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Wednesday 14 August 2019

इस्लाम में जीव हत्या, कितनी सही कितनी गलत

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क्या बकरा ईद पर कुर्बानी देने का आदेश खुदा का है या खुदा के नाम पर बेजुबान जानवरों की कुर्बानी देकर समस्त मुसलमान भाई दोजख जाने की तैयारी कर रहे है ??

मांस खाना और शराब पीना इस्लाम में हराम है। इस्लाम इसका फरमान नहीं देता पर  वर्तमान में यह दोनों कार्य इस्लाम में बहुत अधिकता से किए जा रहे है।

मैं काजी मुल्लाओं से भी कहना चाहूंगा कि बेजुबान जानवरों को मारकर खाने का आदेश खुदा का है तो पाक कुरान शरीफ की आयत से दलील पेश करो। भोले मुसलमान भाइयों अल्लाह ने अपने प्यारे जीवो को मारने का आदेश कभी नहीं फरमाया है और ना ही उनके भेजे गए नबियों ने कभी मांस खाया है। ये कार्य शैतान फरिश्ते ने मुल्ला काजियों के शरीर में प्रवेश करके शुरु करवाया है...फिर आगे जीभ के स्वाद के लिए भ्रष्ट काजी, मुल्लाओं ने अल्लाह और नबियों के नाम पर जीव हत्या करवानी जारी रखी।

"कुरान शरीफ में कुर्बानी देने के लिए बोला गया है लेकिन किसी बेजुबान जीव की नहीं बल्कि अल्लाह की राह पर चलने के लिए अपनी बुराइयों की कुर्बानी देने की बात कही है।"

मुसलमान भाई पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और शाम को पेट भरने और जीभ के स्वाद में मासूम जीवो को मारकर खा जाते है। सुबह तो अल्लाह से गुनाहों की माफ़ी मांगी और शाम को एक और गुनाह कर बैठे।

हजरत मोहम्मद जी के जीवन चरित्र में लिखा है कि मोहम्मद जी ने कभी भी खून खराबा करने का आदेश नहीं दिया, मतलब साफ है कि बकरे काटने का फरमान न अल्लाह का है, न नबी मोहम्मद साहेब का है।

अल्लाह तो दयालु और रहमान है। सभी जीव अल्लाह की प्यारी संतान है। वह अपनी एक संतान द्वारा दूसरी संतान को मारने का आदेश कैसे दे सकता है?

अल्लाह के बनाए विधान को तोड़ने वाला महा अपराधी होगा। वह दोजख की आग में डाला जाएगा।

पवित्र कुरान शरीफ में जीव हत्या कर मांस खाने के लिए अल्लाह का कोई फरमान नहीं है और जो मांस खाने को कहें वह अल्लाह का ज्ञान नहीं हो सकता। मांस खाने का आदेश अल्लाह का नहीं, शैतान का है।

मुस्लिम धर्म में यह मान्यता है कि बकरीद पर बकरे को हलाल कर उसका मांस खाने से जन्नत प्राप्ति होती है।
यदि बकरे को कलमा पढ़कर हलाल करने से उसकी रूह जन्नत में जाती है तो आपने अभी तक स्वयं को और अपने परिवार को जन्नत में क्यों नहीं भेजा ??

जिस प्रकार हमें जरा सी खरोच भी लगती है तो बहुत पीड़ा होती है, ठीक उसी प्रकार उन बेजुबान जानवरों को भी असहनीय पीड़ा होती है जिसे आप धर्म की आड़ में हलाल करते हो वह बेजुबान जीव तड़फ-तड़फ कर प्राण त्यागता है कभी सोचा है कि उस जीव की आपको कितनी हाय बद्दुआ लगी है।

रहम कीजिए उन बेजुबानो पर जो बोल नहीं सकते। वह भी हम सब की तरह खुदा के बनाए प्यारे जीव है। उन्हें मारे नहीं, उनसे प्यार कीजिए।

हजरत मोहम्मद साहब ने हदीस में फरमाया है... "सभी प्राणियों के साथ प्रेम से बर्ताव करो। संसार के सभी प्राणियों पर रहम करो क्योंकि खुदा ने तुम पर बड़ी मेहरबानियां की है।

विचार करें यदि मांस खाना अल्लाह का आदेश होता तो आदरणीय हजरत मोहम्मद जी ने‌ मांस क्यों नहीं खाया ??

इस्लाम की पुस्तकों में लिखा है कि सभी प्राणियों पर दया करना सबसे बड़ा धर्म है। इस्लाम में प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया करने का निर्देश दिया गया है। मुस्लिम भाइयों को जीव हत्या करना तो दूर सोचना भी नहीं है।

एक चीज सोचने को मजबूर करती है कि जिस बकरे ने जिंदगी भर घास खाई उसका अंत इतना भयानक हुआ तो उस इंसान के साथ क्या होगा जो इसको मारकर खा रहा है?

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