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Thursday 21 September 2017

सोमवती अमावस्या की कथा Somvati Amavasya Ki Katha

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सोमवती अमावस्या Somvati Amavasya से सम्बंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक गरीब ब्रह्मण परिवार था, जिसमे पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी, वह सुन्दर, सुशील, संस्कारवान एवं गुणवान थी, लेकिन गरीबी के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था।

 एक दिन ब्रह्मण के घर एक साधू पधारे, वह कन्या के सेवाभाव से बहुत प्रसन्न हुए। कन्या को दीर्घ आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह का योग नहीं है। ब्राह्मण ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। तब साधू ने अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धोबी महिला अपने पति, बेटे और बहू के साथ रहती है, वह बहुत ही संस्कारी तथा पति परायण है। यदि आपकी कन्या उसकी सेवा करे और वह इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधू ने बताया लेकिन वह महिला कहीं भी आती जाती नहीं है।

 यह बात सुनकर ब्रह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने कि बात कही। कन्या प्रतिदिन तडके उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। जब सोना धोबिन अपनी बहू से इसके बारे में पूछा के क्या वह यह सारे कार्य करती है तो बहू ने कहा कि माँजी मैं तो देर से उठती हूँ।तो सोना निगरानी करने करने लगी कि कौन तडके ही घर का सारा काम करके चला जाता है ।

 एक दिन सोना ने उस कन्या को देख लिया, जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं।आप ब्राह्मण कन्या हो आपके द्वारा यह करने से मैं पाप कि भागी बन रही हूँ ।
तब कन्या ने साधू द्बारा कही पूरी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसमे अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा।

सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति का स्वर्गवास हो गया । उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी.उस दिन सोमवती अमावस्या Somvati Amavasya थी। ब्रह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकडों से ही 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की, और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा।

 इसीलिए सोमवती अमवास्या Somvati Amavasya के दिन जो भी जातक धोबी, धोबन को भोजन कराता है, उनका सम्मान करता है, उन्हें दान दक्षिणा देता है, उसका दाम्पत्य जीवन लम्बा और सुखमय होता है उसके सभी मनोरथ अवश्य ही पूर्ण होते है ।

शास्त्रों के अनुसार चूँकि पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अत:, सोमवती अमावस्या Somvati Amavasya के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भँवरी देता है, उसके सुख और सौभग्य में वृध्दि होती है। जो हर अमावस्या Amavasya को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि भँवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश कि पूजा करता है, उसकी कथा कहता है उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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