Friday, 1 September 2017
।।पावन शनि चालीसा।।
।।पावन शनि चालीसा।।
|| चौपाई ||
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं आरिहिं संहारा ॥
पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ॥
सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । रंकहुं राव करैंक्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होई निहारत । तृण हू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों ॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चतुराई ॥
लखनहिं शक्ति विकल करि डारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥
रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलाखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हों । तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल परदशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहि गहयो जब जाई । पार्वती को सती कराई ॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्घ महाभारत करि डारयो ॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ई ॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नखधारी । सो फल जज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्रण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांजी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अदभुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत रामसुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
।। मां गायत्री चालीसा ।।
।। मां गायत्री चालीसा ।।
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचंड ॥
शांति कांति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥
जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥ २॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥
अक्षर चौबीस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥॥
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥
हंसारूढ श्वेतांबर धारी ।
स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥॥
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥
ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
सुख उपजत दुख दुर्मति खोई ॥॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अद्भुत माया ॥॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥
तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।
जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥
चार वेद की मात पुनीता ।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥
महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविद्या नासै ॥॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जगमें आना ॥॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा ॥॥
जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुख हरै भव भीरा ॥॥
गृह क्लेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥॥
संतति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपति युत मोद मनावें ॥॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥॥
जयति जयति जगदंब भवानी ।
तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे ।
सो साधन को सफल बनावे ॥॥
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी ।
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥॥
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
आरत अर्थी चिंतित भोगी ॥॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥॥
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ ।
धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥
सकल बढें उपजें सुख नाना ।
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥
भैरव चालीसा
भैरव चालीसा
दोहा
श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी- कुतवाला॥
जयति बटुक- भैरव भय हारी। जयति काल- भैरव बलकारी॥
जयति नाथ- भैरव विख्याता। जयति सर्व- भैरव सुखदाता॥
भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। सब विधि होय कामना पूरी॥
शेष महेश आदि गुण गायो। काशी- कोतवाल कहलायो॥
जटा जूट शिर चंद्र विराजत। बाला मुकुट बिजायठ साजत॥
कटि करधनी घुंघरू बाजत। दर्शन करत सकल भय भाजत॥
जीवन दान दास को दीन्ह्यो। कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥
वसि रसना बनि सारद- काली। दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥
धन्य धन्य भैरव भय भंजन। जय मनरंजन खल दल भंजन॥
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा। कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥
जो भैरव निर्भय गुण गावत। अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥
रूप विशाल कठिन दुख मोचन। क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥
अगणित भूत प्रेत संग डोलत। बम बम बम शिव बम बम बोलत॥
रुद्रकाय काली के लाला। महा कालहू के हो काला॥
बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥
देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥
जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥
श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥
ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥
दोहा
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥