Monday, 10 September 2018
ग्रह व उनसे संबंधित बिमारी व उपाय
ग्रह व उनसे संबंधित बिमारी व उपाय
1 – सूर्य ( Sun ) – पित प्रकृति
स्वास्थ्य का कारक, हृदय, हड्डिया, दायी आंख ।
सिर में दर्द, गंजापन, हृदय रोग, हड्डियों के रोग, मिर्गी, नेत्र रोग, कुष्ट रोग, पेट की बिमारियां, बुखार, दर्द, जलना, रक्त संचार में गढ़बड़ी, शस्त्र व गिरने से चोट लगना etc.
2- चंद्रमा ( Moon ) – कफ व कुछ वात प्रकृति ।
शरीर से बाहर निकलने वाले liquid, मानसिक स्तर, बायीं आंख ।
मानसिक रोग, क्षय रोग ( T.B.), रक्त संबंधी रोग, कफ तथा खांसी से बुखार, फेफड़ों में पानी भरना, पानी से होने वाली बिमारियां, जल व जलीय वस्तुओं से भय etc.
स्त्रियों की माहवारी में गड़बड़ी तथा स्त्रियों की प्रजनन प्रणाली के रोग चंद्रमा के कारण होते है । स्त्रियों के स्तन रोग तथा दूध के बहाव का पता भी चंद्रमा से लगाया जाता है ।
“चंद्रमा-मंगल” – स्त्रियों में मासिक धर्म व उसको नियंत्रित करता है ।
3- मंगल ( Mars ) – पित्त प्रकृति
शरीर में पूर्ति का कारक, सिर, अस्थि, मज्जा, हीमोग्लोबिन, मांसपेशिया, अंर्त गभाँशय ।
Accident, चोट लगना, Surgery, जल जाना, खून के रोग, High blood pressure, पित्त की थैली में stone, तेज बुखार, चेचक ( Chicken pox ) , बवासीर (Pilex), गभ्रपात ( Abortion ), सिर में चोट, लड़ाई में चोट , शस्त्र से चोट व गर्दन से ऊपर के रोग भी मंगल इंगित करता हैं ।
4 – बुध ( Mercury ) – वात, पित्त और कफ ।
त्वचा, गला, नाक, फेफड़े, Brain का अगला हिस्सा ।
त्वचा संबंधी रोग, मानसिक विचलन, धैर्यहीनता, Abusing Language, बहरापन, कान का बहना, हकलाना, तुतलाना, गूंगापन, नाक-कान-गले के रोग, श्वेत कुष्ट, नापुसंकता, अचानक गिरना, दु:स्वपन etc.
4- बृहस्पति ( Jupiter ) – कफ व रोग का निवारक करने वाला ग्रह ।
Liver, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाश्य का कुछ भाग, कान का Interdevice, body में fat व आलस्य का कारक ।
Long Disease, पित्त की थैली के रोग, मोटापा, शुगर, तिल्ली के रोग, कान के रोग, पीलिया etc.
5- शुक्र ( Venus ) – वात व कुछ कफ प्रकृति ।
चेहरा, आंखे, नेत्र ज्योति, यौन क्रियाएं, भोग विलास, वीर्य, मूत्र प्रणाली, किडनी, गुर्दे ।
यह एक जलीय ग्रह है और इसका संबंध शरीर के Hormonal System से है ।
शुक्र यौन विकार, जननांग के रोग तथा मूत्र प्रणाली, चेहरे के रोग, नेत्र रोग, श्वेत कुष्ट रोग, मोतियाबिंद, AIDS, नापुसकंता, थायरड, शगर etc.
7- शनि ( Sat.) – वात तथा कुछ कफ प्रकृति ।
यह बहुत धीरे चलने वाला ग्रह है और इस कारण इससे होने होने वाले रोग असाध्य या दीघृ कालिक होते है ।
शनि का अधिकार क्षेत्र टांगे, पैर, नाड़ी, बड़ी आंत का अंतिम भाग, लसिका ( Lymph ) वाहिनी तथा गुदा है । यह Long Disease, कैंसर, गठिया बाय, बवासीर, थकान, पैर के रोग व चोट, पत्थर से चोट लगना etc.
8- राहु – शनि जैसे रोग ( असाध्य रोग ) ।
हिचकी, फोबिया, कुष्ट रोग, तव्चा रोग, छाले, उन्माद, सर्प भय, जख्म का ठीक ना होना etc.
* राहु-चंद्र – फोबिया, भय ।
9- केतु – इसकी दशा में बिमारी का पता लगाना मुश्किल है ।
डेंगू, मलेरिया, पेट में कीडे़, Swine flu, वायरल etc.
केतु का द्वितीय भाव व बुध से संबंध हो तो जन्मजात रोग, तुतलाना, Surgery ।
उपाय –
1. पारद शिव्लिन्ग या स्फटिक शिव्लिन्ग के सामने प्रतिदिन एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें । शिव मंदिर मे जा कर काले तिल अर्पण करें या पारद शिव लिंग गंगा जल अर्पण करि कि अपने उपर उस जल को छीडके लें अपने गले मे पारद गुटिका धारण करें
2. तांबे के पात्र में लाल चंदन मिला कर प्रतिदिन सूर्य को जल दे ।
3. आदित्यहृदय स्रौत का पाठ करें ।
4. बृहस्पति का बीज मंत्र – ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं सं गुरुवे नमः।। इस मंत्र का जाप करे तथा किसी भी रोग की बिमारी की दवाई को बृहस्पतिवार से लेना शुरू करें क्योंकि बृहस्पतिदेव रोग निवारक ग्रह है ।
5 – लग्न व लग्नेश को मजबूत करें व लग्नेश का रत्न धारण करें ।
( क्योंकि लग्न-लग्नेश हमारी शारीरिक क्षमता को दिखाता है )
क्या भगवान शिव को अर्पित नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए?*
🌟 *क्या भगवान शिव को अर्पित नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए?*
_सौवर्णे नवरत्नखण्ड रचिते पात्रे घृतं पायसं_
_भक्ष्यं पंचविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।_
_शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं_
_ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥_
- *शिवमानसपूजा*
"मैंने नवीन रत्नजड़ित सोने के बर्तनों में घीयुक्त खीर, दूध, दही के साथ पाँच प्रकार के व्यंजन, केले के फल, शर्बत, अनेक तरह के शाक, कर्पूर की सुगन्धवाला स्वच्छ और मीठा जल और ताम्बूल — ये सब मन से ही बनाकर आपको अर्पित किया है। भगवन्! आप इसे स्वीकार कीजिए।"
*क्या भगवान शिव को अर्पित किया गया नैवेद्य (प्रसाद) ग्रहण करना चाहिए?*
सृष्टि के आरम्भ से ही समस्त देवता, ऋषि-मुनि, असुर, मनुष्य विभिन्न ज्योतिर्लिंगों, स्वयम्भूलिंगों, मणिमय, रत्नमय, धातुमय और पार्थिव आदि लिंगों की उपासना करते आए हैं। अन्य देवताओं की तरह शिवपूजा में भी नैवेद्य निवेदित किया जाता है। पर शिवलिंग पर चढ़े हुए प्रसाद पर *चण्ड* का अधिकार होता है।
*भगवान शिव के मुख से निकले हैं चण्ड*
गणों के स्वामी *चण्ड* भगवान शिवजी के मुख से प्रकट हुए हैं। ये सदैव शिवजी की आराधना में लीन रहते हैं और *भूत-प्रेत, पिशाच* आदि के स्वामी हैं। *चण्ड* का भाग ग्रहण करना यानी *भूत-प्रेतों का अंश खाना* माना जाता है।
*शिव-नैवेद्य ग्राह्य और अग्राह्य*
शिवपुराण की *विद्येश्वरसंहिता* के २२वें अध्याय में इसके सम्बन्ध में स्पष्ट कहा गया है —
*चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न मानवै:।*
*चण्डाधिकारो नो यत्र भोक्तव्यं तच्च भक्तित:॥ (२२।१६)*
"जहाँ चण्ड का अधिकार हो, वहाँ शिवलिंग के लिए अर्पित नैवेद्य मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। जहाँ चण्ड का अधिकार नहीं है, वहाँ का शिव-नैवेद्य मनुष्यों को ग्रहण करना चाहिए।"
*किन शिवलिंगों के नैवेद्य में चण्ड का अधिकार नहीं है?*
इन लिंगों के प्रसाद में *चण्ड* का अधिकार नहीं है, अत: ग्रहण करने योग्य है —
*ज्योतिर्लिंग* —बारह ज्योतिर्लिंगों (सौराष्ट्र में *सोमनाथ*, श्रीशैल में *मल्लिकार्जुन*, उज्जैन में *महाकाल*, ओंकार में *परमेश्वर*, हिमालय में *केदारनाथ*, डाकिनी में *भीमशंकर*, वाराणसी में *विश्वनाथ*, गोमतीतट में *त्र्यम्बकेश्वर*, चिताभूमि में *वैद्यनाथ*, दारुकावन में *नागेश्वर*, सेतुबन्ध में *रामेश्वर* और शिवालय में *द्युश्मेश्वर*) का नैवेद्य ग्रहण करने से सभी पाप भस्म हो जाते हैं।
शिवपुराण की *विद्येश्वरसंहिता* में कहा गया है कि *काशी विश्वनाथ* के स्नानजल का तीन बार आचमन करने से शारीरिक, वाचिक व मानसिक तीनों पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
*स्वयम्भूलिंग* — जो लिंग भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं ही प्रकट हुए हैं, उनका नैवेद्य ग्रहण करने में कोई दोष नहीं है।
*सिद्धलिंग* — जिन लिंगों की उपासना से किसी ने सिद्धि प्राप्त की है या जो सिद्धों द्वारा प्रतिष्ठित हैं, जैसे — *काशी* में शुक्रेश्वर, वृद्धकालेश्वर, सोमेश्वर आदि लिंग देवता-सिद्ध-महात्माओं द्वारा प्रतिष्ठित और पूजित हैं, उन पर चण्ड का अधिकार नहीं है, अत: उनका नैवेद्य सभी के लिए ग्रहण करने योग्य है।
*बाणलिंग (नर्मदेश्वर)* — बाणलिंग पर चढ़ाया गया सभी कुछ जल, बेलपत्र, फूल, नैवेद्य — प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए।
— *जिस स्थान पर (गण्डकी नदी) शालग्राम की उत्पत्ति होती है, वहाँ के उत्पन्न शिवलिंग, पारदलिंग, पाषाणलिंग, रजतलिंग, स्वर्णलिंग, केसर के बने लिंग, स्फटिकलिंग और रत्नलिंग* — इन सब शिवलिंगों के लिए समर्पित नैवेद्य को ग्रहण करने से चान्द्रायण व्रत के समान फल प्राप्त होता है।
— *शिवपुराण* के अनुसार *भगवान शिव की मूर्तियों में चण्ड का अधिकार नहीं है, अत: इनका प्रसाद लिया जा सकता है।* —
*‘प्रतिमासु च सर्वासु न, चण्डोऽधिकृतो भवेत्॥*
— *जिस मनुष्य ने शिव-मन्त्र की दीक्षा ली है, वे सब शिवलिंगों का नैवेद्य ग्रहण कर सकता है।* उस शिवभक्त के लिए यह नैवेद्य *‘महाप्रसाद’* है। जिन्होंने अन्य देवता की दीक्षा ली है और भगवान शिव में भी प्रीति है, वे ऊपर बताए गए सब शिवलिंगों का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
*शिव-नैवेद्य कब नहीं ग्रहण करना चाहिए?*
— शिवलिंग के ऊपर जो भी वस्तु चढ़ाई जाती है, वह ग्रहण नहीं की जाती है। जो वस्तु शिवलिंग से स्पर्श नहीं हुई है, अलग रखकर शिवजी को निवेदित की है, वह अत्यन्त पवित्र और ग्रहण करने योग्य है।
— *जिन शिवलिंगों का नैवेद्य ग्रहण करने की मनाही है वे भी शालग्राम शिला के स्पर्श से ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं।*
*शिव-नैवेद्य की महिमा*
— जिस घर में भगवान शिव को नैवेद्य लगाया जाता है या कहीं और से शिव-नैवेद्य प्रसाद रूप में आ जाता है वह घर पवित्र हो जाता है। आए हुए शिव-नैवेद्य को प्रसन्नता के साथ भगवान शिव का स्मरण करते हुए मस्तक झुका कर ग्रहण करना चाहिए।
— आए हुए नैवेद्य को *‘दूसरे समय में ग्रहण करूँगा’*, ऐसा सोचकर व्यक्ति उसे ग्रहण नहीं करता है, वह पाप का भागी होता है।
— जिसे शिव-नैवेद्य को देखकर खाने की इच्छा नहीं होती, वह भी पाप का भागी होता है।
— शिवभक्तों को शिव-नैवेद्य अवश्य ग्रहण करना चाहिए क्योंकि शिव-नैवेद्य को देखने मात्र से ही सभी पाप दूर हो जाते है, ग्रहण करने से करोड़ों पुण्य मनुष्य को अपने-आप प्राप्त हो जाते हैं।
— शिव-नैवेद्य ग्रहण करने से मनुष्य को हजारों यज्ञों का फल और शिव सायुज्य की प्राप्ति होती है।
— शिव-नैवेद्य को श्रद्धापूर्वक ग्रहण करने व स्नानजल को तीन बार पीने से मनुष्य ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है।
*मनुष्य को इस भावना का कि भगवान शिव का नैवेद्य अग्राह्य है, मन से निकाल देना चाहिए* क्योंकि 'कर्पूरगौरं करुणावतारम्' शिव तो सदैव ही कल्याण करने वाले हैं। जो *‘शिव’* का केवल नाम ही लेते है, उनके घर में भी सब मंगल होते हैं —
*सुमंगलं तस्य गृहे विराजते।*
*शिवेति वर्णैर्भुवि यो हि भाषते ।*
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ग्रह व उनसे संबंधित बिमारी व उपाय
ग्रह व उनसे संबंधित बिमारी व उपाय
1 – सूर्य ( Sun ) – पित प्रकृति
स्वास्थ्य का कारक, हृदय, हड्डिया, दायी आंख ।
सिर में दर्द, गंजापन, हृदय रोग, हड्डियों के रोग, मिर्गी, नेत्र रोग, कुष्ट रोग, पेट की बिमारियां, बुखार, दर्द, जलना, रक्त संचार में गढ़बड़ी, शस्त्र व गिरने से चोट लगना etc.
2- चंद्रमा ( Moon ) – कफ व कुछ वात प्रकृति ।
शरीर से बाहर निकलने वाले liquid, मानसिक स्तर, बायीं आंख ।
मानसिक रोग, क्षय रोग ( T.B.), रक्त संबंधी रोग, कफ तथा खांसी से बुखार, फेफड़ों में पानी भरना, पानी से होने वाली बिमारियां, जल व जलीय वस्तुओं से भय etc.
स्त्रियों की माहवारी में गड़बड़ी तथा स्त्रियों की प्रजनन प्रणाली के रोग चंद्रमा के कारण होते है । स्त्रियों के स्तन रोग तथा दूध के बहाव का पता भी चंद्रमा से लगाया जाता है ।
“चंद्रमा-मंगल” – स्त्रियों में मासिक धर्म व उसको नियंत्रित करता है ।
3- मंगल ( Mars ) – पित्त प्रकृति
शरीर में पूर्ति का कारक, सिर, अस्थि, मज्जा, हीमोग्लोबिन, मांसपेशिया, अंर्त गभाँशय ।
Accident, चोट लगना, Surgery, जल जाना, खून के रोग, High blood pressure, पित्त की थैली में stone, तेज बुखार, चेचक ( Chicken pox ) , बवासीर (Pilex), गभ्रपात ( Abortion ), सिर में चोट, लड़ाई में चोट , शस्त्र से चोट व गर्दन से ऊपर के रोग भी मंगल इंगित करता हैं ।
4 – बुध ( Mercury ) – वात, पित्त और कफ ।
त्वचा, गला, नाक, फेफड़े, Brain का अगला हिस्सा ।
त्वचा संबंधी रोग, मानसिक विचलन, धैर्यहीनता, Abusing Language, बहरापन, कान का बहना, हकलाना, तुतलाना, गूंगापन, नाक-कान-गले के रोग, श्वेत कुष्ट, नापुसंकता, अचानक गिरना, दु:स्वपन etc.
4- बृहस्पति ( Jupiter ) – कफ व रोग का निवारक करने वाला ग्रह ।
Liver, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाश्य का कुछ भाग, कान का Interdevice, body में fat व आलस्य का कारक ।
Long Disease, पित्त की थैली के रोग, मोटापा, शुगर, तिल्ली के रोग, कान के रोग, पीलिया etc.
5- शुक्र ( Venus ) – वात व कुछ कफ प्रकृति ।
चेहरा, आंखे, नेत्र ज्योति, यौन क्रियाएं, भोग विलास, वीर्य, मूत्र प्रणाली, किडनी, गुर्दे ।
यह एक जलीय ग्रह है और इसका संबंध शरीर के Hormonal System से है ।
शुक्र यौन विकार, जननांग के रोग तथा मूत्र प्रणाली, चेहरे के रोग, नेत्र रोग, श्वेत कुष्ट रोग, मोतियाबिंद, AIDS, नापुसकंता, थायरड, शगर etc.
7- शनि ( Sat.) – वात तथा कुछ कफ प्रकृति ।
यह बहुत धीरे चलने वाला ग्रह है और इस कारण इससे होने होने वाले रोग असाध्य या दीघृ कालिक होते है ।
शनि का अधिकार क्षेत्र टांगे, पैर, नाड़ी, बड़ी आंत का अंतिम भाग, लसिका ( Lymph ) वाहिनी तथा गुदा है । यह Long Disease, कैंसर, गठिया बाय, बवासीर, थकान, पैर के रोग व चोट, पत्थर से चोट लगना etc.
8- राहु – शनि जैसे रोग ( असाध्य रोग ) ।
हिचकी, फोबिया, कुष्ट रोग, तव्चा रोग, छाले, उन्माद, सर्प भय, जख्म का ठीक ना होना etc.
* राहु-चंद्र – फोबिया, भय ।
9- केतु – इसकी दशा में बिमारी का पता लगाना मुश्किल है ।
डेंगू, मलेरिया, पेट में कीडे़, Swine flu, वायरल etc.
केतु का द्वितीय भाव व बुध से संबंध हो तो जन्मजात रोग, तुतलाना, Surgery ।
उपाय –
1. पारद शिव्लिन्ग या स्फटिक शिव्लिन्ग के सामने प्रतिदिन एक माला महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें । शिव मंदिर मे जा कर काले तिल अर्पण करें या पारद शिव लिंग गंगा जल अर्पण करि कि अपने उपर उस जल को छीडके लें अपने गले मे पारद गुटिका धारण करें
2. तांबे के पात्र में लाल चंदन मिला कर प्रतिदिन सूर्य को जल दे ।
3. आदित्यहृदय स्रौत का पाठ करें ।
4. बृहस्पति का बीज मंत्र – ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं सं गुरुवे नमः।। इस मंत्र का जाप करे तथा किसी भी रोग की बिमारी की दवाई को बृहस्पतिवार से लेना शुरू करें क्योंकि बृहस्पतिदेव रोग निवारक ग्रह है ।
5 – लग्न व लग्नेश को मजबूत करें व लग्नेश का रत्न धारण करें ।
( क्योंकि लग्न-लग्नेश हमारी शारीरिक क्षमता को दिखाता है )