इतिहासकारों का कहना है कि वैदिक काल में मंदिर नहीं हुआ करते थे| मूर्ति पूजा वेदिक काल के अंत में प्रचलित हुई है| सभी धर्म हिन्दू सनातन धर्म से ही उतपन्न हुए हैं जैसे की Christianity संस्कृत शब्द ‘कृष्ण-नीति’ से आया है, Abraham संस्कृत के शब्द ‘ब्रह्मा’ से आया है, Vatican शब्द ‘वाटिका’ से आया है|
ऐसी कई चीज़े हैं जो हिन्दू धर्म से संबंध रखती हैं, आइए जानते हैं कुछ हिन्दू धर्म के रहस्यमय मंदिरों के बारे में जो आपको हैरान कर देंगे|
1. रोम के एक संग्रहालय में आज भी शिवलिंग को रखा है जो कि खुदाई के वक़्त वहां मिला था|
2. कम्बोडिया पहले हिन्दू राष्ट्र था, अब बौद्ध राष्ट्र है। कम्बोज की प्राचीन दंतकथाओं के अनुसार इस उपनिवेश की नींव ‘आर्यदेश’ के शिवभक्त राजा कम्बु स्वायंभुव ने डाली था| कम्बोडिया में ही भगवान विष्णु का सबसे पुराना मंदिर है। कुछ 1,000 वर्ष पहले भारत से कई लोग कम्बोडिया गए और वहां मंदिरों का निर्माण कराया।
इसके साथ कम्बोडिया में एक प्राचीन शिव मंदिर भी था, जहां से 17 अभिलेख मिले थे, लेकिन उस मंदिर के अब कुछ अवशेष ही शेष रह गए हैं। इसी तरह विष्णु का प्राचीन मंदिन अंगकोर वट सबसे पुराना विष्णु का मंदिर है|
3. 1940 में प्राचीन शिल्प वैज्ञानिक एम.एस. वत्स ने हरप्पा में 3 शिवलिंग पाए और कहा जाता है कि ये शिवलिंग 5000 वर्ष पुराने हैं|
4. मिस्र (Egypt) के कुसैर अल कादीम (Quseir-al-Qadim) में खुदाई के दौरान एक टूटा हुआ जार मिला, जिसे पहली शताब्दी के आस-पास का बताया जाता है| इस पर तमिल ब्राह्मी में कुछ लिखा हुआ है| ब्रिटेन के एक इतिहासकार का कहना यह भी है कि ये बर्तन भारत में बने हुए हैं।
5. ओमान के खोर-रोरी इलाके में हाल ही में एक प्राचीन घड़े का टूटा हुआ अंश मिला है, जिस पर बह्रमी भाषा में लिखा हुआ है| यह भी पहली शताब्दी के आस पास बताया जाता है| इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि प्राचीन समय से ही भारत दूर-दूर तक व्यापार करता था|
6. बाली में एक इमारत के निर्माण की खुदाई के दौरान मजदूरों को मंदिर के कुछ अंश मिले जिसके बाद यह खबर बाली के ऐतिहासिक संरक्षण विभाग को दी गई| खुदाई के दौरान एक बहुत बड़ी हिन्दू धर्म से जुडी ईमारत को पाया| इसे 13वीं 15वीं शताब्दी के आस पास बताया जाता है|
7. हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिर दुनिया में कई जगह पाए गए| ऐसे ही मानना है कि जहां आज इन्डोनेशियन इस्लामिक यूनिवर्सिटी है, वहां कभी हिन्दू देवी-देवताओं का मंदिर हुआ करता था, जिसमे शिव और गणेश की पूजा की जाती थी| यहां से एक एतिहासिक शिव लिंग भी मिला है|
8. सेंट्रल अमेरिका के Mosquitia क्षेत्र में एक ऐसी जगह है जहां के लोग बंदरों की मूर्तियों की पूजा करते हैं| इसका नाम उन्होंने La Ciudad Blanca दिया है जिसका स्पेनिश में मतलब ‘The White City’ होता है| माना जाता है की इस जगह कभी हनुमान का साम्राज्य हुआ करता था|
9. एक अमेरिकन एडवेंचरर ने लिम्बर्ग की खोज के आधार पर गुम हो चुके ‘Lost City Of Monkey God’ की तलाश में निकले| 1940 में उन्हें इसमें सफ़लता भी मिली पर उसके बारे में मीडिया को बताने से एक दिन पहले ही एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई और यह राज़ एक राज़ ही बनकर रह गया|
10. श्रीलंका के मुन्नेस्वरम मंदिर का इतिहास रामायण से जुड़ा है| जब भगवान राम रावण का वध कर लौटने लगे तब उन्होंने इसी जगह भगवान शिव की आराधना की थी|
11. श्री कृष्ण को केवल मथुरा, वृन्दावन ब्रज की भूमि पर नहीं बल्कि दूर-दूर तक पूजा जाता था| इसका साबुत अफ़ग़ानिस्तान के Al Khanoun में कुछ सिक्कों की खोज है| इन सिक्कों पर एक तरफ श्री कृष्ण और दूसरी तरफ बलराम के चित्र बने हैं|
Sunday, 11 November 2018
विश्व भर के दुर्लभ, अद्भुत और अनसुने मंदिर
श्रीमद्भगवद पुराण में वर्णित कलयुग की भविष्यवाणी
श्रीमद्भगवद पुराण हिन्दू धर्म के पुराणों में से एक है। भगवद पुराण में कलयुग के बारे में भविष्यवाणी पहले ही कर दी गयी थी अर्थात कलयुग में क्या होगा यह पहले ही भगवद पुराण में लिखा जा चुका था।
आइए जानते हैं भगवद पुराण में की जाने वाली कलयुग की भविष्यवाणी के बारे में।
धर्म, स्वच्छता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति, स्मृति तथा सत्यवादिता दिन ब दिन घटती जाएगी।
जिस के पास जितना धन होगा वह उतना ही गुणी माना जायेगा।
कलयुग में ब्राह्मण धर्म के नाम पर केवल एक धागा पहनेगा जबकि पहले ब्राह्मण अपने शरीर पर और भी बहुत चीजे पहनता था।
कानून तथा न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर लागू किया जायेगा।
व्यापार में सफलता छल पर निर्भर करेगी।
गरीब व्यक्ति को अधर्मी तथा अपवित्र माना जायेगा।
इस युग में स्त्री तथा पुरुष साथ-साथ रहेंगे।
चालाक और स्वार्थी व्यक्ति को इस युग में विद्वान माना जायेगा।
कलयुग में जो विवाह होगा वह दो लोगों के बीच में बस एक समझौता मात्र होगा।
जीवन का मुख्य लक्ष्य केवल पेट भरना ही होगा।
ऐसा माना जायेगा कि लोगों की सुंदरता उनके बालों से होगी।
लोग सत्ता हासिल करने के लिए एक दूसरे को मारने तक की हद तक पहुँच जायेंगे।
अपनी अंतरआत्मा को स्वच्छ करने के लिए लोग केवल स्नान करना ही पर्याप्त समझेंगे।
पृथ्वी भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी।
अकाल और अत्याधिक करों द्वारा परेशान, लोग पत्ते, जड़, मांस, जंगली शहद, फल, फूल और बीज खाने को मजबूर हो जाएंगे। भयंकर सूखा पड़ेगा।
ठंड, हवा, गर्मी, बारिश और बर्फ यह सब लोगों को बहुत परेशान करेंगे
फर्श पर बैठकर क्यों नहीं करे पूजा
फर्श पर बैठकर न करें कभी पूजा
हिन्दू धर्म में घरों में मंदिर पर विशेष ध्यान दिया जाता है| परन्तु केवल घर में मंदिर बनाना ही पर्याप्त नहीं है| हमें घर के मंदिर में बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है| अक्सर लोग अधिकतर दिशा और खुली जगह देखकर उस स्थान को पूजाघर में बदल देते हैं| यह एक गलत निर्णय है| घर में मंदिर की दिशा घर में शुभ अथवा अशुभ फल दे सकती है|
घर में मंदिर बनाते समय दिशा का ध्यान अवश्य रखें| घर में पूर्व दिशा में मंदिर बनाना बहुत शुभ होता है| माना जाता है कि सूर्य पूर्व दिशा की ओर से उगता है और इसी दिशा से सृष्टि पर रोशनी आती है| इसलिए घर में मंदिर बनाते समय पूर्व दिशा को प्राथमिकता दें| भूलकर भी दक्षिण दिशा को पूजा घर नहीं बनाना चाहिए|
पूजा करते समय आपका चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए| माना जाता है कि घर की उत्तर पूर्व दिशा भगवान का स्थान होती है|
घर में एक ही जगह पर पूजा होनी चाहिए| कई बार अपने- अपने कमरें में भी परिवार के सदस्यों द्वारा मंदिर बना लिए जाते हैं| परन्तु घर में एक से अधिक पूजा घर होना अशुभ माना जाता है| ध्यान रखें कि घर के विभिन्न स्थानों पर भी देवी- देवताओं की तस्वीर लगाने से बचें|
घर में पूजा घर को फर्श से ऊँचा रखें| इस बात का ध्यान रखें कि पूजा घर की दीवार हमेशा आम फर्श से ऊपर होनी चाहिए|
पूजा करते समय ध्यान रखें कि जमीन पर खड़ें होकर या बैठकर पूजा ना करें| ऐसे पूजा करना अशुभ माना जाता है| इसलिए आसन पर ही बैठकर या खड़े होकर पूजा करें|
माता सीता ने केवल एक ही पुत्र को जन्म दिया था
एक ही संतान को जन्म दिया था माता सीता ने
रामायण का सही वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी वाल्मीकि रामायण में ही मिलता है| कई ऋषियों ने रामायण को अपने तरीके से लिखने की कोशिश की और फलस्वरूप इसके कई संस्करण बन गए जिसमे कुछ चीज़े तो वाल्मीकि रामायण से मेल खाती थीं परन्तु कुछ प्रसंगों का रूप बदल गया|
वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता ने एक ही पुत्र को जन्म दिया था लेकिन कई ऋषियों के द्वारा लिखी गयी रामायण में सीता जी के द्वारा दो पुत्रो के जन्म का उल्लेख किया गया है| तो आइए जानते हैं लव कुश के जन्म की कहानी:-
रामायण काल में जब श्री राम सीता जी और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास भोग कर अयोध्या लोटे तब अयोध्या नगरी में हर्ष और उल्लास का माहौल बन गया| कुछ दिनों बाद पता चलने पर कि श्री राम और सीता जी माता-पिता बनने वाले हैं, हर ओर खुशियाँ फैल गयी| परन्तु इन खुशियों पर जल्द ही नज़र लग गयी|
प्रजा में बातें बनने लगी कि माता सीता पति से दूर लंका में इतना समय काट कर आई हैं फिर भी महल में सुखी जीवन व्यतीत कर रही हैं जबकि उस वक़्त अगर कोई स्त्री एक रात भी अपने पति से दूर रहती थी तो उसे वापिस घर नहीं आने दिया जाता था| इन सब के चलते उनके गर्भवती होने पर भी सवाल उठने लगे|
समय चलते यह बात महल में पहुंच गयी और माता सीता ने निर्णय लिया कि वह अयोध्या छोड़ देंगी और सन्यास ले लेंगी| लक्ष्मण उन्हें वन तक छोड़ कर आए और वहां महर्षि वाल्मीकि उन्हें उनके आश्रम ले गए और सलाह दी की सभी बातें भूल कर सामान्य जीवन जीने की कोशिश करें| कहा जाता है कि सीता जी के अयोध्या छोड़ देने के बाद श्रीराम ने राज्य तो बखूबी संभाला, लेकिन वे अंदर से दुखी रहने लगे।
वह समय समीप आ रहा था जब माता सीता अपनी संतान को जन्म देने वाली थी| कुछ दिन बाद माता सीता ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया, जिसका नाम लव रखा गया| सीता जी ने अपना सारा समय शिशु की देखभाल में लगा दिया|
फिर एक दिन सीता जी को आश्रम के बाहर कुछ लकडियां लेने जाना था तो उन्होंने महर्षि वाल्मीकि को लव पर ध्यान देने को कहा| परन्तु सीता माता ने पाया कि महर्षि का ध्यान किसी अन्य कार्य में है तो वह लव को साथ लेकर जंगल की ओर चली गयी|
इतने में महर्षि का ध्यान बच्चे की ओर गया तो वह बच्चे को न पाकर चिंतित हो गए| उन्हें डर था वे सीता जी को क्या उत्तर देंगे| तभी उन्होंने अपने पास पड़े कुशा (घास) को लिया और कुछ मंत्र पढ़े जिससे उन्होंने नया लव बना दिया|
जब उन्होंने माता सीता को आते हुए देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए| उन्होंने माता सीता के साथ बालक लव को भी देखा और महर्षि ने सीता जी से लव को ले जाने के बारे में पूछा| महर्षि ने सारी कहानी सीता जी को बताई तो वह नए लव को देख बहुत खुश हुई|
नए लव का नाम कुशा के कारण कुश पड़ा और वह माता सीता और श्री राम के दूसरे पुत्र के रूप में जाना गया|
विदेश जाने के लिए करे ये उपाय
आप भी अपने विदेश जाने के सपने को पूरा करना चाहते है, तो करें ये उपाय
आज के समय में विदेश जाने का सपना हर एक युवा रखता है, विदेश का नाम सुनकर ही उनकी आँखों में एक अलग सी चमक देखने को मिलती है| लोग विदेश घूमने, पढ़ने, व्यापार करने के लिए जाते है और वहाँ जाकर अपना और अपने देश का नाम रोशन करना चाहते है| लेकिन यह कहना मुश्किल होगा कि उन्हें वहाँ सफलता मिलेगी या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वे ज्योतिष की मदद लेते है|
प्राचीन काल में विदेश यात्रा या वहां जा कर बसना हिंदू समाज में बहुत खराब माना जाता था और विदेशियों के साथ संपर्क रखने वाले व्यक्ति को समाज से बाहर कर दिया जाता था| परंतु आज समय बदल चुका है, अब विदेश यात्रा गौरव की बात मानी जाती है|
ज्योतिषी विद्या से किसी व्यक्ति की कुंडली में कुछ भाव, राशि तथा ग्रह उस व्यक्ति को विदेश यात्रा कराने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| इनमें अगर आपसी संबंध हों, तो यात्राएं होती हैं| यात्रा कराने वाली राशियां: मेष, कर्क, तुला और मकर राशियां होती है| यदि किसी व्यक्ति के ज्यादा से ज्यादा ग्रह इन राशियों में हों, तो वह बहुत यात्राएं करता है| परन्तु कही बार किसी कारणवश आप अपने विदेश जाने के सपने को पूरा नहीं कर पातें| किसी का वीसा नहीं बन पाता तो कोई आर्थिक तंगी के कारण नहीं जा पाता|
अगर आप भी विदेश जाना चाहते हैं और लाख कोशिशों के बाद भी असफल हो रहे तो आप अपने विदेश जाने के सपने को सच करने के लिए कुछ अचूक उपाय कर सकते है|
1) विदेश जाना चाहते हैं तो अपनी इस इच्छा को सच करने के लिए करें ये उपाय| विदेश जाने के लिए साल में आने वाली किसी भी संक्रांति के दिन सफेद तिल एवं गुड़ लेकर एक मिटटी के प्याले में डाल दें| अब इस प्याले को पीपल के स्वयं गिरे हुए पत्ते से ढक लें| शाम को सूर्य के ढलने के समय इस प्याले को आक के पौधे की जड़ में रख दें और इसके बाद बिना पीछे मुड़े सीधा घर को आ जाए| घर पहुंचने पर पानी में थोडा केसर मिलाए और स्नान करें| इस उपाय को करने के बाद अपने गुरु का नाम लें, आपको विदेश जाने में जल्द ही सफलता मिलेगी|
2) अगर आपका विदेश जाने का सपना असफल वीसा के बनने में बार बार बाधा आने के कारण हो रहा है तो इस बाधा को दूर करने के उपाय से आपका सपना सफल हो सकता है| इस उपाय को शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से प्रारम्भ करें, एक लकड़ी का तख्ता लें और उस पर लाल वस्त्र बिछा लें अब इस तख़्त पर महालक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें, इसके बाद तख़्त के आगे एक देशी घी का दिया जलाएं और अपने मुख को पश्चिम दिशा की ओर करके बैठें| अब एक शंख लें और उस पर केसर को घोलकर स्वास्तिक का चिन्ह बना लें| अब इस शंख को महालक्ष्मी के बगल में रख दें, इसके बाद महालक्ष्मी की और शंख की इत्र, फुल, धूप, दीप द्वारा पूजन करें| पूजा करने के बाद महालक्ष्मी को भोग लगाए| अब एक स्फटिक की माला लें और नीचे दिए गए मन्त्र का जप करें|
मंत्र है: ॐ अनंग वल्लाभाये विदेश गमनार्थ कार्य सिध्यर्थे नम:
3) विदेश जाने के सपने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए श्री राम के परम भक्त हनुमान जी की पूजा करें| प्रतिदिन हनुमान जी के मंदिर में जाएं, मूर्ति के आगे दीपक जलाएं और उनसे प्रार्थना करें| प्रार्थना करने के बाद हनुमान चालीसा पढ़ें| हनुमान चालीसा को पढने के बाद हनुमान जी की मूर्ति की तीन परिक्रमा करें और ध्यान रखें कि हनुमान जी की मूर्ति आपके बाएं हाथ की ओर हो| हनुमान जी की पूजा करने से आपकी विदेश जाने की मनोकामना जल्द ही सफल होगी|
मानस के मन्त्र
1. प्रभु की कृपा पाने का मन्त्र
“मूक होई वाचाल, पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल-दहन।।”
विधि-प्रभु राम की पूजा करके गुरूवार के दिन से कमलगट्टे की माला पर २१ दिन तक प्रातः और सांय नित्य एक माला (१०८ बार) जप करें।
लाभ-प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। दुर्भाग्य का अन्त हो जाता है।
2. रामजी की अनुकम्पा पाने का मन्त्र
“बन्दउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।”
विधि-रविवार के दिन से रुद्राक्ष की माला पर १००० बार प्रतिदिन ४० दिन तक जप करें।
लाभ- निष्काम भक्तों के लिये प्रभु श्रीराम की अनुकम्पा पाने का अमोघ मन्त्र है।
3 ॰ हनुमान जी की कृपा पाने का मन्त्र
“प्रनउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।”
विधि- भगवान् हनुमानजी की सिन्दूर युक्त प्रतिमा की पूजा करके लाल चन्दन की माला से मंगलवार से प्रारम्भ करके २१ दिन तक नित्य १००० जप करें।
लाभ- हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अला-बला, किये-कराये अभिचार का अन्त होता है।
4 ॰ वशीकरण के लिये मन्त्र
“जो कह रामु लखनु बैदेही। हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेहि।।”
विधि- सूर्यग्रहण के समय पूर्ण ‘पर्वकाल’ के दौरान इस मन्त्र को जपता रहे, तो मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। इसके पश्चात् जब भी आवश्यकता हो इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर गोरोचन का तिलक लगा लें।
लाभ- इस प्रकार करने से वशीकरण होता है।
5 ॰ सफलता पाने का मन्त्र
“प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देव।
सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब।।”
विधि- प्रतिदिन इस मन्त्र के १००८ पाठ करने चाहियें। इस मन्त्र के प्रभाव से सभी कार्यों में अपुर्व सफलता मिलती है।
6 . रामजी की पूजा अर्चना का मन्त्र
“अब नाथ करि करुना, बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।
जेहिं जोनि जन्मौं कर्म, बस तहँ रामपद अनुरागऊँ।।”
विधि- प्रतिदिन मात्र ७ बार पाठ करने मात्र से ही लाभ मिलता है।
लाभ- इस मन्त्र से जन्म-जन्मान्तर में श्रीराम की पूजा-अर्चना का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
7 . मन की शांति के लिये राम मन्त्र
“राम राम कहि राम कहि। राम राम कहि राम।।”
विधि- जिस आसन में सुगमता से बैठ सकते हैं, बैठ कर ध्यान प्रभु श्रीराम में केन्द्रित कर यथाशक्ति अधिक-से-अधिक जप करें। इस प्रयोग को २१ दिन तक करते रहें।
लाभ- मन को शांति मिलती है।
8 . पापों के क्षय के लिये मन्त्र
“मोहि समान को पापनिवासू।।”
विधि- रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन १००० बार ४० दिन तक जप करें तथा अपने नाते-रिश्तेदारों से कुछ सिक्के भिक्षा के रुप में प्राप्त करके गुरुवार के दिन विष्णुजी के मन्दिर में चढ़ा दें।
लाभ- मन्त्र प्रयोग से समस्त पापों का क्षय हो जाता है।
9. श्रीराम प्रसन्नता का मन्त्र
“अरथ न धरम न काम रुचि, गति न चहउँ निरबान।
जनम जनम रति राम पद यह बरदान न आन।।”
विधि- इस मन्त्र को यथाशक्ति अधिक-से-अधिक संख्या में ४० दिन तक जप करते रहें और प्रतिदिन प्रभु श्रीराम की प्रतिमा के सन्मुख भी सात बार जप अवश्य करें।
लाभ- जन्म-जन्मान्तर तक श्रीरामजी की पूजा का स्मरण रहता है और प्रभुश्रीराम प्रसन्न होते हैं।
10 . संकट नाशन मन्त्र
“दीन दयाल बिरिदु सम्भारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
विधि- लाल चन्दन की माला पर २१ दिन तक निरन्तर १०००० बार जप करें।
लाभ- विकट-से-विकट संकट भी प्रभु श्रीराम की कृपा से दूर हो जाते हैं।
11. विघ्ननाशक गणेश मन्त्र
“जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोई बुद्धिरासी सुभ गुन सदन।।”
विधि- गणेशजी को सिन्दूर का चोला चढ़ायें और प्रतिदिन लाल चन्दन की माला से प्रातःकाल १०८० (१० माला) इस मन्त्र का जाप ४० दिन तक करते रहें।
लाभ- सभी विघ्नों का अन्त होकर गणेशजी का अनुग्रह प्राप्त होता है।
रामचरित मानस के कुछ अन्य सिद्ध मंत्र
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
15. पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”
विवाह बाधा समाप्ति के लिए तथा यात्रा में सफलता के लिए रामचरित मानस के मंत्र
तब जनक पाई वसिष्ठ आयसु ब्याह साज संवारि कै।
मांडवी श्रुतकी रति उरमिला कूंअरी लई हंकारी कै।।
यात्रा सफल होने के लिए
प्रविसिनगर कीजै सब वाजा।
हृदये राशि कोसलपुर राजा।।
प्रेम बढ़ाने के लिए
सब नर करहि परस्पर प्रीति।
चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।
शत्रु नाश के लिए रामचरित मानस के कुछ मंत्र
गरल सुधा रिपु करहि मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
शत्रुनाश के लिए
बयरु न कर काहू सन कोई।
राम प्रताप विषमता खोई।।
शत्रु का सामना करने के लिए
कर सारंग कटि माथा।
अरि दल दलन चले रघुनाथा।
प्रयोजन में विजय पाने के लिए
तेहि अवसर सनि सिवधनुभंगा।
आयऽभृगुकुलकमल पतंगा।।
रामचरित मानस के चमत्कारी मंत्र
इनमें से जो मंत्र जप करना हो, उसके लिए हवन करना आवश्यक है। हवन कुंड बनाकर उसमें अग्रि प्रज्ज्वलित कर दें और नीचे दी गई 16 वस्तुओं में से कम से कम 8 वस्तुओं से 108 आहूतियां देकर मंत्र को सिद्ध कर लेना चाहिए। हवन तो सिर्फ एक बार ही करना होता है लेकिन मंत्र जप रोजाना 108 बार करना आवश्यक है, इससे इष्टफल की प्राप्ति संभव होती है।
हवन के लिए आवश्यक वस्तुएं : चंदन का बूरा, तिल, घी, दाल, अगर, तगर, कपूर, शुद्ध केसर, नागर मोथा, जव, चावल, पंचमेवा, पिस्ता, बादाम, अंगूर, काजू। इनमें से कम से कम 8 वस्तुएं आवश्यक हैं। मंत्र जप सोमवार, वीरवार और शुक्रवार से प्रारंभ करें।
मानसिक शांति के लिए
रामचरण दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्हें तनु त्याग।
सुमन माल जिभि कुंठ ते गिरन न जावई बाग।।
रक्षामंत्र
मामभिरक्षय रघुकुलनायक।
घृतवरचाप रुचिकर सायक।।
विपत्तिनाश के लिए
राजीवनयन धरे धनुसायक।
भगत विपत्तिभंजन सुखदायक।।
संकटनाश के लिए
जो प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपति नामु जन आरत भारी। मिटङ्क्षह कुसंकट होहीं सुखारी।।
दीनदयाल बिरिदु संभारी। हरहुनाथ मम संकट भारी।।
क्लेश नाश के लिए
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।
महामोह निसि दलन दिनेसू।
विघ्न शांति के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहीं तेही।
राम सुकृपा विलोकहिं जेही।।
दु:खनाश के लिए
जब ते समु व्याहि घर आए।
नित नव मंगल मोद बधाए।
महामारी से रक्षा के लिए
जय रघुबंस बनज बनभानू।
गहन दनुज कुल दहन कृसानू।।
रोग तथा उपद्रव शांति के लिए
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
रामराज नहीं काहुहि व्यापा।।
अकाल मृत्यु निवारण के लिए
नाम पाहस दिवस निसि ध्यान तुम्हारा कपाट।
लोचन निज पढज़ंत्रित जाङ्क्षह प्रान केहिं बाट।।
नजर न लगने के लिए
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी।
ताकर नाम भरत आस होई।
दारिद्रय नाश के लिए
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद्र दबारि के।।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए
जिमि सरिता सागर महुं जाही। जद्यपि ताहि कामना नाही।।
तिमि सुख सम्पत्ति बिनहि बालाएं। धरम सील पहि जाहि सुभाएं।
पुत्र प्राप्ति के लिए
प्रेम मगन कौशल्या निसि दिन जात न जान।
सुख स्नेह बस माता बालचरित कर गान।।
संपत्ति लाभ के लिए
जे सकाम नर सुनही जे गावहि।
सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
सुख प्राप्ति के लिए
सुनहि विमुक्त बिरत अरु विषई।
लहहि भगति गति संपत्ति नई।।
मनोरथ सिद्धि के लिए
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरू नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिपुरारि।।