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Thursday, 3 May 2018

सास और बहु के सम्बन्ध

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हिन्दू धर्म शास्त्रों में पुत्र का बहुत महत्व है । पुत्र को अपने माता पिता अपने पितरों को नरक से बचाने वाला कहा गया है। हर माता पिता की यह हार्दिक इच्छा होती है कि उनके योग्य और वंश का नाम रौशन करने वाला पुत्र हो जिसके साथ वह अपना जीवन बिता सके।

हर व्यक्ति चाहता है कि उसके घर में सुख शान्ति हो लेकिन कई बार देखा जाता है कि परिवार में लड़के की शादी होने पर जब घर में बहु आती है तो परिवार के लोगो का उसके साथ सामंजस्य नहीं बैठ पाता है घर में कलह होनी शुरू हो जाती है । आज कल शादी के बाद अलग रहने का चलन बहुत ही ज्यादा बढ़ गया है इससे माँ बाप जिन्होंने अपने पुत्र को बढ़े ही लाड़ प्यार से पाला होता है की स्थिति बहुत ही विकट हो जाती है ।
पहले पुत्र को बुढ़ापे का सहारा कहा जाता था अब पुत्र जब पढ़ लिख कर कुछ करने लायक होता है बहुधा देखा जाता है कि शादी के बाद अपनी पूर्णतया अलग ही दुनिया बसा लेता है, या तो अलग हो जाता है या साथ रह कर भी ऐसी स्तिथि हो जाती है कि अलगाव ही बना रहता है । इसके बहुत से कारण हो सकते है ।

शादी के बाद एक लड़की अपना सब कुछ छोड़ कर एक नए घर, नए वातावरण में आती है वहाँ पर उसे अपना सबसे नजदीकी अपना पति ही लगता है जिसको वह अपना तन, मन, धन सब कुछ सौप देती है लेकिन उस घर में उसके पति के पहले से ही रिश्ते माता पिता, भाई भाभी, बहन बहनोई होते है जिनके साथ वह लम्बे समय से रह रहा होता है । इन रिश्तों से आपसी सामंजस्य बनाना बहु और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए कई बार बहुत ही कठिन हो जाता है ।

इसके अतिरिक्त आज कल की संस्कृति, तेजी से बढ़ते टी वी , इन्टरनेट के चलन, बढ़ते भौतिकवाद के कारण भी नव दम्पति अपनी एक अलग ही रूमानी दुनिया का सृजन कर लेते है जिसके कारण भी कई बार टकराव होने लगता है।

याद रखिये साथ में रहने से परिवार और नव दम्पति दोनों को ही बहुत लाभ होते है । उस घर की आने वाली संताने सुशिक्षित और सुसंस्कृत होती है, परिवार में आर्थिक , सामाजिक और मानसिक सुरक्षा रहती है , बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी आसानी से हल हो जाती है ।

परिवार में टकराव , अनबन सबसे ज्यादा सास और बहु के बीच ही होती है , लेकिन इसका सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव लड़के पर ही पड़ता है । यहाँ पर हम कुछ उपाय बता रहे है जिससे सास बहु के बीच कलह दूर रह सकती है ।

 सास व बहू में आपसी संबंध में कटुता होने पर बहू या सास दोनों में कोई भी चांदी का चौकोर टुकड़ा अपने पास रखें, और ईश्वर से अपनी सास / बहु से सम्बन्ध अच्छे रहने की प्रार्थना करे । इससे दोनों के बीच में सम्बन्ध प्रगाढ़ होते है ।

सास या बहु में जो भी कोई सम्बन्ध सुधारने को इच्छुक हो वह शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से माथे पर हल्दी या केसर की बिंदी लगाना शुरू करें।

सास-ससुर का कमरा सदैव दक्षिण-पश्चिम दिशा में ही होना चाहिए और बेटे-बहू का कमरा पश्चिमी या दक्षिण दिशा में। अगर बेटे-बहू का रूम दक्षिण-पश्चिम में होता है, तो उनका सास-ससुर से झगडा बना ही रहेगा, घर में आये दिन कलेश रहेगा । परिवार पर अपना नियंत्रण रखने के लिए इस दिशा में घर के बडों को ही रहना चाहिए।.

किचन कभी भी घर के ईशान कोण या मध्य में ना हो, यह आपसी संबंधों के लिए बेहद घातक है। घर की रसोई आग्नेय कोण यानी उत्तर-पूर्व में होनीं चाहिए , रसोई गलत जगह में होने पर सास-बहू के आपसी क्लेश, मनमुटाव बना ही रहेगा ।

अगर रसोई में दोष है तो उसके आग्नेय कोण में एक लाल रंग का बल्ब लगा दें , इसके अतिरिक्त अगर रसोई घर आग्नेय दिशा के स्थान पर किसी और दिशा में बनी हो तो उसकी दक्षिण और आग्नेय दिशा की दीवार को लाल रंग से रंगकर कर उसका दोष दूर किया जा सकता हैं।

 जिस घर की स्त्रियां / बहु घर के वायव्य अर्थात उत्तर-पश्चिम कोण में शयन / निवास करती है वह अपना अलग से घर बसाने के सपने देखने लगती है। इसलिए इस दिशा में नई दुल्हन को तो बिलकुल भी नहीं रखे अन्यथा उसका परिवार के साथ अलग होना तय है । वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार दक्षिण-पश्चिम कोण में सास को सोना चाहिए , उसके बाद बड़ी बहु को पश्चिम दिशा में और उससे छोटी बहु को पूर्व दिशा में शयन करना चाहिए। इससे घर की स्त्रियों में प्रेम बना रहेगा ।


 सास बहु में कलेश होने पर जो चाहता है कि आपसी रिश्ते सुधरे उसे गले में चांदी की चेन धारण करनी चाहिए और यह भी ध्यान रहे कि कभी किसी से भी कोई सफेद वस्तु न लें।


Wednesday, 11 April 2018

ऐसे करे हनुमान साधना

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हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। जो भक्त सेवा भाव से हनुमान जी की सेवा करता हैं वो हनुमान जी की दया रूपी छाव में निश्चिंत हो जाता हैं। किसी प्रकार का भय या डर उस जातक को नही डराता। हनुमान जी को प्रसन्न करना अत्यधिक सरल हैं। किसी भी विघ्न में हनुमान जी का स्मरण निर्विघ्न कर देता हैं। हनुमान जी सभी सिद्धियों के दाता हैं उन्हे प्रसन्न करके कोई भी सिद्धि व शक्ति को प्राप्त किया जा सकता हैं। 

हनुमान साधाना से पूर्व कुछ नियमों का ध्यान अवश्य रखें-
1- पूजन के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
2- निश्छल सेवा भावना रखें तथा क्रोध व अहं से पूर्णत: दूर रहें।
3- हनुमान जी को घी के लड्डू प्रसाद रूप में अर्पित करें।
4- तामसिक भोजन का परित्याग करें, अनुष्ठान के दौरान यदि सम्भव हो तो नमक का प्रयोग भी न करें। या मंगल वार के दिन व्रत करें उस दिन नमक सेवन न करें।

हनुमान साधना-
1- हनुमान जी को राम भकत अत्यधिक प्रिय हैं। तुलसीदास जी ने राम का स्मरण किया उन्हे हनुमान जी सहज प्राप्त हो गये। अत: रामायण का पाठ नित्य प्रेम पूर्वक करें। पूजन का समय एक ही रखें, बार-बार न बदलें। हनुमान जी को राम कथा इतनी पसंद हैं की वो राम कथा के कारण ही राम जी के साथ साकेत नहीं गये।
2- हनुमान चालीसा में तुलसीदास जी लिखते हैं की राम रसायन तुम्हरे पासा, यहां जिस राम रसायन के बारे में बताया गया हैं वो राम नाम का जाप ही हैं इसे अपने गले का हार बना लिजिये, आप हनुमान जी के चहेते बन जाओगे।
3- हनुमान चालीसा का प्रभाव अत्यधिक चमत्कारी हैं, इसका नित्य 11 बार पाठ करिये हनुमान जी खुद प्रसन्न होकर आप को वरदान देने आयेंगे। तुलसीदास जी को वाल्मिकी जी के पुनर्जन्म के रूप में जाना जाता हैं। इस विषय में कथा प्रचलित हैं की संसार की प्रथम रामयण हनुमान जी ने लिखि थी लेकिन वाल्मिकी की प्रसन्नता हेतु उसे समुद्र में प्रवाहित कर दिया था तब वाल्मिकी ने हनुमान जी को वचन दिया की थी की मेरा अगला जन्म आपकी गाथा लिखने के लिये होगा।

4- हनुमान साधना के कुछ तांत्रिक प्रयोग व मंत्र हैं जिनको साधकर हनुमान जी को प्रसन्न किया जा सकता हैं। यहां में कुछ बीज मंत्रों के बारे में वर्णन कर रहा हूं जिन में से किसी भी मंत्र का जाप हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जा सकता हैं। शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से लाल आसन पर हनुमान जी की प्रतिष्ठित मूर्ति के सामने बैठ कर घी का दीपक जला कर लाल चंदन की माला अथवा मूंगे की माला पर नित्य 11 माला 40 दिन करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
– ऊँ हुँ हुँ हनुमतये फट्।
-ऊँ पवन नन्दनाय स्वाहा।
– ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट।
– अष्टदशाक्षर मंत्र अत्यधिक चमत्कारी एवं हनुमान जी की कृपा देने वाला हैं, मंत्र महोदधी में वर्णित है कि जिस घर में इस मंत्र का जाप होता हैं वहां किसी प्रकार की हानि नही होती। धन-सम्पन्नता व खुशियां सर्वत्र फैली हुई होती हैं।  ‘नमो भगवते आन्जनेयाये महाबलाये स्वाहा’ इस मंत्र के देवता हनुमान हैं, ऋषि ईश्वर हैं, हुं बीज है, स्वाहा शक्ति हैं तथा अनुष्टुप छंद है। इस मंत्र का 10000 बार जप करना चाहिये तथा दशांस हवन करना चाहिये।

– हनुमान जी के कुछ प्रसिद्ध मंत्र जिनकी साधना करने से समस्त प्रकार के दुख: व संकट हमेशा के लिये नष्ट हो जाते हैं। 41 दिनों तक नित्य 3 या 7 माला घी का दीपक जला कर उसके सम्मुख जाप करें संयम पूर्वक इन मंत्रों को जाप करें।
– ओम नमों हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमित विक्रमाय प्रकटपराक्रमाय महाबलाय सूर्य कोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।
– ओम नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसहांरणाय सर्वरोगाय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।
– ओम नमो हनुमते रुद्रावतराय वज्रदेहाय वज्रनखाय वज्रसुखाय वज्ररोम्णे वज्रनेत्राय वज्रदंताय वज्रकराय वज्रभक्ताय रामदूताय स्वाहा। जय श्री रा

हनुमान जी की कृपा से मिलेगी अष्ट सिद्धि, नव निधि

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  हनुमानजी रुद्र के ग्यारहवें अवतार हैं तथा अतुलित बल के स्वामी हैं। हनुमान जी को अनेक देवों की शक्तियां प्राप्त है। हनुमान जी के पास राम रसायन रूपी महाशक्ति है। तुलसीदास जी  लिखते हैं,  हनुमान जी के पास अष्ट सिद्धि व नव निधियां हैं तथा सीता जी के वरदान स्वरूप  ये किसी को भी अष्ट सिद्धि नव निधि प्रदान कर सकते हैं-
अष्ट सिद्धि नव निद्धि के दाता
अस वर दीन्ह  जानकी माता..
इन सिद्धियों का प्रभाव अत्यधिक चमत्कारी हैं, जो असम्भव को सम्भव कर  सकती हैं। हनुमान जी इनके बल पर अनेकों अचरज भरे कार्य करते हैं। चाहे वो पर्वत उठाना हो या सुक्ष्म शरीर करना हो इन सिद्धियों द्वारा ही पूर्ण होते है। इस लेख में मैं आपकों इन सिद्धियों के बारे में बताउंगा तथा इन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता हैं उस बारे में बताऊंगा-
मार्कंडेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में सिद्धियों का उल्लेख आया है-
अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:। (अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य,महिमा, ईशित्व और वशित्व)
अणिमा – इस सिद्धि द्वारा शरीर अत्यधिक सुक्ष्म हो जाता हैं। अणु या कण के समान होना।
महिमा – इस सिद्धि द्वारा साधक अपने शरीर को विशालकाय बना सकता है। प्राय: असुरों के पास यह सिद्धि रहती थी।
गरिमा – इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है। महाभारत में भीम हनुमान जी की पूंछ को उठा नही पाया था। उस समय हनुमान जी ने इसी सिद्धि का प्रयोग किया था।
लघिमा- इस सिद्धि द्वारा साधक अपने शरीर को पुष्प से भी हल्का बना सकता हैं।
प्राप्ति – इस सिद्धि द्वारा किसी भी मनवांछित वस्तु की प्राप्ती की जा सकती हैं।
प्राकाम्य – इस सिद्धि द्वारा व्यक्ति किसी भी रूप में परिवर्तित हो सकता है व कुछ भी कर सकता है, समुद्र पर चल सकता है, आकाश में उड सकता है।
ईशित्व – ईश्वर की अनुकम्पा प्राप्त कर ईश्वर के समान हो जाता है।
वशित्व – इस सिद्धि द्वारा सम्पूर्ण जगत को अपने प्रभाव में किया जा सकता है या किसी को भी वश में किया जा सकता हैं।
नौ निधियां  : –
निधियां कई प्रकार की होती हैं। इन निधियों द्वारा जातक अतुलित धन सम्पदा से युक्त होने के साथ-साथ तत्व और प्रकृति का भी स्वामी होता है। ये प्रमुख निधियां इस प्रकार हैं-
1 पद्म निधि। 2. महापद्म निधि। 3. नील निधि। 4. मुकुंद निधि। 5. नन्द निधि। 6. मकर निधि
7. कच्छप निधि। 8. शंख निधि। 9. खर्व निधि।