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Tuesday 22 May 2018

दाम्पत्य कलह :–कारण और निदान

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आजकल यह समस्या आम है .लड़ाई झगड़ा न भी हो रहा हो , तो भी पति पत्नी एक दूसरे की सूरत से बेजार शिकायतों का गुबार मन में दबाये घुटते रहते है .यहाँ हम सभी तरह के कारण और ऩिदान बता रहे हैं .



1–मानसिक लगाव न होना .भौतिक अपेक्छा और केवल सेक्स सम्बन्ध का आधार होना .

निदान -साँस के साथ राधे कृष्ण मंन्त्र का 9 बजे रात के बाद जप . या तो स्वयं को राधा कल्पित करें या पति को कृष्ण .जप विधि धमाेलय में देखें

2–..पति द्वारा  भावना विहीन ,प्रेम विहीन सेक्स करना .

निदान –शिवलिंग पर बेल पत्र और जल चढ़ा कर 9 बेल पत्र का शबेत पति को आयु वृद्धि के नाम पर पिलायें .यह पति के मंगली होने पर मंगल दोष भी काटता हैं

3– स्वयं ही अधिक सेक्सी होना य़ा पति के सेक्स की दुबॆलता ..

निदान –यदि पति का लिंग टेढ़ा या दुबेल नहीं है ,तो गूलर, पीपल ,पाकड़ ,बरगद् इनमें स् किसी का कच्चा फल सुखा कर पीस कर 6 ग्राम की मात्रा में मिश्री और दूध के साथ ‌लेने पर 10दिन रति वजिेत करने पर वह सशक्त हो जायेगा .

4–पति से वितृषणा .उसे पसन्द न करना .

निदान –यह कठिन मामला होता है ,पत्नी की नापसन्दगी हर बात मेम झलकती है और कलह होता है ंपुरूष मारपीट पर आमादा हो जाता है .नापसन्दगी के कई कारण होते है .निदान उसके अनुसार होते हैं .कोई भी महिला दिन में 11 से 1 बजे के बीच निशुल्क सलाह ले सकतीं हैं .

5   — पत्नी से विमुखता .

निदान –इसके भी कई कारण होते हैं .दोनों में कोई भी इसका कारण हो सकता है .पत्नी का सेक्स में कापरेट न करना या किसी अन्य स्त्री से लगाव इसका प्रमुख कारण होता है .विशेष कर धनपति परिवारों में पति का लगाव किसी न किसी अन्य स्त्री से होता हैं .अक्सर ऐसी स्त्रियाँ काला जादू का भी प्रयोग किये रहतीं हैं .इसकी सामान्य पहचान पुरूष का खोया रहना है.

निदान — जादू की काट ,सुरक्छा और वशीकरण .किसी जानकार से स्म्पर्क करें .
6–किसी अन्य पुरूष पर मन का लगाव ,भले ही मन की बात जुँबाँ पर न आये भी दामंपत्य कलह का कारण होता है .तब पति की अच्छी बात भी चनका देती है.

निदान –मन को सम्हालें.गुरुमंत्र का जप करें

7–सम्भोग में कष्ट होना .यह स्त्रीको होता है .कारण योनि का एसिडिटिक होना या पुरूष के विपरित होना होता है .

निदान –गन्धप्रसारिणी 20 ग्राम 6घन्टे पानीमेम रखकर मसल कर पीयें .

पत्नी शशक प्रकृति की और पुरुष वृषभ या अश्व प्रकृति की हो ,तो योनि छोटी होने के कारण ददॆ होता है .पद्मिनी को अश्व वृषभ भोगे तो भी ददे होताहै .



Ruchi Sehgal

मिर्गी , हिस्टीरिया और प्रेतग्रस्त का अन्तर

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दिव्य तांत्रिक चिकित्सा

मिर्गी , हिस्टीरिया और प्रेतग्रस्त का अन्तर



(विशेष शोध निष्कर्ष)

मिर्गी

इसे संस्कृत में अपस्मार कहा जाता है। यह नर्वस सिस्टम की एक बीमारी है। कारण अभी तक आधुनिक चिकित्सा को ज्ञात नहीं है। तन्त्र विद्या में कहा गया है की (भावार्थ डिस्कवरी) – मस्तिष्क में विद्युतीय प्रवाह के बाधित होने से यह रोग होता है। इसमें पृथ्वी की ऊर्जा जो तलवों से ऊपर चढती है, तलपेट में जाकर या पाँव गलत जगह पड़ने से प्रदूषित हो जाती है। यह भाप जैसी बन कर ऊपर चढती है और मिर्गी रोग होता है, क्योंकि यह स्नायुओं में विद्युतीय प्रवाह को बाधित कर देती हैं।



लक्षण – एकाएक शरीर में कम्पन , गिरना , बेहोशी इसके लक्षण है, परन्तु बेहोशी आवश्यक नहीं। कभी-कभी यह किसी विशेष अंग के नर्तन (कम्पन) के रूप में प्रकट होता है। स्पष्ट है की केवल उस लोग अंग में विद्युतीय प्रवाह बाधित होता है। यह खान-पान की गड़बड़ी से होता है।
ऊपरी बाधा – जब दौरे से पहले रोगी को आग, भयानक चेहरे , विकराल भयानक आंधी आदि दिखाई दें और वह भयभीत होकर चिल्लाने लगे, तो ऐसे मिर्गी के दौरे ऊपरी बाधा के माने गये है। ये जल्दी आराम नहीं होते। आधुनिक चिकित्सा में इन्हें मिर्गी ही माना गया है, पर क्यों में यहाँ भी कारण का पता नहीं है।
हिस्टीरिया

यह मानसिक दौरा केवल स्त्रियों को पड़ता है। अक्सर यह रोग 15 से 30 वर्ष की उम्र में होता है। आधुनिक चिकित्सा में इसका प्रधान कारण मासिक धर्म का विकार समझा जाता है। साइक्लोजिस्ट इसे मानसिक अवसाद की उत्पत्ति मानते हैं। तन्त्र विद्या में कहा गया है कि मानसिक घुटन , निराशा , प्रणय में अफलता , पारिवारिक प्रताड़ना इसका प्रमुख कारण है।

तन्त्र में कहा गया है कि हिस्टीरिया के समान लक्षण 12 प्रकार की ऊपरी शक्तियों के कारण भी उत्पन्न होते हैं। इसके दौरे विचित्र प्रकार के होते हैं।  इसके दौरे विचित्र प्रकार के होते हैं। वैद्यों की भी यही राय  रही है। इन दोनों के अंतर को केवल लक्षणों से पहचाना जा सकता है।



हिस्टीरिया के लक्षण – रोगिनी एक एक चिल्लाती हैं और बेहोश हो जाती हैं। इससे पहले वह बैचैनी से इधर-उपधार भागती हैं। कोई – कोई दौरे की बेहोशी के ही काल में  सो जाती हैं।



ऊपरी 12 प्रकार की शक्तियों के प्रकोप के लक्षण – इसमें बेहोशी नहीं होती। रोगिनी  जोर से चिल्लाती है या हँसने लगती हैं या रोने लगती हैं और तरह-तरह के विलाप करती है या अपने आस-पड़ोस की औरतों – पुरुषों के बारे में अनाप-सनाप कहती हैं , गालियाँ भी देती हैं। कोई-कोई नाचने – गाने लगती हैं। श्राप देना या आशीर्वाद देना , स्वयं को देवी-देवता या मृतात्मा बताना, भविष्यवाणी करना , कोसना आदि इसके लक्षण अनेक प्रकार के होते हैं। इसमें सारी बातें अर्थपूर्ण होती है। रोगिनी बेहोश नहीं होती और 5 या 10 मिनट में सामान्य हो जाती हैं। उस दौरे के समय की कोई बात याद नहीं रहती हैं। यह प्रकोप 8 से 35 – 40 वर्ष तक भी होता है। यह दौरा कुछ निश्चित तिथियों में उग्र होकर पड़ता है या निश्चित पक्ष में।

(भूत-प्रेत के अनेक लक्षण रूप होते हैं।  शक्तियों के भी सैकड़ों लक्षण होते हैं। यहाँ केवल हिस्टीरिया के लक्षणों के समान प्रकोप की चर्चा की गयी हैं।



चिकित्सा – जब तक कारण का ज्ञान न हों, लक्षण से यह पता न चले कि कारण क्या है? यह बिमारी है या प्रकोप ? चिकित्सा हानिकारक होती हैं



Ruchi Sehgal

सन्तान प्राप्ति सम्बन्धी समस्या के उपाय

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दिव्य तांत्रिक चिकित्सा


सन्तान प्राप्ति से सम्बन्धित समस्या के कारण निम्नलिखित हैं:

पुरुष से सम्बन्धित



सेक्स में असमर्थता
शुक्राणु की कमी या दुर्बलता
वीर्य में अत्यधिक गर्मी या शीलता
वीर्य का ब्रह्मचर्य आदि व्रतों के कारण अत्यधिक गाढ़ा हो जाना। यह सर्दी से भी होता है।
स्त्री/पुरुष की प्राकृतिक नस्ल में विषमता और उचित कामासन से अनभिज्ञता
स्त्री से सम्बन्धित

लिकोरिया आदि योनि रोग और योनि स्त्राव का अम्लीय एसिडिक होना
रक्त की कमी या अधिकता
गर्भाशय विकार – यह कई प्रकार का होता है।
कारण

आज का लाइफस्टाइल इसका कारण है। आज सेक्स सम्बन्धी रोग से 90% स्त्री/पुरुष पीड़ित है और इसका कोई निदान उनकी समझ में नहीं आता , प्रचलित चिकित्सा पद्धति में है भी नहीं। उस पर शर्म और सामाजिक मान-मर्यादा का डर भी उन्हें इन रोगों को पाले र्ह्नसे पर विवश करता है।

इन रोगों से मुक्ति पानी है तो थोडा परिवर्तन करना होगा। जिमखाना, प्राणायाम, योग या जोगा कोई भी इसका निदान नहीं कर सकता। शारीरिक स्वास्थ्य ऊपरी तौर पर बन जाए आप ताकतवर बन जाए, पर धातुगत दुर्बलता को दूर करके के लिए आपको बाजार का आहार, कोल्डड्रिंक आदि तली भुनी बासी चीजें , विरुद्ध आहार जैसे – दूध ,-मछली, दूध-प्याज, दही-कटहल की सब्जी, दही-करेला आदि से बचना होगा। खट्टे अचार-सिरके , तेज मसाले भी धातु को बनने से  रोकते हैं।

पुरूषों की सेक्‍स संबंधी समस्‍याएं और उनका उपचार

उपाय

संतान प्राप्ति के अचूक उपाय

स्त्री-पुरुष गर्मी –सर्दी की पहचान सबसे पहले करें। गर्मी हो , तो कबाबचीनी 1 ग्राम + मिश्री 5 ग्राम (चूर्ण) ठंडा पानी एक ग्लास दिन में चार-पांच बार। साथ में प्रतिदिन थोडा घी खाए।यह खुश्की करता है।
21 दिन प्रातःकाल बेल के पत्ते का शर्बत पीये। १० ग्राम।
घृत कुमार (ऐलोबिरा) का गूदा 50 ग्राम + मिश्री 50 ग्राम और गिलोय का काढ़ा या शीत निर्यास एक ग्लास । शीत निर्यास यानी पीसकर रात में ठंडे पानी में रखें। सबेरे मसल छानकर पी जाएं। 25 ग्राम पिसा।
गुड़हल के ५० ग्राम ताजा फूलों को पीसकर मिश्री के साथ शर्बत बनाकर प्रातःकाल पीयें।


विशेष – बेलपत्र की मात्रा १० ग्राम । 21 दिन से अधिक नहीं। अधिक से कामशक्ति में भी ठंडापन आता है।

प्याज, लहसुन , तिल , जिमीकंद , भुने चने , अंकुरित चने – मूंग – उड़द – गेंहू , तिल , गुड, शहद, बादाम, पिस्ता , बरगद के कच्चे फल या अंकुर , पाकड़ के कच्चे फल , गूलर के कच्चे फल, (सोंठ, पीपर , अकरकरा , भांग) – ये सभी लाभप्रद होते हैं।

कोष्ठ के सोंठ आदि की मात्रा ½ ग्राम काली मिर्च के साथ गर्म दूध के साथ अन्य 6 ग्राम प्रातः-सायं है। गुड शहद – मिश्री आदि समयोग है। यानी मिलाये जाते हैं। इन्हें भी 6 ग्राम लेना चाहिए।

इनके अतिरिक्त शतावरी , मुलेठी, विधारा, नागौरी, असगंध – प्राकृतिक टॉनिक है। मात्रा 5 ग्राम + 5 ग्राम चीनी हैं। इनमें घी, शहद, दूध आदि मिलाये जाते है। इन चारों के चूर्ण में गर्मी सर्दी के अनुरूप दवाए मिलाई जाती है।( घी शहद बराबर न मिलाये )

ये स्त्री-पुरुष दोनों को साल में चार महीने जाड़े के समय प्रयोग करना चाहिए।

विशेष – हमारे यहाँ से किसी भी सेक्स समस्या के लिए निःशुल्क सलाह ले सकते है । अपनी प्राइवेसी के लिए निश्चिंत रहे। आप अपना निदान हमारी वेबसाइट पर भी ढूंढ सकते हैं और हमसे अर्क मंगवा कर भी पर्योग कर सकते हैं। हमारा अर्क सामान्य धातु वर्द्धक टॉनिक के रूप मेंम भी प्रयोग कर सकते हैं। छोटी चम्मच से एक चम्मच तीन बार। दवा दो होती है ( हर समस्या में अलग-अलग। एक समस्या दूर करती है, दूसरी कमी पूरी करती है) यानी 3-3 चम्मच दवा गर्म या ठण्ड पानी के साथ प्रयोग करनी होती है। लिंगादी के नसविकार होने पर लिंग वर्द्धक तेल प्रयोग किया जाता है।  परन्तु यह दवा का कारोबार नहीं है। वेबसाइट पर सब तरह की जड़ी-बूटी विधि है। आप स्वयं भी अपना निदान कर सकते हैं।

संतान प्राप्ति के लिए यह करें

स्त्रियों के सेक्स रोगों का निदान

प्रदर रोग (लिकोरिया) – कैथ के पत्ते+ बांस के पत्ते पीसकर कपड़े में छान लें। यह लुगदी 20 ग्राम – शहद १० ग्राम प्रातःकाल प्रयोग करें। – रक्त प्रदर में अशोक की छाल का गाय के दूध में पकाकर मिश्री के साथ (25 ग्राम + 250 ग्राम + 250 ग्राम) प्रातः सायं पीये। पके गूलर के फलो का चूर्ण भी दस ग्राम प्रातः सायं – 10 ग्राम मिश्री के साथ प्रातः सायं लेने से रक्त प्रदर समाप्त हो जाता है। और भी अनेक वनस्पतियाँ है; पर वे प्राप्त होने में दुर्लभ है। आवलें की गुठली का चूर्ण भी इसकी दवा है। मात्रा – 5 ग्राम + 10 ग्राम शहद है।
योनि रोग – सफेद जीरा, काल जीरा, छोटी पीपर, कलौंजी , सुगन्धित बच, अडूसा , सें



Ruchi Sehgal

तंत्र विद्या कोई जादू टोना नहीं है।

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तंत्र मन्त्र सिद्धि साधना


गलत सुना है।   ऐसी कोई भी साधना नहीं होती जो आपको कहीं से पैसे उठा के दे दे ।   किसी शक्ति साधना करने परिस्थितीयाँ बदलती है और धन प्राप्त होता है।   हड्डी घुमाया और थाली में नोट प्रकट हो गया है , यह सब सिनेमा और सीरियल में होता है और कुछ लोग कुछ साधनाओं में भी इस प्रकार की बकवास किया करते है।



तन्त्र विद्या कोई जादू टोना नहीं है।   यह प्रकृति की ऊर्जा तंरगों को नियंत्रित करके असाध्य को साध्य करने की विद्या है।   और प्रकृति के पास इंडियन करेंसी या अमेरिकन डॉलर छापने की कोई मशीन नहीं है।



Ruchi Sehgal

स्तम्भन क्रिया की सिद्धियाँ और क्रियाएं

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स्तम्भन क्रिया की सिद्धियाँ और क्रियाएं (बगलामुखी सिद्धि)
तंत्र मन्त्र सिद्धि साधना


स्तम्भन को माया स्तम्भन भी कहते है। माया शरीर के सम्पूर्ण चक्र को कहा जाता है। स्तम्भन यानी जड़ता और इसमें माया अर्थात सम्पूर्ण अस्तित्त्व की क्रियाओं का स्तम्भन होता है। इसकी आवश्यकता तन्त्र साधना में दुष्ट गतिविधियों के स्तम्भन हेतु की जाती है; ताकि साधना कार्य में वे विघ्न न डालें।



स्तम्भन की क्रिया के लिए भी किसी देवी-देवता की एक सिद्धि होनी आवश्यक है। यहाँ हम बगलामुखी की सिद्धि बलता रहे है –



मन्त्र – ॐ ह्रीं श्रीं बगला मुखी श्रीं ह्रीं ॐ स्वाहा ।

यंत्र – अष्टदल कमल की कर्णिका में षट्कोण के मध्य अधोमुखी त्रिकोण में बिंदु।

समय – ब्रह्म मुहूर्त , प्रातःकाल सूर्योदय के समय, रात्रि में महाकाल रात्रि

दीपक – घी का दीपक, कपास की बाती

वस्त्र-आसन  – पीला रेशमी या सूती

जप संख्या – एक लाख (दिनों में बाँटकर)

हवन – कटहल, गूलर, गम्भार या गाय के कंडे की समिधा में घृत, जौ, पीले चवल, पीले फूल, हल्दी, मधु, दूध, धी, आदि से; दस हजार मन्त्रों से ।

ध्यानरूप – तीन नेत्रों वाली यह देवी, गंभीर, रोबीली, सौन्दर्य और यौवन से भरी, नेत्रों में मादकता, सोने के समान पीली चमकती कायावाली है और ये कमल पर आसीन है। इनके चार हाथ है। दाई और मुदगर और गदा(ऊपर नीचे), बायीं और शत्रु की जीभ और वज्र है(ऊपर नीचे), यह उन्मत यौवनमयी है और पीले रंग के वस्त्रों तथा सोने के गहनों से सुसज्जित है। इनके कपाल पर अर्द्ध चन्द्र है और ये सोने के सिंघासन पर रखे कमल पर बैठी है। कमल का वर्ण भी स्वर्णिम है।



नोट – स्तम्भन के लिए मेखलायुक्त त्रिकोण त्रिभुजाकार कुंड का प्रयोग किया जाता है।

यह सिद्धि सभी प्रकार की क्रियाओं में प्रशस्त है।



विद्वेषण क्रिया और सिद्धियाँ

इसकी आधारभूत देवी डाकिनी एवं उच्चिष्ठ चाण्डालिनी को माना जाता है।

डाकिनी मन्त्र – ऐ स ह क्लहीं ह्रीं श्रीं हूँ स्त्रीं छ्रीं फ्रें क्लीं क्रीं फ्रें क्रोन डाकन्ये नमः

समय – महाकाल रात्रि; दिशा – दक्षिण; वस्त्र काला; आसन काला ( या गहरा खूनी लाल); स्थान – श्मसान , हवन सामग्री – चिता की अग्नि में स्वयं के बाल, रक्त, उल्लू के पंख, चर्बी-मांस-मदिरा। फूल-लाल-नीला ।





यह मंत्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है।



Ruchi Sehgal

मोहिनी विद्या के नुक्से

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इन नुस्खों को कार्यान्वित करते समय अपने ईष्ट का वास्तविक ध्यान होने पर ये काम करते है-



चिता भस्म के साथ विदारी कंद , वट की जटा, मदार का दूध – तीन घंटे तक खरल में घोंटे। इसमें से तिलक लगाने पर साधक की दृष्टि जिससे मिलती है, वह वशीभूत हो जाता है।
पुष्य नक्षत्र के समय पुनर्नवा की जड़ एवं रूद्र दंती की जड़ लाकर जौ के साथ हाथ में बाँधने पर व्यक्ति जहाँ जाता है, उसे आदर मिलता है।
वायु में उड़कर आया पत्ता, मजीठ, अर्जुन की छाल, तगर को समान मात्रा में मर्दन करके (12 घंटा) भोजन एवं पेय में देने पर वह व्यक्ति देने वाले के प्रति वशीभूत होता है।
श्मशान की महानीली की जड़ की बत्ती से (कूटकर रूई में मिलाकर) चमेली के तेल में दीपक जलाकर काजल बनाये। इसे आँखों में आंजने पर जिससे नजर मिले , वह वशीभूत होता है।
स्त्री के रज से भींगे वस्त्र को बरगद के पेड़ के निच्चे जलाकर, उस राख को धतूरे के रस में 7 घंटा मर्दन करने पर गोली बनाकर कर रहे लें। इसे घिसकर तिलक लगाने या किसी पुरुष को खिलाने पर वशीभूत होता है।
अपने वीर्य में अपामार्ग की जड़ , धतूरे की जड़, हरताल घोंट कर किसी स्त्री को 25 ग्राम खिला देने पर वशीकरण होता है।
बरगद की जटा, इसका दूध, मोरपंख, गोरोचन मिलाकर सात घंटे घोटे। इसका तिलक लगाने पर वशीकरण होता है।
उल्लू का ह्रदय, गौरैया की आंखे, अगर, तगर, अपना रक्त, रक्त चन्दन, लाल कनेर के फूल – समान मात्रा में लेकर 12 घंटे घोंटे। घोटते समय इसमें आक का दूध डालते रहे। यह 30 ग्राम की मात्रा में खिलाने या इसका तिलक करने से वशीकरण होता है।
पुष्य नक्षत्र में धतूरे का फूल, भरणी में फल, विशाखा में पत्ते, हस्त में भी पत्ते, मूल में मूल लाये और छाया में सुखा कर कपूर, गोरोचन, केशर के साथ 6 घंटे घोंटे (मदार के दूध में) इसका तिलक लगाने पर अरुधन्ती के सामान कामिनी भी वश में में हो जाती है।
तालमखाना, कौंच, शतावरी, गोखुरू, अनिचारी, खरेंटी, पेठे की जड़, अकरकरा , गोखरू, – इन्हें चूर्ण करके वस्त्र से छाने। इस चूर्ण को शीशे के साफ़ बर्त्तन में रखें। इसका 10 ग्राम सुबह- 10 ग्राम शाम गाय के दूध के साथ सेवन करनेवाला एक महीने में कामनियों के मन को जीतने वाला (रति में) हो जाता है।
पुष्य , नक्षत्र में सफ़ेद आक की जड़ लाकर लाल तागे से कमर में बांधे। इसे बांधकर जिस स्त्री से एक बार रमण करें, वह साधक के वश में हो जाती है।
कैथ का रस, लालकमल, पीपल, मुलहठी – इसे समान भाग में पीसकर शहद में मिलाकर परस्पर जननेद्रियों पर लेप करके रति क्रीड़ा करने पर (आधा घंटा लगाकर कर हल्का पोंछ लें) स्त्री-पुरुष में प्रेम बना रहता है।
कबूतर की बीट, सेंधानमक , शहद में घोंटकर लिंग पर लेप करके रमण करने से वह कामिनी सदा वश में रहती है। सारे शरीर पर लेप करने से सम्मोहन होता है।
मैनसिल (शोधित), गोरोचन, केसर समान लेकर 6 घंटा घोंटे। इसके तिलक से जो संपर्क में आता है, वशीभूत होता है।
सफ़ेद अपराजिता की जड़ गोरोचन को पीसकर तिलक लगाने से भी सभी वशीभूत होते है।
गोदंती, हरताल, काक जंघा – समान मात्रा में 6 घंटा घोंटे। इसके चूर्ण को किसी के सिर की कॉक पर डालने से और कुछ देर तक रहने से वह वशीभूत होता है।
अपने रक्त या वीर्य या राज के साथ गोरोचन .10 की मात्रा में किसी को खिलाने पर वह वशीभूत होता है।
सहदेई की जड़ को कमर में बंधकर रमण करने से स्त्री वश में रहती है।



Ruchi Sehgal

सफल पुजा के नियम

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पूजा प्रारंभ करने से पहले का काम

मेंटली उसके प्रति गंभीर होना यानी सच में चाहना कि हम करना चाहते है।
यदि सूर्योदय से एक घंटा पहले उठ सकते है; तो बहुत अच्छा, नहीं तो उठने का निश्चित टाइम फिक्स कीजिये।
उठने के बाद गर्दन को ऐंठ मरोड़कर और कमर पर हाथ रखकर कंधे को बाएँ-दायें –आगे-पीछे मोड़कर शारीरिक शिथिलता को दूर कीजिये।
रात में ताम्बे के लोटे में एक लीटर पानी रखें और क्रमांक 3 करने के बाद जितना पी सकते है, उसे पी जाएँ।
शौचादि से निवृत होकर सारे शरीर को ऊपर से नीचे (मस्तक से तलवों तक) पीली मिट्टी या हमारे मोहिनी पैक मंगवाकर , जो 21 जड़ी बूटियों के संयोग से निर्मित है, खूब मल-मलकर ‘ॐ अस्त्राय फट’ मंत्र का जप करें। इसके सुख जाने पर नार्मल टेम्परेचर के जल से स्नान करें।
जल स्नान के समय नियम बाद में कुछ देर जल की धारा को चाँद पर गिराना है और आँखें मूँद का उस पानी की धारा को ऊर्जा धारा के रूप में अनुभूत करना है। यह कल्पना करना है कि शिव की गंगा शीर्ष पर गिरकर ऊर्जा धारा के रूप में सारे विकार धोती जा रही है। यह मात्र दो –तीन मिनट का काम है।
ढीले वस्त्र पहनकर पूजा में बैठे । पहले गुरु का ध्यान करके उसके बाद केवल मानसिक पूजन करें। एक ही ईष्ट की पूजा , जैसे आप करते है और केवल ५ मिनट उनका ध्यान ह्रदय में करके उनके मंत्र या प्रार्थना का जप करें। प्रणाम करके उठ जाए। एक बार फिर याद रखें। ईष्ट केवल एक ही होना चहिये एयर सोचना चहिये कि वे हमारे ह्रदय में विद्यमान है। फिर वे प्रकाशित होते हुए विकसित हो रहे है। इसके अंत में वह प्रकाश रूप समस्त शरीर में व्याप्त हो जाता है। इसमें समय लगता है , पर जब केंद्र में ईष्ट की ज्योति स्थापित हो जाती है, चमत्कारिक अनुभूतियाँ उसी समय से प्रारम्भ हो जाती है। कुछ स्त्रियों में अलौकिक शक्तियां भी लुकाछिपी करने लगती है। समस्त शरीर में प्रकाश व्याप्त होने पर वे गुण भी स्थायी हो जाते है।
रात में सोते समय सिर के चाँद और खोपड़ी में नारियल या शुद्ध सरसों या बादाम या जैतून या कद्दू के बीज का तेल डाले। सुगन्धित तेल न डालें। हो सके तो कान, नाभि आदि शरीर के समस्त छिद्रों को इससे पूरित करें। सुबह चाहे मिट्टी लगाने से पहले अच्छे शैम्पू से इसे धो लें।
खाने-पीने एवं आचरण सम्बन्धी कोई वर्जना नहीं है। इसका मानक है कि जो सरलता से पच जाए, जो मस्तिष्क को भ्रमित या अवसादित न करें और शरीर को क्षति न पहुंचाए।
अपने ह्रदय में अपने ईष्ट को धारण करके स्वयं को वही समझे। समझें कि केंद्र में उनकी ज्योति है और वही आपका अस्तित्त्व या जीवन है। इस भाव को सदा बनाएं रखें। इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह ईष्ट कौन है। गुरु, देवता, देवी, शिव, भैरव, राम या कृष्ण या कोई भी शक्ति। मुस्लिम महिला अल्लाह को वहां स्थापित करें , इसाई ईसा को। प्रत्येक को चमत्कारी लाभ मिलेगा। यह प्रकृति का स्वाभविक नियम है।
यह नियम है कि आप नेगेटिव पैदा कीजिये, पॉजिटिव अपने आप पैदा होगा।शरीर को तांत्रिक स्नान से शुद्ध करके; जब हृदय में कोई भी भाव प्रकाशित होता है; तो वह नाभिक यानी सूर्य की ऊर्जा का प्राकृतिक समीकरण बदल देता है। वह उस भाव के समीकरण में प्रसारित होने लगता है। भाव जितना गहरा होता जाएगा, प्रकाश बढ़ता जाएगा। ऊर्जा का स्वरुप सूक्ष्म होता चला जाएगा। अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति का कारण सूक्ष्म ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसका पॉजिटिव वातावरण में बनता है और शरीर में समाता रहता है। यह केंद्र को और प्रकाशित कर देता है। यह एक चेन सिस्टम बना लेता है।
नारियों को लाभ जल्दी मिलता है। इसलिए कि अपनी रूचि में केन्द्रित हो जाने कि उसमें प्रवृति होती है, संभवतः नेगेटिव होने के कारण । मार्ग का मानसिक भाव जल्दी केन्द्रित नहीं होता। विश्वास और धीरज का अन्तर भी इसका कारण होता है।
पर पुरुषों के लिए भी यदि वह पूजा-साधना करता है, यही सूत्र है। करके देखें। तब पता चेलगा कि हमारे देवी-देवता या आपके ईष्ट केवल आस्था हैं या एक विचित्र विज्ञान की शक्तियाँ ।

विशेष –

तलवों पैरों को साफ रखें। इसमें क्रीम आदि भी न लगायें। कोमलता चाहती है, तो मदिरा या पेट्रोल में ब्रश भिंगोकर पैर तलवों को साफ़ करें।विशेष कर सोते समय।
हाथों एवं हथेलियों को भी साफ़ करें। पेट साफ़ रखें। कब्ज हो तो एरंड का तेल गर्म पानी या दूध में रात में 20 ग्राम की मात्रा में पीये। इससे पहले तीन ग्राम हर्रे + 1 ग्राम सेंधा नमक का चूर्ण खा लें। पहले चूर्ण निगल लें , तब दूध या पानी पीयें।
हफ्ते में एक बार शरीर पर सर्वत्र सरसों , नारियल , बादाम, मूंगफली , जैतून – इसमें से किसी एक से मालिश करें।
महीने में एक बार घर के आँगन में ईष्ट देवता के अनुसार दिन में या रात में हवन करें। उसी मन्त्र से जो जपते है। इससे उस घर की सभी नेगेटिव शक्तियां दूर भागत



Ruchi Sehgal