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Tuesday, 6 October 2020

जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम

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जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम बिलकुल भिन्न होता है. इस पद्धति में कुल बारह दशाएँ होती हैं जो बारह राशियों पर आधारित होती हैं. आइए सबसे पहले आप बारह राशियों के बारे में जान लें. बारह राशियाँ हैं :- 

(1) मेष राशि 

(2) वृष अथवा वृषभ राशि 

(3) मिथुन राशि 

(4) कर्क राशि 

(5) सिंह राशि 

(6) कन्या राशि 

(7) तुला राशि 

(8) वृश्चिक राशि 

(9) धनु राशि 

(10) मकर राशि 

(11) कुम्भ राशि 

(12) मीन राशि 

राशियों के स्वामी ग्रह | Planetary Lord of the Signs

प्रत्येक राशि का स्वामी ग्रह अलग होता है. सूर्य तथा चन्द्रमा को एक-एक राशि का स्वामित्व मिला है जबकि अन्य बची सभी राशियों में एक-एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है. राहु तथा केतु को किसी भी राशि का आधिपत्य प्राप्त नहीं है. यह दोनों छाया ग्रह हैं. जिस राशि में होते हैं उस राशि के स्वामी ग्रह के जैसे बर्ताव करते हैं. 

राशि  ग्रह स्वामी

मेष  मंगल 

वृष शुक्र

मिथुन  बुध 

कर्क  चन्द्रमा

सिंह  सूर्य

कन्या  बुध 

तुला  शुक्र 

वृश्चिक  मंगल 

धनु  बृहस्पति

मकर  शनि 

कुम्भ  शनि 

मीन  बृहस्पति 

राशियों का दशाक्रम | Rashidasha Kram 

पिछले अध्याय में आपने राशियों तथा राशि स्वामियों के बारे में जानकरी हासिल की. जैमिनी चर दशा में  यह बारह राशियाँ पूरे भचक्र का एक चक्कर 24 घण्टे में पूर्ण करती हैं. हर राशि के आगे लिखी संख्या उस राशि की स्वामी है. जैसे पिछले अध्याय में 1 संख्या की स्वामी मेष राशि है. बाकी राशियाँ भी इसी प्रकार क्रम से स्वामी हैं. प्रत्येक राशि की अपनी स्वतंत्र दशा होती है. चर दशा में एक राशि की दशा कम-से-कम एक वर्ष तक रहती है और अधिक-से-अधिक बारह वर्ष तक की दशा व्यक्ति को मिलती है. 

दशा निर्धारण के लिए जैमिनी ऋषि ने कुछ नियम निर्धारित किए हैं. चर दशा में छ: राशियों का दशाक्रम सव्य(Direct) होता है और बाकी छ: राशियों का दशाक्रम अपसव्य(Indirect) होता है. 

सव्य वर्ग की राशियाँ | Direct category signs

यदि किसी व्यक्ति के लग्न में मेष, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ तथा मीन राशि आती है तो वह सव्य वर्ग की राशियाँ कहलाती हैं. माना लग्न में मेष राशि है तब सबसे पहले मेष राशि की दशा आरम्भ होगी. उसके बाद वृष राशि की दशा होगी. उसके बाद मिथुन राशि आदि की दशाएँ क्रम से चलेगीं. अंत में मीन राशि की दशा होगी. उसके बाद पुन: वही चक्र आरम्भ हो जाएगा. 

अपसव्य वर्ग की राशियाँ | Indirect category signs

जन्म कुण्डली के लग्न में यदि वृष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु तथा मकर राशियाँ आती हैं तो दशा का क्रम अपसव्य होगा. उदाहरण के लिए लग्न में मकर राशि है तब सबसे पहली दशा मकर राशि की होगी. उसके बाद धनु राशि की दशा होगी. धनु के बाद वृश्चिक राशि, फिर तुला राशि, कन्या राशि, सिंह राशि, कर्क राशि, मिथुन राशि, वृष राशि, मेष राशि, मीन राशि और अंतिम दशा कुम्भ राशि की होगी. इसके बाद फिर से दशाक्रम उसी प्रकार चलेगा.  

अन्तर्दशाक्रम | Antardasha Kram

जैमिनी पद्धति में प्रत्येक राशि की महादशा में अन्तर्दशा क्रम भी महादशा क्रम की तरह हैं. जैसे अपसव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम अपसव्य चलेगा और सव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम सव्य चलेगा परन्तु चर दशा में एक बात पर विशेष ध्यान यह देना होगा कि हर राशि की महादशा में उसी राशि की अन्तर्दशा सबसे अंत में आएगी. माना मेष राशि जन्म कुण्डली के लग्न में है तो मेष राशि की दशा में वृष राशि की अन्तर्दशा सर्वप्रथम होगी. उसके बाद मिथुन राशि की अन्तर्दशा होगी. मिथुन के बाद क्रम से सभी राशियों की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में मेष राशि की महादशा में मेष राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी. 

अपसव्य वर्ग में यदि धनु राशि की महादशा चल रही है तो धनु राशि की महादशा में सर्वप्रथम वृश्चिक राशि की अन्तर्दशा चलेगी. उसके बाद तुला राशि. फिर कन्या राशि की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में धनु राशि की महादशा में धनु राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी.

Sunday, 4 October 2020

राहु के उपाय

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राहु के उपाय
अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है। प्रतिदिन सुबह चन्दन का टीका भी लगाना चाहिए। अगर हो सकते तो नहाने के पानी में चन्दन का इत्र डाल कर नहाएं
राहु की शांति के लिए श्रावण मास में रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करना सर्वोत्तम हे
शनिवार को कोयला, तिल, नारियल, कच्चा दूध, हरी घास, जौ, तांबा बहती नदी में प्रवाहित करें।
बहते पानी में शीशा अथवा नारियल प्रवाहित करें.
नारियल में छेद करके उसके अन्दर ताम्बे का पैसा नदी में बहा दें |
बहते पानी में तांबे के 43 टुकड़े प्रवाहित करें.
नदी में लकड़ी का कोयला प्रवाहित करें।
नदी में पैसा प्रवाहित करें।
एक नारियल + 11 बादाम (साबुत) काले वस्त्र में बांधकर जल में प्रवाहित करें।
हर बुधवार को चार सौ ग्राम धनियां पानी में बहाएं।
कुष्ठ रोगी को मूली का दान दें।
काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं.
मोर व सर्प में शत्रुता है अर्थात सर्प, शनि तथा राहू के संयोग से बनता है. यदि मोर का पंख घर के पूर्वी और उत्तर-पश्चिम दीवार में या अपनी जेब व डायरी में रखा हो तो राहू का दोष कभी भी नहीं परेशान करता है. मोरपंख की पूजा करें या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास रखें।
रात को सोते समय अपने सिरहाने में जौ रखें जिसे सुबह पंक्षियों को दें.
सरसों तथा नीलम का दान किसी भंगी या कुष्ठ रोगी को दें।
राहु और केतु ग्रह से पीडि़त व्यक्ति को रोजाना कबूतरों को बाजरा और काले तिल मिलाकर खिलाना चाहिए।
गिलहरी को दाना डालें।
दो रंग के फूलों को घर में लगाएं और गणेश जी को अर्पित भी करें।
कुष्ठ रोगियों को दो रंग वाली वस्तुओं का दान करें।
हर मंगलवार या शनिवार को चीटियों को मीठा खिलाएं।
अगर राहू आपकी कुंडली में १२वे घर में बैठा है तो भोजन रसोई घर में करें
अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
अपने पास ठोस चाँदी से बना वर्गाकार टुकड़ा रखें.
श्री काल हस्ती मंदिर की यात्रा.
चाय की कम से कम 200 ग्राम पत्ती 18 बुधवार दान करने से रोग कारक अनिष्टकारी राहु स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
नेत्रेत्य कोण में पीले फूल लगायें।
अपने घर के वायु कोण (उत्तर-पश्चिम) में एक लाल झंडा लगाएं।
यदि क्षय रोग से पीड़ित हों तो गोमूत्र से जौ को धो कर एक बोतल में रखें तथा गोमूत्र के साथ उस जौ से अपने दाँत साफ करें।
शनिवार के दिन अपना उपयोग किया हुआ कंबल किसी गरीब को दान करें
अमावस्या को पीपल पर रात में 12 बजे दीपक जलाएं
शिवजी पर जल, धतुरा के बीज, चढ़ाएं और सोमवार का व्रत करें
यदि राहु चंद्रमा के साथ हो तो पूर्णिमा के दिन नदी की धारा में नारियल, दूध, जौ, लकड़ी का कोयला, हरी दूब, यव, तांबा, काला तिल प्रवाहित करें।
यदि राहु सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण के समय कोयला और सरसों नदी की धारा में प्रवाहित करना चाहिए।
अगर आपकी कुंडली में भी राहु और शनि एक साथ बैठे है तो यह उपाय करे ! हर रोज मजदूरों को तम्बाकु की पुडिया दान दे ! ऐसा ४३ दिन करे आपको कभी यह योग बुरा फल नहीं देगा
यदि राहु सूर्य के साथ हो तो जौ को दूध या गौ मूत्र से धोकर बहते पानी में बहायें।
शुक्र राहु की युति होने पर दूध एवं हरे नारियल का दान करें ।
४१ दिन तक १ रूपया प्रतिदिन भंगी को दें


Sunday, 8 March 2020

ज्योतिष के अनुसार अलग-अलग नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुओं के मिलने या न मिलने

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ज्योतिष के अनुसार अलग-अलग नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुओं के मिलने या न मिलने का अलग-अलग परिणाम होता है। जिस समय हमें अपनी चोरी गई वस्तु का पता लगे उस समय के नक्षत्र या अंतिम बार आपने फलां वस्तु को किस वक्त देखा था, उस समय के नक्षत्र के अनुसार चोरी गई वस्तु का विचार किया जाता है।

आइये जानते हैं किस नक्षत्र का क्या परिणाम होता है:
1. रोहिणी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और रेवती को ज्योतिष में अंध नक्षत्र माना गया है। इन नक्षत्रों में चोरी होने वाली वस्तु पूर्व दिशा में जाती है और जल्दी मिल जाती है। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी हुई है तो वह अधिक दूर नहीं जाती है उसे आसपास ही तलाशना चाहिए।
2. मृगशिरा, अश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा, अश्विनी ये मंद नक्षत्र कहे गए हैं। इन नक्षत्रों में यदि कोई वस्तु चोरी होती है तो वह तीन दिन में मिलने की संभावना रहती है। इन नक्षत्रों में गई वस्तु दक्षिण दिशा में प्राप्त होती है। साथ ही वह वस्तु रसोई, अग्नि या जल के स्थान पर छुपाई होती है।
3. आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत, पूर्वाभाद्रपद, भरणी ये मध्य लोचन नक्षत्र होते हैं। इन नक्षत्रों में चोरी गई वस्तुएं पश्चिम दिशा में मिल जाती हैं। वस्तु के संबंध में जानकारी 64 दिनों के भीतर मिलने की संभावना रहती है। यदि 64 दिनों में न मिले तो फिर कभी नहीं मिलती। इस स्थिति में वस्तु के अत्यधिक दूर होने की जानकारी भी मिल जाती है, लेकिन मिलने में संशय रहता है।
4. पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद, कृतिका को सुलोचन नक्षत्र कहा गया है। इनमें गई वस्तु कभी दोबारा नहीं मिलती। वस्तु उत्तर दिशा में जाती है, लेकिन पता नहीं लगा पाता कि कहां रखी गई है या आप कहां रखकर भूल गए हैं।

भद्रा, व्यतिपात और अमावस्या में गया धन प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न: लग्न के अनुसार भी चोरी गई वस्तु के संबंध में विचार किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति चोरी गई वस्तु के संबंध में जानने के लिए आए और प्रश्न करे तो जिस समय वह प्रश्न करे उस समय की लग्न कुंडली बना लेना चाहिए। या जिस समय वस्तु चोरी हुई है उस समय गोचर में जो लग्न चल रहा था उसके अनुसार फल कथन किया जाता है।

चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है
1. मेष लग्न मेष वस्तु चोरी हुई हो प्रश्नकाल में मेष लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में होती है। चोर ब्राह्मण वर्ग का व्यक्ति होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में दो या तीन अक्षर होते हैं।
2. वृषभ लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु पूर्व दिशा में होती है और चोर क्षत्रिय वर्ण का होता है। उसके नाम में आदि अक्षर म रहता है तथा नाम चार अक्षरों वाला होता है।
3. मिथुन लग्न में चोरी गई वस्तु आग्नेय कोण में होती है। चोरी करने वाला व्यक्ति वैश्य वर्ण का होता है और उसका नाम क ककार से प्रारंभ होता है। नाम में तीन अक्षर होते हैं।
4. कर्क लग्न में वस्तु चोरी होने पर दक्षिण दिशा में मिलती है और चोरी करने वाला शूद्र होता है। उसका नाम त अक्षर से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं।

वस्तु नैऋत्य कोण में होती है
5. सिंह लग्न में चोरी हो तो वस्तु नैऋत्य कोण में होती है। चोरी करने वाला नौकर, सेवक होता है। चोर का नाम न से प्रारंभ होता है और नाम तीन या चार अक्षरों का होता है।
6. प्रश्नकाल या चोरी के समय कन्या लग्न हो तो चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम म से प्रारंभ होता है। नाम में कई वर्ण हो सकते हैं।
7. चोरी के समय तुला लग्न हो तो वस्तु पश्चिम दिशा में जानना चाहिए। चोरी करने वाला पुत्र, मित्र, भाई या अन्य कोई संबंधी होता है। इसका नाम म से प्रारंभ होता है और नाम में तीन वर्ण होते हैं। तुला लग्न में गई वस्तु बड़ी कठिनाई से प्राप्त होती है।

वस्तु नैऋत्य कोण में होती है
8. वृश्चिक लग्न में चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में होती है। चोर घर का नौकर ही होता है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम चार अक्षरों वाला होता है। चोरी करने वाला उत्तम वर्ण का होता है।
9. प्रश्नकाल या चोरी के समय धनु लग्न हो तो चोरी गई वस्तु वायव्य कोण में होती है। चोरी करने वाली कोई स्त्री होती है और उसका नाम स अक्षर से प्रारंभ होता है। नाम में चार वर्ण पाए जाते हैं।
10. चोरी के समय मकर लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर दिशा में समझनी चाहिए। चोरी करने वाला वैश्य जाति का होता है। नाम चार अक्षरों का होता है और वह स से प्रारंभ होता है।
11. प्रश्नकाल या चोरी के समय कुंभ लग्न हो तो चोरी गई वस्तु उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होती है। इस प्रश्न लग्न के अनुसार चोरी करने वाला व्यक्ति कोई मनुष्य नहीं हो बल्कि चूहों या अन्य जानवरों के द्वारा इधर-उधर कर दी जाती है।
12. मीन लग्न में वस्तु चोरी हुई हो तो वस्तु ईशान कोण में होती है। चोरी करने वाला निम्न जाति का व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति चोरी करके वस्तु को जमीन में छुपा देता है। ऐसे चोर का नाम व अक्षर से प्रारंभ होता है और उसके नाम में तीन अक्षर रहते हैं। चोर कोई परिचित महिला या नौकरानी भी हो सकती है।