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Sunday 11 November 2018

रामचरित मानस के चमत्कारी मंत्र

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 पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा के साथ किसी भी शास्त्र के मंत्र या चौपाई का उपयोग किया जाए तो फल प्राप्ति की संभावना शत-प्रतिशत है। रोग निवारण, भय व शत्रु से मुक्ति के मंत्र से साधक में एक अनोखी शक्ति एवं साहस, समस्या-समाधान करने की सूझ-बूझ व विवेक, बुद्धि और प्रयत्न, परिश्रम व संघर्ष करने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है, जिससे अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है। श्री गोस्वामी तुलसीदास जी के रामचरितमानस के कुछ मंत्र पाठकों के उपयोगार्थ प्रस्तुत हैं।

इनमें से जो मंत्र जप करना हो, उसके लिए हवन करना आवश्यक है। हवन कुंड बनाकर उसमें अग्रि प्रज्ज्वलित कर दें और नीचे दी गई 16 वस्तुओं में से कम से कम 8 वस्तुओं से 108 आहूतियां देकर मंत्र को सिद्ध कर लेना चाहिए। हवन तो सिर्फ एक बार ही करना होता है लेकिन मंत्र जप रोजाना 108 बार करना आवश्यक है, इससे इष्टफल की प्राप्ति संभव होती है।

हवन के लिए आवश्यक वस्तुएं : चंदन का बूरा, तिल, घी, दाल, अगर, तगर, कपूर, शुद्ध केसर, नागर मोथा, जव, चावल, पंचमेवा, पिस्ता, बादाम, अंगूर, काजू। इनमें से कम से कम 8 वस्तुएं आवश्यक हैं। मंत्र जप सोमवार, वीरवार और शुक्रवार से प्रारंभ करें।


मानसिक शांति के लिए
रामचरण दृढ़ प्रीति करि बालि कीन्हें तनु त्याग।
सुमन माल जिभि कुंठ ते गिरन न जावई बाग।।

रक्षामंत्र
मामभिरक्षय रघुकुलनायक।
घृतवरचाप रुचिकर सायक।।

विपत्तिनाश के लिए
राजीवनयन धरे धनुसायक।
भगत विपत्तिभंजन सुखदायक।।

संकटनाश के लिए
जो प्रभु दीनदयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपति नामु जन आरत भारी। मिटङ्क्षह कुसंकट होहीं सुखारी।।
दीनदयाल बिरिदु संभारी। हरहुनाथ मम संकट भारी।।

क्लेश नाश के लिए
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।
महामोह निसि दलन दिनेसू।

विघ्न शांति के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहीं तेही।
राम सुकृपा विलोकहिं जेही।।

दु:खनाश के लिए
जब ते समु व्याहि घर आए।
नित नव मंगल मोद बधाए।

महामारी से रक्षा के लिए
जय रघुबंस बनज बनभानू।
गहन दनुज कुल दहन कृसानू।।

रोग तथा उपद्रव शांति के लिए
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
रामराज नहीं काहुहि व्यापा।।

अकाल मृत्यु निवारण के लिए
नाम पाहस दिवस निसि ध्यान तुम्हारा कपाट।
लोचन निज पढज़ंत्रित जाङ्क्षह प्रान केहिं बाट।।

नजर न लगने के लिए
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी।
ताकर नाम भरत आस होई।

दारिद्रय नाश के लिए
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद धन दारिद्र दबारि के।।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए
जिमि सरिता सागर महुं जाही। जद्यपि ताहि कामना नाही।।
तिमि सुख सम्पत्ति बिनहि बालाएं। धरम सील पहि जाहि सुभाएं।

पुत्र प्राप्ति के लिए
प्रेम मगन कौशल्या निसि दिन जात न जान।
सुख स्नेह बस माता बालचरित कर गान।।

संपत्ति लाभ के लिए
जे सकाम नर सुनही जे गावहि।
सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।

सुख प्राप्ति के लिए
सुनहि विमुक्त बिरत अरु विषई।
लहहि भगति गति संपत्ति नई।।

मनोरथ सिद्धि के लिए
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरू नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहि त्रिपुरारि।।

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