Friday, 17 August 2018
जन्म-कुंडली में प्रेम-विवाह योग: प्रेम-विवाह ( LOVE MARRIAGE )
जन्म-कुंडली में प्रेम-विवाह योग:
प्रेम-विवाह ( LOVE MARRIAGE ) :-
बहुत से जातक-जातिका यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि उनका प्रेम विवाह(लव-मैरिज) होगा या नहीं,विवाह को लेकर उनके मन में कई प्रकार की शंकाएं होती हैं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा। इसके लिए अक्सर मुझे इनबॉक्स में या मोबाइल पर सम्पर्क करते रहते हैं | बच्चों के माता-पिता भी उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं की उनको प्रेम-विवाह की अनुमति दे या न दें |
जब तक दो लोगों की कुंडली में मंगल व शुक्र में आकर्षण नहीं होगा, तब तक उनमें प्रेम नहीं हो सकता ।
जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह पंचम के साथ संबंध बनाता हो अथवा 5 का 2, 7, 11 से संबंध हो तो विवाह होता है। परन्तु यदि प्रेम विवाह कारक ग्रह 1, 4, 6, 8, 10, 12 से जुड़ा हो तो प्रेम विवाह नहीं होता है अथवा विवाह कारक एवं अकारक दोनों से संबंध बनता हो तो ऐसा प्रेम विवाह नहीं चलता है।
* किसी भी जातक की कुंडली में पंचम भाव से प्रेम संबंधों का पता चलता है जबकि सप्तम भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में घनिष्ठ स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह भी संभव है।
१) शुक्र सप्तमेश से संबंधित होकर पंचम भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
२)पंचमेश व सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
३) मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।
४) जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।
५) जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।
६) जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।
७)जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।
८) पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।
९) सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।
१०) पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।
११) जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।
१२) शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।
१३)लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एकसाथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।
१४) सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।
१५) जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।
इसके इलावा नवमांश को.दशा को व् अन्य ग्रहों की शुभ,अशुभ दृष्टि देख-कर ही अंतिम निर्णय तक पहुंचा जा सकता है, इसके लिए अनुभवी ज्योतिष से ही परामर्श करें, कुंडली मिलान अवश्य करवा लें, यदि कुंडली मिलान में समस्या हो तो उसका उपचार करवाने के बाद ही शुद्ध-लग्न महूर्त में ही विवाह किया जाना चाहिए ।
कुंडली में करोड़पति /अरबपति बनने के योग :
कुंडली में करोड़पति /अरबपति बनने के योग :
जन्म-कुंडली में बनने वाले मुख्य धनयोग निम्नलिखित है,परन्तु किसी भी कुंडली में धनयोग का अंतिम परिणाम डिग्री,दृष्टि,दशा,युति तथा नवमांश में ग्रहों की मजबूती देख कर ही बनती है | कई बार व्यक्ति अपने पाप कर्मों से सुबह योगों का फल खो देता है |
१) कुंडली के त्रिकोण घरों या केन्द्र में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो तो जातक शुक्र या बुध की दशा में असीम धन प्राप्त करता है |
२) यदि कुंडली के तीसरे , छठे और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहु या शनि की दशा में असीम धन प्राप्त करता है।
३) मंगल चौथे, सूर्य पांचवें और गुरु पांचवें भाव में सूर्य के साथ हो या ग्यारवें भाव में हो तो व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, कृषि या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती जाती है। इसे असीम धन-योग माना जाता है |
४) गुरु यदि दसवें या ग्यारहवें भाव में हो और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवें भाव में हो या यहीं ग्रह इसके विपरीत स्थिति में हो तो व्यक्ति प्रशासनिक बुद्धि और क़ाबलियत द्वारा धन अर्जित करता है।
५) गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का हो और पांचवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति संतान द्वारा अपार धन लाभ पाता है।
६)बुध, शुक्र और शनि यदि किसी भाव में एक साथ हो और दशा का साथ मिले वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत उन्नति कर धनवान बना देता है।
७) दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में हो और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन पाता है।
८) बुध, शुक्र और गुरु किसी भी भाव में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, कथाकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।
९) यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हो और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर कोई अन्य ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसाय के द्वारा अतुलनीय धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।
१०) यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहु बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुआ, दलाली,शेयर बाजार या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।
किसी भी कुंडली में धनयोग का अंतिम परिणाम डिग्री,दृष्टि,दशा,युति तथा नवमांश में ग्रहों की मजबूती देख कर ही बनती है |
ग्रहो मे उंच नीच रशिया
➡ग्रहों की उच्च-नीच राशियाँ⤵
1. सूर्य - मेष में उच्च, तुला में नीच
2. चंद्र - वृषभ में उच्च, वृश्चिक में नीच
3. बुध - कन्या में उच्च, मीन में नीच
4. शुक्र - मीन में उच्च, कन्या में नीच
5. मंगल - मकर में उच्च, कर्क में नीच
6. गुरु - कर्क में उच्च, मकर में नीच
7. शनि - तुला में उच्च, मेष में नीच
8. राहु - मिथुन में उच्च, धनु में नीच
9. केतु - धनु में उच्च, मिथुन में नीच