Thursday, 17 May 2018
चंद्रमा शाबर मंत्र.
चन्द्रमा से मनुष्य बहुत प्रभावित रहा है। जीवन के हर पहलू में चन्द्रमा को उसने स्वयं से जोड़ कर रखा। मनुष्य ने विभिन्न लक्षणों के आधार पर चन्द्रमा के बहुत से
वैकल्पिक नाम तो रखे ही, साथ ही विशिष्ट कुल-परंपरा से भी चन्द्रमा को जोड़ा।
ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं जैसे चंद्रवंशी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया
की संतान बताया गया है जिसका नाम 'सोम' है। दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियां थीं जिनके नाम पर सत्ताईस नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं। चन्द्रमा का इनमें से रोहिणी के प्रति विशेष अनुराग था। चन्द्रमा के इस व्यवहार से अन्य पत्नियां दुखी हुईं तो दक्ष ने उसे शाप दिया कि वह क्षयग्रस्त हो जाए जिसकी
वजह से पृथ्वी की वनस्पतियां भी क्षीण हो गईं। विष्णु के बीच में पड़ने पर समुद्र मंथन से चन्द्रमा का उद्धार हुआ और क्षय की अवधि पाक्षिक हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार चन्द्रमा ने वृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया था जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा ख़ुद को चंद्रवंशी कहते थे।
चन्द्रमा माँ का सूचक है और मनं का करक है |शास्त्र कहता है की "चंद्रमा मनसो जात:" | इसकी कर्क राशि है | कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर। माता को किसी भी प्रकार का कष्ट या स्वास्थ्य को खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या
नलकूप, कुएँ आदि सूख जाते हैं मानसिक तनाव,मन में घबराहट,तरह तरह की शंका मनं में आती है औरमनं में अनिश्चित भय व शंका रहती है और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।
उत्तरा कालमित्रा के अनुसार, चंद्रमा के कुछ मुख्य महत्व इस प्रकार हैं –
1. बुद्धि 2. सुंगध 3. पेट में छिपे हुए नासूर वाले परेशानियां 4.महिला 5. नींद 6. खुशी 7. तरल पदार्थ 8. मलेरिया बुखार 9. माता 10. मोती 11. नमक 12. दिमाग 13. मुहुर्त या 48मिनट की अवधि 14. गौरी की पूजा 15. दही प्रेम 16. वह जो तपस्या करता है 17. रात को मजबूत 18. भोजन 19. चेहरे की चमक 20. अच्छे फल 21.मछली और अन्य जलीय प्राणी 22. कपड़े।
यह देखा गया है कि मजबूत चन्द्र उपर्युक्त चीजों में काफी अच्छा रखता है जबकि एक कमजोर चांद इन्हीं वस्तुओं में कुछ कमी भी लाता है।
आप दिये हुए मंत्र का जाप करके देखिये तो आपको बहोत लाभ प्राप्त होगा,मंत्र का जाप रात्री के समय मे सिर्फ 11 बार सोमवार से शुरू करना है l
चंद्र मंत्र:-
ll ओम गुरूजी सोमवार मनलागी सेन।निरमल काया,पाप न पुण्य अमर बरसाया।जस नजर सोमवार करे।सोमवार
अत्रि गोत्र श्वेत वर्ण ग्यारह हजार जाप। जमुना तट देश अग्नि स्थान,चतुर्थ मंडल ४ अंगुल।कर्क राशि के गुरू को नमस्कार।
सत फिरे तो वाचा फिरे,पानफूल वासना
सिंहासन धरे।तो इतरो काम सोमवार जी महाराज करे।ओम फट् स्वाहा ll
Ruchi Sehgal
पुष्पदेहा अप्सरा साधना (शाबर मंत्र).
गुरु गोरखनाथ प्रणित एक श्रेष्ठ ग्रंथ मे वर्णित यह साधना जिसकी प्रति स्वामी आहत नाथ जी के पास उपलब्ध थी,यह ग्रंथ अति प्राचीन है.इसका एक एक मंत्र अचुक और प्रामाणीक है।
अप्सरा साधना से रूपवती स्त्री का आकर्षण होता है, सीधना सफल होने पर अप्सरा आपको स्वर्ग से द्रव्य और दिव्य रसायन लाकर देगी , जिसे पीने के बाद आपको कभी बुड़ापा नही आएगा l
मेनका अप्सरा सिद्ध् पुरुष जो ब्रम्हश्री कहेलाये और उन्होने स्वयं विश्वामित्र ने यह कहा है 'कि पुष्पदेहा के समान अन कोइ अप्सरा स्वर्गलोक मे हो ही नही सकती,इसके आगे सभि सिद्धो ने स्वीकार्य किया है "कि पुष्प से भी ज्यादा सुंदर,पुष्प से भी ज्यादा कोमल और पुष्पदेहा अप्सरा से ज्यादा योवनवति और सुंदर अप्सरा है ही नही,उसका सौन्दर्य तो इतना अद्वितीय है कि इसके शरीर से निरंतर मादक,मनमोहक,कामभाव को उत्तेजित करने वाला सुगंध प्रवाहित होता रहता है। पुष्पदेहा इतनी नाजुक है कि एक बार उसको जो भी देख ले वह उसको जिंदगी भर नही भुला सकता,उसके नयन अत्यंत दर्शनीय है।
आज लाखों लोग अप्सरा साधना करना चाहते है
पर एक बात याद रखें कि उसका सही प्रयोग करेंगे तो जीवन में किसी वस्तु की कामना बाकी नही रहेगी
कौन नही चाहता कि स्वर्ग की सबसे शक्तिशाली अप्सरा उसके साथ हो वो चाहे तो आपको स्वर्ग का दर्शन भी करा सकती है ।
अप्सरा साधना से होने वाले मुख्य लाभ :-
1:- जो साधक पूर्ण रूप से हष्ट पुष्ट होते हुए भी आकर्षक व्यक्तित्व न होने के कारण अन्य लोगों को अपनी और आकर्षित नहीं कर पाते हैं तथा हीन भावना से ग्रस्त होते हैं , इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होने लगते हैं.
2:- जो साधक मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी पाना चाहते हैं किन्तु किसी कारणवश यह संभव न हो रहा हो, इस साधना के प्रभाव से उनको मन के अनुकूल सुंदर जीवन साथी प्राप्त होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं और मनचाहा जीवनसाथी मिल जाता है.
3:- जिन साधक के वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक जीवन में क्लेश व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, इस साधना के प्रभाव से उनके वैवाहिक, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में प्रेम सौहार्द की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं.
4:- जो व्यक्ति अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा रखते हैं किन्तु सफल नहीं हो पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर उत्तम अभिनय की क्षमता की वृद्धि होने के साथ-साथ अभिनय के क्षेत्र में सफल होने की स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं.
5:- जो साधक युवावस्था में होने पर भी पूर्ण यौवन से युक्त नहीं होते हैं, इस साधना से उनके अंदर उत्तम यौवन व व्यक्तित्व निखर आता है.
6:- जो साधक/साधिका सुन्दर रूप सौन्दर्य की इच्छा रखते हैं किन्तु प्रकृति द्वारा कुरूपता से दण्डित हैं, इस साधना के प्रभाव से उनके अंदर आकर्षक रूप सौन्दर्य निखर आता है.
7:- जो साधक कार्यक्षेत्र में मन के अनुकूल अधिकारी या सहकर्मी न होने के कारण असहज परिस्थियों में नौकरी करते हैं, या नौकरी चले जाने का भय रहता है, इस साधना के प्रभाव से उनके अधिकारी व सहकर्मी उनके साथ मित्रवत हो जाते हैं तथा नौकरी चले जाने का भय भी समाप्त हो जाता है.
8:- जो साधक ऐसा मानते हैं कि वह अन्य लोगों को अपनी बात या कार्य से प्रभावित नहीं कर पाते हैं, इस साधना के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक व चुम्बकीय हो जाता है तथा उनके संपर्क में आने वाले सभी लोग उनकी और आकर्षित होकर उनकी बातों या कार्य से प्रभावित होने लगते हैं.
9:- जो पुरुष/स्त्री जिवन मे अपने जिवनसाथी से प्राप्त होनेवाले सुखो से वंचित हो उनके लिये तो यह साधना सबसे ज्यादा करना उत्तम है क्युके इस साधना से पुरुष/स्त्री मे कामतत्व जाग्रत होकर जिवन मे पुर्ण सुख प्राप्त किया जाता है.
उपरोक्त विषयों में अत्यंत कम समय में ही अपेक्षित परिणाम देकर आनंदमय जीवन को प्रशस्त करने वाली यह अप्सरा साधना अवश्य ही संपन्न कर लेनी चाहिए, जिससे निश्चित ही आप अपनी इच्छा की पूर्णता को प्राप्त कर सकते हैं व आनंदमय भौतिक जीवन व्यतीत कर सकते हैं क्योंकि अप्सराएं सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग का ही प्रतिरूप होती हैं, अतः इनका प्रभाव जहाँ भी होता है वहां पर सौन्दर्य, यौवन, प्रेम, अभिनय, रस व रंग ही व्याप्त होता है.
अप्सराओं की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पुत्री, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है, ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकार का व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, अप्सराओं को पत्नी या प्रेमिका के रूप में साधने पर साधक को कोई कठिनाई या हानी नहीं होती है, क्योंकि
Ruchi Sehgal
रुद्र भैरव साधना
रुद्र भैरव साधना.
पुराणों में भैरव का उल्लेख.
तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है -असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव। कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है.
"भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया ।।"
भैरव को शिवजी का अंश अवतार माना गया है। रूद्राष्टाध्याय तथा भैरव तंत्र से इस तथ्य की पुष्टि होती है। भैरव जी का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। उनका वाहन श्वान यानी कुत्ता है। भैरव श्मशानवासी हैं। ये भूत-प्रेत, योगिनियों के स्वामी हैं। भक्तों पर कृपावान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है। श्री भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।
विधी-विधान:-
साधना हेतु किसि भी प्रकार का शिवलिंग और रुद्राक्ष माला जरुरी है। साधना शनीवार से शुरुवात करे और आसन वस्त्र काले रंग के हो,दिशा दक्षिण उपयुक्त है। नित्य मंत्र का 11 माला जाप 11 दिनो तक करने से सफलता मिलता है।
विनियोग :-
l अस्य श्रीरूद्र-भैरव मंत्रस्य महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषि:,सदाशिव महेश्वर-मृत्युंजय-रुद्रो-देवता,विराट छन्द:,श्रीं ह्रीं क्ली महा महेश्वर बीजं,ह्रीं गौरी शक्ति:,रं ॐकारस्य दुर्गा कीलकं,मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोग:।
ऋषि आदि न्यास :-
न्यास मे जहा शरिर के भागो का नाम दिया है वहा मंत्रों को बोलते हुये शरिर को स्पर्श करे.
ॐ महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषये नम:-शिरसिl
सदाशिव -महेश्वर -मृत्युंजयरुद्रो देवताये नम:-हृदये l
विराट छन्दसे नम:-मुखे l
श्रीं ह्रीं कलीम महा महेश्वर बीजाय नम:-नाभयो l
रं ॐकारस्य कीलकाय नम:-गुह्ये l
मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोगाय नम:-सर्वांगे ll
करन्यास:-
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने ॐ ह्रीं रां सर्व शक्ति धाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नम: l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने नं रीं नित्य -
तृप्ति धाम्ने तत्पुरुषात्मने तर्जिनीभ्यां स्वाहा l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने मं रुं अनादि शक्ति धाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्यां वषट l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने शिं रैं स्वतंत्र
-शक्ति धाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्यां हुम् l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने वां रौं अलुप्त शक्ति धाम्ने सद्योजात्मने कनिष्ठिकाभ्यां वोषट l
ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने ॐ यं र:
अनादि शक्ति धाम्ने सर्वात्मने करतल कर पृष्ठाभ्यां फट ll
न्यास के पश्चात् ”श्री रूद्र-भैरव” का ध्यान करे-
ध्यान :-
वज्र दंष्ट्रम त्रिनयनं काल कंठमरिन्दम l
सहस्रकरमप्युग्रम वन्दे शम्भु उमा पतिम ll
मंत्र :-
ll ॐ नमो भगवते रुद्राय आगच्छ आगच्छ प्रवेश्य प्रवेश्य सर्व-शत्रुंनाशय-नाशय धनु: धनु: पर मंत्रान आकर्षय-आकर्षय स्वाहा ll
किसी भी साधना से पूर्व इस मंत्र विधि-पूर्वक जप करने से साधक की अन्य साधना का फल सुरक्षित रहता है l यहाँ तक की अन्य की विद्या का आकर्षण भी कर लेता है l
Ruchi Sehgal