Jeevan dharam

Krishna sakhi is about our daily life routine, society, culture, entertainment, lifestyle.

Thursday, 31 August 2017

॥ राधा चालीसा ॥

No comments :
॥ दोहा ॥

श्री राधे वृषभानुजा, भक्तिन प्राणाधार।
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रणवौं बारंबार॥ कृष्णा

जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम॥

॥ चौपाई ॥

जय वृषभानु कुँवरि श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा॥ (१)

नित्य बिहारिनि श्याम अधारा, अमित मोद मंगल दातारा॥ (२)

रास विलासिनि रस विस्तारिनि, सहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥ (३)

नित्य किशोरी राधा गोरी, श्याम प्राण धन अति जिय भोरी॥ (४)

करुणा सागर हिय उमंगिनि, ललितादिक सखियन की संगिनी॥ (५)

दिनकर कन्या कूल विहारिनि, कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥ (६)

नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैं, राधा राधा कहि हरषावैं॥ (७)

मुरली में नित नाम उचारें, तुम कारण लीला वपु धारें॥ (८)

प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी, श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी॥ (९)

नवल किशोरी अति छवि धामा, धुति लघु लगै कोटि रति कामा॥ (१०)

गोरांगी शशि निंदक बदना, सुभग चपल अनियारे नयना॥ (११)

जावक युत युग पंकज चरना, नुपूर धुनि प्रीतम मन हरना॥ (१२)

संतत सहचरि सेवा करहीं, महा मोद मंगल मन भरहीं॥ (१३)

रसिकन जीवन प्राण अधारा, राधा नाम सकल सुख सारा॥ (१४)

अगम अगोचर नित्य स्वरूपा, ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा॥ (१५)

उपजेउ जासु अंश गुण खानी, कोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥ (१६)

नित्य धाम गौलोक विहारिनि, जन रक्षक दुख दोष नसावनि॥ (१७)

शिव अज मुनि सनकादिक नारद, पार न पायँ शेष अरु शारद॥ (१८)

राधा शुभ गुण रूप उजारी, निरखि प्रसन्न होत बनवारी॥ (१९)

ब्रज जीवन धन राधा रानी, महिमा अमित न जाय बखानी॥ (२०)

प्रीतम संग देइ गलबाँही, बिहरत नित्य वृन्दावन माँही॥ (२१)

राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा, एक रूप दोउ प्रीत अगाधा॥ (२२)

श्री राधा मोहन मन हरनी, जन सुख दायक प्रफ़ुलित बदनी॥ (२३)

कोटिक रूप धरें नंद नंन्दा, दर्श करन हित गोकुल चन्दा॥ (२४)

रास केलि करि तुम्हें रिझावें, मान करौ जब अति दुख पावें॥ (२५)

प्रफ़ुलित होत दर्श जब पावें, विविध भाँति नित विनय सुनावें॥ (२६)

वृन्दारण्य विहारिनि श्यामा, नाम लेत पूरण सब कामा॥ (२७)

कोटिन यज्ञ तपस्या करहू, विविध नेम ब्रत हिय में धरहू॥ (२८)

तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें, जब लगि राधा नाम न गावें॥ (२९)

वृन्दाविपिन स्वामिनि राधा, लीला वपु तब अमित अगाधा॥ (३०)

स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पारा, और तुम्हैं को जानन हारा॥ (३१)

श्री राधा रस प्रीति अभेदा, सादर गान करत नित वेदा॥ (३२)

राधा त्यागि कृष्ण को भजि हैं, ते सपनेहुं जग जलधि न तरि हैं॥ (३३)

कीरति कुँवरि लाड़िली राधा, सुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा॥ (३४)

नाम अमंगल मूल नसावन, त्रिविध ताप हर हरि मनभावन॥ (३५)

राधा नाम लेय जो कोई, सहजहिं दामोदर बस होई॥ (३६)

राधा नाम परम सुखदाई, भजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥ (३७)

यशुमति नन्दन पीछे फ़िरिहैं, जो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं॥ (३८)

रास विहारिनि श्यामा प्यारी, करहु कृपा बरसाने वारी॥ (३९)

वृन्दावन है शरण तिहारी, जय जय जय वृषभानु दुलारी॥ (४०)

॥ दोहा ॥

श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरन्तर वास मैं, श्री वृन्दावन धाम॥

॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

Wednesday, 23 August 2017

॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥

No comments :
॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥
दोहा
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥

जय यदुनंदन जय जगवंदन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्‍तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर, नाग नथैया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरि टेरौ ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

राजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥

कुंडल श्रवण, पीत पट आछे ।
कटि किंकिणी काछनी काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पूतनहि तार्‍यो ।
अका बका कागासुर मार्‍यो ॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई ।
मूसर धार वारि वर्षाई ॥

लगत लगत व्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नख धारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहार्‍यो ।
कंसहि केस पकिड़ दै मार्‍यो ॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भीमहिं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मार्‍यो ।
भक्‍तन के तब कष्ट निवार्‍यो ॥

दीन सुदामा के दुःख टार्‍यो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्‍यो ॥

प्रेम के साग विदुर घर माँगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखी प्रेम की महिमा भारी ।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हाँके ।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके ॥

निज गीता के ज्ञान सुनाए ।
भक्‍तन हृदय सुधा वर्षाए ॥

मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा साँप पिटारी ।
शालीग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करि तत्काला ।
जीवन मुक्‍त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहि वसन बने नंदलाला ।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला ॥

अस अनाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावै नैया ॥

`सुन्दरदास' आस उर धारी ।
दया दृष्टि कीजै बनवारी ॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥

दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि ।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ॥

Saturday, 19 August 2017

शेख चिल्ली की चिट्ठी

No comments :

मियाँ शेख चिल्ली के भाई दूर किसी शहर में बसते थे। किसी ने शेख चिल्ली को बीमार होने की खबर दी तो उनकी खैरियत जानने के लिए शेख ने उन्हें खत लिखा। उस जमाने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्‍ठियाँ गाँव के नाई के जरिये भिजवाया करते थे या कोई और नौकर चिट्‍ठी लेकर जाता था।

लेकिन उ‍न दिनों नाई उन्हें बीमार मिला। फसल कटाई का मौसम होने से कोई नौकर या मजदूर भी खाली नहीं था अत: मियाँ जी ने तय किया कि वह खुद ही चिट्‍ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्‍ठी लेकर घर से निकल पड़े। दोपहर तक वह अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्‍ठी पकड़ाकर लौटने लगे।

उनके भाई ने हैरानी से पूछा - अरे! चिल्ली भाई! यह खत कैसा है? और तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है?

भाई ने यह कहते हुए चिल्ली को गले से लगाना चाहा। पीछे हटते हुए चिल्ली बोले - भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्‍ठी लिखी थी। चिट्‍ठी ले जाने को नाई नहीं मिला तो उसकी बजाय मुझे ही चिट्‍ठी देने आना पड़ा।

भाई ने कहा - जब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहरो। शेख चिल्ली ने मुँह बनाते हुए कहा - आप भी अजीब इंसान हैं। समझते नहीं। यह समझिए कि मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज निभा रहा हूँ। मुझे आना होता तो मैं चिट्‍ठी क्यों लिखता?