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Wednesday 7 November 2018

क्या वास्तव मे इस्लाम धर्म मे नारी की स्थिति दयनीय है

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इस दुनिया के सभी धर्म और धर्म प्रचारको का मुख्यत एक ही प्रमुख उद्देश्य रहा है वो है प्रेम, सद्भावना और भाईचारे को बढ़ाना और द्वेष , क्रोध और लालच को कम करना।

इस्लाम धर्म का उदय अरब मे हुआ। इस्लाम के आने से पूर्व वह की ओरतो की स्थिति बहित दयनीय थी। ज्यादातर लोग तो लड़की के पैदा होते ही उसे मार दिया करते थे क्योंकि उस वक्त जो भी शक्तिशाली समूह या व्यक्ति होता था वह लड़की के बड़े होने पर उसे जबरन उठा ले जाते थे जिस वजह से लोग लड़की होना यानी बदनामी की वजह मानते थे।
लोग ताकत और लड़ाई के बल पर 200 ओरतो से भी शादी किया करते थे या बिना शादी के ही उन्हें खुद के ऐशो और हवस के लिए इस्तमाल किया करते थे । कई बार पिता की बीवियों को , पिता के देहांत के बाद उनके पुत्र खुद शादी कर लिया करते थे। तो स्त्री को न तो जीवनसाथी चुनने का अधिकार था, न शादी से इनकार करने का और न ही उन्हें किसी प्रकार की जायदाद या सम्पदा रखने का अधिकार प्राप्त था वास्तव मई उस वक्त स्त्री और जानवर की स्थिति मे कोई फर्क नहीं था

परन्तु इस्लाम के आने से उन्हें अपना जीवनसाथी स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार दिया गया। और हर स्त्री को यह अधिकार प्राप्त हुआ के वह यदि चाहे को शादी से इनकार करे या कबूल करे।

उन्हें तलाक की स्थिति मे हक़ मेहर देना भी इस्लाम मे जरुरी कर दिया गया ताकि वह तलाक के बाद भी अपना जीवन निर्वाह कर सके।

और साथ ही पुरषो पे भी 4 शादियों से अधिक शादियों पे पाबन्दी लगाई गई
इसके आलावा इस्लाम में एक औरत जो की माँ हो उसका स्थान पिता से तीन पायदान ऊपर है, इस्लाम मे माँ का स्थान सब रिश्तों मे पहला है और दूसरा और तीसरा  स्थान भी माँ को ही दिया गया ताकि माँ के महत्त्व को सबसे ऊपर रखकर बताया जा सके।

यदि उस समय के परिपेक्षव को देकग जाए तो वास्तव मे  इस्लाम के आने से औरत की स्थिति मजबूत हुई हलाकि यह केवल अरब के बारे मई कहा जा सकता है क्योंकि भारत और बाकी के दुनिया में अलग अलग धर्म में औरत को अलग अलग तरह से इज्जत दी गई है

भारत इस्लाम धर्म का हिस्सा, बहुविवाह प्रथा और तलाक प्रथा का विरोध करता है कययकि तलाक उर्दू शब्द है और हिन्दू धर्म में कही भी तलाक के जैसा कुछ शब्द या स्थिति नहीं कही गई है। वाही बहुविवाह प्रचलन का भी हिन्दू लोग विरोध करते है क्योंकि श्री राम यदि एक पत्नी संग निर्वाह कर सकते है तो साधारण मनुष्य को भी ऐसा करना चाहिए

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