Thursday, 17 May 2018
वशिकरण तंत्र,
वशीकरण दो शब्द वशी और करण से बना एक संस्कृत वाक्यांश है | वशीकरण शब्द का अर्थ है-
1. दूसरों को अपने वश में करने,रखने अथवा लाने की क्रिया या भाव।
2. तंत्र में एक प्रकार का प्रयोग जिसमें मंत्र बल से किसी को अपने वश में किया या लगाया जाता है।
3. ऐसा साधन जिससे किसी को वशीभूत किया जा सके या किया जाता हो।
वशीकरण के प्रयोग और लाभ-
1. दूसरों के साथ व्यवसायी और व्यक्तिगत संबंधों में सुधार करने के लिए।
2. दूसरों से एहसान जीतने के लिए उन पर दबाव और नियंत्रण लागू करने के लिए।
3. दूसरों पर एक अच्छा प्रभाव बनाने के लिए, और उनके दिल और दिमाग में प्यार और स्नेह का सृजन करने के लिए।
4. किसी के व्यक्तित्व और आकर्षण में सुधार करने के लिए, ध्यान आकर्षित करना और लोगों को आकर्षित करते है।
आज के युग में, जूनियर और प्रतिद्वंद्वियों को नियंत्रित सहयोगियों और ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए एक बैठक, सम्मेलन या साक्षात्कार के दौरान लोगों के एक समूह को प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह बहुत फायदेमंद हो सकता है। प्रेमी / पत्नियों, या भटके प्रेमियों / पत्नियों को नियंत्रित करने के लिए आपसी प्यार और समझ बढ़ाने के उद्देश्य के लिए, एक-दूसरे के लिए जुनून और आकर्षण को बढ़ाने के लिए यह भी बहुत कारगर हो सकता है।
यदि आपका इरादा उचित है और आपका प्यार सच्चा है तो वशीकरण सुनिश्चित करें,इसमे कोइ बुराइ नही है।
अधिकांश लोगों को लगता है कि वशीकरण काला जादू है, लेकिन यह सच नहीं है। वशीकरण जीवन में कई समस्याओं को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे-
1. खोया प्यार वापस पाने के लिए।
2. संबंध मजबूत बनाने के लिए।
3. शादी के लिए माता-पिता को मनाने के लिए।
4. दोस्ती के लिए किसी को प्रभावित और आकर्षित करने के लिए।
5. प्रेम विवाह से बाधाओं को दूर करने के लिए।
6. पति-पत्नी की समस्याओं को सुलझाने।
वशीकरण भी विपरीत या एक ही विशेष को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
यंत्र, तंत्र और मंत्र के क्षेत्र में ही वशीकरण के कई अचूक और १०० प्रतिशत प्रमाणिक साधना या उपाय उपलब्ध हैं। किन्तु हर प्रयोग में किसी न किसी विशेष विधि एवं नियम-कायदों का पालन करना पड़ता ही है। इसीलिये, आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान ऐसे तरीके या उपाय चाहता है जो कम से कम समय में सम्पन्न हो सकें। आजकल हर इंसान शार्टकट के जुगाड़ में लगा रहता है।
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने का सरल अनुभवी एवं अचूक प्रयोग दिया जा रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर प्रयोग इस प्रकार है।
जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना चाहते हैं, उसका एक चित्र जो कि लगभग 4×5 ईंच के आकार का तथा स्पष्ट छवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठे, तो उस चित्र की छवि आपकी आंखों के सामने ही रहे। ५ मिनिट तक सर्वप्रथम ध्यान करने के पश्चात उस चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह प्रयोग सूर्योदय से पूर्व या रात्रि मे जब शांति हो तब करना होता है।
इतना विधी तो बहोत लोग जानते होगे परंतु इसके साथ वशिकरण माला से जो "शाबर कामदेव-जागरण" मंत्र से सिद्ध हो,इसका इस्तेमाल करके चित्र को देखते हुये जाप करे तो आसानी से सफलता मिलता है।
जाप के समय "ॐ क्लीम् अमुकम मे वश्यमाणय फट्" मंत्र का जाप करे,जो आपको ध्यानस्थ होकर करना जरुरि है।
यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग के स्पष्ट प्रभाव दिखने लगते है।
नोट:अगर आप किसिसे विशेष वशिकरण माला खरीद रहे हो तो,जिससे आप ले रहे हो उसको एक बार माला सिद्धि के बारे मे प्रश्न अवश्य पुछीये ताकि आपके साथ धोका ना हो।
आदेश.
Ruchi Sehgal
महाकाली दर्शन साधना,( Mahakali Darahan)
जब सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था और भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या बिछाकर योगनिद्रा का आश्रय ले सो रहे थे, उस समय उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गये। भगवान विष्णु के नाभिकमल में विराजमान प्रजापति ब्रह्माजी ने जब उन दोनों भयानक असुरों को अपने पास आया और भगवान को सोया हुआ देखा, तब एकाग्रचित्त होकर उन्होंने भगवान विष्णु को जगाने के लिये उनके नेत्रों में निवास करनेवाली योगनिद्रा का स्तवन आरम्भ किया। जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत् को धारण करनेवाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति हैं, उन्हीं भगवती निद्रादेवी की भगवान ब्रह्मा स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी ने कहा- देवि! तुम्हीं इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली हो। तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो। देवि! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो। तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत् की सृष्टि होती है। तुम्हीं से इसका पालन होता है और सदा तुम्हीं कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। जगन्मयी देवि! इस जगत् की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालन-काल में स्थितिरूपा हो तथा कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करनेवाली हो। तुम्हीं महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो। तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करनेवाली सबकी प्रकृति हो। भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शङ्ख और धनुष धारण करनेवाली हो। बाण, भुशुण्डी और परिघ- ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं। तुम सौम्य और सौम्यतर हो-इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दरी हो। पर और अपर-सबके परे रहनेवाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। सर्वस्वरूपे देवि! कहीं भी सत्-असत्रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उन सबकी जो शक्ति है, वह तुम्हीं हो। ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? जो इस जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता है? मुझको, भगवान शङ्कर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है; अत: तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है? देवि! ये जो दोनों दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। इस प्रकार स्तुति करने पर तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा भगवान के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्ष:स्थल से निकलकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हो गयीं। योगनिद्रा से मुक्त होने पर भगवान जनार्दन उस एकार्णव के जल में शेषनाग की शय्या से जाग उठे। उन्होंने दोनों पराक्रमी असुरों को देखा जो लाल आँखें किये ब्रह्माजी को खा जाने का उद्योग कर रहे थे। तब भगवान श्रीहरि ने दोनों के साथ पाँच हजार वर्षो तक केवल बाहुयुद्ध किया। इसके बाद महामाया ने जब दोनों असुरों को मोह में डाल दिया तो वे बलोन्मत्त होकर भगवान से ही वर माँगने को कहा। भगवान ने कहा कि यदि मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे हाथों मारे जाओ। असुरों ने कहा जहाँ पृथ्वी जल में डूबी न हो, वहीं हमारा वध करो। तब भगवान ने तथास्तु कहकर दोनों के मस्तकों को अपनी जाँघ पर रख लिया तथा चक्र से काट डाला। इस प्रकार देवी महामाया (महाकाली) ब्रह्माजी की स्तुति करने पर प्रकट हुई। कमलजन्मा ब्रह्माजी द्वारा स्तवित महाकाली अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शङ्ख धारण करती हैं। त्रिनेत्रा भगवती के समस्त अङ्ग दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं।
महाकाली को शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी देवी माना जाता है। महाकाली की पूजा करने वाले को अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि-भय कभी नहीं सताता इनकी कृपा से भक्त हमेशा-हमेशा के लिए भय-मुक्त हो जाता है।
महाकाली का रूप चाहे बहुत डरावना है मगर भक्तों के लिए बहुत शुभ है तभी तो मां को शुभंकरी नाम से भी जाना जाता है। इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
मां को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग के आसन पर महाकाली का स्वरूप, चित्रपट अथवा यन्त्र स्थापित करें। लाल रंग का चन्दन, गुलाब के फूल और धूप दीप से पूजन करने के बाद मन्त्र का रोज 11 माला जाप काली हकिक माल
Ruchi Sehgal
हस्तरेखा देखकर करे मंत्र जाप
हस्तरेखा देखकर करे मंत्र जाप.
हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण रेखाएं बताई गई हैं, इन्हीं रेखाओं की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के जीवन की भविष्यवाणी की जा सकती है। ये रेखाएं इस प्रकार हैं-
जीवन रेखा: जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र (अंगूठे के नीचे वाला भाग) को घेरे रहती है। यह रेखा तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) और अंगूठे के मध्य से शुरू होती है और मणिबंध तक जाती है। इस रेखा के आधार पर व्यक्ति की आयु एवं दुर्घटना आदि बातों पर विचार किया जाता है।
मस्तिष्क रेखा: यह रेखा हथेली के मध्य भाग में आड़ी स्थिति में रहती है। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान के पास से ही शुरू होती है। यहां प्रारंभ होकर मस्तिष्क रेखा हथेली के दूसरी ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर विचार किया जाता है।
हृदय रेखा: यह रेखा मस्तिष्क रेखा के समानांतर चलती है। हृदय रेखा की शुरूआत हथेली पर बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाला भाग) के नीचे से आरंभ होकर गुरु क्षेत्र (इंडेक्स फिंगर के नीचे वाले भाग को गुरु पर्वत कहते हैं।) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, आचार-विचार आदि बातों पर विचार किया जाता है।
सूर्य रेखा: यह रेखा सामान्यत: हथेली के मध्यभाग में रहती हैं। सूर्य रेखा मणिबंध (हथेली के अंतिम छोर के नीचे आड़ी रेखाओं को मणिबंध कहते हैं।) से ऊपर रिंग फिंगर के नीचे वाले सूर्य पर्वत की ओर जाती है। वैसे यह रेखा सभी लोगों के हाथों में नहीं होती है। इस रेखा से यह मालूम होता है कि व्यक्ति को मान-सम्मान और पैसों की कितनी प्राप्ति होगी।
भाग्य रेखा: यह हथेली के मध्यभाग में रहती है तथा मणिबंध अथवा उसी के आसपास से आरंभ होकर शनि क्षेत्र (मिडिल फिंगल यानी मध्यमा अंगुली के नीचे वाले भाग को शनि क्षेत्र कहते हैं।) को जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की किस्मत पर विचार किया जाता है।
स्वास्थ्य रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहते हैं।) से आरंभ होकर शुक्र पर्वत (अंगूठे के नीचे वाले भाग को शुक्र पर्वत कहते हैं) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी बातों पर विचार किया जाता है।
विवाह रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर आड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से व्यक्ति के विवाह और वैवाहिक जीवन पर विचार किया जाता है।
संतान रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर खड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से मालूम होता है कि व्यक्ति की कितनी संतान होंगी। संतान रेखा से यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति को संतान के रूप में कितनी लड़कियां और कितने लड़के प्राप्त होगें।
हम सभी इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि कौनसा मंत्र हमारे सभी संकटों को दूर कर देगा और किस देवता की आराधना करने से हमारा दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य की प्राप्ति होगी। परन्तु यदि आप अपने हाथ की रेखाओं पर थोड़ा सा ध्यान दें तो आप स्वतः ही जान जाएंगे कि आपको अपना सोया भाग्य जगाने के लिए किस देवता की आराधना करनी चाहिए और किस मंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
* यदि हृदय रेखा पर त्रिशूल का निशान बन रहा है, अंगुलियां टेढ़ी-मेढ़ी हों तो ऐसे लोगों को केवल भगवान शिव की ही आराधना करनी चाहिए तथा उन्हें ही अपना आराध्य मानना चाहिए। इससे जीवन में आने वाले सभी संकटों और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्त होता है। उन्हें भगवान शिव के महामंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना भी अत्यन्त लाभ देता है।
* यदि हृदयरेखा के अंत से एक शाखा गुरु पर्वत (तर्जनी अंगुली के नीचे वाले हिस्से) पर जाती हो तो इन्हें रामभक्त हनुमानजी को आराध्य मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए ताकि उनके जीवन में आने वाली सभी विपदाएं तुरंत दूर हो। इन्हें प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करने से भी सभी संकटों में शांति मिलती है। हनुमान जी के मंत्र "ॐ हूं हनुमंते नमः" का जाप करना भी तुरंत लाभ देता है।
* यदि भाग्य रेखा खंडित व दोषयुक्त हो तो केवल मां महालक्ष्मी ही सहायता कर सकती है। इन्हें नीचे लिखे लक्ष्मी मंत्र का जाप करना भी लाभ देता है। इससे आर्थिक कमियों का निदान होता है और घर में सुख, धन संपत्ति आती है।मां लक्ष्मी का मंत्र है "ॐश्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ सिद्ध लक्ष्म्यै नमः"।
* यदि हाथ में सूर्य ग्रह दबा हुआ या दोषयुक्त हो तथा व्यक्ति को शिक्षा में पूर्ण सफलता नहीं मिल पा रही है, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी खराब हो, तो इन्हें भगवान सूर्य तथा माता सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। इन्हें प्रतिदिन सु
Ruchi Sehgal