Thursday, 18 January 2018
श्रीलक्ष्मीस्तोत्रं देवकृत
॥ श्रीलक्ष्मीस्तोत्रं देवकृत ॥
क्षमस्व भगवंत्यव क्षमाशीले परात्परे ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपे च कोपादिपरिवर्जिते ॥
उपमे सर्वसाध्वीनां देवीनां देवपूजिते ।
त्वया विना जगत्सर्वं मृततुल्यं च निष्फलम् ॥
सर्वसम्पत्स्वरूपा त्वं सर्वेषां सर्वरूपिणी ।
रासेश्वर्यधि देवी त्वं त्वत्कलाः सर्वयोषितः ॥
कैलासे पार्वती त्वं च क्षीरोदे सिन्धुकन्यका ।
स्वर्गे च स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं मर्त्यलक्ष्मीश्च भूतले ॥
वैकुंठे च महालक्ष्मीर्देवदेवी सरस्वती ।
गंगा च तुलसी त्वं च सावित्री ब्रह्मालोकतः ॥
कृष्णप्राणाधिदेवी त्वं गोलोके राधिका स्वयम् ।
रासे रासेश्वरी त्वं च वृंदावन वने-वने ॥
कृष्णा प्रिया त्वं भांडीरे चंद्रा चंदनकानने ।
विरजा चंपकवने शतशृंगे च सुंदरी ॥
पद्मावती पद्मवने मालती मालतीवने ।
कुंददंती कुंदवने सुशीला केतकीवने ॥
कदंबमाला त्वं देवी कदंबकाननेऽपि च ।
राजलक्ष्मी राजगेहे गृहलक्ष्मीगृहे गृहे ॥
इत्युक्त्वा देवताः सर्वा मुनयो मनवस्तथा ।
रूरूदुर्नम्रवदनाः शुष्ककंठोष्ठ तालुकाः ॥
इति लक्ष्मीस्तवं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरूत्थाय स वै सर्वै लभेद् ध्रुवम् ॥
अभार्यो लभते भार्यां विनीतां सुसुतां सतीम् ।
सुशीलां सुंदरीं रम्यामतिसुप्रियवादिनीम् ॥
पुत्रपौत्रवतीं शुद्धां कुलजां कोमलां वराम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं वैष्णवं चिरजीविनम् ।
परमैश्वर्ययुक्तं च विद्यावंतं यशस्विनम् ।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं भ्रष्टश्रीर्लभते श्रियम् ॥
हतबंधुर्लभेद्बंधुं धनभ्रष्टो धनं लभेत् ।
कीर्तिहीनो लभेत्कीर्तिं प्रतिष्ठां च लभेद् ध्रुवम् ॥
सर्वमंगलदं स्तोत्रं शोकसंतापनाशनम् ।
हर्षानंदकरं शश्वद्धर्म मोक्षसुहृत्प्रदम् ॥
॥ इति श्रीदेवकृत लक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Ruchi Sehgal
श्रीलक्ष्मीस्तोत्रं इन्द्ररचितम्
॥ श्रीलक्ष्मीस्तोत्रं इन्द्ररचितम् ॥
श्रीसम्पदाकल्ष्मीस्तोत्रम्
श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः ।
कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नमः ॥ १॥
पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नमः ।
पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नमः ॥ २॥
सर्वसम्पत्स्वरूपायै सर्वदात्र्यै नमो नमः ।
सुखदायै मोक्षदायै सिद्धिदायै नमो नमः ॥ ३॥
हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नमः ।
कृष्णवक्षःस्थितायै च कृष्णेशायै नमो नमः ॥ ४॥
कृष्णशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने ।
सम्पत्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नमः ॥ ५॥
शन्याधिष्ठादेव्यै च शस्यायै च नमो नमः ।
नमो बुद्धिस्वरूपायै बुद्धिदायै नमो नमः ॥ ६॥
वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्लक्ष्मीः क्षीरोदसागरे ।
स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहे राजलक्ष्मीर्नपालये ॥ ७॥
गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता ।
सुरभि सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामनी ॥ ८॥
अदितिर्देवमाता त्वं कमला कमलालये ।
स्वाहा त्वं च हविर्दाने कव्यदाने स्वधा स्मृता ॥ ९॥
त्वं हि विष्णुस्वरूपा च सर्वाधारा वसुन्धरा ।
शुद्धसत्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायाणा ॥ १०॥
क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना ।
परमार्थप्रदा त्वं च हरिदास्यप्रदा परा ॥ ११॥
यया विना जगत् सर्वे भस्मीभूतमसारकम् ।
जीवन्मृतं च विश्वं च शवतुल्यं यया विना ॥ १२॥
सर्वेषां च परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी ।
यया विना न सम्भाप्यो बाध्ववैर्बान्धवः सदा ॥ १३॥
त्वया हीनो बन्धुहीनस्वत्वया युक्तः सबान्धवः ।
धर्मार्थकाममोक्षाणां त्वं च कारणरूपिणी ॥ १४॥
यथा माता स्तनन्धानां शिशूनां शैशवे सदा ।
तथा त्वं सर्वदा माता सर्वेषां सर्वरूपताः ॥ १५॥
मातृहीन स्नत्यक्तः स चेज्जीवति दैवतः ।
त्वया हीनो जनःकोऽपि न जीवत्येव निश्चितम् ॥ १६॥
सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके ।
वैरिग्रस्तं च विषयं देहि मह्मं सनातनि ॥ १७॥
वयं यावत् त्वया हीना बन्धुहीनश्च भिक्षुकाः ।
सर्वसम्पद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये ॥ १८॥
राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि ।
कीर्ति देहि धनं देहि यशो मह्मं च देहि वै ॥ १९॥
कामं देहि मतिं देहि भोगान देहि हरिप्रिये ।
ज्ञानं देहि च धर्मे च सर्वसौभाग्यमीप्सितम् ॥ २०॥
प्रभावां च प्रतापं च सर्वाधिकारमेव च ।
जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमैव च ॥ २१॥
इत्युक्त्वा च महेन्द्रश्च सर्वैः सुरगणैः सह ।
प्रणमाम साश्रुनेत्रो मूर्ध्ना चैव पुनः पुनः ॥ २२॥
ब्रह्मा च शङ्करश्चैव शेषो धर्मश्च केशवः ।
सर्वेचक्रुः परिहारं सुरार्थे च पुनः पुनः ॥ २३॥
देवेभ्यश्च वरं दत्वा पुष्पमालां मनोहराम् ।
केशवाय ददा लक्ष्मीः सन्तुष्टा सुरसंसदि ॥ २४॥
ययुदैवाश्च सन्तुष्टाः स्वं स्वं स्थानञ्च नारद ।
देवी ययोऐ हरेः क्रोडं दृष्टा क्षीरोदशायिनः ॥ २५॥
ययतुश्चैय स्वगृहं ब्रह्मेशानी च नारद ।
दत्वा शुभाशिषं तौ च देवेभ्यः प्रीतिपूर्वकम् ॥ २६॥
इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्न्रः ।
कुबेरतुल्यः स भवेत् राजराजेश्वरो महान् ॥ २७॥
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत् सोऽपि कल्पतरूर्नरः ।
पञ्चलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥ २८॥
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेन्मासमेकं च संयतः ।
महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशयः ॥ २९॥
॥ इतिश्री इन्द्रकृतं लक्ष्मीस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
Ruchi Sehgal
सुख-समृद्धि के टोटके ( Sukh samridhi ke totke )
हर व्यक्ति चाहता है कि उसे सुख-समृद्धि ( Sukh Smraddhi ) मिले उसके पास धन की कोई भी कमी ना हो, वह और उसका परिवार समस्त भौतिक सुख सुविधाओं का लाभ उठा सके। इसके लिए सभी मनुष्य जीवन भर मेहनत करते है बहुत से लोगो को अपने कार्यो में सफलता मिलती है उनके पास पर्याप्त धन होता है, वह अपनी आवश्यताओं को आसानी से पूर्ण कर लेते है अपने सभी शौक को पूरा कर लेते है लेकिन अधिकांश लोग चाहकर भी अधिक धन प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाते है । या उनकी कमाई तो होती है लेकिन धन रुक नहीं पाता है, खर्चे पहले से ही तैयार रहते है ।
ज्योतिष शास्त्र में ऐसे सुख-समृद्धि पाने के उपाय ( Sukh Smraddhi pane ke upay ) बताये गए है जिन्हें करने से जातक को अपनी मेहनत, अपने प्रयास के उत्तम फल मिलने लगते है, उसे माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।
शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। माता लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास अवश्य ही होता है। घर में शंख जरूर रखें इससे घर में सुख-समृद्धि ( Sukh Smraddhi ) आती है ।
पति या पत्नी में कोई भी रात्रि में सोने से पहले घरं में ईश्वर का स्मरण करते हुए दो फूल वाले लौंग देसी कपूर के साथ जला लें मां लक्ष्मी की कृपा ( ma laxmi ki kripa ) सदैव बनी रहेगी ।
शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करने से मां लक्ष्मी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं । उस व्यक्ति के घर में सुख समृधि ( sukh Smraddhi ) बनी रहती है ।
बांस की बनी हुई बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है, उस परिवार में परस्पर प्रेम और सहयोग तो बना रहता ही है साथ ही उस घर में धन-वैभव ( Dhan vaibhav ) , सुख-समृद्धि ( Sukh samridhi ) की भी कोई कमी नहीं रहती है। ध्यान दीजियेगा की बांसुरी टूटी / चिटकी न हो और उस पर कोई रेशमी मोटा धागा अवश्य बांध दें।
माह के किसी भी शुक्रवार के दिन 3 कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाकर पीला वस्त्र व दक्षिणा देकर विदा करें। इससे मां लक्ष्मी की उस घर पर हमेशा कृपा बनी रहती हैं।
किसी शुभ मुहूर्त में लाल धागे में सातमुखी रुद्राक्ष गले में धारण करने से अवश्य ही धन लाभ होता है।
सफेद अकाव की जड़ को सफेद कपड़े में बांधकर घर के धन स्थान में रखने से समृद्धि बढ़ती है।
घर में समृद्धि लाने हेतु घर के उत्तर पश्चिम के कोण (वायव्य कोण) में सुन्दर से मिट्टी के बर्तन में कुछ सोने-चांदी के सिक्के, लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर बर्तन को गेहूं या चावल से भर दें। ऐसा करने से घर में धन का अभाव नहीं रहेगा।
काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार उसार कर घर के उत्तर दिशा में फेंक दें, धनहानि बंद होगी।
Ruchi Sehgal