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Thursday, 17 May 2018

हस्तरेखा देखकर करे मंत्र जाप

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हस्तरेखा देखकर करे मंत्र जाप.
हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण रेखाएं बताई गई हैं, इन्हीं रेखाओं की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के जीवन की भविष्यवाणी की जा सकती है। ये रेखाएं इस प्रकार हैं-

जीवन रेखा: जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र (अंगूठे के नीचे वाला भाग) को घेरे रहती है। यह रेखा तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) और अंगूठे के मध्य से शुरू होती है और मणिबंध तक जाती है। इस रेखा के आधार पर व्यक्ति की आयु एवं दुर्घटना आदि बातों पर विचार किया जाता है।

मस्तिष्क रेखा: यह रेखा हथेली के मध्य भाग में आड़ी स्थिति में रहती है। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान के पास से ही शुरू होती है। यहां प्रारंभ होकर मस्तिष्क रेखा हथेली के दूसरी ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर विचार किया जाता है।

हृदय रेखा: यह रेखा मस्तिष्क रेखा के समानांतर चलती है। हृदय रेखा की शुरूआत हथेली पर बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाला भाग) के नीचे से आरंभ होकर गुरु क्षेत्र (इंडेक्स फिंगर के नीचे वाले भाग को गुरु पर्वत कहते हैं।) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, आचार-विचार आदि बातों पर विचार किया जाता है।

सूर्य रेखा: यह रेखा सामान्यत: हथेली के मध्यभाग में रहती हैं। सूर्य रेखा मणिबंध (हथेली के अंतिम छोर के नीचे आड़ी रेखाओं को मणिबंध कहते हैं।) से ऊपर रिंग फिंगर के नीचे वाले सूर्य पर्वत की ओर जाती है। वैसे यह रेखा सभी लोगों के हाथों में नहीं होती है। इस रेखा से यह मालूम होता है कि व्यक्ति को मान-सम्मान और पैसों की कितनी प्राप्ति होगी।

भाग्य रेखा: यह हथेली के मध्यभाग में रहती है तथा मणिबंध अथवा उसी के आसपास से आरंभ होकर शनि क्षेत्र (मिडिल फिंगल यानी मध्यमा अंगुली के नीचे वाले भाग को शनि क्षेत्र कहते हैं।) को जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की किस्मत पर विचार किया जाता है।

स्वास्थ्य रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहते हैं।) से आरंभ होकर शुक्र पर्वत (अंगूठे के नीचे वाले भाग को शुक्र पर्वत कहते हैं) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी बातों पर विचार किया जाता है।
विवाह रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर आड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से व्यक्ति के विवाह और वैवाहिक जीवन पर विचार किया जाता है।
संतान रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर खड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से मालूम होता है कि व्यक्ति की कितनी संतान होंगी। संतान रेखा से यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति को संतान के रूप में कितनी लड़कियां और कितने लड़के प्राप्त होगें।


हम सभी इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि कौनसा मंत्र हमारे सभी संकटों को दूर कर देगा और किस देवता की आराधना करने से हमारा दुर्भाग्य दूर होकर सौभाग्य की प्राप्ति होगी। परन्तु यदि आप अपने हाथ की रेखाओं पर थोड़ा सा ध्यान दें तो आप स्वतः ही जान जाएंगे कि आपको अपना सोया भाग्य जगाने के लिए किस देवता की आराधना करनी चाहिए और किस मंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
* यदि हृदय रेखा पर त्रिशूल का निशान बन रहा है, अंगुलियां टेढ़ी-मेढ़ी हों तो ऐसे लोगों को केवल भगवान शिव की ही आराधना करनी चाहिए तथा उन्हें ही अपना आराध्य मानना चाहिए। इससे जीवन में आने वाले सभी संकटों और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के उपरांत मोक्ष प्राप्त होता है। उन्हें भगवान शिव के महामंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना भी अत्यन्त लाभ देता है।
* यदि हृदयरेखा के अंत से एक शाखा गुरु पर्वत (तर्जनी अंगुली के नीचे वाले हिस्से) पर जाती हो तो इन्हें रामभक्त हनुमानजी को आराध्य मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए ताकि उनके जीवन में आने वाली सभी विपदाएं तुरंत दूर हो। इन्हें प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करने से भी सभी संकटों में शांति मिलती है। हनुमान जी के मंत्र "ॐ हूं हनुमंते नमः" का जाप करना भी तुरंत लाभ देता है।
* यदि भाग्य रेखा खंडित व दोषयुक्त हो तो केवल मां महालक्ष्मी ही सहायता कर सकती है। इन्हें नीचे लिखे लक्ष्मी मंत्र का जाप करना भी लाभ देता है। इससे आर्थिक कमियों का निदान होता है और घर में सुख, धन संपत्ति आती है।मां लक्ष्मी का मंत्र है "ॐश्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ सिद्ध लक्ष्म्यै नमः"।
* यदि हाथ में सूर्य ग्रह दबा हुआ या दोषयुक्त हो तथा व्यक्ति को शिक्षा में पूर्ण सफलता नहीं मिल पा रही है, साथ ही मस्तिष्क रेखा भी खराब हो, तो इन्हें भगवान सूर्य तथा माता सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। इन्हें प्रतिदिन सु



Ruchi Sehgal

मौत के बाद क्या होता है?

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‘न तो यह शरीर तुम्हारा है और न ही तुम इस शरीर के हो। यह शरीर पांच तत्वों से बना है- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश। एक दिन यह शरीर इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा।’-ऐसा भगवान कृष्ण ने भागवत गीता में कहा है

जब शरीर छूटता है तो व्यक्ति के साथ क्या होता है यह सवाल सदियों पुराना है। इस संबंध में जनमानस के चित्त पर रहस्य का पर्दा आज भी कायम है जबकि इसका हल खोज लिया गया है। फिर भी यह बात विज्ञान सम्मत नहीं मानी जाती, क्योंकि यह धर्म का विषय है।


मुख्यत: तीन तरह के शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। व्यक्ति जब मरता है तो जीवनी शक्ति स्थूल शरीर छोड़कर पूर्णत: सूक्ष्म में ही विराजमान हो जाती है। सूक्ष्म शरीर के विसरित होने के बाद व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है, लेकिन कारण शरीर बीज रूप है जो अनंत जन्मों तक हमारे साथ रहता है।
आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है : छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1)जाग्रत (2)स्वप्न (3)सुषुप्ति और (4)तुरीय अवस्था।

तीन स्तरों का अनुभव प्रत्येक मनुष्य को होता ही है, व्यक्ति जाग्रत, स्वप्न और फिर सुषुप्ति अवस्था में जीता है लेकिन चौथे स्तर में वही जीता है जो ‍आत्मवान हो गया है या जिसने मोक्ष पा लिया है। वह शुद्ध तुरीय अवस्था में होती है जहां न तो जाग्रति है, न स्वप्न, न सुषुप्ति है ऐसे मनुष्य सिर्फ दृष्टा होते हैं- जिसे पूर्ण-जागरण की अवस्था भी कहा जाता है।

प्रथम तीनों अवस्थाओं के कई स्तर है। कोई जाग्रत रहकर भी स्वप्न जैसा जीवन जिता है, जैसे खयाली राम या कल्पना में ही जीने वाला। कोई चलते-फिरते भी नींद में रहता है, जैसे कोई नशे में धुत्त, चिंताओं से घिरा या फिर जिसे कहते हैं तामसिक।
हमारे आसपास जो पशु-पक्षी हैं वे भी जाग्रत हैं, लेकिन हम उनसे कुछ ज्यादा होश में हैं तभी तो हम मानव हैं। जब होश का स्तर गिरता है तब हम पशुवत हो जाते हैं। कहते भी हैं कि व्यक्ति नशे में व्यक्ति जानवर बन जाता है। पेड़-पौधे और भी गहरी बेहोशी में हैं।
मरने के बाद व्यक्ति का जागरण, स्मृति कोष और भाव तय करता है कि इसे किस योनी में जन्म लेना चाहिए इसीलिए वेद कहते हैं कि जागने का सतत अभ्यास करो। जागरण ही तुम्हें प्रकृति से मुक्त करा सकता है।
क्या होता है मरने के बाद : सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने गहरा अंधेरा छा जाता है, जहां उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। कुछ समय तक कुछ आवाजें सुनाई देती है कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसा कि स्वप्न में होता है और फिर धीरे-धीरे वह गहरी सुषुप्ति में खो जाता है, जैसे कोई कोमा में चला जाता है।
गहरी सुषुप्ति में कुछ लोग अनंतकाल के लिए खो जाते हैं, तो कुछ इस अवस्था में ही किसी दूसरे गर्भ में जन्म ले लेते हैं। प्रकृति उन्हें उनके भाव, विचार और जागरण की अवस्था अनुसार गर्भ उपलब्ध करा देती है। जिसकी जैसी योग्यता वैसा गर्भ या जिसकी जैसी गति वैसी सुगति या दुर्गति। गति का संबंध मति से होता है। सुमति हो तो सुगति। दुरमति हो तो दुर्गति होती है ।
लेकिन यदि व्यक्ति स्मृतिवान (चाहे अच्छा हो या बुरा) है तो सुषुप्ति में जागकर चीजों को समझने का प्रयास करता है। फिर भी वह जाग्रत और स्वप्न अवस्था में भेद नहीं कर पाता है। वह कुछ-कुछ जागा हुआ और कुछ-कुछ सोया हुआ सा रहता है, लेकिन उसे उसके मरने की खबर रहती है। ऐसा व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक की उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश नहीं हो जाता। कुछ अपवाद स्वरूप जन्म ले लेते हैं जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है।
लेकिन जो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा स्मृतिवान, जाग्रत या ध्यानी है उसके लिए दूसरा जन्म लेने में कठिनाइयां खड़ी हो जाती है, क्योंकि प्राकृतिक नियमों के अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृतिहीन रहना जरूरी है। इनमें से कुछ लोग जो सिर्फ स्मृतिवान हैं वे भूत, प्रेत या पितर योनी में रहते हैं और जो जाग्रत हैं वे कुछ काल तक अच्छे गर्भ की तलाश का इंतजार करते हैं। लेकिन जो सिर्फ ध्यानी है या जिन्होंने गहरा ध्यान किया है वे अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी और कभी भी जन्म लेने के लिए स्वतंत्र हैं। यह प्राथमिक तौर पर किए गए तीन तरह के विभाजन है। विभाजन और भी होते हैं जिनका वेदों में उल्लेख मिलता है।
जब हम गति की बात करते हैं तो तीन तरह की गति होती है। सामान्य गति, सद्गगति और दुर्गति। सद्गगति वाला ईश्वरीय ऊर्जा के निकट स्वतंत्र होता है, सामान्य गति वाला कामनाओं के प्रभाव में शीघ्र जन्म लेता है, तामसिक प्रवृत्ति व कर्म से दुर्गति ही प्राप्त होती है, अर्थात इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि व्यक्ति कब, कहां और कैसी योनी में जन्म ले। यह चेतना में डिमोशन जै



Ruchi Sehgal

उर्वशी अप्सरा प्रत्यक्षीकरण साधना.

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उर्वशी अप्सरा प्रत्यक्षीकरण साधना.
नारायण की जंघा से उर्वशी की उत्पत्ति मानी जाती है। पद्म पुराण के अनुसार कामदेव के ऊरू से इसका जन्म हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार यह स्वर्ग की सर्वसुन्दर अप्सरा थी।शास्त्रों में कई स्थानों पर अप्सराओं का उल्लेख आता है।

आखिर ये अप्सराएं कौन हैं? यह प्रश्न काफी लोगों के मन में उठता है। अप्सराएं बहुत ही सुंदर, मनमोहक, किसी की भी तपस्या भंग करने में सक्षम कन्याएं होती बताई गई हैं। जब भी कोई असुर, राजा, ऋषि या अन्य कोई मनुष्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करता है वहां देवराज इंद्र अप्सराओं को भेजकर उनका तप भंग करवाने की चेष्टा करते हैं। ऐसा ही उल्लेख वेद-पुराण में बहुत से स्थानों पर आया है।

शास्त्रों के अनुसार देवराज इंद्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं मुख्य रूप से बताई गई हैं। इन सभी अप्सराओं का रूप बहुत ही सुंदर बताया गया है। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रंभा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्मा। वेद-पुराण में कई स्थानों में इन अप्सराओं के नाम आए हैं, जहां इन्होंने घोर तपस्या में लीन भक्तों के तप को भी भंग कर दिया।

सौन्दर्य, सुख प्रेम की पूर्णता हेतु रम्भा, उर्वशी और मेनका तो देवताओं की अप्सराएं रही हैं, और प्रत्येक देवता इन्हे प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहा है। यदि इन अप्सराओं को देवता प्राप्त करने के लिए इच्छुक रहे हैं, तो मनुष्य भी इन्हे प्रेमिका रूप में प्राप्त कर सकते हैं। इस साधना को सिद्ध करने में कोई दोष या हानि नहीं है तथा जब अप्सराओं में श्रेष्ठ उर्वशी सिद्ध होकर वश में आ जाती है, तो वह प्रेमिका की तरह मनोरंजन करती है, तथा संसार की दुर्लभ वस्तुएं और पदार्थ भेट स्वरुप लाकर देती है। जीवन भर यह अप्सरा साधक के अनुकूल बनी रहती है, वास्तव में ही यह साधना जीवन की श्रेष्ठ एवं मधुर साधना है तथा प्रत्येक साधक को इस सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए।





साधना विधान:-
इस साधना को किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। यह रात्रिकालीं साधना है। स्नान आदि कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाएं। सामने पीले वस्त्र पर 'उर्वशी यंत्र' (ताबीज) स्थापित कर दें तथा सामने पांच गुलाब के पुष्प रख दें। फिर पांच घी के दीपक लगा दें और अगरबत्ती प्रज्वलित कर दें। फिर उसके सामने 'सोनवल्ली' रख दें और उस पर केसर से तीन बिंदियाँ लगा लें और मध्य में निम्न शब्द अंकित करें -
॥ ॐ उर्वशी प्रिय वशं करी हुं ॥
Om urvashi priy vashyam kari hoom

इस मंत्र के नीचे केसर से अपना नाम अंकित करें। फिर उर्वशी माला से निम्न मंत्र की १०१ माला जप करें -


मंत्र:-
॥ ॐ ह्रीं उर्वशी मम प्रिय मम चित्तानुरंजन करि करि फट ॥
om hreem urvashi mam priy mam chittaanuranjan kari kari phat



यह मात्र सात दिन की साधना है और सातवें दिन अत्यधिक सुंदर वस्त्र पहिन यौवन भार से दबी हुई उर्वशी प्रत्यक्ष उपस्थित होकर साधक के कानों में गुंजरित करती है कि जीवन भर आप जो भी आज्ञा देंगे, मैं उसका पालन करूंगी । तब पहले से ही लाया हुआ गुलाब के पुष्पों वाला हार अपने सामने मानसिक रूप से प्रेम भाव उर्वशी के सम्मुख रख देना चाहिए। इस प्रकार यह साधना सिद्ध हो जाती है और बाद में जब कभी उपरोक्त मंत्र का तीन बार उच्चारण किया जाता है तो वह प्रत्यक्ष उपस्थित होती है तथा साधक जैसे आज्ञा देता है वह पूरा करती है। साधना समाप्त होने पर 'उर्वशी यंत्र (ताबीज)' को धागे में पिरोकर अपने गलें में धारण कर लेना चाहिए। सोनवल्ली को पीले कपड़े में लपेट कर घर में किसी स्थान पर रख देना चाहिए, इससे उर्वशी जीवन भर वश में बनी रहती है।




अब बात करेंगे की सोनवल्ली क्या है?
जो साधक पारद के अठारह संस्कार जानते है उनके लिये यह कोइ नया नाम नही है।पारद तंत्र मे स्वर्ण निर्माण प्रक्रिया मे अगर सोनवल्ली का सही प्रयोग किया जाये तो क्रिया मे पुर्ण सफलता प्राप्त होता है किंतु सिर्फ सोनवल्ली के आधार पर क्रिया नही कर सकते है,इसके लिये अन्य जडियो का भी महत होता है। आज के समय मे ओरिजिनल सोनवल्ली मिलना आसान कार्य नही है।





आदेश......



Ruchi Sehgal