सोमवती अमावस्या आ गई उसने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर कहानी कही, व्रत रखा और पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा की.
पीपल के पेड़ की पूजा के बाद वह घर जाती है तो देखती है कि उसका पति मरा पड़ा है. अब रास्ते में जो सोमवती अमावस्या उसने की थी उसका फल अपने पति को दे दिया जिसके प्रभाव से वह पुन: जीवित हो गया. सब कहने लगे कि तूने ऎसा क्या किया जो तेरा पति जिन्दा हो गया? वह कहती है कि मैंने तो ऎसा कुछ नहीं किया है बस रास्ते में सोमवती अमावस्या आ गई थी जिसका मैने व्रत किया, कहानी कही और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की.
अब सारी नगरी में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि हर कोई सोमवती अमावस्या करेगा, पूजा करेगा, व्रत रखेगा, कहानी कहेगा और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करेगा. हे सोमवती अमावस्या ! जैसा आपने साहूकार की बेटी का सुहाग दिया वैसे ही सबका देना.