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Sunday, 13 May 2018

किसी रत्न के साथ दूसरे रत्न

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रत्न दोधारी तलवार की तरह होते हैं जिन्हें उचित जांच परख के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा सकारात्मक की जगह नकारात्मक परिणाम भी देते हैं.रत्न धारण करने से पहले ग्रहो की स्थिति, भाव एवं दशा का ज्ञान जरूरी होता है.किसी रत्न के साथ दूसरे रत्न का क्या परिणाम होता है यह भी जानना आवश्यक होता है.
गुरू का रत्न पुखराज (Jupiter and Its Gemstone Yellow Sapphire – Pukhraj)
ग्रहों के गुरू हैं बृहस्पति. पीत रंग बृहस्पति का प्रिय है.इनका रत्न पुखराज (Yellow Sapphire – Pukhraj) भी पीली आभा लिये होता है.व्यक्ति की कुण्डली में गुरू अगर शुभ भावों का स्वामी हो अथवा मजबूत स्थिति में हो तो पुखराज (Pukhraj Gemstone) धारण करने से बृहस्पति जिस भाव में होता है उस भाव के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है.यह रत्न धारण करने से गुरू के बल में वृद्धि होती है फलत: जिन ग्रहों एवं भावों पर गुरू की दृष्टि होती है वह भी विशेष शुभ फलदायी हो जाते है.
शुक्र का रत्न हीरा (Venus and Its Gemstone Diamond – Heera)
शुक्र ग्रहों में प्रेम, सौन्दर्य, राग रंग, गायन वादन एवं विनोद का स्वामी है.इस ग्रह का रत्न हीरा है.ज्यातिषशास्त्र और रत्नशास्त्र (Astrology and Gemology) दोनों की ही यह मान्यता है कि कुण्डली में अगर शुक्र शुभ भाव का अधिपति है तो हीरा धारण करने से शुक्र के सकारात्मक प्रभाव में वृद्धि होती है.
है.रत्नशास्त्र के अनुसार यह अत्यंत चमत्कारी रत्न होता है.इस रत्न को परखने के बाद ही धारण करना चाहिए.नीलम (Blue Sapphire – Neelam) उस स्थिति में धारण करना चाहिए जबकि जन्म कुण्डली में शनि शुभ भावों में बैठा हो. अशुभ शनि होने पर नीलम धारण करने से सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता है.
शनि का रत्न नीलम (Saturn and Its Gemstone Blue Sapphire – Neelam)
ग्रहों में शनि को दंडाधिकारी एवं न्यायाधिपति का स्थान प्राप्त है.यह व्यक्ति को उनके कर्मो के अनुरूप फल प्रदान करते हैं.इस ग्रह की गति मंद होने से इसकी दशा लम्बी होती है.अपनी दशावधि में यह ग्रह व्यक्ति को कर्मों के अनुरूप फल देता है.इस ग्रह की पीड़ा अत्यंत कष्टकारी होती है.यह ग्रह अगर मजबूत और शुभ हो तो जीवन की हर मुश्किल आसन हो जाती है.इस ग्रह का रत्न नीलम (Blue Sapphire – Neelam)

राहु का रत्न गोमेद (Rahu and Its Gemstone Hessonite- Gomedha)

राहु को प्रकट ग्रह के रूप में मान्यता नही प्राप्त है.यह ग्रह मंडल में छाया ग्रह के रूप में उपस्थित है.इस ग्रह को नैसर्गिक पाप ग्रह कहा गया है.राहु बने बनाये कार्यो को नष्ट करने वाला है.प्रगति के मार्ग में अवरोध है.स्वास्थ्य सम्बन्धी पीड़ा देने वाला है.इस ग्रह का रत्न गोमद (Hessonite- Gomedha) है.इसे गोमेदक के नाम से भी जाना जाता है.यह धुएं के रंग का होता है.अगर जन्मपत्री में राहु प्रथम, चतुर्थ, पंचम, नवम अथवा दशम भाव में हो तो गोमेद (Hessonite- Gomeda) धारण करने से इस भाव के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है एवं राहु शुभ परिणाम देता है.राहु रत्न गोमेद (Hessonite- Gomeda) का धारण उस स्थिति में नहीं करना चाहिए जबकि राहु जन्मपत्री में द्वितीय, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में हो.गोमेद (Hessonite- Gomeda) के साथ मूंगा, माणिक्य, मोती अथवा पुखराज नहीं पहनना चाहिए।

केतु का रत्न लहसुनियां (Rahu and Its Gemstone Cat’s Eye Stone – Lahasunia)

केतु भी राहु के समान छाया ग्रह है और राहु के सामन ही क्रूर एवं नैसर्गिक पाप ग्रह है.पाप ग्रह होते हुए भी कुछ भावों में एवं ग्रहों के साथ केतु अशुभ परिणाम नहीं देता है.अगर कुण्डली में यह ग्रह शुभस्थ भाव में हो तो इस ग्रह का रत्न लहसुनियां (Cat’s Eye Stone – Lahasunia) धारण करने से स्वास्थ लाभ मिलता है.कार्यो में सफलता मिलती है.धन की प्राप्ति होती है.रहस्यमयी शक्ति से आप सुरक्षित रहते हैं.राहु के सामन ही अगर जन्म पत्री में केतु लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठम, नवम अथवा एकादश में हो तो केतु का रत्न धारण करना चाहिए.अन्य भाव में केतु होने पर लहसुनियां (Cat’s Eye Stone – Lahasuniya) विपरीत प्रभाव देता है.लहसुनियां (Cat’s Eye Stone – Lahasuniya) के साथ मोती, माणिक्य, मूंगा अथवा पुखराज नहीं पहनना चाहिए.
ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि, रत्न उस समय धारण करना विशेष लाभप्रद होता है जब सम्बन्धित ग्रह की दशा चल रही होती है

खास रत्न

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रत्नों का व्यक्ति के जीवन से हजारों वर्ष पुराना नाता है। जहां एक ओर रत्न जमीन से हजारों फुट नीचे व पहाड़ों और गुफाओं में से निकलते हैं वहीं दूसरी ओर समुद्र में व पहाड़ों पर जुगनुओं की तरह चमचमाते पौधों की डालियों, जड़ों व फलों की डालियों में भी पाए जाते हैं जैसे कि रत्न मूंगा व संजीवनी बूटी जो पहाड़ों पर चमचमाती दिखाई देती है।
हिंदुओं के ग्रंथ ‘रामायण’ में जब रावण के पुत्र मेघनाद से युद्ध के दौरान लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे तो हनुमान जी पूरा पहाड़ ही उठा लाए थे जिस पर चमचमाते प्राकृतिक ऊर्जा से भरे व जुगनुओं की तरह टिमटिमाते पौधे दिखाई देते थे। लक्ष्मण जी का उपचार कर रहे वैद्य ने जब पहाड़ से संजीवनी बूटी निकाल कर लक्ष्मण जी को सुंघाई तो वह तुरन्त मूर्च्छा से मुक्त हो गए थे। आज भी हमारे देश में आयुर्वेद में रोगों का इलाज जड़ी-बूटियों से किया जाता है।
आज भी पर्वतों पर व समुद्रों में कुछ ऐसे पौधे, जड़ी-बूटियां दिखाई पड़ती हैं जिनकी आकृति मनुष्य के शरीर के अंगों से मिलती-जुलती है और जो शायद इस ओर इशारा करती हैं कि इसका संबंध मनुष्य के शरीर से बहुत गहरा है।
उदाहरण के तौर पर ‘दिमागी मूंगा’ रीढ़ की हड्डी की तरह का पेट के आकार जैसा मूंगा, सैक्स बढ़ाने वाला मूंगा शरीर के अंगों जैसी आकृति के पौधों से प्राप्त किए जाते हैं और फिर इनको काट कर, मशीनों द्वारा साफ करके रत्नों का आकार दे दिया जाता है जिस प्रकार चुंबक के चारों की ऊर्जा दिखाई नहीं देती लेकिन जैसे ही वह लोहे के समीप आता है, ऊर्जावान हो जाता है इसी प्रकार इन रत्नों में छुपी हुई प्राकृतिक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर के सम्पर्क में आते ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर देती है। यह व्यक्ति के स्वास्थ्य को जहां एक ओर ठीक करती है वहीं दूसरी ओर ग्रहों से संबंधित रत्न ग्रहों से संबंधित कार्यों को प्रभावित करते हैं।
आस्ट्रल ऊर्जा से भरपूर ये रत्न जब धारण किए जाते हैं तो अपना चमत्कार दिखाते हैं। व्यक्ति के जीवन को पलट कर रख देते हैं। राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं। अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए देवी-देवता एवं राक्षस इन्हें धारण करते थे। यदि ये माफिक न आएं तो जीवन नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं।
वर्ष 1857 में कर्नल फ्रान्सेस जब भारत वर्ष में आजादी की छिड़ी जंग को दबाने कानपुर पहुंचा तो एक मंदिर में मूर्तियों पर जड़े जेवरात के साथ उसको एक नीलम जड़ी अंगूठी भी प्राप्त हुई। जिस दिन से उसने उस नीलम को प्राप्त किया उसी दिन से उसके खराब दिन शुरू हो गए थे। उसकी अपनी सेना में बड़ी शोहरत थी लेकिन वह सब खत्म हो गई, करोड़ों की सम्पत्ति भी सर्वनाश हो गई तो उसने वह नीलम अपने दो मित्रों को दे दिया। मित्रों में से एक की मौत हो गई और दूसरा बर्बाद हो गया। वह नीलम फिर से लौटकर कर्नल फ्रान्सेस के घर आ गया। कर्नल फ्रांसेस की मौत हो गई उसकी मौत के उपरांत उसकी वसीयत में रत्न का जिक्र आया। यह रत्न उसके दो पुत्रों को मिला। उन पुत्रों को भी बर्बादी ने घेर लिया और वे भी बर्बाद हो गए। उस परिवार के सदस्यों ने यह नीलम लंदन के म्यूजियम में रखवा दिया। जनवरी 2010 में लंदन के म्यूजियम में उस नीलम की नुमाइश लगी थी। लोग उस नीलम के पास जाते भी घबराते थे। इस नीलम के चारों तरफ एक बैंगनी रंग की पट्टी अर्थात छल्ला-सा नजर आता है।
केवल नीलम ही नहीं बल्कि एक हीरा भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति का है जिसने उसको धारण किया उसी का ही सर्वनाश हो गया। यह भी नुमाइश के दौरान लंदन के म्यूजियम में देखा जा सकता है।
जिस प्रकार से सात ग्रह :- सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि हैं। 
सात रंग : बैंगनी, गाढ़ा नीला,  हरा, पीला, संतरी व लाल (स्पैक्ट्रम), 
संगीत के सात सुर सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी, 
सात दिन : रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, वीरवार, शुक्रवार व शनिवार और 
योग में सात चक्र : सहस्रधारा, अंजना, विशुद्धि, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान और 
मूला व शरीर में सात ग्रंथियां : पिनियल, पीट्टूरी, थायरायड, थाइमस, पैंक्रियास, एडरिनल और गोणडस होती हैं। इसी प्रकार से सात महत्वपूर्ण रत्न हैं- मणिक, मोती, मूंगा, पन्ना, पुखराज, हीरा व नीलम है।
ये सातों रत्न 12 राशियों के स्वामी ग्रहों के रत्न हैं। मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल रत्न मूंगा, वृष-तुला का स्वामी शुक्र, रत्न हीरा, मिथुन-कन्या का बुद्ध रत्न पन्ना, धनु-मीन का स्वामी बृहस्पति रत्न पुखराज, मकर-कुंभ का स्वामी शनि, रत्न नीलम, सिंह राशि का स्वामी सूर्य, रत्न मणिक व कर्क राशि का स्वामी चंद्र रत्न मोती है।
जिस प्रकार से व्यक्ति को खून चढ़ाते समय उसके ब्लड ग्रुप का मिलान कर लिया जाता है उसी प्रकार से रत्नों को राशि के अनुसार मेच करके ही पहनना चाहिए नहीं तो यह व्यक्ति को हानि पहुंचाते हैं लेकिन आज के दौर में जिस प्रकार से नकली खाद्य पदार्थ, दवाइयां, मिलावटी वस्तुओं का प्रचलन चल रहा है उसी प्रकार नकली रत्नों का भी प्रचलन चल रहा है जिनको राशि अनुसार पहनने पर भी लाभ नहीं होता इसलिए लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है।
एक ओर जहां वैज्ञानिक इन रत्नों से होने वाले लाभ व हानि को नहीं मानते वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे वैज्ञानिक भी हैं जिन्होंने इन रत्नों के पीछे छिपे रहस्य को साइंटिफिक तौर पर उजागर कर दिया है। रत्नों को धारण करने से पूर्व व्यक्ति को जन्म लग्न व जन्म राशि से संबंधित रत्नों की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।

नगों की भी एक्सपायरी डेट

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यह बात सुनने में अटपटी लग सकती है और जिन्होंने 10-20 साल से एक ही नग अंगूठी या पैंडेंट में पहना हुआ है, उन्हें यह पढ़ कर थोड़ा अचरज भी हो सकता है कि दवाइयों या खाद्य वस्तुओं की तो एक्सपायरी डेट हो सकती है परंतु किसी रत्न की कैसे? यह कोई खाने की चीज है? जैसे खाद्य वस्तुओं में डेट, वेट और रेट का महत्व है ठीक वैसे ही नगों के विषय में भी ये तीनों बातें जाननी आवश्यक हैं परंतु थोड़े अलग संदर्भ में।

चाहे आप कार रखें या टी.वी. या फ्रिज या ऐसी ही कोई आइटम जिसका उपयोग प्रतिदिन हो रहा हो वह घिसती अवश्य है और उसकी कार्यक्षमता भी दिन-प्रतिदिन कम होती जाती है और आप एक दिन उसे बदल कर नया ले आते हैं। एक प्रकार से उसका नवीनीकरण हो जाता है परंतु कार की जगह कार ही लेते हैं और फ्रिज के स्थान पर फ्रिज ।

इसी प्रकार जो भी रत्न हम धारण करते हैं, वह दिन-प्रतिदिन घिसता रहता है। वैज्ञानिक दृष्टि से हर नग अपने अंदर कुछ नकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहरी वातावरण से ग्रहण करता रहता है और अपने में संजोए रहता है। एक नग ग्रहों की विशेष रश्मियों एवं तरंगों को एकत्रित करके मनुष्य के शरीर में स्नायु तंत्र के माध्यम से प्रवेश करवा कर उसके शरीर को अनुकूल बनाता है।

आपने देखा होगा या कभी अनुभव भी किया होगा कि कई बार नग स्वयं टूट जाते हैं या उनमें पहने-पहने दरारेें आ जाती हैं। ऐसा कहीं टकराने से भी हो सकता है और कभी-कभी अच्छे नग आपकी मुसीबत अपने ऊपर लेकर तिड़क भी जाते हैं या कई बार रत्न का रंग फीका पड़ जाता है। ये रक्षा क्वच की तरह भी काम करते हैं यह दो कारणों से हो सकता है। पहला तो यह कि आपका नग असली नहीं अपितु हीट ट्रीटमैंट से रंगा हुआ है। दूसरा यह कि अशुभ ग्रह का प्रभाव नग ने अपने अंदर ले लिया है । पत्थर ही सही परंतु कुछ दिनों बाद ये अपने आकर्षण के साथ-साथ अपनी उपयोगिता भी खो देते हैं। इनकी अपनी शक्ति का ह्रास होता जाता है।

यदि आपने पांच वर्ष पूर्व कोई मोती पहना हो तो उसे गौर से देखें तो पता चलेगा कि वह कई जगह से घिस चुका है और उसी अंगूठी में गोल-गोल घूम रहा होगा। कारण यह है कि मोती पहनने की आयु सीमा सबसे कम (अढ़ाई साल) निर्धारित की गई है। इसलिए यह सबसे अधिक जल्दी घिस जाता है। यदि आपको मोती सारी उम्र पहनने के लिए कहा गया है तो इसे अढ़ाई-तीन साल में बदलवा लिया करें अन्यथा यह काम कुछ नहीं करेगा बस उंगली में सजावटी आइटम बनकर ही रह जाएगा।

इसी प्रकार रत्न शास्त्र के अनुसार माणिक्य- 4 वर्ष, मूंगा -3, पन्ना -4, पुखराज-4, हीरा -7, नीलम-5, गोमेद और लहसुनिया 3-3 साल के बाद बदल देने चाहिएं।

परिवार में किसी भी रत्न की आपस में एक-दूसरे से अदला-बदली नहीं करनी चाहिए भले ही वे भाई-बहन, मां-बेटे , पति-पत्नी या निकट संबंधी ही क्यों न हों। अपना उतारा हुआ नग किसी और को नहीं पहनाना चाहिए। आपकी शुभता अथवा अशुभता लिए यह रत्न किसी को नुक्सान पहुंचा सकता है । इसे जल प्रवाह कर देना चाहिए।  अच्छे ज्यूलर्स कभी एक बार पहना हुआ नग वापस नहीं लेते। बार-बार इसे उतारना भी नहीं चाहिए। यदि किसी एलर्जी के कारण उतारना पड़ जाए या अंगूठी की एडजस्टमैंट के लिए किसी कारीगर को देनी ही पड़ जाए तो पुन: प्राण प्रतिष्ठा करवा कर ही धारण करना चाहिए। खंडित नग कभी नहीं पहनना चाहिए। सदा अच्छे ज्योतिषी से परामर्श करना चाहिए जिसे रत्न विज्ञान के अतिरिक्त जन्म पत्रिका विश्लेषण का भी अच्छा ज्ञान तथा अनुभव हो।