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Tuesday, 19 June 2018

The Power of Beej Mantra-बीज मंत्र की महिमा

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ॐ कार मंत्र जैसे दूसरे २० मंत्र और हैं | उनको बोलते हैं बीज मंत्र | उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं | सब बिज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है | जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं |

ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है | ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी की पूजा में करते हैं | लेकिन बं.... उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है | गठिया ठीक हो जाता है | शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो बं..... शब्द, गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है | बीज मंत्र है खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता | ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | खं शब्द |

ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है | ब्रह्म वाचक | तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं |
ॐ, खं और कं |

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है | रीं रामाय नम: ||
कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है | क्लीं कृष्णाय नम: ||

तो जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ मिंडी लगा दो तो १० गुना हो गया | ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम: | तो हुं बिज मंत्र है | ॐ बिज मंत्र है | विष्णवे..., तो विष्णु भगवान का सुमिरन | ये आरोग्य के मंत्र हैं | तो बिज मंत्र जिसमें जितन|

ये जो देवता लोग आशीर्वाद देते हैं अथवा जिनका आशीर्वाद पड़ता है, उनके जीवन में बीज मंत्रो का भी प्रभाव पड़ता है |

मंत्र शास्त्र में बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। मंत्रों में भी इन्हें शिरोमणि माना जाता है क्योंकि जिस प्रकार बीज से पौधों और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार बीज मंत्रों के जप से भक्तों को दैवीय ऊर्जा मिलती है। ऐसा नहीं है कि हर देवी-देवता के लिए एक ही बीज मंत्र का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। बल्कि अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग बीज मंत्र हैं।

“ऐं” सरस्वती बीज । यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं। जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है। जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“ह्रीं” भुवनेश्वरी बीज । यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है। इसे माया बीज कहते हैं। जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“क्लीं” काम बीज । यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है। जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“श्रीं” लक्ष्मी बीज । यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है। जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख होकर कमलगट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

"ह्रौं" शिव बीज । यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

"गं" गणेश बीज । यह गणपति का बीज मंत्र है। विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

"श्रौं" नृसिंह बीज । यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“क्रीं” काली बीज । यह काली का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।

“दं” विष्णु बीज । यह



Ruchi Sehgal

Tuesday, 22 May 2018

दाम्पत्य कलह :–कारण और निदान

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आजकल यह समस्या आम है .लड़ाई झगड़ा न भी हो रहा हो , तो भी पति पत्नी एक दूसरे की सूरत से बेजार शिकायतों का गुबार मन में दबाये घुटते रहते है .यहाँ हम सभी तरह के कारण और ऩिदान बता रहे हैं .



1–मानसिक लगाव न होना .भौतिक अपेक्छा और केवल सेक्स सम्बन्ध का आधार होना .

निदान -साँस के साथ राधे कृष्ण मंन्त्र का 9 बजे रात के बाद जप . या तो स्वयं को राधा कल्पित करें या पति को कृष्ण .जप विधि धमाेलय में देखें

2–..पति द्वारा  भावना विहीन ,प्रेम विहीन सेक्स करना .

निदान –शिवलिंग पर बेल पत्र और जल चढ़ा कर 9 बेल पत्र का शबेत पति को आयु वृद्धि के नाम पर पिलायें .यह पति के मंगली होने पर मंगल दोष भी काटता हैं

3– स्वयं ही अधिक सेक्सी होना य़ा पति के सेक्स की दुबॆलता ..

निदान –यदि पति का लिंग टेढ़ा या दुबेल नहीं है ,तो गूलर, पीपल ,पाकड़ ,बरगद् इनमें स् किसी का कच्चा फल सुखा कर पीस कर 6 ग्राम की मात्रा में मिश्री और दूध के साथ ‌लेने पर 10दिन रति वजिेत करने पर वह सशक्त हो जायेगा .

4–पति से वितृषणा .उसे पसन्द न करना .

निदान –यह कठिन मामला होता है ,पत्नी की नापसन्दगी हर बात मेम झलकती है और कलह होता है ंपुरूष मारपीट पर आमादा हो जाता है .नापसन्दगी के कई कारण होते है .निदान उसके अनुसार होते हैं .कोई भी महिला दिन में 11 से 1 बजे के बीच निशुल्क सलाह ले सकतीं हैं .

5   — पत्नी से विमुखता .

निदान –इसके भी कई कारण होते हैं .दोनों में कोई भी इसका कारण हो सकता है .पत्नी का सेक्स में कापरेट न करना या किसी अन्य स्त्री से लगाव इसका प्रमुख कारण होता है .विशेष कर धनपति परिवारों में पति का लगाव किसी न किसी अन्य स्त्री से होता हैं .अक्सर ऐसी स्त्रियाँ काला जादू का भी प्रयोग किये रहतीं हैं .इसकी सामान्य पहचान पुरूष का खोया रहना है.

निदान — जादू की काट ,सुरक्छा और वशीकरण .किसी जानकार से स्म्पर्क करें .
6–किसी अन्य पुरूष पर मन का लगाव ,भले ही मन की बात जुँबाँ पर न आये भी दामंपत्य कलह का कारण होता है .तब पति की अच्छी बात भी चनका देती है.

निदान –मन को सम्हालें.गुरुमंत्र का जप करें

7–सम्भोग में कष्ट होना .यह स्त्रीको होता है .कारण योनि का एसिडिटिक होना या पुरूष के विपरित होना होता है .

निदान –गन्धप्रसारिणी 20 ग्राम 6घन्टे पानीमेम रखकर मसल कर पीयें .

पत्नी शशक प्रकृति की और पुरुष वृषभ या अश्व प्रकृति की हो ,तो योनि छोटी होने के कारण ददॆ होता है .पद्मिनी को अश्व वृषभ भोगे तो भी ददे होताहै .



Ruchi Sehgal

मिर्गी , हिस्टीरिया और प्रेतग्रस्त का अन्तर

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दिव्य तांत्रिक चिकित्सा

मिर्गी , हिस्टीरिया और प्रेतग्रस्त का अन्तर



(विशेष शोध निष्कर्ष)

मिर्गी

इसे संस्कृत में अपस्मार कहा जाता है। यह नर्वस सिस्टम की एक बीमारी है। कारण अभी तक आधुनिक चिकित्सा को ज्ञात नहीं है। तन्त्र विद्या में कहा गया है की (भावार्थ डिस्कवरी) – मस्तिष्क में विद्युतीय प्रवाह के बाधित होने से यह रोग होता है। इसमें पृथ्वी की ऊर्जा जो तलवों से ऊपर चढती है, तलपेट में जाकर या पाँव गलत जगह पड़ने से प्रदूषित हो जाती है। यह भाप जैसी बन कर ऊपर चढती है और मिर्गी रोग होता है, क्योंकि यह स्नायुओं में विद्युतीय प्रवाह को बाधित कर देती हैं।



लक्षण – एकाएक शरीर में कम्पन , गिरना , बेहोशी इसके लक्षण है, परन्तु बेहोशी आवश्यक नहीं। कभी-कभी यह किसी विशेष अंग के नर्तन (कम्पन) के रूप में प्रकट होता है। स्पष्ट है की केवल उस लोग अंग में विद्युतीय प्रवाह बाधित होता है। यह खान-पान की गड़बड़ी से होता है।
ऊपरी बाधा – जब दौरे से पहले रोगी को आग, भयानक चेहरे , विकराल भयानक आंधी आदि दिखाई दें और वह भयभीत होकर चिल्लाने लगे, तो ऐसे मिर्गी के दौरे ऊपरी बाधा के माने गये है। ये जल्दी आराम नहीं होते। आधुनिक चिकित्सा में इन्हें मिर्गी ही माना गया है, पर क्यों में यहाँ भी कारण का पता नहीं है।
हिस्टीरिया

यह मानसिक दौरा केवल स्त्रियों को पड़ता है। अक्सर यह रोग 15 से 30 वर्ष की उम्र में होता है। आधुनिक चिकित्सा में इसका प्रधान कारण मासिक धर्म का विकार समझा जाता है। साइक्लोजिस्ट इसे मानसिक अवसाद की उत्पत्ति मानते हैं। तन्त्र विद्या में कहा गया है कि मानसिक घुटन , निराशा , प्रणय में अफलता , पारिवारिक प्रताड़ना इसका प्रमुख कारण है।

तन्त्र में कहा गया है कि हिस्टीरिया के समान लक्षण 12 प्रकार की ऊपरी शक्तियों के कारण भी उत्पन्न होते हैं। इसके दौरे विचित्र प्रकार के होते हैं।  इसके दौरे विचित्र प्रकार के होते हैं। वैद्यों की भी यही राय  रही है। इन दोनों के अंतर को केवल लक्षणों से पहचाना जा सकता है।



हिस्टीरिया के लक्षण – रोगिनी एक एक चिल्लाती हैं और बेहोश हो जाती हैं। इससे पहले वह बैचैनी से इधर-उपधार भागती हैं। कोई – कोई दौरे की बेहोशी के ही काल में  सो जाती हैं।



ऊपरी 12 प्रकार की शक्तियों के प्रकोप के लक्षण – इसमें बेहोशी नहीं होती। रोगिनी  जोर से चिल्लाती है या हँसने लगती हैं या रोने लगती हैं और तरह-तरह के विलाप करती है या अपने आस-पड़ोस की औरतों – पुरुषों के बारे में अनाप-सनाप कहती हैं , गालियाँ भी देती हैं। कोई-कोई नाचने – गाने लगती हैं। श्राप देना या आशीर्वाद देना , स्वयं को देवी-देवता या मृतात्मा बताना, भविष्यवाणी करना , कोसना आदि इसके लक्षण अनेक प्रकार के होते हैं। इसमें सारी बातें अर्थपूर्ण होती है। रोगिनी बेहोश नहीं होती और 5 या 10 मिनट में सामान्य हो जाती हैं। उस दौरे के समय की कोई बात याद नहीं रहती हैं। यह प्रकोप 8 से 35 – 40 वर्ष तक भी होता है। यह दौरा कुछ निश्चित तिथियों में उग्र होकर पड़ता है या निश्चित पक्ष में।

(भूत-प्रेत के अनेक लक्षण रूप होते हैं।  शक्तियों के भी सैकड़ों लक्षण होते हैं। यहाँ केवल हिस्टीरिया के लक्षणों के समान प्रकोप की चर्चा की गयी हैं।



चिकित्सा – जब तक कारण का ज्ञान न हों, लक्षण से यह पता न चले कि कारण क्या है? यह बिमारी है या प्रकोप ? चिकित्सा हानिकारक होती हैं



Ruchi Sehgal