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Thursday 30 November 2017

सोमवती अमावस्या व्रत की कहानी

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दोस्तों, सोमवती अमावस्या की अलग अलग कहानी प्रचलित है, ये कहानी भी सोमवती व्रत की अन्य कहानियो से थोड़ी से विभिन्न है तो विषय को समझते हए ध्यान से पढ़िए 

सोमवती  अमावस्या व्रत की कहानी 
                     एक साहुकार था उसके सात बेटे ,बहु और एक बेटी थी ।साहुकार के यहाँ एक जोगी भिक्षा मांगने आता था । जब साहुकार की बहुए जोगी को भिक्षा देती तो वो ले लेता लेकिन जब बेटी भिक्षा देती तो नहीं लेता , कहता कि तू  अभागी है तेरे हाथ से भिक्षा नही लूगां ।उसकी यह बात सुन-सुनकर बेटी सूखकर कांटा हो गई ।
                  एक दिन उसकी माँ ने पूछा कि "बेटी तुझे अच्छा खाने को मिलता है अच्छा पहनने को मिलता है फिर भी तू सुखकर कांटा हो रही है ! अगर तुझे कोई परेशानी है तो हमें बता "। बेटी बोली माँ हमारे यहां जो जोगी भिक्षा मांगने आता है वो भाभियों से तो भिक्षा ले लेता है पर जब मैं भिक्षा देने जाती हूँ तो कहता है " कि तू अभागी है "  तेरे हाथ से भिक्षा नही लूगाँ "।
                  दुसरे दिन जोगी जब भिक्षा लेने आया तो साहुकारनी बोली " कि एक तो मेरी बेटी तुझे भिक्षा देती है ऊपर से तू उसे ही अभागी कहता है "। जोगी बोला " कि मैं तो जो इसके भाग्य में लिखा है वो ही कहता हूँ "  तब साहुकारनी बोली कि जब तुझे इतना पता है तो इसको दूर करने का उपाय भी पता होगा ।वह बोला " कि उपाय तो है पर बहुत कठिन है "। वह बोली " कि तू बता मैं मेरी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ "। तब जोगी बोला " कि सात समुद्र पार एक सोभा धोबन रहती है ।वह सोमवती  अमावस्या का व्रत करती है वो ही इसे सुहाग दे सकती है । अन्यथा जब इसकी शादी होगी, तब इसके पति को फेरों में सांप काट लेगा और ये विधवा हो जाएगी । इतना सुनना था कि वह उठी और अपने बेटों को ये बात बताई ,और साथ चलकर सोभा धोबन को ढूढने के लिए कहा । सबने एक-एककर मना कर दिया तो वह अपनी बेटी को लेकर चल पड़ी सोभा धोबन को ढूढने ।
                  चलते-चलते वे समद्र के किनारे तक आ पहुची ।और सोचने लगी की अब आगे कैसे चले , इतना विशाल समुद्र कैसे पर करें । वहां एक बड़ का पेड़ था वही दोनों माँ-बेटी बैठ गई । उस पेड़ के ऊपर एक हंस का जोड़ा रहता था और नीचे पेड़ की जड़ में एक सांप रहता था । जब हंस का जोड़ा दाना चुगने जाता तो सांप हंस के बच्चो को खा जाता था ।हंस उसे देख नहीं पाते थे ।उस दिन भी सांप हंस के बच्चो को खाने के लिए पेड़ पर चढ  रहा था कि हंस के बच्चो की आवाज सुनकर माँ-बेटी ने देखा, कि सांप हंस के बच्चो को खाने जा रहा है तो उन्होंने सांप को मार दिया । शाम को जब हंस का जोड़ा आया तो उन्होंने माँ-बेटी को वहा बैठा पाया तो सोचा की ये ही मेरे बच्चो को मार देते है । जैसे ही वे उन माँ-बेटी को मारने को तैयार हुए कि पेड़ पर से बच्चो की आवाज सुनाई दी ।तो उन्हों ने देखा की हमारे बच्चे तो जिन्दा है तब बच्चो ने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे माँ-बेटी ने उनकी जान बचाई ।हंस ने उन्हें धन्यवाद दिया और उनका यहाँ आने का कारण पूछा ।माँ ने सारी बात बताई और बोली कि हम यहां तक तो आ गए पर समझ में नही आ रहा की आगे कैसे जाये ।तब हंस बोले की आप हमारे ऊपर बैठ जाओ हम आपको समुद्र पार पहुचा देते है ।इस तरह दोनों समुद्र पार पहुच गई ।उसने सोभा धोबन का घर ढूंढ़ लिया ।अब वह सवेरे जल्दी उठकर सोभा धोबन के घर का सारा काम करने लगी खाना बनाना , झाड़ू - पोछा , पानी भरना कपड़े धोना ।सोभा धोबन के सात बेटे-बहु थे । उसकी बहुए बहुत काम  चोर थी काम को लेकर वे आपस में बहुत झगड़ा करती थी ।लेकिन इधर कुछ दिनों से सोभा धोबन देख रही थी कि वे सब बिना झगड़ा किये सारा काम कर लेती है ।एक दिन उसने बहुओ से पूछा कि क्या बात है आजकल तुम सब मिलकर ख़ुशी-ख़ुशी सारा काम कर लेती हो और झगड़ा भी नही करती हो ।
                  इस पर उसकी सब बहुओ ने मना कर दिया की हम तो बहुत दिनों से काम करते ही नहीं है तब उसने सोचा की जब मेरी बहुएँ काम नहीं करती तो फिर कौन हैं जो मेरे घर का काम करता है ।ये तो मालूम करना होगा ।दुसरे दिन वह सुबह जल्दी उठी और उसने देखा की , एक औरत और एक लड़की घर का सारा काम करके वापस जा रही है । तो उसने उन दोनों को रोका और पुछा "की तुम कौन हो और मेरे घर का काम क्यों कर रही हो "! तब साहुकारनी  ने बताया कि ये मेरी लड़की है लकिन इसके भाग्य में सुहाग नहीं है और तुम सोमवती अमावस्या का व्रत व पूजा करती हो ,एक तुम ही हो जो मेरी बेटी को सुहाग दे सकती हो ।इसीलिए हम तेरे घर का सारा काम करती है ।       
                इस पर सोभा धोबन ने कहा कि "ठीक है तुमने इतने दिन मेरे घर का काम किया है, मैं तेरी बेटी को सुहाग जरूर दूँगी ,जब तेरी बेटी की शादी तय हो जाये तो उसके पीले चावल समुद्र में डाल देना मैं शादी में पहुचं जाऊँगी '। दोनों माँ-बेटी अपने घर आ गई । जब लड़की की शादी तय हुई तो माँ ने समुद्र में पीले चावल डाल दिए ।
               सोभा धोबन जब अपने घर से रवाना होने लगी तो बोली की मेरे जाने के बाद यदि घर में कुछ भी टूटता-फूटता है उसे जैसा हो वैसा ही रहने देना मेरे आने तक ,तुम लोग कुछ भी मत करना ।अपने घर वालो को ये हिदायत देकर वह साहुकार की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए रवाना हो गई ।
              जब साहुकार की बेटी के फेरें हो रहें थे तब सांप ने दुल्हे को डस (काट) लिया ।अब सब रोने-धोने लगे तब लड़की की माँ ने सोभा धोबन से कहा "कि आज के दिन के लिए मैंने तेरे यहाँ काम किया था ताकि तू मेरी बेटी को आज सुहाग दे सके "। सोभा धोबन ने कहा " कि तू चिंता मत कर "।वह उठी दुल्हे के पास गई और अपनी मांग में से सिंदूर लिया , आँख में से काजल और छोटी अँगुली से मेहंदी ली व  दुल्हे के छिटे दिये और बोली कि " आज तक मैंने जो सोमवती अमावस्या की उसका फल साहुकार की बेटी को जाना और आगे जो करू वह मेरे धोबी को जाना "।उसके ऐसे करते ही दुल्हा ठीक हो गया ।सब लोग बड़े खुश हो गये ।
             जब बारात विदा हो गई तो सोभा धोबन जाने लगी ,तब सबने कहा की अभी तो आपको विदा ही नही किया है अभी आप कैसे जा सकती है ।सोभा धोबन ने कहा कि मैं मेरे घर को ऐसे ही छोड़ कर आई थी।पता नही मेरे पीछे से वहा क्या हो रहा है ।आप विदा ही करना चाहते है तो मुझे एक मिट्टी का कलश देदो ।
            कलश लेकर वह घर के लिए रवाना हो गई ।रास्ते में सोमवती अमावस्या आई ,तो उसने कलश के 108 टुकड़े किए ,पीपल की पूजा की और परिक्रमा करके बोली " भगवान आज से पहले जो अमावस्या की ,उसका फल साहुकार की बेटी को दिया ,आज जो मैंने अमावस्या की उसका फल मेरे पति को देना फिर  कलश के टुकड़ो को खड्डा खोदकर गाड दिया और  घर के लिए चल दी।उधर घर पर उसका धोबी मर गया ।सब धोबन का इन्तजार कर रहे ।क्योकि वो कह कर गई थी कि मेरे पीछे से तुम लोग कुछ भी मत करना । जब वह घर पहुची तो देखा की उसका धोबी मरा पड़ा है और सब लोग रो रहे है ।उसने कहा कि सब लोग चुप हो जाओ । वह अपने धोबी के पास आई और अपनी मांग में से सिंदूर लिया ,आँख में से काजल और छोटी अंगुली में से मेहँदी निकालकर छिटे दिये ,और बोली भगवान आज से पहले जो अमावस्या की उसका फल साहुकार की बेटी को दिया ,आज जो मैंने अमावस्या की उसका फल मेरे पति को देना ।ऐसा करते ही उसका पति उठकर बैठ गया ।इतने में ब्राह्मन आया और बोला जजमान अमावस्या का दान दो ,धोबन बोली की मैंने तो पीपल के पेड़ के पास गाड दी, वहा से निकाल लो ।ब्राह्मन ने वहा जाकर देखा तो सोने की 108 मोहरे हो गई ।पूर गावँ में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सोमवती अमावस्या का व्रत ,पूजा करे व दान दे ।
           हे सोमवती माता जैसे आपने साहुकार की बेटी को सुहाग दिया और धोबी को जीवन दान दिया वैसे ही सबको देना ।कहते को सुनते को व हुंकारा  भरते को । घटती हो तो पूरी करे पूरी हो तो मान रखना भगवान ।

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