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Friday, 18 May 2018

श्रीकृष्ण मंत्र साधना

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भगवान् श्रीकृष्ण – विश्वम्भर, प्राणेश्वर, परमात्मा हैं।
विश्वम्भर, प्राणेश्वर, परमात्मा के रूप में वे अत्यन्त गुप्त रूप से हम सभी मनुष्यों के हृदय में विराजते हैं और सतत हमारी अज्ञानता का हरण कर, हमें धर्म-मार्ग पर प्रतिष्ठित करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि— कर्षति पापानि यः, स वै कृष्णः।
भगवान् श्रीकृष्ण हम मनुष्यों की अज्ञानता का हरण करते हैं, हमें कल्याणकारी मार्ग पर प्रतिष्ठित होने की प्रेरणा देते हैं, अतएव उन्हें सच्चे सुख-चन्द्र भी कहा जाता है।
मनुष्य जब विश्वम्भर भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में जाते हैं, उनका नित्य ध्यान करते हैं, उनकी हृदय से स्तुति करते हैं, उनके दिव्य मन्त्रों का जप करते है तथा उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का अनुसरण करते हैं, तब उन्हें उनकी कृपा – स्वरूप सच्चे सुख-सच्ची शान्ति की प्राप्ति होती है।
मनुष्यों को सामान्यतः इन्द्रियों के द्वारा जो विषय-रूपी सुख का भान होता है, वह वास्तविक सुख नहीं होता। वह एक लहर की भाँति सुख का केवल आभास-मात्र होता है। अतएव जो मनुष्य सच्चे सुख को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें ज्ञान-कर्म-भक्ति के द्वारा अपने मन में बहनेवाली इन्द्रिय-जन्य विषय-रूपी सुख की हवा को रोकने का प्रयत्न करना पड़ता है।
कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण के ही माने जाते हैं।



विनियोग:-
।। अस्य श्रीद्वादशाक्षर श्रीकृष्णमंत्रस्य नारद ऋषि गायत्रीछंदः श्रीकृष्णोदेवता, बीजं नमः शक्ति, सर्वार्थसिद्धये जपे विनियोगः ।।


ध्यान:-
"चिन्ताश्म युक्त निजदोःपरिरब्ध कान्तमालिंगितं सजलजेन करेण पत्न्या।"

ऋष्यादि न्यास :-
नारदाय ऋषभे नमः शिरसि।
गायत्रीछन्दसे नमः, मुखे ।
नमो शिरसे स्वाहा।
श्री कृष्ण देवतायै नमः,
हृदि भगवते शिखायै वषट्।
बीजाय नमः गुह्ये।
वासुदेवाय कवचाय हुम्।
नमः शक्तये नमः, पादयोः।
नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट् ।।




मंत्र:-
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।



इस कृष्ण द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है। यह मंत्र प्रेम विवाह कराने में चमत्कारी सिद्ध होता है।तुलसी माला से रोज मंत्र का 11 माला जाप बुधवार से सवेरे सुर्य निकलने से पुर्व करे और स्वयं अनुभुतीया प्राप्त करे।जाप के बाद स्तुती अवश्य करे।





श्रीकृष्ण स्तुति
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥






गोविंद दामोदर स्तोत्र
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविंद दामोदर माधवेति॥
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे।
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति॥
विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:।
दध्यादिकम् मोहवसादवोचद् गोविंद दामोदर माधवेति॥






श्रीकृष्णाष्टकम्
(श्री शंकराचार्यकृतम्)
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥
सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम्
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥
भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं
नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥
समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायि नं
नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम



Ruchi Sehgal

द्वादश श्रीकृष्ण साधना

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गीता के अनुसार अगर आपके सामने समस्या विकराल बनती जा रही है और फिर भी समाधान नहीं कर पा रहे हैं तो भी हिम्मत न हारे और चिंतन करने के साथ ही समस्या का सामना करें। मुसीबतों से घबराने की जगह उसका सामना करना ही सबसे बड़ी शक्ति है। एक बार डर को पार कर लिया तो समझो जीत आपके कदमों में। पांडवों ने भी धर्म के सहारे युद्ध जीता था।भगवान श्रीकृष्ण जी को विष्णु जी का पूर्णावतार माना जाता है. एक ऐसा अवतार जिसमें पूरी पूर्णता थी, बाल रुप से लेकर मृत्यु तक कृष्ण जी की लीलाये वाकई में अपरंपार थी.



मथुरा में अष्टमी के दिन देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, लेकिन उनका पालन माता यशोदा की गोद में गोकुल में हुआ. बचपन से ही नटखट बालगोपाल की शरारत से यशोदा मईया के साथ पूरा गोकुल परेशान था, लेकिन नंदलाला की उन्हीं शरारतो में उनका सूकुन भी छिपा था.

होनहार बिरबान के होत चिकने पात, कृष्ण के करिश्मे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नन्हीं अवस्था में ही उन्होंने पूतना राक्षसी का वध किया. कालिया नाग, जिससे पूरा गोकुल और यमुना तीर के बाशिंदे त्रस्त थे. लीलाधारी कृष्ण ने अपने प्रताप से पूरे इलाके को कालिया नाग के प्रकोप से भी मुक्ति दिलाई.


संकट की घड़ी में कृष्ण को जब भी किसी ने पुकारा भगवान सदैव वहां प्रकट हुए. दुशासन जब द्रौपदी का चीर हरने का दुस्साहस कर रहा था उस वक्त द्रौपदी ने पुकारा कृष्ण को. कृष्ण ने अपनी बहन द्रौपदी को निराश नहीं किया और उन्हें इस संकट से उबारा.कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों का घमासान चल रहा था. युद्धभूमि में अपनों को सामने देखकर अर्जुन पीछे हट रहे थे लेकिन उनके साथ थे कृष्ण.

कृष्ण ने युद्धभूमि में धनुरधारी अर्जुन को दिखाया अपना दिव्य विराट रुप और दिया गीता का ज्ञान. कृष्ण की अकाल मृत्यु के साथ ही द्वापर युग का अंत हो गया और कलियुग की शुरुआत हो गई.





श्रीकृष्ण जी के 12 रूप इस प्रकार हैं:-
1- पहला स्वरूप- लड्डू गोपाल -धन संपत्ति की प्राप्ति
भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक बालक कृष्ण हैं, जिनके हाथों में लड्डू है ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को हरे रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, सफेद चन्दन प्रदान करें. प्रसाद में खीर अर्पित करें, हरे रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ।। ॐ स: फ्रें क्लीं कृष्णाय नम: ।।
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें.



2- दूसरा स्वरुप- बंसीबजइया -मानसिक सुख
भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक बालक कृष्ण हैं, हाथों में बंसी लिए हुए ऐसे स्वरुप का ध्यान करें भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को नीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, कपूर प्रदान करें प्रसाद में मेवे अर्पित करें, नीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ।। ॐ श्री कृष्णाय क्लीं नम: ।।
मंत्र जाप के बाद भगवान् को घी के छीटे दें.


3- तीसरा स्वरुप- कालिया मर्दक- व्यापार में तरक्की
भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो कालिया नाग के सर पर नृत्य मुद्रा में स्थित हैं, ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को काले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें, धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, गोरोचन प्रदान करें प्रसाद में मक्खन अर्पित करें. काले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ।। ॐ हुं ऐं नम: कृष्णाय ।।
मंत्र जाप के बाद भगवान् को दही के छीटे दें.


4- चौथा स्वरुप- बाल गोपाल- संतान सुख
भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक पालने में झूलते शिशु कृष्ण हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें, भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, केसर प्रदान करें, प्रसाद में मिसरी अर्पित करें. पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ।। ॐ क्लीं क्लीं क्लीं कृष्णाय नम: ।।
मंत्र जाप के बाद भगवान् को शहद के छीटे दें.


5- पांचवां स्वरुप- माखन चोर- रोगनाश
भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरूप, जिसमें वो माता यशोदा के सामने ये कहते हुए दीखते हैं कि मैंने माखन नहीं खाया. ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, सुच्चा मोती प्रदान करें, प्रसाद में फल अर्पित करें, पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.
मंत्र- ।। ॐ हुं ह्रौं हुं कृष्णाय नम: ।।
मंत्र जाप के बाद भगवान् को गंगाजल के छीटे दें.


6- छठा स्वरुप- गोपाल कृष्ण- मान सम्मान
भगवान श्



Ruchi Sehgal

Thursday, 17 May 2018

शुक्र शाबर मंत्र.

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महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि समकालीन थे |यज्ञोपवीत संस्कार के बाद दोनों ऋषियों की सहमति से अंगिरा ने दोनों बालकों की शिक्षा का दायित्व लिया |कवि महर्षि अंगिरा के पास
ही रह कर अंगिरानंदन जीव के साथ ही विद्याध्ययन करने लगा |आरम्भ में तो सब सामान्य रहा पर बाद में अंगिरा अपने पुत्र जीव की शिक्षा कि ओर विशेष ध्यान देने लगे व कवि कि उपेक्षा करने लगे |कवि ने इस भेदभाव पूर्ण व्यवहार को जान कर अंगिरा से अध्ययन बीच में ही छोड़ कर जाने कि अनुमति ले ली और गौतम ऋषि के पास पहुंचे | गौतम ऋषि ने कवि कि सम्पूर्ण कथा सुन कर उसे महादेव कि शरण में जाने का उपदेश दिया |महर्षि गौतम के उपदेशानुसार कवि ने गोदावरी के तट पर शिव की कठिन आराधना की | स्तुति व आराधना से प्रसन्न हो कर महादेव ने कवि को देवों को भी दुर्लभ मृतसंजीवनी नामक विद्याप्रदान की तथा कहा की जिस मृत व्यक्ति पर तुम इसका प्रयोग करोगे वह जीवित हो जाएगा | साथ
ही ग्रहत्व प्रदान करते हुए भगवान शिव ने कहा कि आकाश में तुम्हारा तेज सब नक्षत्रों से अधिक होगा |तुम्हारे उदित
होने पर ही विवाह आदि शुभ कार्य आरम्भ किये जायेंगे | अपनी विद्या से पूजित होकर भृगु नंदन शुक्र दैत्यों के गुरु पद पर नियुक्त हुए | जिन अंगिरा ऋषि ने उन के साथ
उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया था उन्हीं के पौत्र
जीव पुत्र कच को संजीवनी विद्या देने में शुक्र ने किंचित भी संकोच नहीं किया |
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है | ग्रह मंडल में शुक्र को मंत्री पद प्राप्त है| यह वृष और तुला राशियों का स्वामी है |यह मीन राशि में उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का माना जाता है | तुला 20 अंश तक इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है |शुक्र अपने स्थान से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है और इसकी दृष्टि को शुभकारक कहा गया है |जनम कुंडली में शुक्र सप्तम भाव का
कारक होता है |शुक्र की सूर्य -चन्द्र से शत्रुता , शनि – बुध से मैत्री और गुरु – मंगल से समता है | यह स्व ,मूल त्रिकोण व उच्च,मित्र राशि –नवांश में ,शुक्रवार में , राशि के मध्य में ,चन्द्र के साथ रहने पर ,
वक्री होने पर ,सूर्य के आगे रहने पर ,वर्गोत्तम नवमांश में , अपरान्ह काल में ,जन्मकुंडली के तीसरे ,चौथे, छटे ( वैद्यनाथ छटे भाव में शुक्र को निष्फल मानते हैं ) व बारहवें भाव में बलवान व शुभकारक होता है | शुक्र कन्या राशि में स्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं तथा
इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति
विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो जाते हैं। शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों में समस्याएं पैदा कर सकता है। महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर बुरे
ग्रहों का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन
प्रणाली को कमजोर कर सकता है तथा उनके ॠतुस्राव, गर्भाशय अथवा अंडाशय पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण उन्हें संतान पैदा करनें में
परेशानियां आ सकतीं हैं। शुक्र शारीरिक
सुखों के भी कारक होते हैं तथा संभोग से लेकर हार्दिक प्रेम तक सब विषयों को जानने के लिए कुंडली में शुक्र की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। शुक्र का प्रबल प्रभाव जातक को रसिक बना देता है तथा
आम तौर पर ऐसे जातक अपने प्रेम संबंधों को लेकर संवेदनशील होते हैं। शुक्र के जातक सुंदरता और एश्वर्यों का भोग करने में शेष सभी प्रकार के जातकों से आगे होते हैं। शरीर के अंगों में शुक्र जननांगों के
कारक होते हैं तथा महिलाओं के शरीर में शुक्र प्रजनन प्रणाली का प्रतिनिधित्व भी करते हैं तथा महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर किसी बुरे ग्रह का प्रबल प्रभाव उनकी
प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी
कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए।
शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार,
नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिजाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।


यह मंत्र आपको सभी प्रकार के लाभ जो शुक्र देव के कृपा से मिलता है देने मे तत्पर है,शुक्रवार के दिन से रात्री मे मंत्र का 11 बार जाप रोज करे तो आपको अनुभुती अवश्य प्राप्त होगा l
शुक्र मंत्र:-ll ओम गुरूजी शुक्रवार शुक्राचार।मन धरो धीर। कोई नर नारी वीर।नौ नाड़ी बहत्तर कोठा की रक्षा करे। शुक्रवार भार्गव गोत्र,श्वेत वर्ण सोलह हजार



Ruchi Sehgal