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Friday, 18 May 2018

गोपनीय दुर्लभ मंत्र

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आप ईश्वर की अनमोल कृति हैं इसलिए अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा,विचार मंथन और क्रिया सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य अपनी समस्याओं के बारे में विचार करता रहता है और स्वयं को परेशान करता रहता है। चिन्ताओं को अपने पास आने का निमंत्रण देता रहता है। क्या आपको मालूम है आप में क्या शक्ति है और इस शक्ति का विकास कैसे संभव है? क्या आप इस प्रश्न पर विचार करते हैं?

उस सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एक निश्चित उद्देश्य के लिये आपको यह सुन्दर जीवन दिया है और उस निश्चित लक्ष्य, उद्देश्य को आप ही पूरा करेंगे यह विश्वास सदैव बनाए रखें।

यह मनुष्य व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि उसके पास शक्ति तो सीमित होती है लेकिन उसकी कामनाओं की उड़ान असीमित होती है। प्रत्येक मनुष्य को प्रतिपल कुछ न कुछ क्रिया अवश्य ही करनी पड़ती है। बिना क्रिया के वह एक क्षण भी नहीं रह सकता है। साथ ही यह भी समझें कि रोज-रोज की चिन्ताओं में, परेशानियों में, तनाव में काम करते हुए वह अपने स्वयं के बारे में सबसे कम विचार कर पाता है। इस कारण वह अपनी भागती-दौड़ती जिन्दगी में एक मशीन की भांति ही काम करता रहता है। विपरीत स्थिति में, स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देता है। इस प्रकार वह यंत्रवत् जीवन जीता है। प्रतिदिन अपने बारे में कम और ज्यादा से ज्यादा दूसरों के बारे में ही चिन्तन करता है, दूसरों की तुलना में अपने-आपको श्रेष्ठ साबित करने के लिये प्रयत्नशील रहता है।

अब इसमें गलती किसकी है, सोचो? हर समय दूसरों के बारे में चिन्तन करना है या अपने बारे में भी चिन्तन करना है, विचार करें – मनुष्य का स्वभाव बड़ा ही सरल है। उसके अन्दर एक जिद्द, होड़ है। वह हर खूबसूरत, अनमोल वस्तु पर, व्यक्ति पर, स्थान पर अपना एकाधिकार बनाना चाहता है। इसके साथ ही उसके सारे प्रयास, सारे विचार इसी दिशा में होते हैं कि मैं ध्यान, सौन्दर्य, धन-बल, शरीर-बल, ऐश्वर्य सभी में प्रभावशाली बनूं। अब उसका चिन्तन दो तरफा है, एक ओर तो वह हर वस्तु पर अपना अधिकार जमाना चाहता है और दूसरा वह हर दृष्टि से प्रभावशाली बनना चाहता है। उसका चिन्तन इसी बात में उलझा रहता है कि किस प्रकार और कैसे हर समय वह स्वयं को श्रेष्ठ साबित कर सके?

परन्तु हकीकत में होता क्या है? वह इसी फेर में निरन्तर उलझा रहता है। समय का चक्र भी बड़ा बलवान है। धीरे-धीरे जीवन शक्ति क्षीण होती है लेकिन कामना शक्ति, इच्छाएं बढ़ती ही जाती हैं। इस कारण मन-मस्तिष्क की शक्तियां कमजोर होती चली जाती हैं। सभी के जीवन में यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इसलिये ज्यादातर लोग आपको परेशान, चिन्तित दिखाई देंगे। यह उलझन तो उन्होंने स्वयं अपने जीवन में डाली है। सबसे बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि मनुष्य जीवन में 90% भाग पर प्रकृति अर्थात् परमसत्ता का प्रभाव है। केवल और केवल 10% प्रतिशत भाग पर मनुष्य के स्वयं के कर्म और चिन्तन का प्रभाव रहता है लेकिन मनुष्य करता क्या है? जिस बात पर उसका अधिकार ही नहीं है, परम शक्ति का प्रभाव है उसके ऊपर चिन्ता करता रहता है। कर्म और विचार उसके अधिकार में है केवल और केवल इस पक्ष को सकारात्मक बनाए। इस 10% भाग अर्थात् ‘कर्म और विचार’ को यदि आपने सकारात्मक बना लिया तो पूरा जीवन व्यवस्थित हो जाएगा।

विचार करें कि आपके हाथ में कौन-कौन सी स्थितियां हैं और कौन-कौन सी स्थितियां आपके हाथ में नहीं हैं।

कामनाएं कमजोर बनाती हैं,मनुष्य की यह बड़ी कमजोरी है कि वह सबसे ज्यादा चिन्तन अपनी कामनाओं का, अपने प्रियजनों का, अपने समाज का करता रहता है। वह अपने जीवन में उन चिन्ताओं से परेशान- दुःखी, उदास, हताश, निराश होता है जो कि उसके वश में ही नहीं हैं। भविष्य की हर सोच में वह स्वयं को डरा हुआ पाता है। भविष्य की हर चिन्ता में अपना वर्तमान खराब कर देता है। इसी से तो उसकी सकारात्मक सोच, नकारात्मक बन जाती है और फिर वह एक साधारण जीवन जीने लगता है। जबकि विचार करें कि आपका मनुष्य योनि में जन्म तो आने वाले कल में स्वयं को अति सफलतम सिद्ध करने के लिये ही हुआ था। मूल आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषय वस्तुओं पर हमारा अधिकार नहीं है, जिन विषय वस्तुओं के बारे में हमें जानकारी नहीं है या जिन विषय वस्तुओं को हम पहले से जान नहीं सकते हैं उन सब के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएं और अपने आपको बार-बार आश्वस्त करते रहें कि आगे सब अच्छा ही होगा, तो यहीं से आपके लिए आनन्द का नया द्वार खुल जाएगा।


हमारा भारतीय दर्शन इस विषय में क्या कहता है?
भारतीय दर्शन में एक सिद्धान्त है कि मनुष्य में अलौकिक, असीम और अनन्त शक्ति का स्रोत छिपा हुआ है और इस शक्ति पर चार प्रकार के प्रमुख आवरण हैं, जिनके कारण अनेक कमियां उसके व्यक्तित्व में आ जाती हैं।

ये चार आवरण हैं – 1. काम (sex), 2 2. क्रोध (anger), 3. लोभ (greed) और 4. अतिमोह (delusion)

इन आवरणों के कारण ही मनुष्य अपने सुख-दुःख का जाल बुनता रहता है और उसमें फंसता रहता है, छटपटाता रहता है। जबकि वास्तविक बात यह है कि ये चारों आवरण मनुष्य ने स्वयं बनाए हैं।

*काम – जीवन में निरन्तर काम का भाव, मन को अशांत और उद्वेगी बना देता है। जीतने की प्रवृत्ति के कारण बार-बार बाजी लगाता है।

*क्रोध – क्रोध व्यक्ति में उसकी खुद की गलतियों को बल पूर्वक दूसरे से मनवाने का उपक्रम करता है। अपनी गलतियों को छुपाने के लिये ही व्यक्ति क्रोध करता है।

*लोभ – निरन्तर लोभ का भाव, हर अच्छी चीज को प्राप्त करने का, हड़पने का भाव देता है।

*अतिमोह – अतिमोह ऐसा जाल है कि वह मनुष्य में यह भावना पैदा करता रहता है कि ‘ मैं ही सबको पालने वाला और आश्रय देने वाला हूं, सबकी व्यवस्था करने से पहले मैं हार नहीं जाऊं, समाप्त नहीं हो जाऊं। ’



इन चारों कारणों से मनुष्य अपनी वास्तविक शक्ति का परिचय नहीं दे पाता है, अपनी वास्तविक शक्ति को नहीं पहचान सकता है। मनुष्य जीवन के लिए ऊपर वाले चारों उपक्रम आवश्यक हैं लेकिन ये चारों आवरण एक सीमा तक ही होने चाहिए। इतने कठोर नहीं होने चाहिए कि आप उन्हें तोड़ नहीं सकें। इनमें से किसी की भी अधिकता नहीं होनी चाहिए। ये सारी क्रियाएं करें लेकिन इनमें पूरी तरह से लिप्त न हों।
यह सिद्ध है कि मनुष्य में अनन्त शक्तियां हैं लेकिन स्वयं की शक्ति के आंकलन की कमी और विचारों में अस्थिरता के कारण वह इसे पहचान नहीं पाता है। मनुष्य के हाथ में है कि वह अपनी वैचारिक शक्ति के द्वारा हर प्रकार की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। कोई व्यक्ति जन्म से महापुरुष नहीं होता, महापुरुष वही बनता है जिन्होंने अपने आप पर नियन्त्रण किया और अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत किया। ईश्वर ने सबको समान शक्ति प्रदान की है, बस इस शक्ति को संरक्षित करना आना चाहिए तो इसके लिये एक ही उपाय है कि आप अपनी स्वयं की शक्तियों को अपने चिन्तन का आधार प्रदान करें और यह संकल्प लें कि प्रत्येक वह आवरण जो काम-क्रोध-लोभ-मोह कहलाता है उसकी सीमा कितनी हो? उसकी सीमा निर्धारित करें और स्वयं को एकाग्र कर, स्वयं को जाग्रत करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दें।


अपने जीवन के इस शक्ति संकलन में ये संकल्प बार-बार दोहराते रहें –

1. अपने आपको छोटा और बेचारा नहीं मानें। आप ईश्वर की अनमोल कृति हैं और उस सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एक निश्चित उद्देश्य के लिये आपको यह सुन्दर जीवन दिया है और उस निश्चित लक्ष्य, उद्देश्य को आप ही पूरा करेंगे यह विश्वास सदैव बनाए रखें।

2. दूसरों की आलोचना से आपकी स्वयं की शक्ति का ह्रास होता है, दूसरों की कमियों की व्याख्या में अपना समय व्यर्थ न गंवाएं अन्यथा आप स्वयं नकारात्मक भाव पकड़ने लग जाएंगे।

3. जीवन में जिन कार्यों और परिस्थितियों पर आपका वश नहीं है, उनके प्रति स्वयं को सकारात्मक रखें। अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा, ऐसा विचार करने से नये-नये मार्ग अवश्य दृष्टिगत होंगे।

4. अपनी शक्ति के चिन्तन में स्वयं को लगाएं, ध्यान के साधन द्वारा जैसा आप स्वयं चाहते हैं वैसा शक्ति सम्पन्न बनने का मानसिक संकल्प दोहराते रहें।

5. अतीत की सोच और भविष्य की सोच दोनों से दूरी बना लें, क्योंकि आपको वर्तमान में कर्म करना है। ‘ वर्तमान के ही कर्म का चिन्तन करें’।

6. अतीत के दुःख और भविष्य के भय को सकारात्मक सोच दें। उन्हें कष्ट का कारण न मानें क्योंकि अतीत और भविष्य दोनों ही प्रश्नवाचक हैं। क्या हो गया, कैसे हो गया, अब क्या होगा, अब कैसे होगा? ये सारे प्रश्न प्रश्नवाचक हैं जबकि आपका वर्तमान क्रियावाचक है – ‘ मैं यह कर रहा हूं ’ यही मुख्य बात है।

7. स्वयं को समयबद्ध तरीके से कार्य में लगाएं, समय-समय पर अपना स्वयं का आंकलन करते रहें और उसी के अनुसार अपनी कार्यशैली, कृतित्व (creation ) आदि में परिवर्तन करते हैं। यदि कोई नया आदर्श स्थापित करना है तो उसे भी स्थापित करते रहें।

8. मनुष्य के पास समय कम है और कामनाएं अनन्त हैं। ऐसे में अपने मन और मस्तिष्क पर पूर्ण नियन्त्रण करते हुए उसे अपने संकल्प की ओर ही दिशा देते रहें और अपने संकल्प का आंकलन करते रहें।

9. हर सुन्दर और मूल्यवान वस्तु हमारी हो, हर ज्ञान, सुन्दरता, बल, तप, यश में हम ही श्रेष्ठ हों। यह दौड़ छोड़ दें। बल्कि यह आंकलन करें कि हमारे अन्दर भी अनन्त गुण हैं और इन गुणों के द्वारा ही हम सर्वश्रेष्ठ होंगे।
अपने लक्ष्यों को बिल्कुल साफ और स्पष्ट रखें। जैसे ही आप अपने लक्ष्य से हटे तो आपका जीवन स्वयं हार मान लेगा। इस कारण अपने लक्ष्य निश्चित, स्पष्ट रखें।

10. आपका सत् संकल्प, आपके भीतर का नम्रता का भाव ही आपकी शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है और इसी का विकास करना है और

कुछ ऐसा करके तो देखो के जीवन के सभी दुख,पीडा,कष्ट और दुर्भाग्य आपके सामने हाथ जोड़कर क्षमा की भीख मांगे । यह एक युद्ध है,जिस पर आपको स्वयं विजय प्राप्त करना है,रो-रोकर जिंदगी खराब मत करो,अब उठ भी जाओ और सामना करो जीवन के कठिन परिस्थितियों को संभालने के लिए । अपने आपको पहेचानो,आप सभी  लोग एक दिव्य शक्ति से संग्रहित हो,चाहे वह किसी भी धर्म का हो या फिर किसी भी जाती का हो । अपने अंदरूनी शक्ति के जागरण हेतु नित्य 30-40 मिनटो तक

"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम आत्मशक्ति चैतन्य शीघ्र जाग्रय जाग्रय क्लीं ह्रीं ऐं ॐ नम:"

मंत्र का जाप किया करे । इस मंत्र के बीज अक्षर का ध्वनि "ग" होना चाहिए जैसे ह्रीं-Hreeng,यह मंत्र साधना में त्वरित सिद्धि देता है और कुंडलिनी शक्ति को जगाने में सहायक है,चाहे तो 15-20 दिनों तक जाप करके आजमाके देख लो । मंत्र जाप के समय ध्यानस्थ होना जरूरी है और शुद्धता का भी आचरण करे , मंत्र जाप एकांत में करो । आसन माला दिशा वस्त्र का कोई नियम नही है क्योंकि आप स्वयं ही इस साधना में सब कुछ हो । दिया लगाना है या धूप जलानी है तो जलाओ और नाही कर सको तो भी कोई नुकसान नही होगा । कुछ दिन मंत्र जाप करने से समझ जाओगे के शरीर किस तरह से अपने आप मे शक्तियुक्त बन रहा है,हिमालय के बर्फीले स्थान पर भी 2-3 घंटे तक इस मंत्र का प्रामाणिकता से जाप करोगे तो पसीना निकलने लगेगा । यह साधना विश्वास के साथ करो और अपने जीवन को स्वयं बदल डालो, यही है "स्वयं की शक्ति" जिसके माध्यम से आप जो चाहो वह प्राप्त कर सकते हो



Ruchi Sehgal

डाईन सिद्धि और रक्षा कवच

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प्राय: सभी गांव में अभिचार कर्म करने वाली चार या पांच औरतें या मर्द होते हैं जो अपनी ईर्ष्या के वश मे आकर दूसरों के ऊपर षट्कर्म करती हैं, ये डाईन कहलाती हैं इनके ईष्ट "दरहा भूत" या शक्तिशाली भूत होते हैं,ये हमेशा दूसरों अपनी तंत्र क्रिया द्वारा दुख ही देती हैं,इनके कर्म को गांव मे प्रत्यक्ष रूप मे कोई नहीं जानता है । इनके कर्म का कोई सबूत नहीं होता,न ही इनके पूजा पाठ का कोई सबूत मिलता है । इनका तंत्र अत्यंत शक्तिशाली होता है, इनके परिवार वाले भी इनकी क्रियाओं को नही जानते,जैसे जैसे ये बूढ़े होते जाते हैं इनकी शक्ति बढ़ती जाती है । इनका मंत्र सिर्फ दो तीन शब्दों का होता है जिस परिवार को अत्यअधिक दुख देना हो उनके यहां अपने माहवारी कपड़े से जुक्ति बनाकर मंत्र शक्ति से उनके घर के दरवाजे मे गाड़ देती हैं जिससे वहां किसी भी देवी देवता का प्रवेश निषेध हो जाता है और उनके द्वारा लगाया गया भूत लंबे समय तक दुख देता रहता है ।

इनकी साधना बड़ी ही गोपनीय तरीके से होती है ये दीपावली के दिन अपने गांव को मंत्र से बांध कर शमसान में 8-10 के ग्रूप मे एकत्र होकर अपने गुरू डाईन के समक्ष नग्न होकर कमर में झाड़ू लपेटकर अपने मल मूत्र से जमीन को लीपकर गोल घेरे बनाकर रातभर नाचती हैं और अपनी शक्ति बढ़ाती हैं ।

पहली बार ये अनजाने में या जानबूझकर इस विद्या को सीखती हैंं,तब इनके गुरू मंत्र सिखाने के बाद सिद्धी के लिए बलि मांगती हैं वो भी इनके पति या प्रिय पुत्र की बलि,इंकार करने पर ये पागल हो जाती हैं और हां कहने पर बलि के लिए नियुक्त व्यक्ति अपने आप मर जाता है और गांव मे या परिवार मे किसी को कुछ पता भी नही चलता है इनकी सिद्धी होने के बाद ये पेड़ पौधों,पालतू जानवर,पक्षीआदि पर प्रयोग करना प्रारंभ कर देते हैं बाद मे मनुष्यों पर प्रयोग करते हैं ।

बहुत सी ( 99%) डाईन इस विद्या को सीखना नहीं चाहती हैं क्योंकि इनका भविष्य अत्यंत दुखदायी कष्टप्रद होती है ये बात गांव के सभी लोग जानते हैं किंतु जो सीनियर या बुजुर्ग डाईन होते हैं उन्हेंअपना चेला बनाना अति आवश्यक होता है स्वयं की मृत्यु से पहले चार या पांच चेला बनाना उनकी मजबूरी होती है,नहीं तो उनके ईष्ट भूत स्वयंको बहुत तंग करता है इसलिए वो ऐसे स्त्री या पुरूष को चुनती हैं जिनके अंदर ईर्ष्या की भावना बहुत ज्यादा हो या अपने ही परिवार के किसी सदस्य को चुनती हैं उन्हें अपने वश मे करके अपने साथ घुमाती फिराती हैं और चार पांच मंत्र सिखा देती हैं इस तरह से चेला बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । इसके अलावा वो कम उम्र की अपने ही परिवार की एक या दो लड़की के ऊपर शक्तिपात कर देती हैं ताकि उस लड़की जितने साल बाद भी विवाह हो उसके बाद लड़की के उपर अपने आप की गुन (विद्या) जागृत होने लगते हैं सपने में मंत्र और विधि मिलने लगती है इस तरह से डाईन बनने की प्रक्रिया होती है ।

डाईन लोगों के गुन को परमानेंट भ्रष्ट नहीं किया जा सकता है इनसे हर व्यक्ति डरता है और नफरत करता हैं इनकी मौत अत्यधिक दर्दनाक और कष्टदायी होती है इनकी आयु अत्यधिक लंबी होती है इसके अलावा ये दूसरों की उम्र चुराकर बहुत लंबी उम्र तक जीते हैं जैसे जैसे ये बूढ़ी होती है वैसे वैसे इनकी शक्ति बढ़ती जाती है इस तरह के कार्य करने वा मर्द को डईया कहा जाता है किंतु डाईन की संख्या डईया से तीगुना तक होती है डाईन अत्यधिक चालाक और शातिर होती हैं ।

एक वरिष्ठ डाईन के ऊपर मारण क्रिया करना बहुत ही कठिन है कोई उच्च कोटि का अघोरी ही कर सकता है क्योंकि क्योंकि इनका ईष्ट भूत चौबीस घंटा इनकी सुरक्षा करता है और इनका पिण्ड चौबीस घंटा बंधा रहता है उसपर भी ये हर पल ये सतर्क रहते हैं इसके अलावा इनके परिवार के किसी सदस्य पर भी कोई तांत्रिक क्रिया या मारण क्रिया नहीं कर सकता, चाहे कहीं भी रहें,क्योंकि इनका पिण्ड भी हमेशा बंधा रहता है इनके हर पल की खबर डाईन को ईष्ट भूत देता रहता है वह एक कर्ण पिशाचिनी की तरह कार्य करता है इसी कारण डाईन के परिवार बेफिक्र और खुशी खुशी रहते हैं उनकी खेती बाड़ी और गाय बैल सभी पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं एक डाईन दूसरे डाईन के परिवार वालों को भी दुख नहीं पहुंचा सकती,और किसी साधारण परिवार के ऊपर किया गया तांत्रिक क्रिया को बिल्कुल ठीक नहीं कर सकती है,ये सिर्फ दुख देने का काम कर सकती है ठीक करने का काम नही कर सकती है किंतु हां स्वयं के द्वारा किये गये तांत्रिक क्रिया को स्वयं अपनी इच्छा से जब चाहे तब ठीक कर सकता है किंतु ऐसा वो जब तक स्वयं पर बहुत ज्यादा दबाव न पड़े तब तक बिल्कुल नहीं करती हैं । ये उन्हीं परिवार वालों को दुख देती हैं जो धार्मिक,आध्यात्मिक और सीधे साधे हों,उनपरिवार वालों सेडरती हैं जो क्रिमनल प्रवृत्ति के हों,एक डाईन के पास परि



Ruchi Sehgal

श्रीकृष्ण मंत्र साधना

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भगवान् श्रीकृष्ण – विश्वम्भर, प्राणेश्वर, परमात्मा हैं।
विश्वम्भर, प्राणेश्वर, परमात्मा के रूप में वे अत्यन्त गुप्त रूप से हम सभी मनुष्यों के हृदय में विराजते हैं और सतत हमारी अज्ञानता का हरण कर, हमें धर्म-मार्ग पर प्रतिष्ठित करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि— कर्षति पापानि यः, स वै कृष्णः।
भगवान् श्रीकृष्ण हम मनुष्यों की अज्ञानता का हरण करते हैं, हमें कल्याणकारी मार्ग पर प्रतिष्ठित होने की प्रेरणा देते हैं, अतएव उन्हें सच्चे सुख-चन्द्र भी कहा जाता है।
मनुष्य जब विश्वम्भर भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में जाते हैं, उनका नित्य ध्यान करते हैं, उनकी हृदय से स्तुति करते हैं, उनके दिव्य मन्त्रों का जप करते है तथा उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का अनुसरण करते हैं, तब उन्हें उनकी कृपा – स्वरूप सच्चे सुख-सच्ची शान्ति की प्राप्ति होती है।
मनुष्यों को सामान्यतः इन्द्रियों के द्वारा जो विषय-रूपी सुख का भान होता है, वह वास्तविक सुख नहीं होता। वह एक लहर की भाँति सुख का केवल आभास-मात्र होता है। अतएव जो मनुष्य सच्चे सुख को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें ज्ञान-कर्म-भक्ति के द्वारा अपने मन में बहनेवाली इन्द्रिय-जन्य विषय-रूपी सुख की हवा को रोकने का प्रयत्न करना पड़ता है।
कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण के ही माने जाते हैं।



विनियोग:-
।। अस्य श्रीद्वादशाक्षर श्रीकृष्णमंत्रस्य नारद ऋषि गायत्रीछंदः श्रीकृष्णोदेवता, बीजं नमः शक्ति, सर्वार्थसिद्धये जपे विनियोगः ।।


ध्यान:-
"चिन्ताश्म युक्त निजदोःपरिरब्ध कान्तमालिंगितं सजलजेन करेण पत्न्या।"

ऋष्यादि न्यास :-
नारदाय ऋषभे नमः शिरसि।
गायत्रीछन्दसे नमः, मुखे ।
नमो शिरसे स्वाहा।
श्री कृष्ण देवतायै नमः,
हृदि भगवते शिखायै वषट्।
बीजाय नमः गुह्ये।
वासुदेवाय कवचाय हुम्।
नमः शक्तये नमः, पादयोः।
नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट् ।।




मंत्र:-
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।



इस कृष्ण द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है। यह मंत्र प्रेम विवाह कराने में चमत्कारी सिद्ध होता है।तुलसी माला से रोज मंत्र का 11 माला जाप बुधवार से सवेरे सुर्य निकलने से पुर्व करे और स्वयं अनुभुतीया प्राप्त करे।जाप के बाद स्तुती अवश्य करे।





श्रीकृष्ण स्तुति
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥






गोविंद दामोदर स्तोत्र
अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविंद दामोदर माधवेति॥
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे।
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति॥
विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:।
दध्यादिकम् मोहवसादवोचद् गोविंद दामोदर माधवेति॥






श्रीकृष्णाष्टकम्
(श्री शंकराचार्यकृतम्)
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥
सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम्
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥
भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं
नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥
समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥
विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायि नं
नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम



Ruchi Sehgal