Jeevan Dharm

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Thursday 31 August 2017

॥ यमुनाष्टकम् ॥

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(१)
नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा, मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम।
तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना, सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम॥
(२)
कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला, विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता।
सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा, मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता॥
(३)
भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः, प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः।
तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावाकुका, नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम॥
(४)
अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते, घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे।
विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते, कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय॥
(५)
यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका, समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम।
तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय, हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम॥
(६)
नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं, न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः।
यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि, प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः॥
(७)
ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता, न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये।
अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमात्तवैव, भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः॥
(८)
स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये, हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः।
इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम, स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः॥
(९)
तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा, समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः।
तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति, स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः॥

॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

॥ श्री राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र ॥

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मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१)

भावार्थ : समस्त मुनिगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों का शोक दूर करने वाली हैं, आप प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित मुख कमल वाली हैं, आप धरा पर निकुंज में विलास करने वाली हैं। आप राजा वृषभानु की राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द किशोर श्री कृष्ण की चिरसंगिनी है, हे जगज्जननी श्रीराधे माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (१)

अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (२)

भावार्थ : आप अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए मंदिर में विराजमान हैं, आप सूर्य की प्रचंड अग्नि की लाल ज्वालाओं के समान कोमल चरणों वाली हैं, आप भक्तों को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के लिए सदैव उत्सुक रहने वाली हैं। आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं, आप अपार ऐश्वर्य की भंङार स्वामिनी हैं, हे सर्वेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (२)

अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रम ससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (३)

भावार्थ : रास क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी से आश्चर्य उत्पन्न करते हुए सहज कटाक्ष रूपी वाणों की वर्षा करती रहती हैं। आप श्री नन्दकिशोर को निरंतर अपने बस में किये रहती हैं, हे जगज्जननी वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (३)

तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (४)

भावार्थ : आप बिजली के सदृश, स्वर्ण तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी आभा वाली हैं, आप दीपक के समान गोरे अंगों वाली हैं, आप अपने मुखारविंद की चाँदनी से शरद पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं। आपके नेत्र पल-पल में विचित्र चित्रों की छटा दिखाने वाले चंचल चकोर शिशु के समान हैं, हे वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (४)

मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमणि्ते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (५)

भावार्थ : आप अपने चिर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली है, आनंद से पूरित मन ही आपका सर्वोत्तम आभूषण है, आप अपने प्रियतम के अनुराग में रंगी हुई विलासपूर्ण कला पारंगत हैं। आप अपने अनन्य भक्त गोपिकाओं से धन्य हुए निकुंज-राज के प्रेम क्रीड़ा की विधा में भी प्रवीण हैं, हे निकुँजेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (५)

अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूणपूणसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (६)

भावार्थ : आप संपूर्ण हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से परिपूर्ण हैं, आप धीरज रूपी हीरों के हारों से विभूषित हैं, आप शुद्ध स्वर्ण के कलशों के समान अंगो वाली है, आपके पयोंधर स्वर्ण कलशों के समान मनोहर हैं। आपकी मंद-मंद मधुर मुस्कान सागर के समान आनन्द प्रदान करने वाली है, हे कृष्णप्रिया माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (६)

मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (७)

भावार्थ : जल की लहरों से कम्पित हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी सुकोमल भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता के अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं। सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मुग्ध होकर आपके मिलन के लिये आतुर रहते हैं ऎसे मनमोहन को आप आश्रय देने वाली हैं, हे वृषभानुनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (७)

सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे, त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिअति।
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (८)

भावार्थ : आप स्वर्ण की मालाओं से विभूषित है, आप तीन रेखाओं युक्त शंख के समान सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृति के तीनों गुणों का मंगलसूत्र धारण किया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त संसार को प्रकाशमान कर रहा है। आपके काले घुंघराले केश दिव्य पुष्पों के गुच्छों से अलंकृत हैं, हे कीरतिनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (८)

नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (९)

भावार्थ : आपका उर भाग में फूलों की मालाओं से शोभायमान हैं, आपका मध्य भाग रत्नों से जड़ित स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित है। आपकी जंघायें हाथी की सूंड़ के समान अत्यन्त सुन्दर हैं, हे ब्रजनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (९)

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्, समाजराजहंसवंश निक्वणातिग।
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारूचं कमे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१०)

भावार्थ : आपके चरणों में स्वर्ण मण्डित नूपुर की सुमधुर ध्वनि अनेकों वेद मंत्रो के समान गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्वनि गूँजायमान हो रही है। आपके अंगों की छवि चलते हुए ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे स्वर्णलता लहरा रही है, हे जगदीश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (१०)

अनन्तकोटिविष्णुलोक नमपदमजाचिते, हिमादिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिदिवृदिदिग्ध -सत्पदांगुलीनखे, कदा करिष्यसीह मां कृपा -कटाक्ष भाजनम्॥ (११)

भावार्थ : अनंत कोटि बैकुंठो की स्वामिनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती हैं, श्रीपार्वती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना कर वरदान पाया है। आपके चरण-कमलों की एक उंगली के नख का ध्यान करने मात्र से अपार सिद्धि की प्राप्ति होती है, हे करूणामयी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृष्टि से कृतार्थ करोगी ? (११)

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी, त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी, ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ (१२)

भावार्थ : आप सभी प्रकार के यज्ञों की स्वामिनी हैं, आप संपूर्ण क्रियाओं की स्वामिनी हैं, आप स्वधा देवी की स्वामिनी हैं, आप सब देवताओं की स्वामिनी हैं, आप तीनों वेदों की स्वामिनी है, आप संपूर्ण जगत पर शासन करने वाली हैं। आप रमा देवी की स्वामिनी हैं, आप क्षमा देवी की स्वामिनी हैं, आप आमोद-प्रमोद की स्वामिनी हैं, हे ब्रजेश्वरी! हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी श्रीराधिके! आपको मेरा बारंबार नमन है। (१२)

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकमनाशनं, लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्॥ (१३)

भावार्थ : हे वृषभानु नंदिनी! मेरी इस निर्मल स्तुति को सुनकर सदैव के लिए मुझ दास को अपनी दया दृष्टि से कृतार्थ करने की कृपा करो। केवल आपकी दया से ही मेरे प्रारब्ध कर्मों, संचित कर्मों और क्रियामाण कर्मों का नाश हो सकेगा, आपकी कृपा से ही भगवान श्रीकृष्ण के नित्य दिव्यधाम की लीलाओं में सदा के लिए प्रवेश हो जाएगा। (१३)

॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

॥ राधा चालीसा ॥

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॥ दोहा ॥

श्री राधे वृषभानुजा, भक्तिन प्राणाधार।
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रणवौं बारंबार॥ कृष्णा

जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम॥

॥ चौपाई ॥

जय वृषभानु कुँवरि श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा॥ (१)

नित्य बिहारिनि श्याम अधारा, अमित मोद मंगल दातारा॥ (२)

रास विलासिनि रस विस्तारिनि, सहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥ (३)

नित्य किशोरी राधा गोरी, श्याम प्राण धन अति जिय भोरी॥ (४)

करुणा सागर हिय उमंगिनि, ललितादिक सखियन की संगिनी॥ (५)

दिनकर कन्या कूल विहारिनि, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥ (६)

नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैं, राधा राधा कहि हरषावैं॥ (७)

मुरली में नित नाम उचारें, तुम कारण लीला वपु धारें॥ (८)

प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी, श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी॥ (९)

नवल किशोरी अति छवि धामा, धुति लघु लगै कोटि रति कामा॥ (१०)

गोरांगी शशि निंदक बदना, सुभग चपल अनियारे नयना॥ (११)

जावक युत युग पंकज चरना, नुपूर धुनि प्रीतम मन हरना॥ (१२)

संतत सहचरि सेवा करहीं, महा मोद मंगल मन भरहीं॥ (१३)

रसिकन जीवन प्राण अधारा, राधा नाम सकल सुख सारा॥ (१४)

अगम अगोचर नित्य स्वरूपा, ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा॥ (१५)

उपजेउ जासु अंश गुण खानी, कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥ (१६)

नित्य धाम गौलोक विहारिनि, जन रक्षक दुख दोष नसावनि॥ (१७)

शिव अज मुनि सनकादिक नारद, पार न पायँ शेष अरु शारद॥ (१८)

राधा शुभ गुण रूप उजारी, निरखि प्रसन्न होत बनवारी॥ (१९)

ब्रज जीवन धन राधा रानी, महिमा अमित न जाय बखानी॥ (२०)

प्रीतम संग देइ गलबाँही, बिहरत नित्य वृन्दावन माँही॥ (२१)

राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा, एक रूप दोउ प्रीत अगाधा॥ (२२)

श्री राधा मोहन मन हरनी, जन सुख दायक प्रफ़ुलित बदनी॥ (२३)

कोटिक रूप धरें नंद नंन्दा, दर्श करन हित गोकुल चन्दा॥ (२४)

रास केलि करि तुम्हें रिझावें, मान करौ जब अति दुख पावें॥ (२५)

प्रफ़ुलित होत दर्श जब पावें, विविध भाँति नित विनय सुनावें॥ (२६)

वृन्दारण्य विहारिनि श्यामा, नाम लेत पूरण सब कामा॥ (२७)

कोटिन यज्ञ तपस्या करहू, विविध नेम ब्रत हिय में धरहू॥ (२८)

तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें, जब लगि राधा नाम न गावें॥ (२९)

वृन्दाविपिन स्वामिनि राधा, लीला वपु तब अमित अगाधा॥ (३०)

स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा, और तुम्हैं को जानन हारा॥ (३१)

श्री राधा रस प्रीति अभेदा, सादर गान करत नित वेदा॥ (३२)

राधा त्यागि कृष्ण को भजि हैं, ते सपनेहुं जग जलधि न तरि हैं॥ (३३)

कीरति कुँवरि लाड़िली राधा, सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा॥ (३४)

नाम अमंगल मूल नसावन, त्रिविध ताप हर हरि मनभावन॥ (३५)

राधा नाम लेय जो कोई, सहजहिं दामोदर बस होई॥ (३६)

राधा नाम परम सुखदाई, भजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥ (३७)

यशुमति नन्दन पीछे फ़िरिहैं, जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं॥ (३८)

रास विहारिनि श्यामा प्यारी, करहु कृपा बरसाने वारी॥ (३९)

वृन्दावन है शरण तिहारी, जय जय जय वृषभानु दुलारी॥ (४०)

॥ दोहा ॥

श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरन्तर वास मैं, श्री वृन्दावन धाम॥

॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

Wednesday 23 August 2017

॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥

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॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥
दोहा
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥

जय यदुनंदन जय जगवंदन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्‍तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर, नाग नथैया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरि टेरौ ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

राजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥

कुंडल श्रवण, पीत पट आछे ।
कटि किंकिणी काछनी काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पूतनहि तार्‍यो ।
अका बका कागासुर मार्‍यो ॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई ।
मूसर धार वारि वर्षाई ॥

लगत लगत व्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नख धारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहार्‍यो ।
कंसहि केस पकिड़ दै मार्‍यो ॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भीमहिं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मार्‍यो ।
भक्‍तन के तब कष्ट निवार्‍यो ॥

दीन सुदामा के दुःख टार्‍यो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्‍यो ॥

प्रेम के साग विदुर घर माँगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखी प्रेम की महिमा भारी ।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हाँके ।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके ॥

निज गीता के ज्ञान सुनाए ।
भक्‍तन हृदय सुधा वर्षाए ॥

मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा साँप पिटारी ।
शालीग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करि तत्काला ।
जीवन मुक्‍त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहि वसन बने नंदलाला ।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला ॥

अस अनाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावै नैया ॥

`सुन्दरदास' आस उर धारी ।
दया दृष्टि कीजै बनवारी ॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥

दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि ।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ॥

Saturday 19 August 2017

शेख चिल्ली की चिट्ठी

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मियाँ शेख चिल्ली के भाई दूर किसी शहर में बसते थे। किसी ने शेख चिल्ली को बीमार होने की खबर दी तो उनकी खैरियत जानने के लिए शेख ने उन्हें खत लिखा। उस जमाने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्‍ठियाँ गाँव के नाई के जरिये भिजवाया करते थे या कोई और नौकर चिट्‍ठी लेकर जाता था।

लेकिन उ‍न दिनों नाई उन्हें बीमार मिला। फसल कटाई का मौसम होने से कोई नौकर या मजदूर भी खाली नहीं था अत: मियाँ जी ने तय किया कि वह खुद ही चिट्‍ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्‍ठी लेकर घर से निकल पड़े। दोपहर तक वह अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्‍ठी पकड़ाकर लौटने लगे।

उनके भाई ने हैरानी से पूछा - अरे! चिल्ली भाई! यह खत कैसा है? और तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है?

भाई ने यह कहते हुए चिल्ली को गले से लगाना चाहा। पीछे हटते हुए चिल्ली बोले - भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्‍ठी लिखी थी। चिट्‍ठी ले जाने को नाई नहीं मिला तो उसकी बजाय मुझे ही चिट्‍ठी देने आना पड़ा।

भाई ने कहा - जब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहरो। शेख चिल्ली ने मुँह बनाते हुए कहा - आप भी अजीब इंसान हैं। समझते नहीं। यह समझिए कि मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज निभा रहा हूँ। मुझे आना होता तो मैं चिट्‍ठी क्यों लिखता?

घर मैं दरिद्रता रहने के कुछ खास कारन

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*1:-* रसोई घर के पास में पेशाब करना ।
*2:-* टूटी हुई कंघी से कंघा करना ।
*3:-* टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
*4:-* घर में कूड़ा-करकट रखना।
*5:-*रिश्तेदारों से बदसुलूकी करना।
*6:-* बांए पैर से पैंट पहनना।
*7:-* सांध्या वेला मे सोना।
*8:-* मेहमान आने पर नाखुश होना।
*9:-* आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
*10:-* दाँत से रोटी काट कर खाना।
*11:-* चालीस दिन से ज्यादा बाल रखना
*12:-*दाँत से नाखून काटना।
*13:-*औरतों का खड़े-खड़े बाल बाँधना।
*14:-*फटे हुए कपड़े पहनना ।
*15:-*सुबह सूरज निकलने के बाद तक सोते रहना।
*16:-*पेड़ के नीचे पेशााब करना।
*17:-*उल्टा सोना।
*18:-*शमशान भूमि में हँसना ।
*19:-*पीने का पानी रात में खुला रखना।
*20:-*रात में मांगने वाले को कुछ ना देना ।
*21:-*मन में बुरे ख्याल लाना।
*22:-*पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
*23:-*शौच करते वक्त बातें करना।
*24:-*हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
*25:-*अपनी औलाद को हरदम कोसना।
*26:-*दरवाजे पर बैठना।
*27:-*लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
*28:-*साधू फकीर को अपमानित करना, उनसे रोटी या फिर और कोई चीज खरीदना।
*29:-*फूँक मार के दीपक बुझाना।
*30:-*ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन करना।
*31:-*झूठी कसम खाना।
*32:-*जूते चप्पल उल्टा देख कर उसको सीधा नहीं करना।
*33:-*मकड़ी का जाला घर में रखना।
*34:-*रात को झाड़ू लगाना।
*35:-*अन्धेरे में भोजन करना ।
*36:-*घड़े में मुँह लगाकर पानी पीना।
*37:-*धर्मग्रंथ न पढ़ना।
*38:-*नदी, तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेशाब करना ।
*39:-*गाय, बैल को लात मारना ।
*40:-*माता-पिता का अपमान करना ।
*41:-*किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उड़ाना ।
*42:-*दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
*43:-*बिना स्नान किये  भोजन करना ।
*44:-*पड़ोसियों का अपमान करना, गाली देना ।
*45:-*मध्यरात्रि में भोजन करना ।
*46:-*गंदे बिस्तर पर सोना ।
*47:-*वासना और क्रोध से भरे रहना ।
*48:-*दूसरे को अपने से हीन समझना ।

Sunday 13 August 2017

पनीर एण्ड टमॅटो स्कीवर्ज़

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टमाटर, बेसिल और ब्रैड की परत पर रखा, ओवन में पका यह पनीर का व्यंजन आप को भरपूर मात्रा में बनाना पड़ेगा क्योंकि आपके महमान एक बार खाने के बाद इसे बार बार जो माँगेंगे! 

तैयारी का समय: १० मिनट 
बेकिंग के लिए तापमान: २२०oC (४५०oF) 
बेकिंग का समय: १५ से २० मिनट। 
पकाने का समय : 0 मिनट 
कुल समय : ३० मिनट 
४ बडे स्कीवर्ज़ के लिये

सामग्री

१६ स्लाइस ब्रैड के , चारो तरफ से भूरे भाग कटे हुए
तेल चुपड़ने के लिए
१ १/४ कप २५ mm (१'') के चकोर टुकड़ो में कटा पनीर
५ टमाटर , बीज़ निकालकर २५ mm (१'') के चकोर टुकड़ो में कटे हुए
१ कप ताज़े बेसिल के पत्ते
नमक तथा ताज़ी पिसी कालीमिर्च , स्वाद अनुसार
१/२ टेबल-स्पून नींबू का रस
१ टी-स्पून मिलीजुली सूखी हर्ब
२ टेबल-स्पून बहुत बारीक कटा हरा धनिया

विधि

ब्रैड के प्रत्येक स्लाइस को चार बराबर भागो में काटिए। ब्रैड के कटे टुकड़ो को थोड़े से तेल से चुपड़िए और पहले से गरम ओवन में २२०oc (४५०of) के तापमान पर भूरा होने तक ३ से ५ मिनट सेकिए।

एक बाउल में पनीर, टमाटर और बेसिल की पत्तियों को डालकर अच्छी तरह से मिलाइए।

उन पर नमक, कालीमिर्च, नींबू का रस, सूखी हर्ब तथा बारीक कटा धनिया डालकर हल्के हाथ से मिलाइए।

१० मिनट के लिए एक तरफ रख दीजिए।

साटे स्ट्कि या स्कीवर पर एक टुकडा सिकी ब्रैड, पनीर, टमाटर और थोडी सी बेसिल की पत्तियाँ पिरोइए।

शेष बची सामग्री के साथ यही प्रक्रिया दोहराते हुए बाकी स्कीवरज़ बनाइए।

२२०oc (४५०of) के तापमान पर पहले से गरम ओवन में पनीर के भूरा होने तक बेक कीजिए। गरमा गरम परोसिए।

पंजाबी पनीर टिक्का

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शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया पारंपरिक पंजाबी पनीर टिक्का! 

तैयारी का समय: २५ मिनट 
पकाने का समय: २५ मिनट 
बेक करने का तापमान: २००°C (४००°F) 
बेक करने का समय: २० मिनट 
कुल समय : 1 घंटे 10 मिनट 
४ मात्रा के लिये

सामग्री

२ कप पनीर , 50 मिमी (2") x 12 मिमी (1/2") के टुकड़े

मिलाकर मेरीनेड बनाने के लिए

१/२ कप गाढ़ा दही , फेंटा हुआ
१ टी-स्पून अदरक का पेस्ट
१ टी-स्पून लहसुन का पेस्ट
२ टी-स्पून लाल मिर्च पाउडर
१/२ टी-स्पून कसुरी मेथी
१/२ टी-स्पून गरम मसाला
२ टेबल-स्पून कटा हुआ हरा धनिया
१ टी-स्पून चाट मसाला
१ टेबल-स्पून तेल
नमक सवादअनुसार

विधि

पनीर के टुकड़े को तैयार मेरीनेड के साथ हलके हाथों मिलाकर पनीर के टुकड़े को सभी तरफ से मेरीनेड से कोट कर लें। १५ मिनट के लिए एक तरफ रख दें।

पनीर के टुकड़ो को तार से बने रैक में रखें और पहले से गरम अवने में २००°c (४००°f) के तापमान पर पनीर के पकने तक ग्रिल कर लें (लगभग १५ मिनट के लिए)।

अवन से निकालकर गरमा गरम परोसें।

खजूर ईमली की चटनी

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एक खट्टि मीठी चटनी जिसे अकसर चाट के साथ खाया जाता है। 

तैयारी का समय: १५ मिनट 
पकाने का समय: १० मिनट 
कुल समय : २५ मिनट 
२ कप के लिये

सामग्री

२ कप बीज निकले हुए खजूर
१/४ कप बीज निकाली हुई इमली
१ कप कसा हुआ गुड़
१ टी-स्पून लाल मिर्च पाउडर
एक चुटकी हींग
नमक स्वादअनुसार

विधि

खजूर और इमली को धोकर सॉसपॅन में रखें।

गुड़, लाल मिर्च पाउडर, हींग और ४ कप पानी डालकर धिमी आँच पर २०-२५ मिनट तक उबालें।

ठंडा कर मिश्रन को छन्नी से छान लें।

हवा बंद डब्बे में रखकर फ्रिज में रखकर ज़रुरत अनुसार प्रयोग करें।

सुलभ सुझावः

आप चटनी को फूड प्रोसेसर में पीस कर भी छान सकते हैं।

कोर्न एण्ड राईस टिक्की साते

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रंग बिरंगी शिमला मिर्च और मकई और चावल से बनी स्वादिष्ट टिक्की से बने इन खुशबुदार स्वादिष्ट साते को और कोई व्यंजन हरा नही सकता। जहाँ चावल रसभरे मकई के दानें, पुदिना और चाट मसाला को बाँध कर रखने में मदद करता है, जो इन टिक्की को बेहद मज़ेदार खुशबु और स्वाद प्रदान करते हैं, जिन्हें तलने की जगह, तवे पर कम से कम तेल से पकाया गया है। चटकीले रंग वाली शिमला मिर्च इन्हें करारापन प्रदान करती है और चाट मसाला इन कोर्न एण्ड राईस टिक्की साते को सबका पसंदिदा बनाता है! 

तैयारी का समय: १५ मिनट 
पकाने का समय: ५ मिनट 
कुल समय : २० मिनट 
१६ साते के लिये

सामग्री

टिक्की के लिए

१/२ कप उबले और कुचले हुए स्वीट कॉर्न दानें
१ कप पके हुए चावल
१ टी-स्पून बारीक कटी हुई हरी मिर्च
१/४ कप बारीक कटा हुआ पुदिना
१ टी-स्पून चाट मसाला
१ टी-स्पून नींबू का रस
२ टेबल-स्पून कोर्नफ्लार
नमक स्वादअनुसार
तेल , चुपड़ने और पकाने के लिए

अन्य सामग्री

१ टी-स्पून मक्ख़न
१६ शिमला मिर्च के टुकड़े
१६ पीली शिमला मिर्च के टुकड़े
१ टी-स्पून चाट मसाला
नमक स्वादअनुसार

विधि

टिक्की के लिए

सभी सामग्री को एक गहरे बाउल में डालकर अच्छी तरह मिला लें।

मिश्रण को १६ बराबर भाग में बाँटकर, प्रत्येक भाग के २५ मिमी (१") व्यास के गोल चपटी टिक्की बना लें।

एक नॉन-स्टिक तवा गरम करें और तेल से हल्का चुपड़ लें।

थोड़े-थोड़े टिक्की को रखकर, थोड़े तेल का प्रयोग कर, उनके दोनो तरफ सुनहरा होने तक पका लें। एक तरफ रख दें।

आगे बढ़ने की विधी

एक चौड़े नॉन-स्टिक पॅन में मक्ख़न गरम करें, लाल और पीली शिमला मिर्च, चाट मसाला और नमक डालकर, मध्यम आँच पर १ मिनट तक भुन लें।

पीली शिमला मिर्च, टिक्की, लाल शिमला मिर्च के एक टुकड़े को तुथपिक में फँसा लें।

विधी क्रमांक २ कप दोहराकर १५ और साते बना लें।

तुरंत परोसें।

क्रिमी अनियन एण्प कॅप्सिकम कर्ड डिप

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दही, क्रीम और चीज़ की संतुलित मात्रा इस क्रीमी, स्वादिष्ट, खट्टे डिप को, सादे चीज़ डिप की तुलना में बहुत ज़्यादा बेहतर बनाते हैं। मिली-जुली सब्ज़ीयाँ इस क्रिमी अनियन एण्प कॅप्सिकम कर्ड डिप के स्वाद और रुप को संतुलित बनाते हैं और इसे ताज़ी करारी सब्ज़ीयों, बिस्कुट और अन्य क्रिस्पीस् के लिए पर्याप्त डिप बनाते हैं। 

तैयारी का समय: १० मिनट 
पकाने का समय : 0 मिनट 
कुल समय : १० मिनट 
३ कप के लिये

सामग्री

३ कप दही
२ टेबल-स्पून बारीक कटा हुआ प्याज़
२ टेबल-स्पून बारीक कटी हुई शिमला मिर्च
२ टेबल-स्पून फ्रेश क्रीम
२ टेबल-स्पून कसा हुआ प्रोसेस्ड चीज़
१ टी-स्पून बारीक कटी हुई हरी मिर्च
नमक स्वादअनुसार

परोसने के लिए

गाजर के स्टिक्स्
ककड़ी के स्टिक्स्
शिमला मिर्च के स्टिक्स्
नमकीन बिस्कुट

विधि

दही को सूती कपड़े में बाँधकर २ घंटे के लिए लटकार सारा पानी निकलने दें।

दही को सूती कपड़े से एक गहरे बाउल मे निकाल लें, प्याज़, शिमला मिर्च, फ्रेश क्रीम, चीज़, हरी मिर्च और नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें।

१ घंटे के लिए फ्रिज में रखकर, गाजर, ककड़ी, शिमला मिर्च के स्टिक्स् और नमकीन बिस्कुट के साथ ठंडा परोसें।

Carrot गार्लिक चटनी

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कॅरट गार्लिक चटनी

रेशांक से भरपुर गाजर और कलेस्ट्रॉल कम करने वाले लहसुन को अपने आहार का भाग बनाने का यह एक अच्छा तरीका है। 

तैयारी का समय: ३० मिनट 
पकाने का समय : 0 मिनट 
कुल समय : ३० मिनट 
०.५० कप के लिये

सामग्री

१ कप मोटे कसे हुए गाजर
२ टेबल-स्पून कटा हुआ लहसुन
२ टी-स्पून लाल मिर्च पाउडर
१/४ टी-स्पून नींबू का रस
१ टी-स्पून तेल
नमक सवादअनुसार

विधि

सभी सामग्री को मिलाकर मिक्सर में पीसकर मुलायम पेस्ट बना लें।

हवा बंद डब्बे में रखकर फ्रिज में रखें और ज़रुरत अनुसार प्रयोग करें।

आलू पनीर चाट

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आलू पनीर चाट

मजेदार छोटे आलू के साथ कैल्सियम से भरा पनीर इस चाट को सुन्दर और दिलचस्प बनाता है। निम्बू का रस और चाट मसाला, फीके आलू और पनीर जैसी सामग्रियों को पुर्ण रुप से स्वादिष्ट बनाता है। 

तैयारी का समय: १० मिनट 
पकाने का समय: १५ मिनट 
कुल समय : २५ मिनट 
४ मात्रा के लिये

सामग्री

३/४ कप उबले हुए आलू के टुकड़े
१ १/२ कप तले हुए पनीर के टुकड़े
५ टी-स्पून तेल
३/४ कप उबले हुए हरे मटर
नमक , स्वाद अनुसार
१ १/२ टी-स्पून चाट मसाला
२ टी-स्पून बारीक कटी हुई हरी मिर्च
१ १/२ टी-स्पून निम्बू का रस

सजाने के लिए

२ टेबल-स्पून बारीक कटा हुआ धनिया

विधि

एक नॉन-स्टिक तवा गरम करिए, उसमे आलू डालिए और मध्यम आंच पर 8 से 10 मिनट, बिच बिच में हिलाते हुए, आलू हर तरफ से भुरा होने तक पकाइए।

आलू को तवे के किनारों पर रख दीजिए।

उसी तेल में हरे मटर और अदरक डालिए, अच्छे से मिलाइए और मध्यम आंच पर 1 से 2 मिनट, बिच बिच में हिलाते हुए, पकाइए।

उसमे पनीर, नमक, चाट मसाला, हरी मिर्च और निम्बू का रस डालिए, अच्छे से मिलाइए और मध्यम आंच पर 2 से 3 मिनट, बिच बिच में हिलाते हुए, पकाइए।

आलू को वापस तवे के बिच में सरका दीजिए और दूसरी सामग्रियों के साथ मिलाइए।

धनिया डालकर सजाइए और तुरंत परोसिए।

अचारी पनीर टिक्का

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अचारी पनीर टिक्का

पनीर के चकोर टुकड़ो को अचार के मसाले से मैरिनेड़ कीजिए और तंदूर या तवे पर पकाइए। इन्ही पनीर के टुकड़ो को यदि आप पुलाव में डाल दे तो लीजिए हो गया अचारी पनीर पुलाव तैयार। 

तैयारी का समय: २० मिनट 
पकाने का समय: १५ मिनट 
कुल समय : ३५ मिनट 
४ मात्रा के लिये

सामग्री

अचारी मॅरीनेड के लिए

१/२ कप चक्का दही
१ टेबल-स्पून हरीमिर्च का आचार
१ टी-स्पून कटा लहसुन
१ टी-स्पून सौंफ
१/४ टी-स्पून मेथी दाना
१/४ टी-स्पून कलौंजी
१ टी-स्पून जीरा
१/४ टी-स्पून हल्दी पाउडर
१ टेबल-स्पून राई का तेल
नमक , स्वाद अनुसार

अन्य सामग्री

२ कप 37 mm (1 1/2'') के चकोर टुकड़ो में कटा पनीर

परोसने के लिए

दहींवाली पुदीना चटनी

विधि

अचारी मॅरीनेड के लिए

दही, हरीमिर्च का आचार और लहसुन को मिक्सर में डालकर मुलायम पेस्ट बना लीजिए।

एक बाउल में निकालकर एक तरफ रख दीजिए।

शेष बची सारी सामग्री को ब्लैंडर में डालकर दरदरा पीस लीजिए।

दरदरे पिसे पाउडर और दहीं के पेस्ट को एक बाउल में डालकर अच्छी तरह मिला लीजिए। एक तरफ रख दीजिए।

कैसे आगे बढे

एक बाउल में पनीर और अचारी मॅरीनेड को डालकर हल्के हाथ से मिलाइए और २० मिनट के लिए एक तरफ रख दीजिए।

मॅरीनेड किए हुए पनीर के टुकडों को स्कीवर में पिरोकर चारों तरफ से भूरा होने तक बारबेक्यू पर ग्रिल कीजिए।

स्कीवर में से निकालकर दहींवाली पुदीना चटनी के साथ परोसिए।

सुलभ सुझाव

यदि आपके पास हरीमिर्च का आचार नही है तो इस व्यंजन को बनाने के लिए आप किसी भी अन्य अपने मनपसंद आचार का प्रयोग कर सकते है।

मुह की दुर्गन्ध के लिए मन्त्र

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मुह की दुर्गन्ध के लिए मन्त्र

सनिवार के दिन एक नयी साबुन नहाने वाली और एक चाकू खरीद ले.फिर सनिवार की रात १२-१ के भीतर साबुन को रेपर हटा के दाये हाथ मैं ले और बाये हाथ मैं चाकू लेके इस मंत्र का जाप करते हुए बीच मैं से काट के दो तुकरे कर दे.
मन्त्र ओम सम सनीच्राय नमह.

साबुन के दोनों टुकरो को पानी से भरी बाल्टी मैं दाल दे .सुबह तक साबुन गल जायेगी फिर सुबह इस पानी को किसी नाले तालाब मैं फेंक दे. आपको मुह की दुर्गन्ध से आज़ादी मिल जायेगी .

दूकान की बिक्री बढ़ाने का मन्त्र

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दुकान की बिक्री बढ़ाने हेतु मन्त्र आप मेहनत कर रहे हैं दुकान में पूरा सामान है परन्तु बिक्री नही हो रही हो अपनी दुकान में लक्ष्मी जी का चित्र लगाकर उनके आगे धूप व दीप जलाकर प्रणाम करें प्रणाम करके 108 बार ॐ नम:कमलवासिन्यै स्वाहा मंत्र का जाप करने के बाद अपना कार्य आरंभ करें या दुकानदारी शुरू करें. कारोबार में वृद्धि होगी, ग्राहक आने लगेंगे और काम भी बढ़ेगा.

यात्रा को सफल बनाता है ये बजरंग बाली का ये मन्त्र

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यात्रा को सफल बनाए बजरंगबली का यह मंत्र यदि आप या आपका कोई अपना किसी महत्वपूर्ण कार्य हेतु यात्रा पर जा रहा है, तो यात्रा की सफलता के लिए निम्न मंत्र का जाप करें... मंत्र :- रामलखन कौशिक सहित, सुमिरहु करहु पयान। लच्छि लाभ लौ जगत यश, मंगल सगुन प्रमान।। मंत्र :- प्रविसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कौसल पुर राजा।। जिस स्थान की यात्रा करनी हो, वहां पहुंचते ही उक्त मंत्र सात बार बोलें, उस स्थान से लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। अधिक प्रभाव के लिए ग्रहण काल, हनुमान जयंती, रामनवमी, होली, दीपावली या नवरात्रि के अवसर पर उक्त मंत्र का हनुमानजी के मंदिर में एक हजार आठ (1008) बार जप करके उसे सिद्ध कर लें। फिर जब भी यात्रा पर जाएं, यह मंत्र सात बार बोलकर घर से निकलें। सफलता प्राप्त होगी।

समस्त आर्थिक मनोकामनाएं पूर्ण करता है ये श्री कृष्ण मन्त्र

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नन्दपुत्राय श्यामलांगाय बालवपुषे कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।

यह बत्तीस (32) अक्षरों वाला श्रीकृष्ण मंत्र है। इस श्रीकृष्ण मंत्र का जो भी साधक एक लाख बार जाप करता है तथा पायस, दुग्ध व शक्कर से निर्मित खीर द्वारा दशांश हवन करता है उसकी समस्त आर्थिक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Saturday 12 August 2017

नजर दोष का वैज्ञानिक आधार क्या है?

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कभी-कभी हमारे रोमकूप बंद हो जाते हैं। ऐसे में हमारा शरीर किसी भी बाहरी क्रिया को ग्रहण करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे हवा, सर्दी और गर्मी की अनुभूति नहीं हो पाती। रोमकूपों के बंद होने के फलस्वरूप व्यक्ति के शरीर का भतरी तापमान भीतर में ही समाहित रहता है और बाहरी वातावरण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे उसके शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ने लगता है और शरीर में आइरन की मात्रा बढ़ जाती है। यही आइरन रोमकूपों से न निकलने के कारण आंखों से निकलने की चेष्टा करता है, जिसके फलस्वरूप आंखें की निचली पलक फूल या सूज जाती है। बंद रोमकूपों को खोलने के लिए अनेकानेक विधियों से उतारा किया जाता है।

संसार की प्रत्येक वस्तु में आकर्षण शक्ति होती है अर्थात प्रत्येक वस्तु वातावरण से स्वयं कुछ न कुछ ग्रहण करती है। आमतौर पर नजर उतारने के लिए उन्हीं वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनकी ग्रहण करने की क्षमता तीव्र होती है। उदाहरण के लिए, किसी पात्र में सरसों का तेल भरकर उसे खुला छोड़ दें, तो पाएंगें कि वातावरण के साफ व स्वच्छ होने के बावजूद उस तेल पर अनेकानेक छोटे-छोटे कण चिपक जाते हैं। ये कण तेल की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर चिपकते हैं।

तेल की तरह ही नीबू, लाल मिर्च, कपूर, फिटकरी, मोर के पंख, बूंदी के लड्डू तथा ऐसी अन्य अनेकानेक वस्तुओं की अपनी-अपनी आकर्षण शक्ति होती है, जिनका प्रयोग नजर उतारने में किया जाता है। इस तरह उक्त तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि नजर का अपना वैज्ञानिक आधार है। 

Friday 11 August 2017

दस महाविद्याएं और मां नवदुर्गा की शक्तिया

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त्रिगुणात्मक शक्ति रूपी नवदुर्गा की एक और विशेषता है, जो कि उनके आध्यात्मिक स्वरूप में दस महाविद्याओं के रूप में विराजमान है। ब्रह्माजी पुत्र दत्तात्रेय ने तंत्र शास्त्र के निगमागम ग्रंथों की रचना करते हुए महिषासुर मर्दिनी और सिद्धिदात्री देवी भगवती के अंदर समाहित उन दस महाविद्याओं का जिक्र किया है, जिनकी साधना से ऋषि मुनि और विद्वान इस संसार में चमत्कारी शक्तियों से युक्त होते हैं। मार्कण्डेय पुराण में दस महाविद्याओं का और उनके मंत्रों का तथा यंत्रो का जो जिक्र है उसे संक्षेप में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।

दस महाविद्याओं के नाम हैं: महाकाली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, षोडषी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला। जैसे कि कहा गया है:

 

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।

देवी दुर्गा के आभामंडल में उपरोक्त दस महाविद्याएं दस प्रकार की शक्तियों के प्रतीक हैं। सृष्टि के क्रम में चारों युग में यह दस महाविद्याएं विराजमान रहती हैं। इनकी साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और साधक की सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक होती हैं। नवरात्र में सिद्धि और तंत्र शास्त्र के मर्मज्ञ इनकी साधना करने के लिए हिमालय से लेकर पूर्वांचल बंगाल आदि प्रान्तों में अपने तप बल से साधनारत होकर इनके स्वरूप का मंत्र जाप करते हैं। दस महाविद्याओं का वर्णन इस प्रकार से है:

महाकाली: महाविनाशक महाकाली, जहां रक्तबीज का वध करती हैं, वहां अपने साधकों को अपार शक्ति देकर मां भगवती की कृपा से सबल और सक्षम बनाती हैं। यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट हो जाती हैं। यह महाकाली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई है।

तारा: शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए जानी जाती हैं। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं। तारा, एकजटा और नील सरस्वती। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। तारा महाविद्या के फलस्वरूप व्यक्ति इस संसार में व्यापार रोजगार और ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण विख्यात यश वाला प्राणी बन सकता है। इसे सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा रहा है।

त्रिपुर सुन्दरी: शांत और उग्र दोनों की स्वरूपों में मां त्रिपुर सुन्दरी की साधना की जाती है। त्रिपुर सुन्दरी के अनेक रूप हैं। मसलन, सिद्धि भैरवी, रूद्र भैरवी, कामेश्वरी आदि। जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ वशीकरण आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। कमल पुष्पों से होम करने से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है। मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। वांछित सिद्धि और मनोअभिलाषापूर्ति सहित व्यक्ति दुख से रहित और सर्वत्र पूज्य होता है।

भुवनेश्वरी: आदि शक्ति भुवनेश्वरी भगवान शिव की समस्त लीला विलास की सहचरी हैं। मां का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरूण हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। इस महाविद्या की आराधना से जहां साधक के अंदर सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है, वहां वह संसार का सम्राट भी बन सकता है। इसको अभिमंत्रित करने से लक्ष्मी वर्षा होती है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं। इसको सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा है ।

छिन्नमस्ता: विश्व की वृद्धि और उसका ह्रास सदैव होता रहता है। जब निर्गम अधिक और आगम कम होता है, तब छिन्नमस्ता का प्राधान्य होता है। माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन और कवित्व शक्ति की वृद्धि होती है। शरीर रोग मुक्त होता है। शत्रु परास्त होते हैं। योग ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक को संसार में ख्याति मिलती है। इसको सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा है।

षोडशी: सोलह अक्षरों के मंत्र वाली माता की अंग कांति उदीयमान सूर्य मंडल की आभा की भांति है। इनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। षोडशी को श्री विद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।

धूमावती: मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। इनका स्वामी नहीं है। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महा विद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ लालच से रहित हो इस महाविद्या के फल से देवी धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है।

बगलामुखी: व्यक्ति रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। पीतांबरा माला पर विधि-विधान के साथ जाप करें- दस महावद्याओं में बगला मुखी सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली महाविद्या है, जिसकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिक काल में समय समय पर की है। इसकी साधना से जहां घोर शत्रु अपने ही विनाश बुद्धि से पराजित हो जाते हैं वहां साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है।

मातंगी: मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है । यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं। पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।

कमला: कमला की कांति सुवर्ण के समान है। श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि की प्रतीक, स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है । इस प्रकार दस महामाताएं गति, विस्तर, भरण-पोषण, जन्म-मरण, बंधन और मोक्ष की प्रतीक हैं। इस महाविद्या की साधना नदी तालाब या समुद्र में गिरने वाले जल में आकंठ डूब कर की जाती है। इसकी पूजा करने से व्यक्ति साक्षात कुबेर के समान धनी और विद्यावान होता है। व्यक्ति का यश और व्यापार या प्रभुत्व संसांर भर में प्रचारित हो जाता है।