Monday, 12 November 2018
श्रीराम की बहन शांता की दूसरी कथा
एक अन्य लोककथा के अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शांता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शांता कभी अयोध्या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
श्रीराम की बहन शांता की कथा
दुनियाभर में 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं। उनमें वाल्मीकि रामायण, कंबन रामायण और रामचरित मानस, अद्भुत रामायण, अध्यात्म रामायण और आनंद रामायण की चर्चा ज्यादा होती है। उक्त रामायण का अध्ययन करने पर हमें रामकथा से जुड़े कई नए तथ्यों की जानकारी मिलती है। इसी तरह अगर दक्षिण की रामायण की मानें तो भगवान राम की एक बहन भी थीं, जो उनसे बड़ी थी।
अब तक आप सिर्फ यही जानते आए हैं कि राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे, लेकिन राम की बहन के बारे में कम लोग ही जानते हैं। बहुत दुखभरी कथा है राम की बहन की, लोग उनकी सच्चाई जानेंगे तो राम को कठोर दिल वाला मानेंगे और दशरथ को स्वार्थी। आओ जानते हैं कि राम की यह बहन कौन थीं।
इसका नाम क्या था और यह कहां रहती थी। अ
श्रीराम की दो बहनें भी थी एक शांता और दूसरी कुकबी। हम यहां आपको शांता के बारे में बताएंगे। दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं। शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था।
भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं।
इस संबंध में तीन कथाएं हैं:
1.पहली : वर्षिणी नि:संतान थीं तथा एक बार अयोध्या में उन्होंने हंसी-हंसी में ही बच्चे की मांग की। दशरथ भी मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं। शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और वे अत्यधिक सुंदर भी थीं।
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जानिए कैसे वेदव्यास की माता सत्यवती है
ऋषि पराशर बहुत विद्वान और योग सिद्धि संपन्न प्रसिद्ध ऋषि थे। एक दिन वे यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए। वह नाव एक मछुआरे धीवर की पुत्री सत्यवती चला रही थी। ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर विचलित और व्याकुल हो उठे।
*ऋषि पराशर ने उस निषाद कन्या सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई। सत्यवती ने कहा कि यह तो अनैतिक होगा। मैं किसी भी प्रकार के अनैतिक संबंध से संतान पैदा करने के लिए नहीं हुई हूं, लेकिन ऋषि पराशर नहीं माने और उससे प्रणय निवेदन करने लगे।
*तब सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रखीं। पहली यह कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई नहीं देखे। ऐसे में तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम आवरण बना दिया।
*दूसरी शर्त यह कि उनकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। ऐसे में ऋषि ने आश्वासन दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी।
*तीसरी शर्त यह कि वह चाहती है कि उसकी मछली जैसी दुर्गंध एक उत्तम सुगंध में परिवर्तित हो जाए। तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर एक सुगंध का वातावरण निर्मित कर दिया जिसे कि 9 मील दूर से भी महसूस किया जा सकता था।
*उक्त 3 शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में ही सुहागरात मनाई। इसके परिणामस्वरूप एक द्वीप पर उनको एक पुत्र हुआ जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा। यही पुत्र आगे चलकर महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
*धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर को महर्षि वेद व्यास का ही पुत्र माना जाता है। इन्हीं 3 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ।
*यदि सत्यवती ऋषि पराशर के साथ सुहागरात नहीं मनाती तो महाभारत कुछ और होती। चलो ऐसा कर भी लिया था तो यदि वह महाराजा शांतनु से विवाह नहीं करती तो भी महाभारत का इतिहास कुछ और ही होता। हालांकि इसे सुहागरात कहना उचित नहीं। ।।इति महाभारत कथा।।