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Friday, 1 September 2017

अपना भवन बनाने के अचूक उपाय / टोटके

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अपना भवन बनाने के अचूक उपाय / टोटके


                 

इस धरती में हर व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना खुद का घर हो , जहां वह अपनी मनमर्जी के अनुसार रह सके, खा पी सके , उसे सजा सँवार सके, अपने परिवार के सदस्यों के साथ जीवन व्यतीत कर सके व्यक्ति के जीवन की कमाई, उसकी पहचान उसका अपना भवन होता है।
लेकिन यह भी सत्य है कि आज की महँगाई के दौर में अपने लिए किसी अच्छी , सुरक्षित और जहाँ पर आधारभूत सुविधाएँ हो ऐसी जगह घर बना पाना एक टेढ़ी खीर भी है। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी किराये के मकानों में रहती है।
स्वयं की भूमि अथवा मकान बनाने के लिए चतुर्थ भाव का बली होना आवश्यक होता है, मंगल ग्रह को भूमि,भवन का और चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है,
अगर आप भी चाहते हैं आपका अपना घर, तो यहाँ पर बताये जा रहे कुछ उपायों को अवश्य ही करें .इनको करने से शीघ्र ही आपके घर खरीदने के योग बनेंगे , मार्ग में आने वाली बाधाएं शान्त होगी ।

* ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल या शनि ग्रह से संबंधित कोई ग्रह दोष हो तो उसे अपने घर का सपना पूरा करने में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए अपनी कुंडली किसी अच्छे ज्योतिष को दिखाकर मंगल और शनि के उपाय अवश्य ही कर लें ।

* मंगल को भूमि तो शनि को निर्माण का कारक माना गया है। इसलिए जब भी दशा/अन्तर्दशा में मंगल व शनि का संबंध चतुर्थ/चतुर्थेश से बनता है, तब व्यक्ति अपना घर बनाता है उसे भूमि , प्रापर्टी डीलिंग के कार्यों में श्रेष्ठ सफलता मिलती है ।

* अपने घर की चाह रखने वाले जातक नित्य प्रात: स्नान कर गणेशजी को दूर्वा और एक लाल फूल चढ़ाएं। ऐसा लगातार 21 दिन तक करते हुए भगवान श्री गणेश जी से अपने घर की समस्या के निवारण के लिए प्रार्थना करें।

* अपने घर बनवाने के मार्ग में किसी भी प्रकार की अड़चनों को दूर करने के लिए किसी भी मंदिर में एक नीम की लकड़ी का बना हुआ छोटा सजा-संवरा सा घर दान करें।

* अपना घर बनवाने के योग मजबूत करने के लिए मंगलवार के दिन सफेद गाय और उसके बछड़े को लाल मसूर की दाल व गुड़ और घोड़े को चने की भीगी हुई दाल खिलाएं।

*नित्य कौए को दूध में भीगी रोटी और तोतों को सप्तधान डालें। इससे आर्थिक पक्ष मजबूत होने लगता है धीरे धीरे अपना स्वयं का घर बनाने की परिस्थितियाँ बनने लगती है ।

*मंगलवार को लाल मसूर की दाल का दान करने से भी अपना भवन बनाने के योग प्रबल होते हैं ।

* अपने घर के पूजा स्थल अथवा ईशान दिशा में एक मिट्टी का छोटा घर लाकर रखें और उसमें हर रविवार को सरसो तेल का दीपक जलाएं और दीपक जलने के बाद उसमें फिर से कपूर जलाएं। इस मिटटी के घर को भी अपने हाथ से खूबसूरत तरीके से सजाएं। इससे भी ग्रह निर्माण में आने वाली बाधाएं दूर होने लगती है ।

* मान्यताओं के अनुसार यदि किसी घर में चिडिय़ा या गिलहरी अपना घोंसला बना लें तो उस घर में सुख शांति, धन समृद्धि की कोई भी कमी नहीं होती। अत: यदि वह आपके घर में अपना घोसला बना लें तो उसे जबरन हटाना नहीं चाहिए ।
घर में चिडिय़ा का घोंसला बनना शुभ संकेत माना जाता है। कहते है की जिन घरों में चिडिय़ा का घोंसला होता है वहां सभी देवी-देवताओं की असीम कृपा बनी रहती है। उस घर के लोगो को अपना मनचाहा भवन का सुख प्राप्त होता है ।

* जिन लोगों को अपना मकान खरीदने या बनाने की इच्छा है लेकिन कोई न कोई रूकावट लगी रहती है तो वह रविवार से शुरू करके नित्य प्रात: गाय को गुड़ खिलाएं। इस उपाय को पूर्ण श्रद्धा पूर्वक लगातार करने से गौ माता की कृपा से अपना मकान खरीदने में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होने लगती है ।

* अगर आप अपना स्वयं का मकान बनाना चाहते हैं, तो शुक्ल पक्ष के शुक्रवार अथवा नवरात्र के किसी भी दिन एक लाल कपड़े में छ: चुटकी कुमकुम, छ: लौंग, नौ बिंदिया, नौ मुट्ठी साफ़ मिट्टी और छ: कौड़ियाँ लपेट कर किसी भी नदी / बहते हुए पानी में मन ही मन में अपनी मनोकामना कहते हुए विसर्जित कर दें । इस उपाय से माँ दुर्गा की कृपा से शीघ्र ही अपना मकान बनाने में सफलता मिलेगी ।

* अपनी मनचाही जमीन अथवा अपना मनचाहा मकान पाने के लिए नवरात्र अथवा शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को एक उपाय करें । जहाँ पर आप मकान चाहते है उस स्थान की थोड़ी सी मिट्टी लाकर उसे एक कांच की शीशी में डालें । फिर उस शीशी में गंगा जल और कपूर डाल कर घर के ईशान कोण अथवा अपने पूजा घर पर जौ के ढेर पर स्थापित करें । फिर शुक्रवार से नित्य / पूरे नवरात्र उस शीशी के आगे माता का सिद्ध नवार्ण मन्त्र ‘ "ऐं हीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे" ‘ की पांच माला जप करें और उस जौ के ढेर में गंगा जल डालते रहे । नवें दिन / नवमी के दिन हवन के बाद थोड़े से अंकुरित जौ निकाल कर उसे अपनी मन चाही जगह पर डाल दें । काँच की शीशी के अंदर की सामग्री को नदी में विसर्जित कर दें और कांच की खाली शीशी को नदी में न डालकर पीपल के पेड़ के नीचे रख दें । माँ दुर्गा की कृपा से आपको मनचाहा घर मिलने के प्रबल योग बनेगे ।

गोविंदा अष्टकम , Govindaashtkam

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गोविंदा अष्टकम 
सत्यं ज्ञानमनंतं नित्यमनाकाशं परमाकाशम् ।
गोष्ठप्रांगणरिंखणलोलमनायासं परमायासम् ।
मायाकल्पितनानाकारमनाकारं भुवनाकारम् ।
क्ष्मामानाथमनाथं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ १ ॥
मृत्स्नामत्सीहेति यशोदाताडनशैशव संत्रासम् ।
व्यादितवक्त्रालोकितलोकालोकचतुर्दशलोकालिम् ।
लोकत्रयपुरमूलस्तंभं लोकालोकमनालोकम् ।
लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ २ ॥
त्रैविष्टपरिपुवीरघ्नं क्षितिभारघ्नं भवरोगघ्नम् ।
कैवल्यं नवनीताहारमनाहारं भुवनाहारम् ।
वैमल्यस्फुटचेतोवृत्तिविशेषाभासमनाभासम् ।
शैवं केवलशांतं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ ३ ॥
गोपालं प्रभुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालम् ।
गोपीखेलनगोवर्धनधृतिलीलालालितगोपालम् ।
गोभिर्निगदित गोविंदस्फुटनामानं बहुनामानम् ।
गोपीगोचरदूरं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ ४ ॥
गोपीमंडलगोष्ठीभेदं भेदावस्थमभेदाभम् ।
शश्वद्गोखुरनिर्धूतोद्गत धूलीधूसरसौभाग्यम् ।
श्रद्धाभक्तिगृहीतानंदमचिंत्यं चिंतितसद्भावम् ।
चिंतामणिमहिमानं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ ५ ॥
स्नानव्याकुलयोषिद्वस्त्रमुपादायागमुपारूढम् ।
व्यादित्संतीरथ दिग्वस्त्रा दातुमुपाकर्षंतं ताः
निर्धूतद्वयशोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरंतस्थम् ।
सत्तामात्रशरीरं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ ६ ॥
कांतं कारणकारणमादिमनादिं कालधनाभासम् ।
कालिंदीगतकालियशिरसि सुनृत्यंतम् मुहुरत्यंतम् ।
कालं कालकलातीतं कलिताशेषं कलिदोषघ्नम् ।
कालत्रयगतिहेतुं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ ७ ॥
बृंदावनभुवि बृंदारकगणबृंदाराधितवंदेहम् ।
कुंदाभामलमंदस्मेरसुधानंदं सुहृदानंदम् ।
वंद्याशेष महामुनि मानस वंद्यानंदपदद्वंद्वम् ।
वंद्याशेषगुणाब्धिं प्रणमत गोविंदं परमानंदम् ॥ ८ ॥
गोविंदाष्टकमेतदधीते गोविंदार्पितचेता यः ।
गोविंदाच्युत माधव विष्णो गोकुलनायक कृष्णेति ।
गोविंदांघ्रि सरोजध्यानसुधाजलधौतसमस्ताघः ।
गोविंदं परमानंदामृतमंतस्थं स तमभ्येति ॥
इति श्री शंकराचार्य विरचित श्रीगोविंदाष्टकं समाप्तं

कृष्णा अष्टकम, krishna ashtkam

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कृष्णा अष्टकम 
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
अतसी पुष्प संकाशं हार नूपुर शोभितम् ।
रत्न कंकण केयूरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
कुटिलालक संयुक्तं पूर्णचंद्र निभाननम् ।
विलसत् कुंडलधरं कृष्णं वंदे जगद्गुरम् ॥
मंदार गंध संयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम् ।
बर्हि पिंछाव चूडांगं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
उत्फुल्ल पद्मपत्राक्षं नील जीमूत सन्निभम् ।
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
रुक्मिणी केलि संयुक्तं पीतांबर सुशोभितम् ।
अवाप्त तुलसी गंधं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
गोपिकानां कुचद्वंद कुंकुमांकित वक्षसम् ।
श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
श्रीवत्सांकं महोरस्कं वनमाला विराजितम् ।
शंखचक्र धरं देवं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ॥
कृष्णाष्टक मिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
कोटिजन्म कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥