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Thursday, 17 May 2018

रुद्र भैरव साधना

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रुद्र भैरव साधना.
पुराणों में भैरव का उल्लेख.

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है -असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव। कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है.
"भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया ।।"


भैरव को शिवजी का अंश अवतार माना गया है। रूद्राष्टाध्याय तथा भैरव तंत्र से इस तथ्य की पुष्टि होती है। भैरव जी का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। उनका वाहन श्वान यानी कुत्ता है। भैरव श्मशानवासी हैं। ये भूत-प्रेत, योगिनियों के स्वामी हैं। भक्तों पर कृपावान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।





विधी-विधान:-
साधना हेतु किसि भी प्रकार का शिवलिंग और रुद्राक्ष माला जरुरी है। साधना शनीवार से शुरुवात करे और आसन वस्त्र काले रंग के हो,दिशा दक्षिण उपयुक्त है। नित्य मंत्र का 11 माला जाप 11 दिनो तक करने से सफलता मिलता है।



विनियोग :-
l अस्य श्रीरूद्र-भैरव मंत्रस्य महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषि:,सदाशिव महेश्वर-मृत्युंजय-रुद्रो-देवता,विराट छन्द:,श्रीं ह्रीं क्ली महा महेश्वर बीजं,ह्रीं गौरी शक्ति:,रं ॐकारस्य दुर्गा कीलकं,मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोग:।





ऋषि आदि न्यास :-
न्यास मे जहा शरिर के भागो का नाम दिया है वहा मंत्रों  को बोलते हुये शरिर को स्पर्श करे.
ॐ महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषये नम:-शिरसिl
सदाशिव -महेश्वर -मृत्युंजयरुद्रो देवताये नम:-हृदये l
विराट छन्दसे नम:-मुखे l
श्रीं ह्रीं कलीम महा महेश्वर बीजाय नम:-नाभयो l
रं ॐकारस्य कीलकाय नम:-गुह्ये l
मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोगाय नम:-सर्वांगे ll



करन्यास:-
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने ॐ ह्रीं रां सर्व शक्ति धाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नम: l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने नं रीं नित्य -
तृप्ति धाम्ने तत्पुरुषात्मने तर्जिनीभ्यां स्वाहा l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने मं रुं अनादि शक्ति धाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्यां वषट l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने शिं रैं स्वतंत्र
-शक्ति धाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्यां हुम् l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने वां रौं अलुप्त शक्ति धाम्ने सद्योजात्मने कनिष्ठिकाभ्यां वोषट l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने ॐ यं र:
अनादि शक्ति धाम्ने सर्वात्मने करतल कर पृष्ठाभ्यां फट ll
न्यास के पश्चात् ”श्री रूद्र-भैरव” का ध्यान करे-




ध्यान :-
वज्र दंष्ट्रम त्रिनयनं काल कंठमरिन्दम l
सहस्रकरमप्युग्रम वन्दे शम्भु उमा पतिम ll





मंत्र :-
ll ॐ नमो भगवते रुद्राय आगच्छ आगच्छ प्रवेश्य प्रवेश्य सर्व-शत्रुंनाशय-नाशय धनु: धनु: पर मंत्रान आकर्षय-आकर्षय स्वाहा ll




किसी भी साधना से पूर्व इस मंत्र विधि-पूर्वक जप करने से साधक की अन्य साधना का फल सुरक्षित रहता है l यहाँ तक की अन्य की विद्या का आकर्षण भी कर लेता है l



Ruchi Sehgal

गुप्त-सप्तशती

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गुप्त-सप्तशती

सात सौ मन्त्रों की 'श्री दुर्गा सप्तशती, का पाठ करने से साधकों का जैसा कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी इसका पाठ है। यह 'गुप्त-सप्तशती' प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म-कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फल-प्रद है। इसके पाठ का क्रम इस प्रकार है। प्रारम्भ में 'कुञ्जिका-स्तोत्र', उसके बाद 'गुप्त-सप्तशती', तदन्तर 'स्तवन' का पाठ करे।







कुञ्जिका-स्तोत्र
।पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।

श्रृणु देवि, प्रवक्ष्यामि कुञ्जिका-मन्त्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेन चण्डीजापं शुभं भवेत्॥1॥
न वर्म नार्गला-स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासं च न चार्चनम्॥2॥
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्।
अति गुह्यतमं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्व-योनि-वच्च पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठ-मात्रेण संसिद्धिः कुञ्जिकामन्त्रमुत्तमम्॥ 4॥




अथ मंत्र
ॐ श्लैं दुँ क्लीं क्लौं जुं सः ज्वलयोज्ज्वल ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल प्रबल-प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा


॥ इति मंत्रः॥
इस 'कुञ्जिका-मन्त्र' का यहाँ दस बार जप करे। इसी प्रकार 'स्तव-पाठ' के अन्त में पुनः इस मन्त्र का दस बार जप कर 'कुञ्जिका स्तोत्र' का पाठ करे।
।।कुञ्जिका स्तोत्र मूल-पाठ।।
नमस्ते रुद्र-रूपायै, नमस्ते मधु-मर्दिनि।
नमस्ते कैटभारी च, नमस्ते महिषासनि॥
नमस्ते शुम्भहंत्रेति, निशुम्भासुर-घातिनि।
जाग्रतं हि महा-देवि जप-सिद्धिं कुरुष्व मे॥
ऐं-कारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रति-पालिका॥
क्लीं-कारी कामरूपिण्यै बीजरूपा नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्ड-घाती च यैं-कारी वर-दायिनी॥
विच्चे नोऽभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि॥
धां धीं धूं धूर्जटेर्पत्नी वां वीं वागेश्वरी तथा।
क्रां क्रीं श्रीं मे शुभं कुरु, ऐं ॐ ऐं रक्ष सर्वदा।।
ॐ ॐ ॐ-कार-रुपायै, ज्रां-ज्रां ज्रम्भाल-नादिनी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि, शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥
ह्रूं ह्रूं ह्रूं-काररूपिण्यै ज्रं ज्रं ज्रम्भाल-नादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवानि ते नमो नमः॥7॥
।।मन्त्र।।
अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव, आविर्भव, हं सं लं क्षं मयि जाग्रय-जाग्रय, त्रोटय-त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा॥
म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा, कुञ्जिकायै नमो नमः।।
सां सीं सप्तशती-सिद्धिं, कुरुष्व जप-मात्रतः॥
इदं तु कुञ्जिका-स्तोत्रं मंत्र-जाल-ग्रहां प्रिये।
अभक्ते च न दातव्यं, गोपयेत् सर्वदा श्रृणु।।
कुंजिका-विहितं देवि यस्तु सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिं, अरण्ये रुदनं यथा॥
। इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।






गुप्त-सप्तशती
ॐ ब्रीं-ब्रीं-ब्रीं वेणु-हस्ते, स्तुत-सुर-बटुकैर्हां गणेशस्य माता।
स्वानन्दे नन्द-रुपे, अनहत-निरते, मुक्तिदे मुक्ति-मार्गे।।
हंसः सोहं विशाले, वलय-गति-हसे, सिद्ध-देवी समस्ता।
हीं-हीं-हीं सिद्ध-लोके, कच-रुचि-विपुले, वीर-भद्रे नमस्ते।।१
ॐ हींकारोच्चारयन्ती, मम हरति भयं, चण्ड-मुण्डौ प्रचण्डे।
खां-खां-खां खड्ग-पाणे, ध्रक-ध्रक ध्रकिते, उग्र-रुपे स्वरुपे।।
हुँ-हुँ हुँकांर-नादे, गगन-भुवि-तले, व्यापिनी व्योम-रुपे।
हं-हं हंकार-नादे, सुर-गण-नमिते, चण्ड-रुपे नमस्ते।।२
ऐं लोके कीर्तयन्ती, मम हरतु भयं, राक्षसान् हन्यमाने।
घ्रां-घ्रां-घ्रां घोर-रुपे, घघ-घघ-घटिते, घर्घरे घोर-रावे।।
निर्मांसे काक-जंघे, घसित-नख-नखा, धूम्र-नेत्रे त्रि-नेत्रे।
हस्ताब्जे शूल-मुण्डे, कुल-कुल ककुले, सिद्ध-हस्ते नमस्ते।।३
ॐ क्रीं-क्रीं-क्रीं ऐं कुमारी, कुह-कुह-मखिले, कोकिलेनानुरागे।
मुद्रा-संज्ञ-त्रि-रेखा, कुरु-कुरु सततं, श्री महा-मारि गुह्ये।।
तेजांगे सिद्धि-नाथे, मन-पवन-चले, नैव आज्ञा-निधाने।
ऐंकारे रात्रि-मध्ये, स्वपित-पशु-जने, तत्र कान्ते नमस्ते।।४
ॐ व्रां-व्रीं-व्रूं व्रैं कवित्वे, दहन-पुर-गते रुक्मि-रुपेण चक्रे।
त्रिः-शक्तया, युक्त-वर्णादिक, कर-नमिते, दादिवं पूर्व-वर्णे।।
ह्रीं-स्थाने काम-राजे, ज्वल-ज्वल ज्वलिते, कोशिनि कोश-पत्रे।
स्वच्छन्दे कष्ट-नाशे, सुर-वर-वपुषे, गुह्य-मुण्डे नमस्ते।।५
ॐ घ्रां-घ्रीं-घ्रूं घोर-तुण्डे, घघ-घघ घघघे घर्घरान्याङि्घ्र-घोषे।
ह्रीं क्रीं द्रूं द्रोञ्च-चक्रे, रर-रर-रमिते, सर्व-ज्ञाने प्रधाने।।
द्रीं तीर्थेषु च ज्येष्ठे, जुग-जुग जजुगे म्लीं पदे काल-मुण्डे।
सर्वांगे रक्त-धारा-मथन-कर-वरे, वज्र-दण्डे नमस्ते।।६
ॐ क्रां क्रीं क्रूं वाम-नमिते, गगन गड-गडे गुह्य-योनि-स्वरुपे।
वज्रांगे, वज्र-हस्ते, सुर-पति-वरदे, मत्त-मातंग-रुढे।।
स्वस्तेजे, शुद्ध-देहे, लल-लल-ललिते, छेदिते पाश-जाले।
किण्डल्याकार-रुपे, वृष वृषभ-ध्वजे, ऐन्द्रि मातर्नमस्ते।।७
ॐ हुँ हुँ हुंकार-नादे, विषमवश-करे, यक्ष-वैताल-नाथे



Ruchi Sehgal

वशिकरण तंत्र,

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वशीकरण दो शब्द वशी और करण से बना एक संस्कृत वाक्यांश है | वशीकरण शब्द का अर्थ है-

1. दूसरों को अपने वश में करने,रखने अथवा लाने की क्रिया या भाव।

2. तंत्र में एक प्रकार का प्रयोग जिसमें मंत्र बल से किसी को अपने वश में किया या लगाया जाता है।

3. ऐसा साधन जिससे किसी को वशीभूत किया जा सके या किया जाता हो।



वशीकरण के प्रयोग और लाभ-

1. दूसरों के साथ व्यवसायी और व्यक्तिगत संबंधों में सुधार करने के लिए।
2. दूसरों से एहसान जीतने के लिए उन पर दबाव और नियंत्रण लागू करने के लिए।
3. दूसरों पर एक अच्छा प्रभाव बनाने के लिए, और उनके दिल और दिमाग में प्यार और स्नेह का सृजन करने के लिए।
4. किसी के व्यक्तित्व और आकर्षण में सुधार करने के लिए, ध्यान आकर्षित करना और लोगों को आकर्षित करते है।

आज के युग में, जूनियर और प्रतिद्वंद्वियों को नियंत्रित सहयोगियों और ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए एक बैठक, सम्मेलन या साक्षात्कार के दौरान लोगों के एक समूह को प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह बहुत फायदेमंद हो सकता है। प्रेमी / पत्नियों, या भटके प्रेमियों / पत्नियों को नियंत्रित करने के लिए आपसी प्यार और समझ बढ़ाने के उद्देश्य के लिए, एक-दूसरे के लिए जुनून और आकर्षण को बढ़ाने के लिए यह भी बहुत कारगर हो सकता है।
यदि आपका इरादा उचित है और आपका प्यार सच्चा है तो वशीकरण सुनिश्चित करें,इसमे कोइ बुराइ नही है।
अधिकांश लोगों को लगता है कि वशीकरण काला जादू है, लेकिन यह सच नहीं है। वशीकरण जीवन में कई समस्याओं को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे-
1. खोया प्यार वापस पाने के लिए।
2. संबंध मजबूत बनाने के लिए।
3. शादी के लिए माता-पिता को मनाने के लिए।
4. दोस्ती के लिए किसी को प्रभावित और आकर्षित करने के लिए।
5. प्रेम विवाह से बाधाओं को दूर करने के लिए।
6. पति-पत्नी की समस्याओं को सुलझाने।
वशीकरण भी विपरीत या एक ही विशेष को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।


यंत्र, तंत्र और मंत्र के क्षेत्र में ही वशीकरण के कई अचूक और १०० प्रतिशत प्रमाणिक साधना या उपाय उपलब्ध हैं। किन्तु हर प्रयोग में किसी न किसी विशेष विधि एवं नियम-कायदों का पालन करना पड़ता ही है। इसीलिये, आज की इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में इंसान ऐसे तरीके या उपाय चाहता है जो कम से कम समय में सम्पन्न हो सकें। आजकल हर इंसान शार्टकट के जुगाड़ में लगा रहता है।
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने का सरल अनुभवी एवं अचूक प्रयोग दिया जा रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर प्रयोग इस प्रकार है।
जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना चाहते हैं, उसका एक चित्र जो कि लगभग 4×5 ईंच के आकार का तथा स्पष्ट छवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठे, तो उस चित्र की छवि आपकी आंखों के सामने ही रहे। ५ मिनिट तक सर्वप्रथम ध्यान करने के पश्चात उस चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह प्रयोग सूर्योदय से पूर्व या रात्रि मे जब शांति हो तब करना होता है।
इतना विधी तो बहोत लोग जानते होगे परंतु इसके साथ वशिकरण माला से जो "शाबर कामदेव-जागरण" मंत्र से सिद्ध हो,इसका इस्तेमाल करके चित्र को देखते हुये जाप करे तो आसानी से सफलता मिलता है।
जाप के समय "ॐ क्लीम् अमुकम मे वश्यमाणय फट्" मंत्र का जाप करे,जो आपको ध्यानस्थ होकर करना जरुरि है।
यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग के स्पष्ट प्रभाव दिखने लगते है।





नोट:अगर आप किसिसे विशेष वशिकरण माला खरीद रहे हो तो,जिससे आप ले रहे हो उसको एक बार माला सिद्धि के बारे मे प्रश्न अवश्य पुछीये ताकि आपके साथ धोका ना हो।

आदेश.



Ruchi Sehgal