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Friday 17 August 2018

कुंडली और धन संचय

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कैसे करें धन का संचय
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हर मेहनत  करने वाला व्यक्ति
धनी नहीं होता  
धन कमाना जितना मुश्किल है उतना ही मुश्किल है धन को सम्हालना, धन की बचत करके संचित करना
धन  को सहेजने के  कुछ सूत्र :

कुंडली में  मंगल, बुद्ध और  शनि अगर शुभ प्रभाव में हो तो अतुल धन देते  हैं लेकिन अगर ये जन्मपत्रीका में   कमजोर  हों, पीड़ित हों तो पूर्वजों द्वारा अर्जित धन भी नष्ट हो जाता है  मंगल कमजोर हो तो जातक धन कमा सकता  है जोड़ नहीं सकता                                      **********************************
शनि बली हो तो जातक अपनी मेहनत से धनी होता है
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अगर  शुभ बुध का साथ भी मिल जाये हो तो जातक अपनी सूझ बूझ से धन कमाता है 
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कुंडली में धन कमाने के लिए नवम यानी(9) भाग्य स्थान और ग्यारवा (11) स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है
और धन संचय के लिए(2) दूसरा स्थान होता है अगर ये भाव किसी भी प्रकार से कमज़ोर हो यानी शनि मंगल राहु / केतु से द्रस्तिगत व पीडित और या इनमें बैठे शुभ ग्रह भी पीडित हो तो धन की स्थिती मज़बूत नही होती हम  धन कमा तो सकते है मगर जुड़ नही पाता आगे के खर्च तैयार मिलते है पर अगर इनकी स्थिती मज़बूत है तो जीवन में अधिक संघर्ष नही करना पड़ता और धन जुड़ता रहता है व्यक्ति अच्छा जीवन जीता है
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किस क्षेत्र में नौकरी या  व्यापार करने से धन प्राप्त होगा ये दशम भाव और दशम भाव में स्थित ग्रह  बताते और उसकी शुभ /अशुभ स्थिती और उस पर अन्य ग्रहों के प्रभाव से जानकारी मिलती  है जैसे :-

सूर्य बली दशम भाव में हो और  छठे  भाव का सम्बन्ध आ जाये तो जातक सरकारी               नौकरी से धन  कमाता है, मंगल हो तो जातक सेना व  पुलिस या प्रशासन में नौकरी करता है 
अगर अन्य ग्रहों का योग हो तो जातक मेडिकल, इलेक्ट्रॉनिक सम्बन्धी और , प्रॉपर्टी आदि का व्यापार करता है

बुध हो तो एकाउंट्स,  कॉमर्स,कम्युनिकेशन बेंकिंग,  ब्रोकर और लेखन से धन कमाता है,

गुरु हो तो वकालत, सलाहकार,  शिक्षण,आदि से धनार्जन होता है 

शुक्र हो तो व्यापार, कला, सौंदर्य प्रसाधन, स्त्रियों से संबंधित  सामान आदि से सम्बंधी काम करता है

शनि हो तो बिल्डर्स, लोहा, तेल मशीनरी प्रॉपर्टी बिल्डिंग मेटीरियल  इत्यादि से धन कमाता है  राहु केतु का साथ में होना धनार्जन में कमी करता है
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धन संचय के उपाय : किसी भी हालत में कुंडली में कष्टकारी व खराब ग्रहों कें दोष कें लिऐ उपाय करें  अन्यथा कितना भी धन  कमायेंगे पर धन रुकेगा नहीं
घर कें बुजुर्गों का अपमान न करें अगर वे अपमान के दौर में शारीर छोड़ जाएँ तो भयंकर पितृ दोष लगता है और कई पीढ़ियों तक धन संचय  नहीं होता ईश्वर में आस्था रखें अच्छे समय होने पर अहंकार से व बुरी आदतों से बचे क्योंकि समय एक जैसा नही रहता ! 

प्रतिदिन अपने पूर्वजों से अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगे और आगे कोई गलत काम न करने की प्रतिज्ञा करें , सरकारी नौकरी में हों तो सूर्य को रोज़ाना जल दें,
घर में तुलसी लगाएं,
जन्मपत्रीका में अगर शनि राहु  पीडित हो तो  शिव मंदिर मे 21 शनिवार को  100 ग्राम साबुत बादाम  दान करें ,और  भगवान शिव की रोज़ उपासना करे व शाम को पीपल पर दीप दान कर शनि भगवान से छमा मांगे कुष्ठ , अपंग व्यक्तियों को समय समय पर कुछ खाने की सामग्री दान करते रहें  व अन्य पीड़ित ग्रहों का पता लगाकर  उनका उपाय करें लाभ होगा


चन्द्र और मंगल ग्रह

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आज द्विग्रही योग में बात करते है चन्द्र और मंगल ग्रह के बारे में..!!
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चन्द्र-मंगल:--जिन जातकों की कुंडली मे चन्द्र-मंगल का योग हो वे जातक बुद्धिमान, परिश्रमी, कुछ तीक्ष्ण स्वभाव, अपने धर्म एवं नियमों का पालन करने वाला, साहसी एवं कुशल वक्ता, कैमिकल, चर्म, धातु, शिल्प आदि एवं तकनीकी कार्यो में कुशल, क्रय-विक्रय, एवं व्यापार द्वारा अच्छा धनार्जन करने में सफल होता है।
सरकारी या प्राइवेट जॉब में भी हो तो एक से अधिक साधनों द्वारा धन लाभ प्राप्त करने में कुशल होते है।
यह योग तृतीय, पंचम, नवम, दशम, एवं ग्यारहवे भावो में हो तो अच्छा फलप्रद होता है।
दशम में चन्द्र-मंगल का योग होने से उच्चाधिकारी या सेनाध्यक्षकर्ता भी हो सकते है।
प्रथम, चतुर्थ, एवं सप्तम भावो में इसका फल अच्छा नही कहा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त यह योग मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्भ, व मीन लग्नो में विशेष प्रशस्त माना जाता है।
शेष अन्य लग्नो में साधारण फल देखने को मिलता है..!!


नाग पंचमी की कथाये

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हमारे हिन्दू समाज में आज भी कई ऐसी पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं जिनसे व्यक्ति अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है। सर्प का नाम सुनते ही जनमानस में भयंकर भय व्याप्त हो जाता है। सर्प को काल (मृत्यु) का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है। सर्पदंश होने पर आज भी ग्रामीण अंचल में झाड़-फूंक आदि सहारा लिया जाता है, जो सर्वथा गलत है। सर्पदंश जैसी विकट परिस्थिति में झाड़-फूंक व टोने-टोटके करने के स्थान पर शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक के पास जाना चाहिए।
बहरहाल, आज हम प्राचीन समय में प्रचलित एक परंपरा के बारे में 'वेबदुनिया' के पाठकों को अवगत कराएंगे। आपने यदा-कदा घरों की बाहरी दीवार पर 'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य लिखा देखा होगा। ग्रामीण अंचलों में इस वाक्य को घर की बाहरी दीवार पर लिखा हुआ देखना आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस वाक्य को घर के बाहरी दीवारों पर क्यों लिखा जाता है? यदि नहीं, तो आज हम आपको इसकी पूर्ण जानकारी देंगे।
'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर सर्प से सुरक्षा के लिए लिखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वाक्य को घर की दीवार पर लिखने से उस घर में सर्प प्रवेश नहीं करता।

इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है। कलियुग के प्रारंभ में जब ऋषि पुत्र के श्राप के कारण राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया, तो इससे उनकी मृत्यु हो गई। जब यह बात राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को पता चली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए इस संसार से समस्त नाग जाति का संहार करने के लिए 'सर्पेष्टि यज्ञ' का आयोजन किया। इस 'सर्पेष्टि यज्ञ' के प्रभाव के कारण संसार के कोने-कोने से नाग व सर्प स्वयं ही आकर यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे।
इस प्रकार नाग जाति को समूल नष्ट होते देख नागों ने आस्तिक मुनि से जाकर अपने संरक्षण हेतु प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आस्तिक मुनि ने नागों को बचाने से पूर्व उनसे एक वचन लिया कि जिस स्थान पर नाग उनका नाम लिखा देखेंगे, उस स्थान में वे प्रवेश नहीं करेंगे और उस स्थान से 100 कोस दूर रहेंगे।

नागों ने अपने संरक्षण हेतु आस्तिक मुनि को जब यह वचन दिया तब आस्तिक मुनि ने जन्मेजय को समझाया। आस्तिक मुनि के कहने पर जन्मेजय ने 'सर्पेष्टि यज्ञ' बंद कर दिया। इस प्रकार आस्तिक मुनि के हस्तक्षेप के कारण नाग जाति का आसन्न संहार रुक गया।
इस कथा के अनुसार ही ऐसी मान्यता प्रचलित है कि आस्तिक मुनि को दिए वचन को निभाने के लिए आज भी सर्प उस स्थान में प्रवेश नहीं करते, जहां आस्तिक मुनि का नाम लिखा होता है। इस मान्यता के कारण ही अधिकांश लोग सर्प से सुरक्षा के लिए अपने घर की बाहरी दीवार पर लिखते हैं- 'आस्तिक मुनि की दुहाई।'


जन्म-कुंडली में बिज़नेस योग

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जन्म-कुंडली में बिज़नेस योग :-
कुंडली में कर्म (कार्य) का स्थान दसवां भाव होता है। अगर किसी व्यक्ति का दसवां भाव मजबूत और अच्छा है तो उस व्यक्ति का बिज़नेस अच्छा चलने की संभावना ज्यादा रहती हैं। इसके साथ ही दशमांशा भी देखा जाना चाहिए | युति,डिग्री,दृष्टि,दशा बिज़नेस में लाभ और हानि को दर्शाते हैं | किसी एक भाव या एक ग्रह से अंतिम परिणाम पर नहीं पहुंचा जा सकता | कुंडली को हमेशा पूर्ण -रूप से ही देखा जाना चाहिए |

कुंडली के योग जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं :-

१)अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलता है।
२)अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी-नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।
३)जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय के अच्छे संयोग बन जाते हैं।
४)कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। इस योग में जातक का बिज़नेस अच्छा चलता है और उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।
५)ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी सातवीं दृष्टी अगर दसवें भाव पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।
६)राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह कर्म भाव अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।

जातक की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो | या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं |


विवाह में बाधा/देरी : जन्म-कुंडली के योग

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विवाह में बाधा/देरी : जन्म-कुंडली के योग :
जन्म कुंडली का सातवां भाव विवाह, पत्नी, भागीदारी एवं गुप्त व्यापार का कहा गया है। सातवां भाव यदि पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता है उसमें अशुभ योग पड़े हैं तो विवाह में विलंब होगा। कन्या की कुंडली में विवाह कारक बृहस्पति होता है और पुरूष की कुंडली में विवाह का विचार शुक्र से किया जाता है। यदि दोनों ग्रह शुभ हों और उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो विवाह का योग जल्दी बनता है। विवाह देरी से कराने में बहुत से ग्रह कारक होते हैं। यह ध्यान में रखना चाहिए कि पुरुषों के लिए पत्नी कारक ग्रह शुक्र है जबकि स्त्रियों के लिए पति कारक ग्रह बृहस्पति है। मांगलिक दोष में चाहे पुरुष हो या स्त्री दोनों का विवाह विलंब से होता है।
विवाह में बाधा का कारण निम्नलिखित हैं :-

1. शनि, सूर्य या मंगल सप्तमस्थ होने के कारण विवाह में बाधा आती है।
2. यदि किसी कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल, शनि व शुक्र के साथ युति कर रहा हो तो कन्या का विवाह बड़ी उम्र में होता है।
3. यदि कन्या की कुंडली में लग्न में मंगल, सूर्य व बुध हो और गुरु द्वादश भाव में हो तो कन्या का विवाह देरी से होता है।
4. यदि कुंडली में शनि व सूर्य पारस्परिक दृष्टि संबंध रखते हों व लग्न या सप्तम भाव प्रभावित हो रहा हो तो विवाह की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।


जन्म-कुंडली में प्रेम-विवाह योग: प्रेम-विवाह ( LOVE MARRIAGE )

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जन्म-कुंडली में प्रेम-विवाह योग:
प्रेम-विवाह ( LOVE MARRIAGE ) :-

बहुत से जातक-जातिका यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि उनका प्रेम विवाह(लव-मैरिज) होगा या नहीं,विवाह को लेकर उनके मन में कई प्रकार की शंकाएं होती हैं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा। इसके लिए अक्सर मुझे इनबॉक्स में या मोबाइल पर सम्पर्क करते रहते हैं | बच्चों के माता-पिता भी उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं की उनको प्रेम-विवाह की अनुमति दे या न दें |
जब तक दो लोगों की कुंडली में मंगल व शुक्र में आकर्षण नहीं होगा, तब तक उनमें प्रेम नहीं हो सकता ।
जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह पंचम के साथ संबंध बनाता हो अथवा 5 का 2, 7, 11 से संबंध हो तो विवाह होता है। परन्तु यदि प्रेम विवाह कारक ग्रह 1, 4, 6, 8, 10, 12 से जुड़ा हो तो प्रेम विवाह नहीं होता है अथवा विवाह कारक एवं अकारक दोनों से संबंध बनता हो तो ऐसा प्रेम विवाह नहीं चलता है।

* किसी भी जातक की कुंडली में पंचम भाव से प्रेम संबंधों का पता चलता है जबकि सप्तम भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में घनिष्ठ स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह भी संभव है।
१) शुक्र सप्तमेश से संबंधित होकर पंचम भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
२)पंचमेश व सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
३) मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।
४) जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।
५) जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।
६) जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।
७)जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।
८) पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।
९) सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।
१०) पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।
११) जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।
१२) शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।
१३)लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एकसाथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।
१४) सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।
१५) जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।
इसके इलावा नवमांश को.दशा को व् अन्य ग्रहों की शुभ,अशुभ दृष्टि देख-कर ही अंतिम निर्णय तक पहुंचा जा सकता है, इसके लिए अनुभवी ज्योतिष से ही परामर्श करें, कुंडली मिलान अवश्य करवा लें, यदि कुंडली मिलान में समस्या हो तो उसका उपचार करवाने के बाद ही शुद्ध-लग्न महूर्त में ही विवाह किया जाना चाहिए ।


कुंडली में करोड़पति /अरबपति बनने के योग :

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कुंडली में करोड़पति /अरबपति बनने के योग :
जन्म-कुंडली में बनने वाले मुख्य धनयोग निम्नलिखित है,परन्तु किसी भी कुंडली में धनयोग का अंतिम परिणाम डिग्री,दृष्टि,दशा,युति तथा नवमांश में ग्रहों की मजबूती देख कर ही बनती है | कई बार व्यक्ति अपने पाप कर्मों से सुबह योगों का फल खो देता है |
१) कुंडली के त्रिकोण घरों या केन्द्र में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो तो जातक शुक्र या बुध की दशा में असीम धन प्राप्त करता है |
२) यदि कुंडली के तीसरे , छठे और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहु या शनि की दशा में असीम धन प्राप्त करता है।
३) मंगल चौथे, सूर्य पांचवें और गुरु पांचवें भाव में सूर्य के साथ हो या ग्यारवें भाव में हो तो व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, कृषि या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती जाती है। इसे असीम धन-योग माना जाता है |
४) गुरु यदि दसवें या ग्यारहवें भाव में हो और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवें भाव में हो या यहीं ग्रह इसके विपरीत स्थिति में हो तो व्यक्ति प्रशासनिक बुद्धि और क़ाबलियत द्वारा धन अर्जित करता है।
५) गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का हो और पांचवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति संतान द्वारा अपार धन लाभ पाता है।
६)बुध, शुक्र और शनि यदि किसी भाव में एक साथ हो और दशा का साथ मिले वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत उन्नति कर धनवान बना देता है।
७) दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में हो और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन पाता है।
८) बुध, शुक्र और गुरु किसी भी भाव में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, कथाकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।
९) यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हो और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर कोई अन्य ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसाय के द्वारा अतुलनीय धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।
१०) यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहु बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुआ, दलाली,शेयर बाजार या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।
किसी भी कुंडली में धनयोग का अंतिम परिणाम डिग्री,दृष्टि,दशा,युति तथा नवमांश में ग्रहों की मजबूती देख कर ही बनती है |


ग्रहो मे उंच नीच रशिया

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➡ग्रहों की उच्च-नीच राशियाँ⤵

1. सूर्य - मेष में उच्च, तुला में नीच

2. चंद्र - वृषभ में उच्च, वृश्चिक में नीच

3. बुध - कन्या में उच्च, मीन में नीच

4. शुक्र - मीन में उच्च, कन्या में नीच

5. मंगल - मकर में उच्च, कर्क में नीच

6. गुरु - कर्क में उच्च, मकर में नीच

7. शनि - तुला में उच्च, मेष में नीच

8. राहु - मिथुन में उच्च, धनु में नीच

9. केतु - धनु में उच्च, मिथुन में नीच


कुंडली में प्रेम विवाह के योग

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आजकल बच्चे साथ शिक्षा प्राप्त करते हुए या साथ में काम करते हुए प्रेम में पड़ जाते हैं | धर्म, जाति ,आयु, भाषा ,देश की अनदेखी कर किये जाने वाले प्रेम विवाह के संकेत जातक की कुंडली में भी मिलते हैं | बहुत से जातक पूछने आते हैं की उनका प्रेम-विवाह होगा या नहीं | सो उनके लिए ही यह पोस्ट लिखी गयी है |

कुंडली में प्रेम विवाह के योग
१.पंचम भाव एवं सप्तम भाव और लग्नेश प्रेम -विवाह में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । पंचमेश एवं सप्तमेश की युति पंचम या सप्तम भाव में होना या दोनों का राशि परिवर्तन करना या पंचमेश और सप्तमेश में दृष्टि सम्बन्ध होना प्रेम - विवाह का कारण बनता है ।
2. लग्नेश एवं सप्तमेश का स्थान परिवर्तन या युति होना प्रेम विवाह का कारण बनता है ।
3.गुरु और शुक्र दाम्पत्य जीवन में पति और पत्नी के कारक ग्रह हैं । लड़कियों के जन्मपत्री में गुरु का पाप प्रभाव में होना और लड़के की कुंडली में शुक्र ग्रह का पाप प्रभाव में होना प्रेम - विवाह की सम्भावना को बढ़ाता है ।
4.लग्नेश एवं पंचमेश की युति या दृष्ट सम्बन्ध या राशि परिवर्तन प्रेम विवाह योग को उत्पन्न करता है ।
5.राहु का लग्न / सप्तम भाव में बैठना और सप्तम भाव पर गुरु का कोई प्रभाव न होना प्रेम विवाह का कारण बन सकता है ।
6.नवम भाव में गुरु-ग्रह से संबंधित धनु/मीन राशि हो और शनि/राहू की दृष्टि सातवें भाव, नवम भाव और गुरु पर हो तो प्रेम विवाह होता है ।
7.सातवें भाव में राहु + मंगल हों या राहु + मंगल + सप्तमेश तीनों वृष /तुला राशि में हो तो प्रेम -विवाह का योग बनता है ।
8.जन्मलग्न ,सूर्यलग्न और चन्द्रलग्न में दूसरे भाव और उसके स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो भी प्रेम विवाह होता है ।
9.कुंडली का दूसरा भाव पाप प्रभाव में हो या उसका स्वामी शुक्र, राहु शनि के साथ बैठा हो और सप्तमेश का सम्बन्ध शुक्र ,चन्द्र एवं लग्न से हो ।
10.जन्म लग्न या चन्द्र लग्न में शुक्र का पांचवे / नवें भाव में बैठना प्रेम विवाह का कारण बनता है |
लग्न में लग्नेश +चन्द्रमा हो तो प्रेम विवाह होता है या सप्तम में सप्तमेश + चन्द्रमा हो तो भी प्रेम - विवाह हो सकता है |
११.लग्न -कुंडली के साथ साथ नवमांश-कुंडली भी प्रेम-विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है सो उसको भी देखना चाहिए |


जाति प्रथा मै भेदभाव के कारण जानिये

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मुस्लिम शासन आने के बाद हिन्दू समाज में फुट डालने का काम शुरू हुआ | अंग्रेजों ने इस विरोध को नफरत में बदलने का काम किया ताकि भारत के लोगो में कभी एकता न आ सके | जब तक हिन्दू समाज में एकता रही भारत को पूरी दुनिया में 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था | जिनको आज दलित कहा जाता है वे समाज के मुख्य धारा का हिस्सा थे | बाल्मीकि जी ने संस्कृत में रामायण लिखी जिस से सिद्ध होता है कि समाज के सभी लोग संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करते थे | वेद-व्यास ने महाभारत और भगवत-गीता की रचना की | वे भी दलित समाज से सम्बंधित थे परन्तु इन पुस्तकों को भारतीय समाज में सबसे ज्यादा सम्मान प्राप्त था और है | नाई को सारे भारत में सबसे ज्यादा भरोसा प्राप्त था | उसके द्वारा बताये परिवार में ही लड़का-लड़की की रिश्ता किया जाता था |*ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा नही अपितु जोडा है। छुआ-छूत भारतीय समाज में प्राचिन काल में नहीं था | शबरी के झूठे बेर भी क्षत्रिय जाति के राम ने बिना किसी भेदभाव, छुआ-छूत के खाए | छुआ-छूत का आरम्भ भारत में मुस्लिमों के आने के बाद हुआ क्योंकि वे मांसाहारी भोजन खाते थे,उनके प्रभाव में आकर भारत की कुछ जातियों के लोगो ने जब मांसाहार खाना शुरू किया तो ब्राह्मणों में उनके छुए खाने को मना किया | कुम्हार समाज के सभी लोगो के लिए बर्तन  बनाते थे, ब्रह्माण अपने बर्तन आप तो बनाते नहीं थे | जुलाहे सबके लिए ही कपडे बनाते थे | समाज में लेन-देन प्रणाली ही लागु थी,पैसा नहीं था, अनाज या वस्तुओं की अदला-बदली ही की जाती थी | लोहार,खाती,बढ़ई सभी किसान की मदद करते थे और गाँव में सभी उनकी सहायता लेते थे| फसल कटाई के समय सभी की मदद ली जाती थी | कटाई के बाद सभी को अनाज में हिस्सा दिया जाता था
🤷♂ 🤝ब्राह्मण ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े *दलित* को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि *दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें।
इस तरह सबसे पहले *दलित* को जोडा गया .....
🤷♂ 🤝 *धोबन*के द्वारा दिये गये जल से से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा...
🤷♂ 🤝 *कुम्हार* द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा...  🤷♂ 🤝 *मुसहर जाति* जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पुजन सम्पन्न होगे...
🤷♂ 🤝 *कहार* जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पुजन होगें...
🤷♂ 🤝 *बिश्वकर्मा* जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे ...
🤷♂ 🤝 फिर जुलाहा जाति  जोड़ते हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर विवाह सम्पन्न होगें...
🤷♂ 🤝फिर  बंजारा जाति की  औरतों* को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी...
🤷♂ 🤝 *धारीकार* जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता.... *
  🤷♂ 🤝 *डोम* जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि *मरणोंपरांत* इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा....
👉इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है।
और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी...,
*ब्राह्मणों का दोष कहाँ है*?...हाँ *ब्राह्मणों* का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का कभी *खंडन* नहीं किया, जो *ब्राह्मणों* के अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राह्मण *नाई* से पुछता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है...?
🤙 *नाई* के हाँ कहने के बाद ही *ब्राह्मण* मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं।
*ब्राह्मणों* द्वारा जोड़ने कि क्रिया को छोड़वाया कुछ *ब्राह्मण विरोधी* लोगों ने और दोष ब्राह्मणों पर लगा दिया।
🙏 *ब्राह्मणों* को यदि अपना खोया हुआ वह सम्मान प्राप्त करना है तो इन बेकार वक्ताओं के वक्तव्यों का कड़ा विरोध कर रोक लगानी होगी।......
देश में फैले हुये समाज विरोधी *साधुओं* और *ब्राह्मण विरोधी* ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये *वेद और ब्राह्मण* कि निन्दा करतेे हुये पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं।......