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Monday 12 November 2018

शकुनि के पासे , उनके पिता की हड्डी से निर्मित थे

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शकुनि के पास जो चौसर के खेल के पासे थे वह वास्तव में शकुनि के इशारो पर ही अंक दिखाते थे।
क्योंकि यह पासे राजा सुबाला अर्थात शकुनि के पिता की रीढ़ की हड्डी के बने हुए थे,।
धृतराष्ट्र ने जिस प्रकार राजा सुबाला के 100 पुत्र और गंधारी के 100 भाइयो को भूख से तड़पकर कारगर मे मारा , इस स्थिति से राजा सुबाला अत्यंत दुखी थे। अतः जब वह भी कारागार मे मरने वाले थे तो उन्होंने रजा धृतराष्ट्र से क्षमा प्राथना कर के विनती करी के वह शकुनि की सजा माफ़ कर दे । बदले मे शकुनि सदैव कौरवो के साथ रहेगा और उनका लालन पोषण और शिक्षा भी अपनी देख रेख मई करायेगा।
रजा धृतराष्ट्र ने उनकी बात मानकर शकुनि को कारावास से मुक्त किया और कौरवो की देख भाल की जिम्मेदारी सौपी।
राजा सुबाला चाहते थे उनके रीढ़ की हड्डी के पांसे धृतराष्ट्र और उसके वंश के अंत का कारण बने और यही हुआ , शकुनी ने इन्ही पांसे के द्वारा महाभारत युद्ध करवाया|

राजा सुबाला ने शकुनी का एक पैर भी मुर्छित कर दिया ताकि उसे अपने पिता का ये वचन हमेशा याद रहे और वह अपने पिता और भाइयो का अपमान कभी ना भूले|

धृतराष्ट्र ने शकुनि के 100 भाइयो को क्यों मारा

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राजकुमारी गंधारी का वैधव्य योग दूर करने के लिए उनका प्रथम विवाह एक बकरे से करवाकर उस बकरे को मार दिया गया था। परंतु यह बात गांधार नरेश ने सदैव गुप्त रखी। लेकिन यह बात किसी तरह से धृतराष्ट्र पर उजागर हो गई । धृतराष्ट्र को तब से ऐसा लगने लगा के उनके साथ छल हुआ है

अपने अपमान का बदला लेने के लिए धृतराष्ट्र ने राजा सुबाला और उनके 100 पुत्रों को जेल में बंद कर दिया| धृतराष्ट्र उनके साथ बहुत बुरा व्यव्हार करते थे, उन्हें बहुत मारा पीटा जाता था| धृतराष्ट्र राजा सुबाला से अपने रिश्ते का भी मान नहीं रखते थे , राजा और उनके परिवार को रोज सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिया जाता था, जिसे वे मिल बाँट के खा लेते थे| दिन बीतते गए और राजा सुबाला के पुत्रों में से एक एक की मौत भूख के कारण होती गई| तब राजा सुबाला सोचने लगे कि इस तरह वे अपने वंश का अंत नहीं होने देंगे| धृतराष्ट्र के प्रति गुस्सा के चलते सुबाला ने निर्णय लिया,कि वे सब अपने हिस्से के भोजन का त्याग करेंगे और किसी एक को देंगे जिससे उनमे से एक जीवित रहे और ताकतवर बने और उन सभी के अपमान कष्ट का बदला ले सके| शकुनी उन सभी भाइयों में छोटा था इसलिए सुबाला ने निर्णय लिया की सभी शकुनी को अपना भोजन देंगे| शकुनी अपने पिता के इस निर्णय के विरोध में थे, उनसे अपने पिता और भाइयों को इस तरह तडपना नहीं देखा जाता था,  लेकिन अपने पिता की आज्ञा के चलते उन्हें यह बात माननी पड़ी| इसी कारण शकुनी कौरवों का हितेषी नहीं बल्कि उनका विरोधी था|

समय बीतता गया और राजा सुबाला भी अब कमजोर होते गए| इस दौरान उन्होंने धृतराष्ट्र से एक आग्रह किया उन्होंने उनसे माफ़ी मांगी और अपने एक पुत्र शकुनी को माफ़ कर जेल से बाहर निकलने को कहा|ये भी कहा की शकुनी हमेशा उनके पुत्र कौरवों के साथ रहेगा और उनका हितेषी रहेगा| धृतराष्ट्र ने अपने ससुर की इस आखरी इच्छा को मान लिया और शकुनी को हस्तिनापुर ले आये| राजा सुबाला ने इस बात के साथ ही अंतिम सांस ली| जिससे शकुनी कौरवो का शत्रु बन गया,

गंधारी सो पुत्रो के साथ सो भाइयो की इकलोती बहन भी थी

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राजा सुबाला  यानी गांधार नरेश ने अपनी पुत्री गंधारी का वैधव्य योग समाप्त करने के लिए उसकी शादी एक बकरे से करवाई, उसके बाद उस बकरे को मार दिया गया | इस तरीके से गांधारी एक विधवा थी| यह बात सिर्फ सुबाला और उनके करीबी जानते थे , इस बात को किसी को ना बताने की हिदायत सबको दी गई थी| इस घटना के कुछ समय बाद गांधारी की शादी हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्ट्र से हो गई| धृतराष्ट्र और पांडव इस बात से अंजान थे, कि गांधारी एक बकरे की विधवा है|





कुछ समय पश्चात् यह बात सबके सामने आ गई , धृतराष्ट्र और पांडव को इस बात पर बहुत ठेस पहुंची और उन्हें लगा राजा सुबाला ने उनके साथ धोखा किया है, अपमान किया है| अपने अपमान का बदला लेने के लिए धृतराष्ट्र ने राजा सुबाला और उनके 100 पुत्रों को जेल में बंद कर दिया| धृतराष्ट्र उनके साथ बहुत बुरा व्यव्हार करते थे, उन्हें बहुत मारा पीटा जाता था| धृतराष्ट्र राजा सुबाला से अपने रिश्ते का भी मान नहीं रखते थे , राजा और उनके परिवार को रोज सिर्फ एक मुट्ठी चावल दिया जाता था, जिसे वे मिल बाँट के खा लेते थे| दिन बीतते गए और राजा सुबाला के पुत्रों में से  सभी की एक एक की मौत भूख के कारण होती गई|

गंधारी को था वैधव्य योग और इसीलिए दूसरे पति बने धृतराष्ट्र

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गांधारी के विवाह के पहले, उनके पिता सुबाला को किसी पंडित ने बोला था कि गांधारी की शादी के पश्चात उसके पहले पति की म्रत्यु हो जाएगी| इस बात से चिंतित राजा सुबाला ने उनकी शादी एक बकरे से करवाई, उसके बाद उस बकरे को मार दिया गया | इस तरीके से गांधारी एक विधवा थी| यह बात सिर्फ सुबाला और उनके करीबी जानते थे , इस बात को किसी को ना बताने की हिदायत सबको दी गई थी| इस घटना के कुछ समय बाद गांधारी की शादी हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्ट्र से हो गई| धृतराष्ट्र और पांडव इस बात से अंजान थे, कि गांधारी एक बकरे की विधवा है|

श्री राम की बहन देवी शांता का मंदिर

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देवी शांता के बारे में वाल्मीकि रामायण में कोई उल्लेख्य नहीं मिलता लेकिन दक्षिण के पुराणों में स्पष्ट रूप से शांता के चरित्र का वर्णन किया गया हैं |

भारत के कुल्लू में श्रृंग ऋषि का मंदिर हैं एवम वहां से 60 किलोमीटर की दुरी पर देवी शांता का मंदिर हैं | यह भी कहा जाता हैं कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी शांता का त्याग किया था | वैसे तो देवी शांता एक परिपूर्ण राजकुमारी थी लेकिन बेटी होने के कारण उनसे वंश वृद्धि एवम राज कार्य पूरा नहीं हो सकता था इसलिये राजा दशरथ को उनका परित्याग करना पड़ा |

इस प्रकार जब चारों भाई अपनी बहन शांता से मिलते हैं तो वे अपने भाइयों से अपने त्याग का फल मांगती हैं और उन्हें सदैव साथ रहने का वचन लेती हैं | भाई अपनी बहन के त्याग को व्यर्थ नहीं जाने देते और जीवन भर एक दुसरे की परछाई बनकर रहते हैं |

रामायण एक ऐसा ग्रन्थ हैं जिसमें सभी रिश्तों की गहराई मर्यादा एवम सबसे अधिक वचन पालन का महत्व बताया हैं | इस प्रकार रामायण से जुडी कहानियाँ हमें उचित मार्गदर्शन करती हैं हमें रिश्तों की मर्यादा का भान कराती हैं | यह कहानियाँ आज के समय में संस्कारों का महत्व बताती हैं एवम व्यक्तित्व विकास में सहायक होती हैं | कई तरह की कहानियों का संग्रह किया गया हैं

असली सीता नहीं वरन माया की सीता का हरण किया था रावण ने

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असली सीता नहीं वरन माया की सीता का हरण किया था रावण ने

सीता मैया एक दिव्य स्वरूपा मानी जाती हैं इसलिए कहते हैं कि जब रावण उनका अपहरण करने आया था उसके पहले ही सीता के वास्तविक शरीर को अग्नि देव को सौंप दिया गया था क्यूंकि अगर रावण वास्तविक सीता को बुरी निगाह से देखता तो उसे देखकर ही भस्म हो जाता . अगर ऐसा होता तो मनुष्य को जाति को नारी के साथ अपनी मर्यादा का सबक नहीं मिलता जो कि रावण के अंत और उसके घमंड के अंत के साथ मिला . इसलिए अंत में भगवान राम ने अग्नि परीक्षा के रूप में अग्नि देवता से सीता को पुनः प्राप्त किया .

सीता कौन थी और वो क्यूँ रावण की मृत्यु का कारण बनी ?

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सीता कौन थी और वो क्यूँ रावण की मृत्यु का कारण बनी ?

असल में सीता रावण और मंदोदरी की बेटी थी, इसके पीछे बहुत बड़ा कारण थी वेदवती . सीता वेदवती का पुनर्जन्म जन्म थी .वेदवती एक बहुत सुंदर, सुशिल धार्मिक कन्या थी, जो कि भगवान विष्णु की उपासक थी और उन्ही से विवाह करना चाहती थी. अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वेदवती ने कठिन तपस्या की. उसने सांसारिक जीवन छोड़ स्वयं को तपस्या में लीन कर दिया था. वेदवती उपवन में कुटिया बनाकर रहने लगी .



एक दिन वेदवती उपवन में तपस्या कर रही थी . तब ही रावण वहां से निकला और वेदवती के स्वरूप को देख उस पर मोहित हो गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा, जिस कारण वेदवती ने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया और वेदवती ने ही मरने से पूर्व रावण को श्राप दिया, कि वो खुद रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और रावण की मृत्यु का कारण बनेगी .

कुछ समय बाद रावण को मंदोदरी से एक पुत्री प्राप्त हुई, जिसे उसने जन्म लेते ही सागर में फेंक दिया.सागर में डूबती वह कन्या सागर की देवी वरुणी को मिली और वरुणी ने उसे धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और देवी पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया, जिसके बाद वह कन्या सीता के रूप में जानी गई और बाद में इसी सीता के अपहरण के कारण भगवान राम ने रावण का वध व लंका का दहन किया .

जिस तरह सीता मैया धरती से प्रकट हुई थी , उसी प्रकार वह धरती में समा गई थी . रावण के संहार के बाद , जब राम अयोध्या पहुंचे , तब उन्हें किन्ही कारणों से सीता का त्याग करना पड़ा . उस समय सीता ने अपना जीवन वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में व्यतीत किया और दो सुंदर राजकुमार लव कुश को जन्म दिया . राम इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनकी दो अतिबलशाली संतान हैं . जब राम ने अश्वमेध यज्ञ के लिये अपने अश्व को छोड़ा , तब इन दोनों राजकुमारों ने उस अश्व को पकड़ लिया और कहा कि अपने राजा को बोलो कि हमसे युद्ध करे . लव कुश भी अपने जन्म के रहस्य को नहीं जानते थे . लव कुश के साथ हनुमान जैसे सभी योद्धाओं ने युद्ध किया लेकिन कोई उन से जीत नहीं पाया . तब आखरी में राम वहाँ आये , तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह दोनों दिव्य बालक उनकी और सीता की संतान हैं . तब सीता को वापस अयोध्या आने को कहा गया . तब सीता अयोध्या की भरी सभा में गई और उन्होंने धरती माँ का आव्हाहन किया और लव कुश को पिता को सौंप . स्वयं को धरती माँ को सौंप दिया . इस प्रकार जिस प्रकार दिव्य जन्म के साथ सीता मैया प्रकट हुई, उसी तरह से वो धरती में समां गई .


श्रीराम की बहन शांता की अन्य कथाये

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कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्‍योंकि वह लड़की होने की वजह से उनकी उत्‍तराधिकारी नहीं बन सकती थीं।

शान्ता का विवाह किससे हुआ


शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।

एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्‍त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।


जब दशरथ ने पुत्र की कामना से जब बुलाया अपने दामाद को


राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।

दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया।

पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। लेकिन...

शांता के आने से हुई अयोध्या में वर्षा,


दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।

लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्‍होंने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया।

तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है।' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था।

दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।


यज्ञ कराने से ऋंग ऋषि का पुण्य नष्ट हो गया तब उन्होंने क्या किया


कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे।
रामायण में क्यों नहो शांता का चित्र


जनता के समक्ष शान्ता ने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वो राजा दशरथ और कौशल्‍या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है।



कहते हैं कि जीवनभर शांता राह देखती रही अपने भाइयों की कि वे कभी तो उससे मिलने आएंगे, पर कोई नहीं गया उसका हाल-चाल जानने। मर्यादा पुरुषोत्तम भी नहीं, शायद वे भी रामराज्‍य में अकाल पड़ने से डरते थे।

कहते हैं कि वन जाते समय भगवान राम अपनी बहन के आश्रम के पास से भी गुजरे थे। तनिक रुक जाते और बहन को दर्शन ही दे देते। बिन बुलाए आने को राजी नहीं थी शांता। सती माता की कथा सुन चुकी थी बचपन में, दशरथ से।

ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत की अग्रज वंशज बने

श्रीराम की बहन शांता की दूसरी कथा

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एक अन्य लोककथा के अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्‍या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्‍या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।


श्रीराम की बहन शांता की कथा

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दुनियाभर में 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं। उनमें वाल्मीकि रामायण, कंबन रामायण और रामचरित मानस, अद्भुत रामायण, अध्यात्म रामायण और आनंद रामायण की चर्चा ज्यादा होती है। उक्त रामायण का अध्ययन करने पर हमें रामकथा से जुड़े कई नए तथ्‍यों की जानकारी मिलती है। इसी तरह अगर दक्षिण की रामायण की मानें तो भगवान राम की एक बहन भी थीं, जो उनसे बड़ी थी।



अब तक आप सिर्फ यही जानते आए हैं कि राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे, लेकिन राम की बहन के बारे में कम लोग ही जानते हैं। बहुत दुखभरी कथा है राम की बहन की, लोग उनकी सच्चाई जानेंगे तो राम को कठोर दिल वाला मानेंगे और दशरथ को स्वार्थी। आओ जानते हैं कि राम की यह बहन कौन थीं।

इसका नाम क्या था और यह कहां रहती थी। अ

श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। हम यहां आपको शांता के बारे में बताएंगे। दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था।

भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं।


इस संबंध में तीन कथाएं हैं:
1.पहली : वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।

शेष कथाये अन्य लेख मे व्यक्त है निचे लिंक पर क्लिक कीजिये और जानिये शेष कथाये


जानिए कैसे वेदव्यास की माता सत्यवती है

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ऋषि पराशर बहुत विद्वान और योग सिद्धि संपन्न प्रसिद्ध ऋषि थे। एक दिन वे यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए। वह नाव एक मछुआरे धीवर की पुत्री सत्यवती चला रही थी। ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर विचलित और व्याकुल हो उठे।


*ऋषि पराशर ने उस निषाद कन्या सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई। सत्यवती ने कहा कि यह तो अनैतिक होगा। मैं किसी भी प्रकार के अनैतिक संबंध से संतान पैदा करने के लिए नहीं हुई हूं, लेकिन ऋषि पराशर नहीं माने और उससे प्रणय निवेदन करने लगे।

*तब सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रखीं। पहली यह कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई नहीं देखे। ऐसे में तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम आवरण बना दिया।


*दूसरी शर्त यह कि उनकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। ऐसे में ऋषि ने आश्वासन दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी।


*तीसरी शर्त यह कि वह चाहती है कि उसकी मछली जैसी दुर्गंध एक उत्तम सुगंध में परिवर्तित हो जाए। तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर एक सुगंध का वातावरण निर्मित कर दिया जिसे कि 9 मील दूर से भी महसूस किया जा सकता था।



*उक्त 3 शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में ही सुहागरात मनाई। इसके परिणामस्वरूप एक द्वीप पर उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा। यही पुत्र आगे चलकर महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


*धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर को महर्षि वेद व्यास का ही पुत्र माना जाता है। इन्हीं 3 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ।

*यदि सत्यवती ऋषि पराशर के साथ सुहागरात नहीं मनाती तो महाभारत कुछ और होती। चलो ऐसा कर भी लिया था तो यदि वह महाराजा शांतनु से विवाह नहीं करती तो भी महाभारत का इतिहास कुछ और ही होता। हालांकि इसे सुहागरात कहना उचित नहीं। ।।इति महाभारत कथा।।


भगवान श्री कृष्ण का रंग नीले रंग से जुडी 10 दन्त कथाये(Why Lord Krishna is Blue in hindi)

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भगवान श्री कृष्ण का रंग नीला क्यों है (Why Lord Krishna is Blue or black in colour hindi)
भगवान श्रीकृष्ण हिन्दू संस्कृति में एक बहुत बड़ा महत्व रखते है. श्री कृष्ण के श्रीमद्भागवत गीता के अनमोल वचन  का एक एक शब्द मनुष्य को मुक्ति दिलाने वाला है. कहा जाता है कि कृष्ण भक्ति से मनुष्य के जन्म जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. इन्हें इनकी तस्वीरों में अक्सर नीले रंग में देखा जाता है. इसके पीछे कई तरह की किंवदंतियाँ हैं, जिससे इनके नीले रंग का वर्णन किया जाता हैं


भगवान श्री कृष्ण का रंग नीला क्यों होता है (Why Lord Krishna is Blue in hindi)


यहाँ पर अलग अलग लोगों द्वारा बनाई गई किंवदंतियों और मिथकों का वर्णन किया जा रहा है. जिसे लोग अपनी मान्यता के अनुसार मानते हैं.





1. भगवान श्री कृष्ण के नीले रंग के पीछे एक मान्यता ये है कि भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. भगवान विष्णु सदा गहरे सागरों में निवास करते हैं. उनके इन सागरों में निवास करने की वजह से भगवान श्री कृष्ण का रंग नीला है. हिन्दू धर्म में जिन लोगों के पास बुराइयों से लड़ने की क्षमता होती है और जो लोग चरित्रवान होते हैं, उनके चरित्र को नीले रंग का माना जाता है.


2. हिन्दू धर्म में नीले रंग को अनंतता का प्रतीक माना जाता है. अतः इसका अर्थ यह है कि इनका अस्तित्व कभी समाप्त न होने वाला है. इस कारण इनका रंग नीला माना गया है.


3. एक अन्य मान्यता के अनुसार जब भगवान कृष्ण छोटे थे तब एक पूतना नामक राक्षसी इनकी हत्या करने के लिए आई. उस राक्षसी ने इन्हें अपना विष युक्त दूध पिलाया. हालाँकि एक देवांश होने की वजह से कृष्ण की मृत्यु नहीं हुई, किन्तु इस वजह से इनका रंग नीला हो गया. बाद में इन्होने राक्षसी का वध किया, किन्तु इनका रंग नीले का नीला ही रहा.


4. कहा जाता है कि यमुना नदी में एक कालिया नामक नाग रहता था, जिसके कारण गोकुल के सभी निवासी परेशान थे. अतः जब भगवान कृष्ण कालिया नाग से लड़ने गये तो युद्ध के समय उसके विष के कारण भगवान कृष्ण का रंग नीला हो गया.


5.  कई प्रख्यात विद्वानों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण का रंग नीला होने का मुख्य कारण उनका आध्यात्मिक रूप है. श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का यह नीला रूप सिर्फ उन्हें देखने मिलता है, जो कृष्ण के सच्चे भक्त होते हैं. भगवान श्रीकृष्ण के इस रूप के दर्शन मात्र से ही भक्त मोक्ष को प्राप्त कर लेते है.


6. भगवान श्री कृष्ण का रंग नीला होने के पीछे एक मान्यता ये भी है कि प्रकृति का अधिकांश भाग नीला है. उदाहरण स्वरुप आकाश, सागर, झरने आदि सभी नीले रंग में दृष्टिगोचर होते हैं. अतः प्रकृति के एक प्रतीक के रूप में होने की वजह से इनका रंग नीला है.


7.  ऐसा भी माना जाता रहा है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म बुराइयों से लड़ने और सभी बुराइयों का नाश करने के लिए हुआ था. अतः नीला रंग इन्होने एक प्रतीक की तरह धारण किया जिसका अर्थ बुराई का नाश है.


8. ब्रम्हा संहिता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के अस्तित्व में नीले रंग के छोटे छोटे बादलों का समावेश है. अतः इन्हें नीले रंग के अवतार में देखा जाता है.


9.  कई बार भगवान श्री कृष्ण के इस नीले रंग को ‘सर्व वर्ण’ कहा जाता है. इसका अर्थ ये है कि विश्व के समस्त रंगों का समावेश इस रंग में है. अतः भगवान श्री कृष्ण में सारा ब्रम्हांड समाहित है. इस वजह से उनका रंग नीला हो गया है.


10. भगवान श्रीकृष्ण को नीलोत्पल दल के नाम से भी जाना जाता है. इसका सम्बन्ध उस कमल पुष्प से है, जिसकी पंखुड़ियाँ नीली हों. श्री कृष्ण विष्णु के अवतार हैं, जिन्हें कमल बहुत पसंद है, अतः कई महान कलाकारों ने श्री कृष्ण की कल्पना करते हुए नीले रंग को ही इनके चित्र आदि बनाने के लिए चुना.


इस तरह से भगवान श्री कृष्ण के नीले रंग के पीछे छिपे कारण को कई लोग अपने अपने हिसाब से वर्णित करते हैं. इसके पीछे कई मिथक एवं किन्वंदतियाँ हैं तो यह जानना बहुत दुर्लभ है कि कृष्ण का रंग नीला होने की क्या वजह है.