Tuesday, 22 May 2018
सन्तान प्राप्ति सम्बन्धी समस्या के उपाय
दिव्य तांत्रिक चिकित्सा
सन्तान प्राप्ति से सम्बन्धित समस्या के कारण निम्नलिखित हैं:
पुरुष से सम्बन्धित
सेक्स में असमर्थता
शुक्राणु की कमी या दुर्बलता
वीर्य में अत्यधिक गर्मी या शीलता
वीर्य का ब्रह्मचर्य आदि व्रतों के कारण अत्यधिक गाढ़ा हो जाना। यह सर्दी से भी होता है।
स्त्री/पुरुष की प्राकृतिक नस्ल में विषमता और उचित कामासन से अनभिज्ञता
स्त्री से सम्बन्धित
लिकोरिया आदि योनि रोग और योनि स्त्राव का अम्लीय एसिडिक होना
रक्त की कमी या अधिकता
गर्भाशय विकार – यह कई प्रकार का होता है।
कारण
आज का लाइफस्टाइल इसका कारण है। आज सेक्स सम्बन्धी रोग से 90% स्त्री/पुरुष पीड़ित है और इसका कोई निदान उनकी समझ में नहीं आता , प्रचलित चिकित्सा पद्धति में है भी नहीं। उस पर शर्म और सामाजिक मान-मर्यादा का डर भी उन्हें इन रोगों को पाले र्ह्नसे पर विवश करता है।
इन रोगों से मुक्ति पानी है तो थोडा परिवर्तन करना होगा। जिमखाना, प्राणायाम, योग या जोगा कोई भी इसका निदान नहीं कर सकता। शारीरिक स्वास्थ्य ऊपरी तौर पर बन जाए आप ताकतवर बन जाए, पर धातुगत दुर्बलता को दूर करके के लिए आपको बाजार का आहार, कोल्डड्रिंक आदि तली भुनी बासी चीजें , विरुद्ध आहार जैसे – दूध ,-मछली, दूध-प्याज, दही-कटहल की सब्जी, दही-करेला आदि से बचना होगा। खट्टे अचार-सिरके , तेज मसाले भी धातु को बनने से रोकते हैं।
पुरूषों की सेक्स संबंधी समस्याएं और उनका उपचार
उपाय
संतान प्राप्ति के अचूक उपाय
स्त्री-पुरुष गर्मी –सर्दी की पहचान सबसे पहले करें। गर्मी हो , तो कबाबचीनी 1 ग्राम + मिश्री 5 ग्राम (चूर्ण) ठंडा पानी एक ग्लास दिन में चार-पांच बार। साथ में प्रतिदिन थोडा घी खाए।यह खुश्की करता है।
21 दिन प्रातःकाल बेल के पत्ते का शर्बत पीये। १० ग्राम।
घृत कुमार (ऐलोबिरा) का गूदा 50 ग्राम + मिश्री 50 ग्राम और गिलोय का काढ़ा या शीत निर्यास एक ग्लास । शीत निर्यास यानी पीसकर रात में ठंडे पानी में रखें। सबेरे मसल छानकर पी जाएं। 25 ग्राम पिसा।
गुड़हल के ५० ग्राम ताजा फूलों को पीसकर मिश्री के साथ शर्बत बनाकर प्रातःकाल पीयें।
विशेष – बेलपत्र की मात्रा १० ग्राम । 21 दिन से अधिक नहीं। अधिक से कामशक्ति में भी ठंडापन आता है।
प्याज, लहसुन , तिल , जिमीकंद , भुने चने , अंकुरित चने – मूंग – उड़द – गेंहू , तिल , गुड, शहद, बादाम, पिस्ता , बरगद के कच्चे फल या अंकुर , पाकड़ के कच्चे फल , गूलर के कच्चे फल, (सोंठ, पीपर , अकरकरा , भांग) – ये सभी लाभप्रद होते हैं।
कोष्ठ के सोंठ आदि की मात्रा ½ ग्राम काली मिर्च के साथ गर्म दूध के साथ अन्य 6 ग्राम प्रातः-सायं है। गुड शहद – मिश्री आदि समयोग है। यानी मिलाये जाते हैं। इन्हें भी 6 ग्राम लेना चाहिए।
इनके अतिरिक्त शतावरी , मुलेठी, विधारा, नागौरी, असगंध – प्राकृतिक टॉनिक है। मात्रा 5 ग्राम + 5 ग्राम चीनी हैं। इनमें घी, शहद, दूध आदि मिलाये जाते है। इन चारों के चूर्ण में गर्मी सर्दी के अनुरूप दवाए मिलाई जाती है।( घी शहद बराबर न मिलाये )
ये स्त्री-पुरुष दोनों को साल में चार महीने जाड़े के समय प्रयोग करना चाहिए।
विशेष – हमारे यहाँ से किसी भी सेक्स समस्या के लिए निःशुल्क सलाह ले सकते है । अपनी प्राइवेसी के लिए निश्चिंत रहे। आप अपना निदान हमारी वेबसाइट पर भी ढूंढ सकते हैं और हमसे अर्क मंगवा कर भी पर्योग कर सकते हैं। हमारा अर्क सामान्य धातु वर्द्धक टॉनिक के रूप मेंम भी प्रयोग कर सकते हैं। छोटी चम्मच से एक चम्मच तीन बार। दवा दो होती है ( हर समस्या में अलग-अलग। एक समस्या दूर करती है, दूसरी कमी पूरी करती है) यानी 3-3 चम्मच दवा गर्म या ठण्ड पानी के साथ प्रयोग करनी होती है। लिंगादी के नसविकार होने पर लिंग वर्द्धक तेल प्रयोग किया जाता है। परन्तु यह दवा का कारोबार नहीं है। वेबसाइट पर सब तरह की जड़ी-बूटी विधि है। आप स्वयं भी अपना निदान कर सकते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए यह करें
स्त्रियों के सेक्स रोगों का निदान
प्रदर रोग (लिकोरिया) – कैथ के पत्ते+ बांस के पत्ते पीसकर कपड़े में छान लें। यह लुगदी 20 ग्राम – शहद १० ग्राम प्रातःकाल प्रयोग करें। – रक्त प्रदर में अशोक की छाल का गाय के दूध में पकाकर मिश्री के साथ (25 ग्राम + 250 ग्राम + 250 ग्राम) प्रातः सायं पीये। पके गूलर के फलो का चूर्ण भी दस ग्राम प्रातः सायं – 10 ग्राम मिश्री के साथ प्रातः सायं लेने से रक्त प्रदर समाप्त हो जाता है। और भी अनेक वनस्पतियाँ है; पर वे प्राप्त होने में दुर्लभ है। आवलें की गुठली का चूर्ण भी इसकी दवा है। मात्रा – 5 ग्राम + 10 ग्राम शहद है।
योनि रोग – सफेद जीरा, काल जीरा, छोटी पीपर, कलौंजी , सुगन्धित बच, अडूसा , सें
Ruchi Sehgal
तंत्र विद्या कोई जादू टोना नहीं है।
तंत्र मन्त्र सिद्धि साधना
गलत सुना है। ऐसी कोई भी साधना नहीं होती जो आपको कहीं से पैसे उठा के दे दे । किसी शक्ति साधना करने परिस्थितीयाँ बदलती है और धन प्राप्त होता है। हड्डी घुमाया और थाली में नोट प्रकट हो गया है , यह सब सिनेमा और सीरियल में होता है और कुछ लोग कुछ साधनाओं में भी इस प्रकार की बकवास किया करते है।
तन्त्र विद्या कोई जादू टोना नहीं है। यह प्रकृति की ऊर्जा तंरगों को नियंत्रित करके असाध्य को साध्य करने की विद्या है। और प्रकृति के पास इंडियन करेंसी या अमेरिकन डॉलर छापने की कोई मशीन नहीं है।
Ruchi Sehgal
स्तम्भन क्रिया की सिद्धियाँ और क्रियाएं
स्तम्भन क्रिया की सिद्धियाँ और क्रियाएं (बगलामुखी सिद्धि)
तंत्र मन्त्र सिद्धि साधना
स्तम्भन को माया स्तम्भन भी कहते है। माया शरीर के सम्पूर्ण चक्र को कहा जाता है। स्तम्भन यानी जड़ता और इसमें माया अर्थात सम्पूर्ण अस्तित्त्व की क्रियाओं का स्तम्भन होता है। इसकी आवश्यकता तन्त्र साधना में दुष्ट गतिविधियों के स्तम्भन हेतु की जाती है; ताकि साधना कार्य में वे विघ्न न डालें।
स्तम्भन की क्रिया के लिए भी किसी देवी-देवता की एक सिद्धि होनी आवश्यक है। यहाँ हम बगलामुखी की सिद्धि बलता रहे है –
मन्त्र – ॐ ह्रीं श्रीं बगला मुखी श्रीं ह्रीं ॐ स्वाहा ।
यंत्र – अष्टदल कमल की कर्णिका में षट्कोण के मध्य अधोमुखी त्रिकोण में बिंदु।
समय – ब्रह्म मुहूर्त , प्रातःकाल सूर्योदय के समय, रात्रि में महाकाल रात्रि
दीपक – घी का दीपक, कपास की बाती
वस्त्र-आसन – पीला रेशमी या सूती
जप संख्या – एक लाख (दिनों में बाँटकर)
हवन – कटहल, गूलर, गम्भार या गाय के कंडे की समिधा में घृत, जौ, पीले चवल, पीले फूल, हल्दी, मधु, दूध, धी, आदि से; दस हजार मन्त्रों से ।
ध्यानरूप – तीन नेत्रों वाली यह देवी, गंभीर, रोबीली, सौन्दर्य और यौवन से भरी, नेत्रों में मादकता, सोने के समान पीली चमकती कायावाली है और ये कमल पर आसीन है। इनके चार हाथ है। दाई और मुदगर और गदा(ऊपर नीचे), बायीं और शत्रु की जीभ और वज्र है(ऊपर नीचे), यह उन्मत यौवनमयी है और पीले रंग के वस्त्रों तथा सोने के गहनों से सुसज्जित है। इनके कपाल पर अर्द्ध चन्द्र है और ये सोने के सिंघासन पर रखे कमल पर बैठी है। कमल का वर्ण भी स्वर्णिम है।
नोट – स्तम्भन के लिए मेखलायुक्त त्रिकोण त्रिभुजाकार कुंड का प्रयोग किया जाता है।
यह सिद्धि सभी प्रकार की क्रियाओं में प्रशस्त है।
विद्वेषण क्रिया और सिद्धियाँ
इसकी आधारभूत देवी डाकिनी एवं उच्चिष्ठ चाण्डालिनी को माना जाता है।
डाकिनी मन्त्र – ऐ स ह क्लहीं ह्रीं श्रीं हूँ स्त्रीं छ्रीं फ्रें क्लीं क्रीं फ्रें क्रोन डाकन्ये नमः
समय – महाकाल रात्रि; दिशा – दक्षिण; वस्त्र काला; आसन काला ( या गहरा खूनी लाल); स्थान – श्मसान , हवन सामग्री – चिता की अग्नि में स्वयं के बाल, रक्त, उल्लू के पंख, चर्बी-मांस-मदिरा। फूल-लाल-नीला ।
यह मंत्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है।
Ruchi Sehgal