Thursday, 17 May 2018
महाकाली दर्शन साधना,( Mahakali Darahan)
जब सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था और भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या बिछाकर योगनिद्रा का आश्रय ले सो रहे थे, उस समय उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गये। भगवान विष्णु के नाभिकमल में विराजमान प्रजापति ब्रह्माजी ने जब उन दोनों भयानक असुरों को अपने पास आया और भगवान को सोया हुआ देखा, तब एकाग्रचित्त होकर उन्होंने भगवान विष्णु को जगाने के लिये उनके नेत्रों में निवास करनेवाली योगनिद्रा का स्तवन आरम्भ किया। जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत् को धारण करनेवाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति हैं, उन्हीं भगवती निद्रादेवी की भगवान ब्रह्मा स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी ने कहा- देवि! तुम्हीं इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली हो। तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो। देवि! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो। तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत् की सृष्टि होती है। तुम्हीं से इसका पालन होता है और सदा तुम्हीं कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। जगन्मयी देवि! इस जगत् की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालन-काल में स्थितिरूपा हो तथा कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करनेवाली हो। तुम्हीं महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो। तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करनेवाली सबकी प्रकृति हो। भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शङ्ख और धनुष धारण करनेवाली हो। बाण, भुशुण्डी और परिघ- ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं। तुम सौम्य और सौम्यतर हो-इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दरी हो। पर और अपर-सबके परे रहनेवाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। सर्वस्वरूपे देवि! कहीं भी सत्-असत्रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उन सबकी जो शक्ति है, वह तुम्हीं हो। ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? जो इस जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता है? मुझको, भगवान शङ्कर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है; अत: तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है? देवि! ये जो दोनों दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। इस प्रकार स्तुति करने पर तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा भगवान के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्ष:स्थल से निकलकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हो गयीं। योगनिद्रा से मुक्त होने पर भगवान जनार्दन उस एकार्णव के जल में शेषनाग की शय्या से जाग उठे। उन्होंने दोनों पराक्रमी असुरों को देखा जो लाल आँखें किये ब्रह्माजी को खा जाने का उद्योग कर रहे थे। तब भगवान श्रीहरि ने दोनों के साथ पाँच हजार वर्षो तक केवल बाहुयुद्ध किया। इसके बाद महामाया ने जब दोनों असुरों को मोह में डाल दिया तो वे बलोन्मत्त होकर भगवान से ही वर माँगने को कहा। भगवान ने कहा कि यदि मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे हाथों मारे जाओ। असुरों ने कहा जहाँ पृथ्वी जल में डूबी न हो, वहीं हमारा वध करो। तब भगवान ने तथास्तु कहकर दोनों के मस्तकों को अपनी जाँघ पर रख लिया तथा चक्र से काट डाला। इस प्रकार देवी महामाया (महाकाली) ब्रह्माजी की स्तुति करने पर प्रकट हुई। कमलजन्मा ब्रह्माजी द्वारा स्तवित महाकाली अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शङ्ख धारण करती हैं। त्रिनेत्रा भगवती के समस्त अङ्ग दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं।
महाकाली को शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी देवी माना जाता है। महाकाली की पूजा करने वाले को अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि-भय कभी नहीं सताता इनकी कृपा से भक्त हमेशा-हमेशा के लिए भय-मुक्त हो जाता है।
महाकाली का रूप चाहे बहुत डरावना है मगर भक्तों के लिए बहुत शुभ है तभी तो मां को शुभंकरी नाम से भी जाना जाता है। इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
मां को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग के आसन पर महाकाली का स्वरूप, चित्रपट अथवा यन्त्र स्थापित करें। लाल रंग का चन्दन, गुलाब के फूल और धूप दीप से पूजन करने के बाद मन्त्र का रोज 11 माला जाप काली हकिक माल
Ruchi Sehgal
हस्तरेखा देखकर करे मंत्र जाप
हस्तरेखा देखकर करे मंत्र जाप.
हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण रेखाएं बताई गई हैं, इन्हीं रेखाओं की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के जीवन की भविष्यवाणी की जा सकती है। ये रेखाएं इस प्रकार हैं-
जीवन रेखा: जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र (अंगूठे के नीचे वाला भाग) को घेरे रहती है। यह रेखा तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) और अंगूठे के मध्य से शुरू होती है और मणिबंध तक जाती है। इस रेखा के आधार पर व्यक्ति की आयु एवं दुर्घटना आदि बातों पर विचार किया जाता है।
मस्तिष्क रेखा: यह रेखा हथेली के मध्य भाग में आड़ी स्थिति में रहती है। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान के पास से ही शुरू होती है। यहां प्रारंभ होकर मस्तिष्क रेखा हथेली के दूसरी ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर विचार किया जाता है।
हृदय रेखा: यह रेखा मस्तिष्क रेखा के समानांतर चलती है। हृदय रेखा की शुरूआत हथेली पर बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाला भाग) के नीचे से आरंभ होकर गुरु क्षेत्र (इंडेक्स फिंगर के नीचे वाले भाग को गुरु पर्वत कहते हैं।) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, आचार-विचार आदि बातों पर विचार किया जाता है।
सूर्य रेखा: यह रेखा सामान्यत: हथेली के मध्यभाग में रहती हैं। सूर्य रेखा मणिबंध (हथेली के अंतिम छोर के नीचे आड़ी रेखाओं को मणिबंध कहते हैं।) से ऊपर रिंग फिंगर के नीचे वाले सूर्य पर्वत की ओर जाती है। वैसे यह रेखा सभी लोगों के हाथों में नहीं होती है। इस रेखा से यह मालूम होता है कि व्यक्ति को मान-सम्मान और पैसों की कितनी प्राप्ति होगी।
भाग्य रेखा: यह हथेली के मध्यभाग में रहती है तथा मणिबंध अथवा उसी के आसपास से आरंभ होकर शनि क्षेत्र (मिडिल फिंगल यानी मध्यमा अंगुली के नीचे वाले भाग को शनि क्षेत्र कहते हैं।) को जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की किस्मत पर विचार किया जाता है।
स्वास्थ्य रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहते हैं।) से आरंभ होकर शुक्र पर्वत (अंगूठे के नीचे वाले भाग को शुक्र पर्वत कहते हैं) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी बातों पर विचार किया जाता है।
विवाह रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर आड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से व्यक्ति के विवाह और वैवाहिक जीवन पर विचार किया जाता है।
संतान रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर खड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से मालूम होता है कि व्यक्ति की कितनी संतान होंगी। संतान रेखा से यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति को संतान के रूप में कितनी लड़कियां और कितने लड़के प्राप्त होगें।
हम सभी इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि कौनसा मंत्र हमारे सभी संकटों को दूर कर देगा और किस देवता की आराधना करने से हमारा दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य की प्राप्ति होगी। परन्तु यदि आप अपने हाथ की रेखाओं पर थोड़ा सा ध्यान दें तो आप स्वतः ही जान जाएंगे कि आपको अपना सोया भाग्य जगाने के लिए किस देवता की आराधना करनी चाहिए और किस मंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
* यदि हृदय रेखा पर त्रिशूल का निशान बन रहा है, अंगुलियां टेढ़ी-मेढ़ी हों तो ऐसे लोगों को केवल भगवान शिव की ही आराधना करनी चाहिए तथा उन्हें ही अपना आराध्य मानना चाहिए। इससे जीवन में आने वाले सभी संकटों और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्त होता है। उन्हें भगवान शिव के महामंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना भी अत्यन्त लाभ देता है।
* यदि हृदयरेखा के अंत से एक शाखा गुरु पर्वत (तर्जनी अंगुली के नीचे वाले हिस्से) पर जाती हो तो इन्हें रामभक्त हनुमानजी को आराध्य मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए ताकि उनके जीवन में आने वाली सभी विपदाएं तुरंत दूर हो। इन्हें प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करने से भी सभी संकटों में शांति मिलती है। हनुमान जी के मंत्र "ॐ हूं हनुमंते नमः" का जाप करना भी तुरंत लाभ देता है।
* यदि भाग्य रेखा खंडित व दोषयुक्त हो तो केवल मां महालक्ष्मी ही सहायता कर सकती है। इन्हें नीचे लिखे लक्ष्मी मंत्र का जाप करना भी लाभ देता है। इससे आर्थिक कमियों का निदान होता है और घर में सुख, धन संपत्ति आती है।मां लक्ष्मी का मंत्र है "ॐश्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ सिद्ध लक्ष्म्यै नमः"।
* यदि हाथ में सूर्य ग्रह दबा हुआ या दोषयुक्त हो तथा व्यक्ति को शिक्षा में पूर्ण सफलता नहीं मिल पा रही है, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी खराब हो, तो इन्हें भगवान सूर्य तथा माता सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। इन्हें प्रतिदिन सु
Ruchi Sehgal
मौत के बाद क्या होता है?
‘न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा।’-ऐसा भगवान कृष्ण ने भागवत गीता में कहा है
जब शरीर छूटता है तो व्यक्ति के साथ क्या होता है यह सवाल सदियों पुराना है। इस संबंध में जनमानस के चित्त पर रहस्य का पर्दा आज भी कायम है जबकि इसका हल खोज लिया गया है। फिर भी यह बात विज्ञान सम्मत नहीं मानी जाती, क्योंकि यह धर्म का विषय है।
मुख्यत: तीन तरह के शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। व्यक्ति जब मरता है तो जीवनी शक्ति स्थूल शरीर छोड़कर पूर्णत: सूक्ष्म में ही विराजमान हो जाती है। सूक्ष्म शरीर के विसरित होने के बाद व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है, लेकिन कारण शरीर बीज रूप है जो अनंत जन्मों तक हमारे साथ रहता है।
आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।
तीन स्तरों का अनुभव प्रत्येक मनुष्य को होता ही है, व्यक्ति जाग्रत, स्वप्न और फिर सुषुप्ति अवस्था में जीता है लेकिन चौथे स्तर में वही जीता है जो आत्मवान हो गया है या जिसने मोक्ष पा लिया है। वह शुद्ध तुरीय अवस्था में होती है जहां न तो जाग्रति है, न स्वप्न, न सुषुप्ति है ऐसे मनुष्य सिर्फ दृष्टा होते हैं- जिसे पूर्ण-जागरण की अवस्था भी कहा जाता है।
प्रथम तीनों अवस्थाओं के कई स्तर है। कोई जाग्रत रहकर भी स्वप्न जैसा जीवन जिता है, जैसे खयाली राम या कल्पना में ही जीने वाला। कोई चलते-फिरते भी नींद में रहता है, जैसे कोई नशे में धुत्त, चिंताओं से घिरा या फिर जिसे कहते हैं तामसिक।
हमारे आसपास जो पशु-पक्षी हैं वे भी जाग्रत हैं, लेकिन हम उनसे कुछ ज्यादा होश में हैं तभी तो हम मानव हैं। जब होश का स्तर गिरता है तब हम पशुवत हो जाते हैं। कहते भी हैं कि व्यक्ति नशे में व्यक्ति जानवर बन जाता है। पेड़-पौधे और भी गहरी बेहोशी में हैं।
मरने के बाद व्यक्ति का जागरण, स्मृति कोष और भाव तय करता है कि इसे किस योनी में जन्म लेना चाहिए इसीलिए वेद कहते हैं कि जागने का सतत अभ्यास करो। जागरण ही तुम्हें प्रकृति से मुक्त करा सकता है।
क्या होता है मरने के बाद : सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने गहरा अंधेरा छा जाता है, जहां उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। कुछ समय तक कुछ आवाजें सुनाई देती है कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसा कि स्वप्न में होता है और फिर धीरे-धीरे वह गहरी सुषुप्ति में खो जाता है, जैसे कोई कोमा में चला जाता है।
गहरी सुषुप्ति में कुछ लोग अनंतकाल के लिए खो जाते हैं, तो कुछ इस अवस्था में ही किसी दूसरे गर्भ में जन्म ले लेते हैं। प्रकृति उन्हें उनके भाव, विचार और जागरण की अवस्था अनुसार गर्भ उपलब्ध करा देती है। जिसकी जैसी योग्यता वैसा गर्भ या जिसकी जैसी गति वैसी सुगति या दुर्गति। गति का संबंध मति से होता है। सुमति हो तो सुगति। दुरमति हो तो दुर्गति होती है ।
लेकिन यदि व्यक्ति स्मृतिवान (चाहे अच्छा हो या बुरा) है तो सुषुप्ति में जागकर चीजों को समझने का प्रयास करता है। फिर भी वह जाग्रत और स्वप्न अवस्था में भेद नहीं कर पाता है। वह कुछ-कुछ जागा हुआ और कुछ-कुछ सोया हुआ सा रहता है, लेकिन उसे उसके मरने की खबर रहती है। ऐसा व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक की उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश नहीं हो जाता। कुछ अपवाद स्वरूप जन्म ले लेते हैं जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है।
लेकिन जो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा स्मृतिवान, जाग्रत या ध्यानी है उसके लिए दूसरा जन्म लेने में कठिनाइयां खड़ी हो जाती है, क्योंकि प्राकृतिक नियमों के अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृतिहीन रहना जरूरी है। इनमें से कुछ लोग जो सिर्फ स्मृतिवान हैं वे भूत, प्रेत या पितर योनी में रहते हैं और जो जाग्रत हैं वे कुछ काल तक अच्छे गर्भ की तलाश का इंतजार करते हैं। लेकिन जो सिर्फ ध्यानी है या जिन्होंने गहरा ध्यान किया है वे अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी और कभी भी जन्म लेने के लिए स्वतंत्र हैं। यह प्राथमिक तौर पर किए गए तीन तरह के विभाजन है। विभाजन और भी होते हैं जिनका वेदों में उल्लेख मिलता है।
जब हम गति की बात करते हैं तो तीन तरह की गति होती है। सामान्य गति, सद्गगति और दुर्गति। सद्गगति वाला ईश्वरीय ऊर्जा के निकट स्वतंत्र होता है, सामान्य गति वाला कामनाओं के प्रभाव में शीघ्र जन्म लेता है, तामसिक प्रवृत्ति व कर्म से दुर्गति ही प्राप्त होती है, अर्थात इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि व्यक्ति कब, कहां और कैसी योनी में जन्म ले। यह चेतना में डिमोशन जै
Ruchi Sehgal