Sunday, 11 November 2018
विदेश जाने के लिए करे ये उपाय
आप भी अपने विदेश जाने के सपने को पूरा करना चाहते है, तो करें ये उपाय
आज के समय में विदेश जाने का सपना हर एक युवा रखता है, विदेश का नाम सुनकर ही उनकी आँखों में एक अलग सी चमक देखने को मिलती है| लोग विदेश घूमने, पढ़ने, व्यापार करने के लिए जाते है और वहाँ जाकर अपना और अपने देश का नाम रोशन करना चाहते है| लेकिन यह कहना मुश्किल होगा कि उन्हें वहाँ सफलता मिलेगी या नहीं? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वे ज्योतिष की मदद लेते है|
प्राचीन काल में विदेश यात्रा या वहां जा कर बसना हिंदू समाज में बहुत खराब माना जाता था और विदेशियों के साथ संपर्क रखने वाले व्यक्ति को समाज से बाहर कर दिया जाता था| परंतु आज समय बदल चुका है, अब विदेश यात्रा गौरव की बात मानी जाती है|
ज्योतिषी विद्या से किसी व्यक्ति की कुंडली में कुछ भाव, राशि तथा ग्रह उस व्यक्ति को विदेश यात्रा कराने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| इनमें अगर आपसी संबंध हों, तो यात्राएं होती हैं| यात्रा कराने वाली राशियां: मेष, कर्क, तुला और मकर राशियां होती है| यदि किसी व्यक्ति के ज्यादा से ज्यादा ग्रह इन राशियों में हों, तो वह बहुत यात्राएं करता है| परन्तु कही बार किसी कारणवश आप अपने विदेश जाने के सपने को पूरा नहीं कर पातें| किसी का वीसा नहीं बन पाता तो कोई आर्थिक तंगी के कारण नहीं जा पाता|
अगर आप भी विदेश जाना चाहते हैं और लाख कोशिशों के बाद भी असफल हो रहे तो आप अपने विदेश जाने के सपने को सच करने के लिए कुछ अचूक उपाय कर सकते है|
1) विदेश जाना चाहते हैं तो अपनी इस इच्छा को सच करने के लिए करें ये उपाय| विदेश जाने के लिए साल में आने वाली किसी भी संक्रांति के दिन सफेद तिल एवं गुड़ लेकर एक मिटटी के प्याले में डाल दें| अब इस प्याले को पीपल के स्वयं गिरे हुए पत्ते से ढक लें| शाम को सूर्य के ढलने के समय इस प्याले को आक के पौधे की जड़ में रख दें और इसके बाद बिना पीछे मुड़े सीधा घर को आ जाए| घर पहुंचने पर पानी में थोडा केसर मिलाए और स्नान करें| इस उपाय को करने के बाद अपने गुरु का नाम लें, आपको विदेश जाने में जल्द ही सफलता मिलेगी|
2) अगर आपका विदेश जाने का सपना असफल वीसा के बनने में बार बार बाधा आने के कारण हो रहा है तो इस बाधा को दूर करने के उपाय से आपका सपना सफल हो सकता है| इस उपाय को शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से प्रारम्भ करें, एक लकड़ी का तख्ता लें और उस पर लाल वस्त्र बिछा लें अब इस तख़्त पर महालक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें, इसके बाद तख़्त के आगे एक देशी घी का दिया जलाएं और अपने मुख को पश्चिम दिशा की ओर करके बैठें| अब एक शंख लें और उस पर केसर को घोलकर स्वास्तिक का चिन्ह बना लें| अब इस शंख को महालक्ष्मी के बगल में रख दें, इसके बाद महालक्ष्मी की और शंख की इत्र, फुल, धूप, दीप द्वारा पूजन करें| पूजा करने के बाद महालक्ष्मी को भोग लगाए| अब एक स्फटिक की माला लें और नीचे दिए गए मन्त्र का जप करें|
मंत्र है: ॐ अनंग वल्लाभाये विदेश गमनार्थ कार्य सिध्यर्थे नम:
3) विदेश जाने के सपने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए श्री राम के परम भक्त हनुमान जी की पूजा करें| प्रतिदिन हनुमान जी के मंदिर में जाएं, मूर्ति के आगे दीपक जलाएं और उनसे प्रार्थना करें| प्रार्थना करने के बाद हनुमान चालीसा पढ़ें| हनुमान चालीसा को पढने के बाद हनुमान जी की मूर्ति की तीन परिक्रमा करें और ध्यान रखें कि हनुमान जी की मूर्ति आपके बाएं हाथ की ओर हो| हनुमान जी की पूजा करने से आपकी विदेश जाने की मनोकामना जल्द ही सफल होगी|
मानस के मन्त्र
1. प्रभु की कृपा पाने का मन्त्र
“मूक होई वाचाल, पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल-दहन।।”
विधि-प्रभु राम की पूजा करके गुरूवार के दिन से कमलगट्टे की माला पर २१ दिन तक प्रातः और सांय नित्य एक माला (१०८ बार) जप करें।
लाभ-प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। दुर्भाग्य का अन्त हो जाता है।
2. रामजी की अनुकम्पा पाने का मन्त्र
“बन्दउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।”
विधि-रविवार के दिन से रुद्राक्ष की माला पर १००० बार प्रतिदिन ४० दिन तक जप करें।
लाभ- निष्काम भक्तों के लिये प्रभु श्रीराम की अनुकम्पा पाने का अमोघ मन्त्र है।
3 ॰ हनुमान जी की कृपा पाने का मन्त्र
“प्रनउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।”
विधि- भगवान् हनुमानजी की सिन्दूर युक्त प्रतिमा की पूजा करके लाल चन्दन की माला से मंगलवार से प्रारम्भ करके २१ दिन तक नित्य १००० जप करें।
लाभ- हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अला-बला, किये-कराये अभिचार का अन्त होता है।
4 ॰ वशीकरण के लिये मन्त्र
“जो कह रामु लखनु बैदेही। हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेहि।।”
विधि- सूर्यग्रहण के समय पूर्ण ‘पर्वकाल’ के दौरान इस मन्त्र को जपता रहे, तो मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। इसके पश्चात् जब भी आवश्यकता हो इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर गोरोचन का तिलक लगा लें।
लाभ- इस प्रकार करने से वशीकरण होता है।
5 ॰ सफलता पाने का मन्त्र
“प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देव।
सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब।।”
विधि- प्रतिदिन इस मन्त्र के १००८ पाठ करने चाहियें। इस मन्त्र के प्रभाव से सभी कार्यों में अपुर्व सफलता मिलती है।
6 . रामजी की पूजा अर्चना का मन्त्र
“अब नाथ करि करुना, बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।
जेहिं जोनि जन्मौं कर्म, बस तहँ रामपद अनुरागऊँ।।”
विधि- प्रतिदिन मात्र ७ बार पाठ करने मात्र से ही लाभ मिलता है।
लाभ- इस मन्त्र से जन्म-जन्मान्तर में श्रीराम की पूजा-अर्चना का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
7 . मन की शांति के लिये राम मन्त्र
“राम राम कहि राम कहि। राम राम कहि राम।।”
विधि- जिस आसन में सुगमता से बैठ सकते हैं, बैठ कर ध्यान प्रभु श्रीराम में केन्द्रित कर यथाशक्ति अधिक-से-अधिक जप करें। इस प्रयोग को २१ दिन तक करते रहें।
लाभ- मन को शांति मिलती है।
8 . पापों के क्षय के लिये मन्त्र
“मोहि समान को पापनिवासू।।”
विधि- रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन १००० बार ४० दिन तक जप करें तथा अपने नाते-रिश्तेदारों से कुछ सिक्के भिक्षा के रुप में प्राप्त करके गुरुवार के दिन विष्णुजी के मन्दिर में चढ़ा दें।
लाभ- मन्त्र प्रयोग से समस्त पापों का क्षय हो जाता है।
9. श्रीराम प्रसन्नता का मन्त्र
“अरथ न धरम न काम रुचि, गति न चहउँ निरबान।
जनम जनम रति राम पद यह बरदान न आन।।”
विधि- इस मन्त्र को यथाशक्ति अधिक-से-अधिक संख्या में ४० दिन तक जप करते रहें और प्रतिदिन प्रभु श्रीराम की प्रतिमा के सन्मुख भी सात बार जप अवश्य करें।
लाभ- जन्म-जन्मान्तर तक श्रीरामजी की पूजा का स्मरण रहता है और प्रभुश्रीराम प्रसन्न होते हैं।
10 . संकट नाशन मन्त्र
“दीन दयाल बिरिदु सम्भारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
विधि- लाल चन्दन की माला पर २१ दिन तक निरन्तर १०००० बार जप करें।
लाभ- विकट-से-विकट संकट भी प्रभु श्रीराम की कृपा से दूर हो जाते हैं।
11. विघ्ननाशक गणेश मन्त्र
“जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोई बुद्धिरासी सुभ गुन सदन।।”
विधि- गणेशजी को सिन्दूर का चोला चढ़ायें और प्रतिदिन लाल चन्दन की माला से प्रातःकाल १०८० (१० माला) इस मन्त्र का जाप ४० दिन तक करते रहें।
लाभ- सभी विघ्नों का अन्त होकर गणेशजी का अनुग्रह प्राप्त होता है।
रामचरित मानस के कुछ अन्य सिद्ध मंत्र
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
15. पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”