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Tuesday 22 May 2018

पुतली तंत्र (क्रमांक ५) निर्माण एवं प्रयोग विधि

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पुतली तंत्र (क्रमांक ५) निर्माण एवं प्रयोग विधि
किया-कराया; जादू-टोना; काला-जादू

निर्माण के पदार्थ

साध्य के बाल, प्रयोग किये अधोवस्त्र, कुम्हार के चाक की मिट्टी, साध्य के नक्षत्र वृक्ष की छाल, उड़द का आटा, पीपल, काली मिर्च, और गेरू –



ये शुभ कार्य के लिए प्रयुक्त होता है. अशुभ कार्य के लिए रसोई की कालिख, चिता की राख, सेंधा और समुद्री नमक, हींग, सोंठ, लहसुन भी मिलाया जाता है. बाल को छोड़ कर सभी को कूट कर पुतली बनाई जाती है. बाल से काट कर रोम और सर सहित अन्य बालों का प्रत्यारोपण किया जाता है.

निर्माण मान

सोलह से बारह अंगुल तक व्यक्ति की औसत लम्बाई के अनुसार. नारी में चौदह से बारह अंगुल तक. इसे १६ भाग में बाँट कर, २ में सिर, १ में गर्दन, ६ में कंधे से कमर तक, ६ में जन्घसे पैर तक, ३ पर संधि घुटना दे कर बनाए. यह काम रात में गुप्त रूप से करना चाहिए. सभी अंगो को स्पष्ट चिकना बनाना चाहिए. साध्य से मिलता बनाना चाहिए. चार पुतली बनायीं जाती है.

प्राण प्रतिष्ठा विधान

यंत्र -वृत्त, उसके ऊपर वृत्त उसके ऊपर एक बड़ा वृत्त, उस पर कमल के दस दल, उसमें दसों प्राण शक्ति के नाम. नीचे मध्य से प्राण लिख कर क्रम में धनंजय तक, उसके बाहर चतुरस्त्र. लेखन चन्दन – रक्त चन्दन.

प्राण शक्ति के नाम -प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान, नाग,कुर्म, कृकर, देवदत्त, धनन्जय

न्यास – षडंग न्यास – य से स तक के वर्ण से. पहले दो वर्ण, फिर उसमें का अंतिम वर्ण और अगला वर्ण, फिर उसमें का अंतिम और अगला, इसी क्रम से.

ह्री श्रीं यराभ्या हृदये नम :[क्रमश :]

पूजन – ह्रीं श्रीं …….. पादुका पूजयामि. दसों प्राणशक्ति के नाम क्रमश: खाली स्थान में दे दे कर. यंत्र के मध्य में प्राण शक्ति की तीन तीन मन्त्रों से पूजा करके मन्त्र जपें. पूर्व मुखी हो कर मन्त्र जपने की संख्या १२५००० है. दशांस से हवन करें. हवन में मदिरा, मांस, तिल, सरसों तेल, त्रि मधु लोग, तेजपत्ता, कपूर, दालचीनी प्रयुक्त करें.

मन्त्र – अमुष्य प्राण इह प्राणा अमुष्य जीव इह स्थित अमुष्य सर्वेन्द्रियानि अमुष्य, वांमन: प्राणा इहायान्तु स्वाहा

रूप ध्यान –अत्यंत चमकीले सूर्य जैसा विन्दु मध्य में.

पुतली प्राण प्रतिष्ठा

त्वक, स्रइं, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र, ओज इन धातुओं को एक एक करके य से स तक विन्दु लगा कर प्रारंभ में दे कर बाद में “प्रतिष्ठित भव:” कहें. इस समय पुतली को यंत्र के मध्य में रखें. चारो को. ऐसा ९ b करके तब प्राण प्रतिष्ठा मन्त्र १०८० की संख्या में जप करें. मन्त्र पूर्व के अनुसार सिद्ध होना चाहिए .

प्रति दिन इस सख्या में मन्त्र जपने पर एक महीने में यह अभिचार के योग्य होती है. इस पर सभी तरह के प्रयोग किये जा सकते हैं. कुछ के प्रयोग आगे बाते जाएंगे.



Ruchi Sehgal

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