Tuesday, 6 October 2020
सिट्रीन उपरत्न | Citrine | Citrine Gemstone - Metaphysical Properties Of Citrine
यह उपरत्न पीले रंग से लेकर सुनहरे रंग तक की आभा वाले रंगों में पाया जाता है. यह एक पारभासी उपरत्न है. इस उपरत्न को देखने पर यह पुखराज का भ्रम पैदा करता है. इस उपरत्न को पहनने की शुरुआत प्राचीन समय में ग्रीक देश से हुई थी. उसके बाद से यह उपरत्न लुप्त जैसे हो गया था. 1930 से यह उपरत्न फिर से उपयोग में लाया जाने लगा. प्रथम और द्वित्तीय महायुद्ध के बीच यह उपरत्न "आर्ट डेको" आंदोलन के लिए प्रसिद्ध हो गया. यह क्वार्टज की तरह का उपरत्न है. सिट्रीन का यह नाम सिट्रोन शब्द से लिया गया है. फ्रेन्च में सिट्रोन का अर्थ नींबू है. यह उपरत्न नींबू जैसे रंग का होता है. इसके अतिरिक्त यह गहरे पीले रंग में भी पाया जाता है. यह अम्बर उपरत्न जैसे रंग में भी पाया जाता है.
इस उपरत्न में आयरन उपस्थित होता है. आयरन की जितनी अधिक मात्रा होगी उतना ही यह उपरत्न गहरा होता जाएगा. यह उपरत्न जितना गहरा होता है उतना ही बढ़िया माना जाता है जबकि हल्के रंग का सिट्रीन अधिक शुद्ध होता है. वर्तमान समय में मिलने वाले सिट्रीन को ताप तथा ऊष्मा में तपाकर उपयोग में लाया जाता है. कई व्यापारी सिट्रीन को टोपाज बताकर भी बेच देते हैं. इसलिए दोनों उपरत्नों में अन्तर करना आना चाहिए.
सिट्रीन के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Citrine
इस उपरत्न में कई गुण विद्यमान होते हैं. इस उपरत्न को मस्तिष्क के विकास के लिए उपयोग में लाया जाता है. प्राचीन समय के लोगों का विश्वास है कि सिट्रीन उपरत्न को यदि माथे के मध्य में रखा जाएगा तो व्यक्ति की मानसिक तथा अलौकिक शक्ति का विस्तार होता है. जातक के आत्मसम्मान में वृद्धि करता है. किसी अन्य के शोषण से सुरक्षा करता है. व्यक्ति के समुचित विकास के लिए नए विचारों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. विचारों में स्पष्टता लाता है. यह उपरत्न व्यापारियों के लिए शुभ माना जाता है. उनके व्यापार में वृद्धि करता है. आर्थिक रुप से सम्पन्न होने में मदद करता है. सिट्रीन को यदि रुपये रखने के स्थान पर रख दिया जाए तो जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं.
यह उपरत्न धारणकर्त्ता को मानसिक शांति तथा संतुष्टि प्रदान करता है. लक्ष्यों को प्राप्त करने में मददगार सिद्ध होता है. व्यक्ति के अन्तर्ज्ञान में वृद्धि करता है. रचनात्मक क्रिया-कलापों में वृद्धि करता है. नकारात्मक ऊर्जा से जातक की सुरक्षा करता है.
सिट्रीन के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Citrine
जिन व्यक्तियों को पाचन संबंधी परेशानियाँ रहती हैं उन्हें यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इससे उनकी पाचन प्रणाली सुचारु रुप से काम करेगी. व्यक्ति के पेट में पाचन तंत्र में जहरीली चीजों को खतम करता है. उसे शुद्ध बनाता है. पेट को साफ रखने में सहायक होता है. इसे धारण करने से व्यक्ति की उदासीनता का अंत होता है. कई व्यक्ति इस उपरत्न का उपयोग तनाव को दूर करने में इस्तेमाल करते हैं. कब्ज से राहत मिलती है. डायबिटिज को कम करता है. पेट संबंधी सभी विकारों को दूर करने में सहायक होता है. शरीर के प्रवाह तंत्र को नियंत्रित रखता है. यह थायराइड को भी सक्रिय रखता है. यह धारणकर्त्ता को खुश रखता है तथा दूसरों से प्यार करना सिखाता है.
उपरोक्त बातों के अतिरिक्त यह उपरत्न आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाता है. कैरियर को आगे बढा़ने में सहायक होता है. जो लोग अपना नया बिजनेस आरम्भ करना चाहते हैं उनके लिए यह अत्यधिक लाभदायक होता है. उन्हें सफलता बनाता है. व्यक्ति को अपने बिजनेस को चलाने के लिए जिसका भी साथ चाहिए, वह उन्हें मिलता है. जैसे बिजनेस चलाने के लिए कच्चा माल, तैयार माल को बेचना और बाजार में उसे लोकप्रिय बनाना आदि जैसे कार्यों में रुकावट नहीं आती है. यह उपरत्न व्यक्ति के अंदर भीड़ में भी बोलने की क्षमता का विकास करता है. यह व्यक्ति को साहसिक बनाता है और विचारों में तीव्रता लाता है. व्यक्ति के विश्वास को कठिन परिस्थितियों में भी डगमगाने नहीं देता है.
यह व्यक्ति के नाभि चक्र को नियंत्रित करता है. यह नाभि चक्र व्यक्ति के शारीरिक तथा भौतिक शक्ति का केन्द्र है. इस उपरत्न को धारण करने से यह चक्र संतुलित रहता है.
कौन धारण करे । Who Should Wear Citrine
इस उपरत्न को सभी वर्गों के व्यक्ति धारण कर सकते हैं.
नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.
जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है.
* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र - 8/में है तो खोई वस्तु घर में ही है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है.
* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है.
* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है.
* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है.
* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है.
* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है.
* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है.
* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है.
खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है.
नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra
अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan
रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा.
मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan
अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा.
मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan
भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद.
सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras
कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद.
* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है.
* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है.
* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस
जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम
जैमिनी ज्योतिष में दशाक्रम बिलकुल भिन्न होता है. इस पद्धति में कुल बारह दशाएँ होती हैं जो बारह राशियों पर आधारित होती हैं. आइए सबसे पहले आप बारह राशियों के बारे में जान लें. बारह राशियाँ हैं :-
(1) मेष राशि
(2) वृष अथवा वृषभ राशि
(3) मिथुन राशि
(4) कर्क राशि
(5) सिंह राशि
(6) कन्या राशि
(7) तुला राशि
(8) वृश्चिक राशि
(9) धनु राशि
(10) मकर राशि
(11) कुम्भ राशि
(12) मीन राशि
राशियों के स्वामी ग्रह | Planetary Lord of the Signs
प्रत्येक राशि का स्वामी ग्रह अलग होता है. सूर्य तथा चन्द्रमा को एक-एक राशि का स्वामित्व मिला है जबकि अन्य बची सभी राशियों में एक-एक ग्रह को दो राशियों का स्वामी माना गया है. राहु तथा केतु को किसी भी राशि का आधिपत्य प्राप्त नहीं है. यह दोनों छाया ग्रह हैं. जिस राशि में होते हैं उस राशि के स्वामी ग्रह के जैसे बर्ताव करते हैं.
राशि ग्रह स्वामी
मेष मंगल
वृष शुक्र
मिथुन बुध
कर्क चन्द्रमा
सिंह सूर्य
कन्या बुध
तुला शुक्र
वृश्चिक मंगल
धनु बृहस्पति
मकर शनि
कुम्भ शनि
मीन बृहस्पति
राशियों का दशाक्रम | Rashidasha Kram
पिछले अध्याय में आपने राशियों तथा राशि स्वामियों के बारे में जानकरी हासिल की. जैमिनी चर दशा में यह बारह राशियाँ पूरे भचक्र का एक चक्कर 24 घण्टे में पूर्ण करती हैं. हर राशि के आगे लिखी संख्या उस राशि की स्वामी है. जैसे पिछले अध्याय में 1 संख्या की स्वामी मेष राशि है. बाकी राशियाँ भी इसी प्रकार क्रम से स्वामी हैं. प्रत्येक राशि की अपनी स्वतंत्र दशा होती है. चर दशा में एक राशि की दशा कम-से-कम एक वर्ष तक रहती है और अधिक-से-अधिक बारह वर्ष तक की दशा व्यक्ति को मिलती है.
दशा निर्धारण के लिए जैमिनी ऋषि ने कुछ नियम निर्धारित किए हैं. चर दशा में छ: राशियों का दशाक्रम सव्य(Direct) होता है और बाकी छ: राशियों का दशाक्रम अपसव्य(Indirect) होता है.
सव्य वर्ग की राशियाँ | Direct category signs
यदि किसी व्यक्ति के लग्न में मेष, सिंह, कन्या, तुला, कुम्भ तथा मीन राशि आती है तो वह सव्य वर्ग की राशियाँ कहलाती हैं. माना लग्न में मेष राशि है तब सबसे पहले मेष राशि की दशा आरम्भ होगी. उसके बाद वृष राशि की दशा होगी. उसके बाद मिथुन राशि आदि की दशाएँ क्रम से चलेगीं. अंत में मीन राशि की दशा होगी. उसके बाद पुन: वही चक्र आरम्भ हो जाएगा.
अपसव्य वर्ग की राशियाँ | Indirect category signs
जन्म कुण्डली के लग्न में यदि वृष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु तथा मकर राशियाँ आती हैं तो दशा का क्रम अपसव्य होगा. उदाहरण के लिए लग्न में मकर राशि है तब सबसे पहली दशा मकर राशि की होगी. उसके बाद धनु राशि की दशा होगी. धनु के बाद वृश्चिक राशि, फिर तुला राशि, कन्या राशि, सिंह राशि, कर्क राशि, मिथुन राशि, वृष राशि, मेष राशि, मीन राशि और अंतिम दशा कुम्भ राशि की होगी. इसके बाद फिर से दशाक्रम उसी प्रकार चलेगा.
अन्तर्दशाक्रम | Antardasha Kram
जैमिनी पद्धति में प्रत्येक राशि की महादशा में अन्तर्दशा क्रम भी महादशा क्रम की तरह हैं. जैसे अपसव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम अपसव्य चलेगा और सव्य वर्ग की राशियों का दशाक्रम सव्य चलेगा परन्तु चर दशा में एक बात पर विशेष ध्यान यह देना होगा कि हर राशि की महादशा में उसी राशि की अन्तर्दशा सबसे अंत में आएगी. माना मेष राशि जन्म कुण्डली के लग्न में है तो मेष राशि की दशा में वृष राशि की अन्तर्दशा सर्वप्रथम होगी. उसके बाद मिथुन राशि की अन्तर्दशा होगी. मिथुन के बाद क्रम से सभी राशियों की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में मेष राशि की महादशा में मेष राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी.
अपसव्य वर्ग में यदि धनु राशि की महादशा चल रही है तो धनु राशि की महादशा में सर्वप्रथम वृश्चिक राशि की अन्तर्दशा चलेगी. उसके बाद तुला राशि. फिर कन्या राशि की अन्तर्दशा चलेगी. अंत में धनु राशि की महादशा में धनु राशि की अन्तर्दशा आरम्भ होगी.
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