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Tuesday, 30 October 2018

हनुमान[घंटाकर्ण साधना प्रयोग

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यह एक तीब्र प्रभाव कारी प्रयोग है जिसे पूर्ण करने से हनुमान की कृपा प्राप्त होती है और यदि घर में भूत-प्रेत-पिशाच आदि का प्रकोप हो या घर में उपद्रव होते हों ,घर में लड़ाई -झगडा -असंतोष हो ,कलह ,मार-पीट होती हो ,नकारात्मक ऊर्जा का असर हो तो सब समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और सकारात्मक उर्जा का संचार होता है |
आवश्यक सामग्री := मंत्र सिद्ध चैतन्य प्राण प्रतिष्ठित पारद हनुमान मूर्ती ,मंत्र सिद्ध चैतन्य प्रतिष्ठित मूंगे की माला ,जल पात्र ,तेल का दीपक ,धुप-अगरबत्ती ,गुड आदि |
मंत्र :- ॐ घंटाकर्णो महावीर सर्व उपद्रव नाशन कुरु कुरु स्वाहा |
विधि =किसी भी मंगलवार की रात्री को स्नान कर लाल धोती पहनकर, लाल ऊनि आसन पर पश्चिम दिशा की और मुखकर बैठे ,अपने सामने चौकी या बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर किसी पात्र में प्राण प्रतिष्ठित पारद हनुमान की मूर्ति को स्थापित करे |सर्वप्रथम हनुमान जी को सनान कराकर उनकी पूजा करें ,सिन्दूर का तिलक करें और गुड का भोग लगायें ,फिर लाल मंत्र सिद्ध चैतन्य मूंगे की माला से मंत्र जप करें ,,मंत्र नित्य २१०० की संख्या में होना चाहिए अर्थात इक्कीस माला नित्य ,यह क्रम ११ दिनों तक अनवरत चलता रहेगा ,अंतिम दिन अथवा उसके अगले दिन २१०० की संख्या में हवन करें और किसी बालक को भोजन कराकर उसे लाल वस्त्र दान दें ,ऐसा करने से यह प्रयोग सिद्ध हो जायेगा और यदि घर में किसी प्रकार का उपद्रव-अशांति है तो उसका शमन होगा |प्रयोग समाप्त होने पर हनुमान की मूर्ति को पूजा स्थान में स्थापित कर दें और रोज पूजा करते रहें |यह प्रयोग सफल एवं सिद्ध है ,इससे घर के कलह मिटकर सुख-शांति स्थापित होती है ,सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बढ़ता है और उन्नति होती है ..

Friday, 18 May 2018

Sati Sadhvi Sadhana

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सती साध्वी साधना |

साबर तंत्र में सती साध्वी की साधना कई नाथ और कई मतों में की जाती है |

यह साधना जहाँ साधक को भूत भविष्य और वर्तमान के बारे में बताती है
वहीँ उसे लाटरी, सट्टा आदि का नंबर आदि प्रदान कर उसे धन से मालामाल कर देती है |
यह प्रयोग मुझे के नाथ से प्राप्त हुआ था | इस साधना से बहुत लोगों को लाभ हुआ | साधना आसान है |

विधि

ग्रहण काल में गुरूजी और गणेश जी का पूजन कर हवन कर अनुष्ठान सिद्ध किया जाता है | हवन सामग्री लेकर इस निम्न मंत्र से 3 घंटे हवन करें और हवन के अंत में कायफल लेकर उसकी पूजा करें और हवन में आहुति दे दें | कायफल पंसारी की दूकान से आसानी से मिल जाता है |

अगर किसी कारण वश ग्रहण में न सिद्ध कर सको तो इस अनुष्ठान को 11 दिन करें तो भी सिद्ध हो जाएगी और साधक को भूत और भविष्य के समय की सटीक जानकारी के साथ सट्टा आदि का नंबर प्रदान करती है | इससे साधना काल में एक साध्वी दिखाई देती है | ऐसा होने पर उसे खीर का भोग प्रदान करें और अपनी सहायता का वचन ले लें और फिर जब भी जरूरत हो इस मंत्र का मन ही मन 5-10 मिनट जप करें, आपको संकेत मिलने शुरू हो जायेंगे | साधना का अनुभव गुप्त रखें | मिलने वाले धन का कुछ भाग साधुओं की सेवा आदि में लगा दें | इसके साथ सती साध्वी आपकी सुरक्षा आदि भी करती है | साधना धैर्य से सिद्ध होती है | उतावलापन न करें, संयम के साथ इस प्रयोग को करें | मंत्र जाप के लिए हकीक या रुद्राक्ष की माला प्रयोग कर सकते हैं | इसमें काले हकीक की माला उत्तम रहती है | तेल का दिया या धूप आदि लगा सकते हैं | आसन कम्बल का लें | दिशा उत्तर ठीक है और भोजन सादा लें | इसे किसी भी गुरुवार से भी शुरू किया जा सकता है जब 11 दिन करना हो |

मंत्र

|| ॐ सती साध्वी स्वाहा ||

|| Om Sati Sadhvi Swaha ||



Saturday, 12 May 2018

लूना चमारिन योगिनी

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रक्षा करने, जादू टोना, भूत, प्रेत, पिशाच, ओझा, डाकिनी या शाकिनी, तांत्रिक माया जाल, किया कराया आदि अभिचार कर्म रोगों को दूर करना 
|| ॐ नमो आदेश गुरु को
लूना चमारीन  जगत की बिजुरी
मोती हेल चमके
जो “अमुक” पिंड में जान करे विजान करे
तो उस रण्डी पे फिरे
दुहाई तख़्त सुलेमान पैगंबर की
फिरे मेरी भकित
गुरु की शक्ति
फुरो मंत्र इश्वरोवाचा ||
विधि :- इस मन्त्र को सिद्ध करके बहुत ही बेहतरीन ढंग से इसका प्रयोग किया जा सकता हैं और इसके प्रयोग के परिणाम भी सुगमता से प्राप्त होते हैं | इस मन्त्र का जप केवल 7 दिनों तक 1 माला जप करना हैं और कब, कैसे वो आप FAQ पेज  में देख सकते हैं | जब ये मन्त्र सिद्ध हो जाये तो आप इसका प्रयोग अपनी या किसी अन्य की रक्षा करने, जादू टोना, भूत, प्रेत, तांत्रिक माया जाल, किया कराया आदि रोगों को दूर करने में सफल हो जाओगे |
या फिर कोई मकान, दुकान, भूखंड या पलाट भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म प्रभावित हो, तो उस मकान, दुकान, भूखंड या पलाट में भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम से उपरोक्त मन्त्र को  लिखकर लगा दें | ( अगर उपलब्ध नहीं हो सके तो किसी भी साधारण से सफ़ेद कागज पर लाल या काली  स्याही प्रयोग करें )  मन्त्र को लिखते समय इस मन्त्र का मन ही मन उच्चारण भी करते रहें और फिर उस मकान, दुकान, भूखंड या पलाट में लगा दे | इसके प्रभाव से वह जगह भूत-प्रेत, पिशाच, तांत्रिक, ओझा, डाकिनी या शाकिनी के अभिचार कर्म से मुक्त हो जाएगीं |

भूत प्रेत साधना

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भूत- प्रेत साधना
तंत्र में भूत – प्रेत का अस्तित्व स्वीकार किया गया है | यह माना गया है की मृत्यु के उपरांत मनुष्य को कई बार प्रेत योनी में जाना पड़ता है पर पुनर्जन्म की अनेक घटनाए इस सम्बन्ध में सोचने के लिए विवश कर देती है | मृत्यु के बाद की दुनिया का कही कुछ न कुछ अस्तित्व है | इस बात को स्वीकार करना पड़ता है | प्रेत योनी में जाकर मनुष्य कई बार उत्पाती हो जाता है | वह अनेक प्रकार के आतंक बिखरा देता है | इस प्रकार का उपद्रव शान्त करने का विधान तंत्र शास्त्र में है | हमारे योग्य तांत्रिक उनका समय -समय पर प्रयोग करते है | प्रेतों की उपद्रवी सकती पर नियंत्रण करने के लिए निम्नलिखित तंत्र है-
‘ ॐ ह्रंच ह्रंच ह्रंच फट स्वाहा | ‘
ये बहुत ही सरल साधना है | किसी एकांत स्थान में शिव जी की मूर्ति की स्थापना कर प्रत्येक अर्धरात्रि में २५ बार पाठ आवश्यक है | इस प्रकार नियमित रूप से बिना नागा के २५०० हजार मंत्र का पाठ १०० दिन तक लगातार करना आवश्यक है | जप की माला रूद्राक्ष की होनी चाहिए | दिशा पूर्व या उत्तर की होनी चाहिए | २५०००० हजार मंत्र का पाठ हो जाये तो साधक शिव जी की आकृति की पूजा कर आ जाये | इस प्रकार की साधना करने के बाद साधक भूत-प्रेत ग्रस्त किसी भी व्यक्ति को या स्थान को मुक्त कर सकता है | साधक के आदेश का पालन भूत-प्रेत करते है और साधक भूत-प्रेत को देख सकता है और उनसे बात भी कर सकता है | …… .

कर्ण पिशाचिनी सिद्धि

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कर्ण पिशाचिनी सिद्धि

कर्ण पिशाचिनी सिद्धि

कर्ण पिशाचिनी यक्षिणी की संतान है| यक्ष-यक्षिणी देव लोक से निष्कासित, देवी-देवता होते हैं| प्राचीन मंदिरों की भित्तियों पर आज भी देवी-देवताओं के साथ-साथ यक्ष-यक्षिणी की उत्कीर्ण आकृतियां देखी जा सकती हैं| अर्थात देवकुल के होने के बावजूद नकारात्मक प्रभाव के कारण यह त्याज्य मानी जाती हैं| यक्ष-यक्षिणी की संतान कर्ण पिशाचिनी जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है पिशाच योनि की होती है| इसमे अपार शक्ति होती है| इसे कर्ण पिशाचिनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि जो व्यक्ति इसे सिद्ध कर लेता है, वह किसी के बारे में अत्यंत गोपनीय सत्य भी जान सकता है, क्योंकि वह सत्य यही कर्ण पिशाचिनी साधक के कान में कह जाती है|
यह देव स्थल से दूर रहती है तथा श्मशान में निवास करती है| इसे भोजन में कच्चा मांस प्रिय है| जब भी यह किसी साधक को प्रत्यक्ष दर्शन देती है, उसकी समस्त शक्तियाँ खींच लेती है| इसकी साधना किसी योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए| ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि कर्णपिशाचिनी की साधना उसे अपने वश मे करने के लिए की जाती है| अर्थात सिद्ध साधक पिशाचिनी को गुलाम बना लेता है, तथा मनचाहे रूप में उसका उपयोग करता है| ऐसे में कभी-कभी बाजी उलट भी जाती है, जरा सा त्रुटि होते ही पिशाचिनी साधक की जान ले लेती है या उसे पशुवत जीवन जीने को मजबूर कर देती है|
कर्ण पिशाचिनी को अनेक विधि से सिद्ध किया जा सकता है| कुछ प्रमुख विधियों का वर्णन निम्नलिखित है –
विधि 1
यह साधना रात-और दिन दो बार नित्य की जाती है| रात दिन के शुभ चौघड़िया में साधना प्रारम्भ करते हुए   सर्व प्रथम पूजा स्थल पर श्मशान की राख़, काली हकीक की माला, काले रंग का आसान तथा वस्त्र, अनार, लाल रंग का फूल रखें| काला वस्त्र धारण कर काले रंग के आसन पर बैठें तथा निम्नलिखित मंत्र से विनियोग प्रारम्भ करें –
अस्य श्रीकर्णपिशाचिनी पिपलाद ऋषि: निचृछंद: कर्ण पिशाचिनी देवता अभीष्ट सिद्धयर्थे मंत्र जपे विनियोग:
कांसे की एक थाली लेकर सिंदूर से उसके ऊपर त्रिशूल की आकृति बनाएँ| गाय के दूध से बने घृत से दीपक प्रज्ज्वलित करें| अब 11 सौ निम्नलिखित मंत्र का जाप करें –
।।ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वाहा ।।
रात्रि साधना भी इसी प्रकार सम्पन्न करें, परंतु घृत के साथ-साथ तेल का दीपक भी जलाएँ तथा उक्त मंत्र का जाप 11 सौ  बार करें| निरंतर 11 दिन तक यह साधना करने से कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है| यदि कुछ जानना चाहते हैं तो प्रश्न का समरण मन में करते हुए कर्ण पिशाचिनी का ध्यान करें| वह उस प्रश्न का उत्तर कान में बता देती है| इतना ही नहीं सिद्ध होने के बाद पिशाचिनी किसी किसी साधक को प्रत्यक्ष दर्शन भी देती है तथा कुछ वचन लेती है|  उस समय उस से निम्नलिखित तीन वरदान लेना ना भूलें –
प्रथम: मैं जो भी इच्छा तुम्हारे सामने व्यक्त करूँ, उसे तत्काल पूर्ण करोगी|
द्वितीय: मेरी इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नहीं करोगी|
तृतीय: मैं जब भी पुकारूँ मेरे सामने उपस्थित होगी|
विधि 2
इस विधि से कर्ण पिशाचिनी को सिद्ध करने में सात वर्ष का समय लगता है| इसे किसी योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में करना चाहिए| इस विधि में गुरु पूर्व सिद्ध मंत्र देता है| यदि किसी ने बिना सिद्ध किए हुए मंत्र दे दिया तो कर्ण पिशाचिनी उस गुरु के प्राण हर लेती है|
यह प्रयोग विधि संख्या 1 जैसी ही है, फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें  गुरु द्वारा सिद्ध तथा प्रदत्त मंत्र का 11 लाख जाप करना पड़ता है|
विधि 3
कर्ण पिशाचिनी को साधने के लिए इस विधि से साधना दिवाली अथवा होली को प्रारम्भ करें| रात के समय, आम पाटे पर अबीर की एक परत बिछा दें,  अब अनार की लकड़ी लें तथा उस पाटे पर बारी-बारी से 108 बार निम्नलिखित मंत्र लिखें तथा मिटाएँ –
ॐ नम: कर्णपिशाचिनी मातः कारिणी प्रवेसः अतीतानागतवर्तमानानि सत्यं कथन स्वाहा|
लिखने और मिटाने के दौरान उक्त मंत्र का 11 सौ जाप भी करते रहें| यह क्रिया निरंतर 21 दिन तक करते रहें| साधक को साधना-स्थल पर ही सोना चाहिए| सोते वक्त उस पाटे को अपने सिरहाने में रखें| साधक जिस कक्ष में सोये उस कक्ष में उसके साथ कोई और न सोये|
विधि 4
गाय के गोबर में सेंधा नमक मिलाकर साधना स्थान को लीपें, सूख जाने के बाद हल्दी, अक्षत तथा कुमकुम डालकर कुश का आसान बिछाएँ| अब रुद्राक्ष की माला पर निम्नलिखित मंत्र का जाप करें –
ॐ ह्शो ह्सा नमोहः भग्वतिह्  कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी स्वहः ।
निरंतर 11 दिन तक प्रतिदिन 10 हजार जाप से कर्ण पिशाचिनी सिद्ध हो जाती है|
विधि 5
इस विधि से साधना करने के लिए साधक को मध्य रात्रि में लाल वस्त्र धारण कर, साधना स्थल पर गाय घी का दीपक जलाकर निरंतर 21 दिनों तक प्रतिदिन 10 हजार निम्नलिखित मंत्र का जाप करें –
ॐ भगवति चंडकर्णे पिशाचिनी स्वाहा: ”
ऐसा करने से कर्ण पिशाचिनि सिद्ध हो जाती है|
विधि 6
मान्यता है कि वेद व्यास ने इसी विधि से कर्ण पिशाचिनी को सिद्ध किया था| इस विधि से साधना के लिए सर्वप्रथम ठीक मध्य रात्रि में रक्त चन्दन से ‘ओम ह्रीं नमो भगवति कर्णपिशाचिनी चंडवेगिनी वद वद स्वाहा”  मंत्र लिखेँ| लिखे हुए मंत्र का पूजन  ‘ओम अमृत कुरू कुरू स्वाहा ‘ से करें| तत्पश्चात मछली की बलि अर्पित करें| बलि के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें –
”ओम कर्णपिशाचिनी दग्धमीन बलि
गृहण गृहण मम सिद्धि कुरू कुरू स्वाहा।”
रात्रि में पुनः 5 हजार मंत्र का जाप करें तथा अगले दिन सुबह तर्पण करें| तर्पण हेतु निम्नलिखित मंत्र उच्चारित करें –
‘ओम् कर्णपिशाचिनी तर्पयामि स्वाहा”
अन्य सभी विधियों से यह विधि अधिक स्वीकृत तथा पवित्र माना जाता है|
विधि -7
इस विधि से साधना के लिए सर्व प्रथम पूजा स्थल पर श्मशान की राख़, काली हकीक की माला, काले रंग का आसान तथा वस्त्र, अनार, लाल रंग का फूल रखें| काला वस्त्र धारण कर काले रंग के आसन पर बैठें तथा निम्नलिखित मंत्र से विनियोग प्रारम्भ करें –
अस्य श्रीकर्णपिशाचिनी पिपलाद ऋषि: निचृछंद: कर्ण पिशाचिनी देवता अभीष्ट सिद्धयर्थे मंत्र जपे विनियोग:
कर्ण पिशाचिनी नियम
  • साधना के दौरान काले वस्त्र पहनें| किसी-किसी विधि में लाल वस्त्र का भी विधान है, इसके लिए अपने गुरु से परामर्श लें|
  • एक भुक्त करें(एक समय भोजन)
  • कठोर ब्रम्हचर्य का पालन करें, यहाँ तक कि विपरीत लिंगी से बात तक न करें|
  • योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में ही साधना प्रारम्भ करें, क्योंकि त्रुटि होने पर अत्यधिक अनिष्ट की आशंका है| सनद रहे कर्ण पिशाचिनी के शब्द कोश में क्षमा शब्द नहीं है|