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Friday, 11 August 2017

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त्रिगुणात्मक शक्ति रूपी नवदुर्गा की एक और विशेषता है, जो कि उनके आध्यात्मिक स्वरूप में दस महाविद्याओं के रूप में विराजमान है। ब्रह्माजी पुत्र दत्तात्रेय ने तंत्र शास्त्र के निगमागम ग्रंथों की रचना करते हुए महिषासुर मर्दिनी और सिद्धिदात्री देवी भगवती के अंदर समाहित उन दस महाविद्याओं का जिक्र किया है, जिनकी साधना से ऋषि मुनि और विद्वान इस संसार में चमत्कारी शक्तियों से युक्त होते हैं। मार्कण्डेय पुराण में दस महाविद्याओं का और उनके मंत्रों का तथा यंत्रो का जो जिक्र है उसे संक्षेप में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।

दस महाविद्याओं के नाम हैं: महाकाली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, षोडषी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला। जैसे कि कहा गया है:

 

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।

देवी दुर्गा के आभामंडल में उपरोक्त दस महाविद्याएं दस प्रकार की शक्तियों के प्रतीक हैं। सृष्टि के क्रम में चारों युग में यह दस महाविद्याएं विराजमान रहती हैं। इनकी साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और साधक की सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक होती हैं। नवरात्र में सिद्धि और तंत्र शास्त्र के मर्मज्ञ इनकी साधना करने के लिए हिमालय से लेकर पूर्वांचल बंगाल आदि प्रान्तों में अपने तप बल से साधनारत होकर इनके स्वरूप का मंत्र जाप करते हैं। दस महाविद्याओं का वर्णन इस प्रकार से है:

महाकाली: महाविनाशक महाकाली, जहां रक्तबीज का वध करती हैं, वहां अपने साधकों को अपार शक्ति देकर मां भगवती की कृपा से सबल और सक्षम बनाती हैं। यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट हो जाती हैं। यह महाकाली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई है।

तारा: शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए जानी जाती हैं। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं। तारा, एकजटा और नील सरस्वती। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। तारा महाविद्या के फलस्वरूप व्यक्ति इस संसार में व्यापार रोजगार और ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण विख्यात यश वाला प्राणी बन सकता है। इसे सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा रहा है।

त्रिपुर सुन्दरी: शांत और उग्र दोनों की स्वरूपों में मां त्रिपुर सुन्दरी की साधना की जाती है। त्रिपुर सुन्दरी के अनेक रूप हैं। मसलन, सिद्धि भैरवी, रूद्र भैरवी, कामेश्वरी आदि। जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ वशीकरण आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। कमल पुष्पों से होम करने से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है। मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। वांछित सिद्धि और मनोअभिलाषापूर्ति सहित व्यक्ति दुख से रहित और सर्वत्र पूज्य होता है।

भुवनेश्वरी: आदि शक्ति भुवनेश्वरी भगवान शिव की समस्त लीला विलास की सहचरी हैं। मां का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरूण हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। इस महाविद्या की आराधना से जहां साधक के अंदर सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है, वहां वह संसार का सम्राट भी बन सकता है। इसको अभिमंत्रित करने से लक्ष्मी वर्षा होती है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं। इसको सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा है ।

छिन्नमस्ता: विश्व की वृद्धि और उसका ह्रास सदैव होता रहता है। जब निर्गम अधिक और आगम कम होता है, तब छिन्नमस्ता का प्राधान्य होता है। माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन और कवित्व शक्ति की वृद्धि होती है। शरीर रोग मुक्त होता है। शत्रु परास्त होते हैं। योग ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक को संसार में ख्याति मिलती है। इसको सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा है।

षोडशी: सोलह अक्षरों के मंत्र वाली माता की अंग कांति उदीयमान सूर्य मंडल की आभा की भांति है। इनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। षोडशी को श्री विद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।

धूमावती: मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। इनका स्वामी नहीं है। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महा विद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ लालच से रहित हो इस महाविद्या के फल से देवी धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है।

बगलामुखी: व्यक्ति रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। पीतांबरा माला पर विधि-विधान के साथ जाप करें- दस महावद्याओं में बगला मुखी सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली महाविद्या है, जिसकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिक काल में समय समय पर की है। इसकी साधना से जहां घोर शत्रु अपने ही विनाश बुद्धि से पराजित हो जाते हैं वहां साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है।

मातंगी: मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है । यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं। पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।

कमला: कमला की कांति सुवर्ण के समान है। श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि की प्रतीक, स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है । इस प्रकार दस महामाताएं गति, विस्तर, भरण-पोषण, जन्म-मरण, बंधन और मोक्ष की प्रतीक हैं। इस महाविद्या की साधना नदी तालाब या समुद्र में गिरने वाले जल में आकंठ डूब कर की जाती है। इसकी पूजा करने से व्यक्ति साक्षात कुबेर के समान धनी और विद्यावान होता है। व्यक्ति का यश और व्यापार या प्रभुत्व संसांर भर में प्रचारित हो जाता है।

เคฎंเคค्เคฐो เคธे เค•เคฐे เคฎเคงुเคฎेเคน เค•ा เค‡เคฒाเคœ, cure diabetoes by using mantras

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डायबिटीज रोग कैसा होता है, यह तो इससे पीड़ित रोगी ही अच्छी तरह समझ सकते हैं। दिखने में तो यह सामान्य है, लेकिन जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है, तो व्यक्ति अनेक प्रकार की बिमारियों से घिर जाता है तथा मृत्यु के समान कष्ट पाता है। इसी कारण इसको खतरनाक बिमारी कहा गया है। आप इस रोग का पूर्ण समाधान प्राप्त कर सकते है, यदि आप दवाओं के साथ साथ इस प्रयोग को भी संपन्न कर लें।

रविवार के दिन पूर्व दिशा की ओर मुख कर सफेद आसन पर बैठ जाएं। सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करे तथा गुरूजी से पूर्ण स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात सफेद रंग के वस्त्र पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर 'अभीप्सा' को स्थापित करे दें, फिर उसके समक्ष १५ दिन तक नित्य मंत्र का ८ बार उच्चारण करें -

मंत्र
॥ ॐ ऐं ऐं सौः क्लीं क्लीं ॐ फट ॥
प्रयोग समाप्ति के बाद 'अभीप्सा' को नदी मैं प्रवाहित कर देन

เคชैเคธो เคฎे เคฌเคฐเค•เคค เค•े เคฒिเค เค•เคฐे เคฏे เค›ोเคŸे เคธे เค‰เคชाเคฏ

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हर कोई यहीं चाहता है कि उसका ये नया साल अच्छा गुजरे। धन-धान्य की कमी न हो और सुख-शांति से जीवन गुजरें| इन सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना बहुत आवश्यक है।
अगर आप भी धन की देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आज यह उपाय करें। टोटका किसी भी कांसे या पीतल की थाली में काजल लगाकर उसे काली कर दें और फिर चांदी की डण्डी से उस पर लक्ष्मीजी का चित्र बनाएं। फिर उस चित्र पर ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र स्थापित कर दें और सिर्फ एक सफेद धोती पहनकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके सामने गेहूं के आटे के चार दीपक बनाएँ और उसमें तेल डाल कर जला लें।

थाली के चारों कोनों पर रखे मूंगे की माला से इस मंत्र का 51 माला जाप करें।

मंत्र- ऊँ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं फट्

जब मंत्र पूरा हो जाए तो रात्रि में वहीं जमीन पर ही सो जाएं। सुबह जब घुंघरुओं की आवाज सुनें तो समझ लें कि लक्ष्मी का आगमन आपके घर हो गया है। फिर कभी आपको धन संबंधी परेशानी नहीं होगी।

เค†ँเค– เค•े เค•ाเคฒे เคฎोเคคिเคฏ เค•ा เคคांเคค्เคฐिเค• เค‰เคชाเคฏ

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आँखों में यदि काला मोतिया हो तो ताम्बे के पात्र में जल लेकर उसमें ताम्बे का सिक्का व गुड डालकर प्रतिदिन सूर्य को अर्ध्य दें। यह उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से शुरू कर चौदह रविवार करें। अर्ध्य देते समय रोग से मुक्ति की प्रार्थना करते रहें। इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के फल लाल कपडे में बांधकर किसी भी मन्दिर में दें। यह उपाय निष्ठापूर्वक करें, लाभ होगा।