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Wednesday, 23 August 2017

॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥

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॥ श्रीकृष्ण चालीसा ॥
दोहा
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥

जय यदुनंदन जय जगवंदन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्‍तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर, नाग नथैया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरि टेरौ ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

राजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥

कुंडल श्रवण, पीत पट आछे ।
कटि किंकिणी काछनी काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पूतनहि तार्‍यो ।
अका बका कागासुर मार्‍यो ॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई ।
मूसर धार वारि वर्षाई ॥

लगत लगत व्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नख धारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहार्‍यो ।
कंसहि केस पकिड़ दै मार्‍यो ॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भीमहिं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मार्‍यो ।
भक्‍तन के तब कष्ट निवार्‍यो ॥

दीन सुदामा के दुःख टार्‍यो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्‍यो ॥

प्रेम के साग विदुर घर माँगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखी प्रेम की महिमा भारी ।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हाँके ।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके ॥

निज गीता के ज्ञान सुनाए ।
भक्‍तन हृदय सुधा वर्षाए ॥

मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा साँप पिटारी ।
शालीग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करि तत्काला ।
जीवन मुक्‍त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहि वसन बने नंदलाला ।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला ॥

अस अनाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावै नैया ॥

`सुन्दरदास' आस उर धारी ।
दया दृष्टि कीजै बनवारी ॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥

दोहा
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि ।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ॥

Saturday, 19 August 2017

शेख चिल्ली की चिट्ठी

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मियाँ शेख चिल्ली के भाई दूर किसी शहर में बसते थे। किसी ने शेख चिल्ली को बीमार होने की खबर दी तो उनकी खैरियत जानने के लिए शेख ने उन्हें खत लिखा। उस जमाने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्‍ठियाँ गाँव के नाई के जरिये भिजवाया करते थे या कोई और नौकर चिट्‍ठी लेकर जाता था।

लेकिन उ‍न दिनों नाई उन्हें बीमार मिला। फसल कटाई का मौसम होने से कोई नौकर या मजदूर भी खाली नहीं था अत: मियाँ जी ने तय किया कि वह खुद ही चिट्‍ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्‍ठी लेकर घर से निकल पड़े। दोपहर तक वह अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्‍ठी पकड़ाकर लौटने लगे।

उनके भाई ने हैरानी से पूछा - अरे! चिल्ली भाई! यह खत कैसा है? और तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है?

भाई ने यह कहते हुए चिल्ली को गले से लगाना चाहा। पीछे हटते हुए चिल्ली बोले - भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्‍ठी लिखी थी। चिट्‍ठी ले जाने को नाई नहीं मिला तो उसकी बजाय मुझे ही चिट्‍ठी देने आना पड़ा।

भाई ने कहा - जब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहरो। शेख चिल्ली ने मुँह बनाते हुए कहा - आप भी अजीब इंसान हैं। समझते नहीं। यह समझिए कि मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज निभा रहा हूँ। मुझे आना होता तो मैं चिट्‍ठी क्यों लिखता?

घर मैं दरिद्रता रहने के कुछ खास कारन

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*1:-* रसोई घर के पास में पेशाब करना ।
*2:-* टूटी हुई कंघी से कंघा करना ।
*3:-* टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
*4:-* घर में कूड़ा-करकट रखना।
*5:-*रिश्तेदारों से बदसुलूकी करना।
*6:-* बांए पैर से पैंट पहनना।
*7:-* सांध्या वेला मे सोना।
*8:-* मेहमान आने पर नाखुश होना।
*9:-* आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
*10:-* दाँत से रोटी काट कर खाना।
*11:-* चालीस दिन से ज्यादा बाल रखना
*12:-*दाँत से नाखून काटना।
*13:-*औरतों का खड़े-खड़े बाल बाँधना।
*14:-*फटे हुए कपड़े पहनना ।
*15:-*सुबह सूरज निकलने के बाद तक सोते रहना।
*16:-*पेड़ के नीचे पेशााब करना।
*17:-*उल्टा सोना।
*18:-*शमशान भूमि में हँसना ।
*19:-*पीने का पानी रात में खुला रखना।
*20:-*रात में मांगने वाले को कुछ ना देना ।
*21:-*मन में बुरे ख्याल लाना।
*22:-*पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
*23:-*शौच करते वक्त बातें करना।
*24:-*हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
*25:-*अपनी औलाद को हरदम कोसना।
*26:-*दरवाजे पर बैठना।
*27:-*लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
*28:-*साधू फकीर को अपमानित करना, उनसे रोटी या फिर और कोई चीज खरीदना।
*29:-*फूँक मार के दीपक बुझाना।
*30:-*ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन करना।
*31:-*झूठी कसम खाना।
*32:-*जूते चप्पल उल्टा देख कर उसको सीधा नहीं करना।
*33:-*मकड़ी का जाला घर में रखना।
*34:-*रात को झाड़ू लगाना।
*35:-*अन्धेरे में भोजन करना ।
*36:-*घड़े में मुँह लगाकर पानी पीना।
*37:-*धर्मग्रंथ न पढ़ना।
*38:-*नदी, तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेशाब करना ।
*39:-*गाय, बैल को लात मारना ।
*40:-*माता-पिता का अपमान करना ।
*41:-*किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उड़ाना ।
*42:-*दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
*43:-*बिना स्नान किये  भोजन करना ।
*44:-*पड़ोसियों का अपमान करना, गाली देना ।
*45:-*मध्यरात्रि में भोजन करना ।
*46:-*गंदे बिस्तर पर सोना ।
*47:-*वासना और क्रोध से भरे रहना ।
*48:-*दूसरे को अपने से हीन समझना ।