Tuesday, 24 July 2018
कोर्ट केस जीतने के लिए टोटके
मुकदमा जीतने के टोटके मंत्र
मुकदमा में विजय का उपाय/मंत्र, कोर्ट केस जीतने के उपाय, मुकदमा जीतने का मंत्र- दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जिसे कोर्ट-कचहरी के मामलों में पड़ना रास आता हो| परंतु, मुसीबत पूछकर नहीं आती| अनचाहे-अनजाने में कई बार दूसरों की जमीन पर नज़रें गड़ा बैठने वाले लोगों के वजह से, कभी पारिवारिक अनबन की वजह से तो कभी जानकारी के अभाव में लोग कोर्ट केस में फंस जाते हैं| एक बार किसी मामले में कोर्ट का चक्कर लग जाए, फिर तो तारीख दर तारीख इंसान उसके साथ घिसटता चला जाता है| अपने देश में न्याय प्रणाली भी कुछ इस तरह से काम करती है कि छोटे से मामले में भी फैसला आने में वर्षो लग जाते हैं| ज्योतिष शास्त्र में ऐसी समस्याओं के लिए समाधान की चर्चा भी की गई है| इसके अंतर्गत कुछ छोटे-छोटे उपाय भी किए जा सकते हैं जिसे हम समान्यतः टोटका कहते हैं, इसके अलावा इस समस्या से निजात के लिए कुछ विशेष मंत्र तथा यंत्र भी हैं| पीड़ित व्यक्ति अपनी रुचि तथा सुविधा से इनमे से कोई उपाय चुन सकता है|
मुकदमा जीतने के टोटके मंत्र
मुकदमा में विजय प्राप्ति के लिए उपाय
यदि आप भी ऐसे ही किसी मामले के तहत कोर्ट के चक्कर में फंस चुके हैं तो ज्योतिष शास्त्र में वर्णित निम्नलिखित टोटकों की मदद से जल्द निकल सकते हैं –
सुनवाई के लिए जाते समय अपने साथ मुट्ठी भर चावल लेकर जाएँ और उन्हें कचहरी में कहीं फेंक दें, जिस कक्ष में सुनवाई हो रही हो, वहाँ चावल फेंका जाए तो और भी अच्छा है| ध्यान रखें ऐसा करते समय कोई देखे नहीं|
सूर्योदय से पहले काले चावल के 11 दाने लेकर उसे बीज मंत्र ‘क्रीं’ का 21 बार जाप करें तथा उसे दक्षिण दिशा में फेंक दें|
मुट्ठी भर तिल में शहद मिलाकर रख लें तथा उसे किसी उजाड़ स्थान पर रख आए, ध्यान रखें पीछे मुड़कर नहीं देखना है|
कचहरी जाते समय काली मिर्च के तीन साबुत दानो को शक्कर के साथ मिलकर मुंह में रख लें|
किसी सफ़ेद रुमाल में थोड़ा सा कोयला बांधकर रख लें और उसे किसी सुनसान स्थान पर रख आएँ| घर वापस आकार हाथ पैर धो लें| यह कार्य मास में एक दिन 6 महीने तक लगातार करना चाहिए|
सातमुखी पंचमुखी अथवा अथवा ग्यारहमुखी रुद्राक्ष धारण करें|
कचहरी जाते समय पाँच गोमती चक्र जेब में रख लें|
शुक्ल पक्ष के मंगलवार को हनुमान मंदिर में पीतल की घंटी चढ़ाएँ तथा प्रार्थना करें|
यदि आपका धैर्य जवाब दे गया हो, गवाह के मुकरने की आशंका हो अथवा अपने वकील की योगिता संदिग्ध लगे तो कचहरी जाते समय अपने साथ हत्था जोड़ी लेकर जाए|
मुकदमे में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने केस की पैरवी कर रहे वकील को कलम उपहार में दें
कचहरी जाते समय लाल कनेर के फूल को पीसकर उससे तिलक लगाएँ
नीबू के चारो कोनो पर चार लौंग गाड़ दें, अपने इष्ट देव से मुकदमे में सफलता हेतु प्रार्थना करें| तथा उस नीबू को कचहरी जाते समय अपने साथ रखें|
लाल तिकोना मूंगा सोने अथवा तांबे में अंगुठी बनवाकर अपनी सबसे छोटी उंगली में पहनें|
अपने केस से जुड़े कागजात घर के मंदिर में ही रखें|
पहली बार कचहरी से लौटते समय किसी मजार पर लाल गुलाब अर्पित करते हुए मन ही मन केस में सफलता दिलाने की प्रार्थना करें|
कचहरी जाते समय गहरे रंग की पोशाक पहने|
किसी मंदिर में 11 हकीक के पत्थर चढ़ाएँ तथा प्रार्थना करें|
भोजपत्र पर जिस व्यक्ति से मुकदमा लड़ रहे हों उसका नाम रक्त चन्दन से लिखें और शहद की शीशी में डूबाकर रख दें| इस टोटके से शत्रु का हृदय परिवर्तन हो जाता है|
घर के पूजा स्थल में सिद्धि विनायक पिरामिड स्थापित करें व प्रत्येक बुधवार को ‘गण गणपतये नमो नमः’ मंत्र का नियमित रूप से जाप करें| कचहरी जाते समय पिरामिड को लाल कपड़े में लपेटकर अपने साथ रखे|
यदि पराजय की संभावना निश्चित प्रतीत हो रही हो तो अपने वजन के बराबर कोयला बहते हुए पानी में बहाकर, ईश्वर से पिछले जन्म के पापपूर्ण कर्मो के लिए क्षमा प्रार्थना करें|
दो दुकानों से 43-43 फल खरीदें तथा कुंवारी कन्याओं में बराबर-बराबर बाँट दें|
जंग लगा चाकू जल में प्रवाहित करें|
पाव भर मसूर की दाल रात को सोते समय अपने सिरहाने रखें, सुबह उसे जमादार को दे दें|
Ruchi Sehgal
Monday, 23 July 2018
क्यों और कैसे डुबी द्वारका नागरी
अर्जुन अपने साथ ले गए श्रीकृष्ण के परिजनों को –
वसुदेवजी की बात सुनकर अर्जुन ने दारुक से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगरवासियों को यहां से इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा, क्योंकि शीघ्र ही इस नगर को समुद्र डूबा देगा। अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि आज से सातवे दिन सभी लोग इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करेंगे इसलिए आप शीघ्र ही इसके लिए तैयारियां शुरू कर दें। सभी मंत्री तुरंत अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए। अर्जुन ने वह रात श्रीकृष्ण के महल में ही बिताई।
अगली सुबह श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन ने विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। वसुदेवजी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी व मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गईं। इसके बाद अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। सातवे दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों तथा सभी नगरवासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए। उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। ये दृश्य देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।
Ruchi Sehgal
क्यों और कैसे डुबी द्वारका नागरी -2
यदुवंशियों के नाश के बाद अर्जुन को बुलवाया था श्रीकृष्ण ने –
अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।
श्रीकृष्ण के देखते ही देखते सांब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद की मृत्यु हो गई। फिर तो श्रीकृष्ण और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने शेष बचे सभी वीरों का संहार कर डाला। अंत में केवल दारुक (श्रीकृष्ण के सारथी) ही शेष बचे थे। श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि तुम तुरंत हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बता कर द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। इसके बाद श्रीकृष्ण बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौट आए।
बलरामजी के स्वधाम गमन के बाद ये किया श्रीकृष्ण ने –
द्वारका आकर श्रीकृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वसुदेवजी को बता दी। यदुवंशियों के संहार की बात जान कर उन्हें भी बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें। इस समय बलरामजी वन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं। जब श्रीकृष्ण ने नगर में स्त्रियों का विलाप सुना तो उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि शीघ्र ही अर्जुन द्वारका आने वाले हैं। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये कहकर श्रीकृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े।
वन में जाकर श्रीकृष्ण ने देखा कि बलरामजी समाधि में लीन हैं। देखते ही देखते उनके मुख से सफेद रंग का बहुत बड़ा सांप निकला और समुद्र की ओर चला गया। उस सांप के हजारों मस्तक थे। समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर भगवान शेषनाग का स्वागत किया। बलरामजी द्वारा देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण उस सूने वन में विचार करते हुए घूमने लगे। घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे। देह त्यागने की इच्छा से श्रीकृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग (समाधि) की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए।
ऐसे त्यागी श्रीकृष्ण ने देह –
जिस समय भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरणों का शिकार करने के उद्देश्य से वहां आ गया। उसने हिरण समझ कर दूर से ही श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकडऩे के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। तब श्रीकृष्ण को उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम चले गए। अंतरिक्ष में पहुंचने पर इंद्र, अश्विनीकुमार, रुद्र, आदित्य, वसु, मुनि आदि सभी ने भगवान का स्वागत किया।
इधर दारुक ने हस्तिनापुर जाकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी। यह सुनकर पांडवों को बहुत शोक हुआ। अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए। अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत शोक हुआ। श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी। उन्हें रोता देखकर अर्जुन भी रोने लगे और श्रीकृष्ण को याद करने लगे। इसके बाद अर्जुन वसुदेवजी से मिले। अर्जुन को देखकर वसुदेवजी बिलख-बिलख रोने लगे। वसुदेवजी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अत: तुम सभी नगरवासियों को अपने साथ ले जाओ।
Ruchi Sehgal