कर्ण के अंग देश का राजा बनने पश्चात् अपना अधिकांश समय दुर्योधन के साथ बिताया। वे ज्यादातर शाम को दुर्योधन के साथ चौसर का खेल खेलते थे । एक दिन सूर्यास्त के बाद, दुर्योधन को क्षणिक रूप से कही जाना पड़ा। भाग्यवश उनकी पत्नी भानुमती, जो उस वक्त वही से गुज़र रही थी उसने देखा के कर्ण चौसर के समीप बैठा है और दुर्योधन के वापिस लौटने की प्रतीक्षा कर रहे है। इसे मई उसके मन मै ख्याल आया के क्यों न वह अपने पति दुर्योधन के तरफ से खेल खेलना जारी कर दे। और जैसे ही उसने चौसर खेलने के इच्छा व्यक्त करि वैसे ही कर्ण ने भानुमति को सहमति प्रदान करि और खेल खेलना पुनः शुरू कर दिया।
अचानक खेल खेल मैं किसी बिंदु पर उनके बीच एक अनौपचारिक झगड़ा होने लगा और दोनों ही स्वयं को सही कह कर बहस करने लगे। इसी बहस के बीच कर्ण ने पासा को भानुमति के हाथ से छीनने की कोशिश की। पर अचानक से पैसा छीनने की कोशिश मे भानुमती की चुनरी नीचे गिर गई और साथ ही भानुमति के गले का हार ( मोती का हार ) टूट गया। पुरे फर्श पर हर जगह मोती बिखर गए ।
उसी पल अचानक दुर्योधन ने कक्ष में प्रवेश किया और उसने अपनी पत्नी को अर्ध वस्त्र में तथा अपने प्रिये मित्र कर्ण को अपनी पत्नी के साथ संदेहस्पदाक स्थिति मे देखा। यु अचानक दुर्योधन को सामने देखकर भानुमति और कर्ण दोनों ही खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगे के जैसे मानो अभी दुर्योधन दोनों को दण्डित करेगा। उस वक्त भानुमति और कर्ण के वस्त्र आपस मे उलझे हुए थे और फर्श पर चारो तरफ मोती ही मोती बिखरे हुए थे।
दुर्योधन दोनों के चेहरों पर घबराहट और शर्मिंदगी अचे से देख रहा था परन्तु उसने स्थिति को हलके से लिया और माहौल हुए पूछा के क्या हुआ आप दोनों आपस मे क्यों लड़ रहे थे। कारण जानने के बाद उन्होंने एक मजाक उड़ाया और जोर से हँसे और कहा के वह दोनों खेलना जारी रखे यदि उसे मालूम होता के आप दोनों उपस्थिति मई खेलना ही चोर देंगे तो वह बिना बताये कक्ष मे नहीं आता।
बाद में, जब भानुमती ने दुर्योधन से पूछा कि उन्हें संदेह क्यों नहीं था, उन्होंने जवाब दिया, "एक संबंध में संदेह के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि जब संदेह होता है तो कोई संबंध नहीं होगा। कर्ण मेरा सबसे अच्छा दोस्त है और तुम मेरी अर्धांगिनी , मैं उस पर भरोसा करता हूं और तुम पर भी। तथा मुझे पूर्ण विशवास है के तुम दोनों मेरा विश्वास कभी नहीं तोड़ोगे।
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