Friday, 18 May 2018
Padmini Yakshini Sadhna
पद्मिनी यक्षिणी साधना | Padmini Yakshini Sadhna
यह यक्षिणी सिद्धि बहुत ही महत्वपूर्ण है | इससे साधक को दिव्य योग की प्राप्ति होती है | उसके लिए अष्ट महा सिद्धि का रास्ता सुगम हो जाता है | योग कई साधक करने की कोशिश करते हैं पर कठिन आसन नियम होने के कारण उसमें कामयाब नहीं हो पाते इसलिए उनके लिए यह साधना वरदान स्वरूप है | इसको एक बार कर लेने से मन चाहे टाइम तक एक आसन में स्थिर भाव से बैठ सकते हैं और जो भी साधक की इच्छा होती है यक्षिणी हाजिर कर देती है | इसका एक और लाभ है इससे किसी भी साधना में थकावट फील नहीं होती | मेरी नजर में यह एक उत्तम साधना है | साधक की मनोस्थिति साधना मे कामयाबी का जरिया बनती है | आप इसे विश्वाश से करें, उतेजक भाव से ना करें | कोई भी यक्षिणी या अप्सरा की साधना के वक़्त मंत्र हमेशा मधुरता से करना चाहिए नहीं तो सिद्धि में शंशय बना रहता है | इसलिए इसे करने से पूर्व अपने मन को अच्छी तरह साधना के लिए तैयार करें और दिल में यक्षिणी के प्रति प्रेम भाव पैदा करें, ना की वासना | अगर आप अपने जीवन में कुछ नया करना चाहते हैं | अपनी नकारात्मक सोच पर विजय पाना चाहते हैं, अपने मन को वश में कर साधना के उच्च आयामों को स्पर्श करना चाहते हैं, दिल में प्रेम उत्पन्न कर इस साधना को संपन्न करें | इसके साथ ही पदार्थ सिद्धि भी यह यक्षिणी देती है जिससे साधक मनचाहा पदार्थ प्राप्त कर अपनी मनोकामना पूरी कर लेता है | यह साधक के खोये हुए विश्वाश को पुनः पैदा कर देती है | इस लिए बताये हुए नियम का अनुसरण करें | यह पूरी तरह आजमाई हुई साधना है | इस में सिद्धि मिलती ही है | सिद्धि का मुख्य आधार आपका विशुद्ध प्रेम है |
साधना विधि
सर्व प्रथम अपने मन को तीन दिन पहले प्रसन्नरखने का प्रयास करें | इसके लिए क्रोध का त्याग कर दें | यही भाव आपकी सफलता का आधार बनेगा |
सुबह उठकर स्नान करें, सुन्दर वस्त्र पहने और किसी नदी पर जाकर थोड़े चावल और कुंकुम, फूल नदी में प्रवाहित करें और कहें, हे मन को शांति प्रदान करने वाली पवित्र जलधारा मैं आपको मन से प्रणाम करता हूँ | आप मेरे मन को शीतलता प्रदान करें | फिर थोड़ा जल लेकर अपने उपर छिड़क लें और उस नदी के देव को प्रणाम करें या शिव जी को प्रणाम कर आज्ञा लें कि मैं अमुक गुरु का शिष्य पद्मिनी साधना हेतु आपकी रज चाहता हूँ और वहां से थोड़ी मिटटी ले आयें और उसमें चन्दन मिलाकर एक सुन्दर स्त्री की मूर्ति बनायें | इन साधनाओं की सामग्री दुर्लभ कही गई है | इसलिए यहाँ मूर्ति का विधान दे रहा हूँ | मूर्ति बनाते वक़्त निम्न मंत्र का उच्चारण करें |
|| ॐ
श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ पद्मावती स्वाहा ||
मंत्र का मानसिक रूप में जाप करते रहें फिर उस मूर्ति को कुंकुम, गुलाल से रंग दें और फिर एक हाथ चौड़ा लंबा रेत बिछा कर चन्दन और कुंकुम से पूजा मंडल का निर्माण करें | मंडल बनाते वक़्त निम्न मंत्र जपें |
|| ॐ वास्तु कलां सम्पूर्णं श्री विश्वकार्माये नम: ||
मन्त्र का जाप करें फ़िर उसके मध्य अष्ट दल कमल बनायें और एक फूल रख कर उसकी पूजा करें या कुछ फूल, पत्तियों को रख उस पर मूर्ति स्थापना करें | फिर उसका पूजन चन्दन और अबीर गुलाल से करें और नाना प्रकार के पुष्प चढ़ाएं | भोग के लिए शुद्ध मिठाई ले सकते हैं जो दूध की बनी हो | सुंगंधित इत्र भी चढ़ा सकते हैं | ध्यान रहे पूजन पूर्ण ह्रदय भाव से, प्रेम भाव से करना है | इस पूजन से पहले गणपति और सद्गुरु पूजन कर आज्ञा जरुर ले लें या अपने बड़ों का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लें क्योंकि बड़ों का आशीर्वाद सिद्धि का कारक बन जाता है | फिर पूजन के पश्चात पाँच माला गुरु मंत्र का जाप करें | एक माला सिद्धि विनायक मन्त्र का जाप करें फिर यक्षिणी मंत्र का लाल चन्दन की माला से 51 माला जाप करना है | यह कर्म शुक्ल पक्ष के सोमवार या पूर्णिमा से शुरू कर सकते हैं और एक महीने तक जाप करना अनिवार्य है | अंतिम दिन कमलगट्टे और घी हवन समग्री में मिलाकर हवन करना है | हवन आप 11000 मंत्रो से कर सकते हैं | इसमें 4 या 5 घंटे लग सकते हैं और फिर केसर ड़ालकर बनी हुई खीर का भोग अर्पण कर देना है | यक्षिणी साक्षात् प्रकट होती है | साधना में बहुत दिव्य अनुभव हो सकते हैं जिन्हें अपने तक ही रखें जब तक पूर्ण सिद्धि ना मिल जाये या यक्षिणी से वचन ना हो जाये |
सिद्धि विनायक मन्त्र
|| ॐ श्रीं गं श्रीं श्रियेत्व सिद्धिये श्रीं ॐ फट ||
पद्मनी मंत्र
|| ॐ ह्रीं पद्मनी स्वाहा ||
माला चन्दन की लेनी है और अंतिम दिन खीर का भोग लगाना है | पूजा में फल भी अर्पित करें और हवन के बाद एक नारियल में घी ड़ाल कर उस पर एक पान का पत्ता बांध दें मोली से | उसका पूजन करें फिर अपनी इच्छा बोलकर उसमें ए
Ruchi Sehgal
Vedmatri Yakshini Sadhna ||
विद्या यक्षिणी – वेद मात्री साधना ||
यक्षिणी साधना के अंतर्गत यह साधना विद्या प्राप्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण है | इससे साधक को कई गुप्त विद्याओं का ज्ञान यक्षिणी प्रदान कर देती है | जिससे वो कई विद्याओं में पारंगत हो जाता है और इसके साथ ही उसकी दरिद्रता का नाश भी हो जाता है | आलस्य दूर होकर वो एक अच्छे साधक की श्रेणी में आ जाता है | उसके लिए साधना मार्ग सुलभ हो जाता है | यक्षिणी कई साधनाओं में सहायता प्रदान स्वयं कर देती है | इसे किसी भी पूर्णिमा या पंचमी तिथि से शुरू करें | इसकी साधना सरल है |
विधि
शुद्ध सफ़ेद वस्त्र पहन कर आसन पर पूर्व मुख बैठें | गुरु पूजन और श्री गणेश पूजन कर गुरु जी से साधना में सफलता की प्रार्थना करें और साधना करने की आज्ञा प्राप्त करें |
फिर दिशा शोधन के लिए जल लेकर “ॐ श्रीं ॐ” पढ़ कर चारों दिशाओं में छिड़क दें और पूजा शुरू करें | एक तेल का दिया जला लें और एक वेदी सी बना लें आटे, हल्दी और कुंकुम को मिलाकर | उसमें एक छोटी सी मिटटी की मूर्ति बनाकर उसे हल्दी, कुंकुम और चन्दन से रंग दें | मूर्ति औरत की बनायें | उसी को उस वेदी में स्थापित करें और एक जल का कलश स्थापित करें | उस पर नारियल रखें | वेदी में पाँच लड्डू, कुंकुम, सफ़ेद फूल, लोंग, इलायची, पान, सुपारी, एक पीपल के पत्ते पर रख दें और उस मूर्ति की पूजा करें | तेल का दिया जला दें और सुगंध के लिए अगरबत्ती लगा दें | पूजन के पश्चात जप शुरू करें | इस साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करें और साधना समाप्ति पर 25 माला मन्त्र से हवन करें पाँच मेवा और घी मिलाकर तो वेद मात्री यक्षिणी प्रसन्न होकर वरदान देती है और उसे कई प्रकारकी विद्याओं में पारंगत बना देती है | यह मन्त्र रिद्धी सिद्धि देने वाला है | प्राप्त किसी भी विद्या का दुरूपयोग ना करें और ध्यान में पवित्रता रखें |
साधना काल
इसका जाप रात्रि 10 बजे से शुरू करें |
दिन सोमवार या पंचमी तिथि या पूर्णिमा को शुरू करें |
दिशा उत्तर या पूर्व को मुख कर बैठें |
भोग के लिए लडू पास रख सकते हैं |
वस्त्र सफ़ेद आसन कोई भी सफ़ेद रंग का ले सकते हैं |
यह वेद ज्ञान प्रदान करने वाली साधना है, इसे पवित्रता से करें |
मन्त्र
|| ॐ ह्रीं वेद मात्री स्वाहा ||
|| Om Hreem Ved Matri Swaha ||
इस मन्त्र का 21 माला जप करना है एक महीने तक | 21 दिन भी किया जा सकता है | यह साधना सीधे साधक को गुरु से जोड़ देती है और गुरु माध्यम से उसे विद्या प्राप्त होने लगती है | ऐसा बहुत साधकों का अनुभव है |
Ruchi Sehgal
श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु
श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु
।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं । यक्षिणी-नायिकानां तु,
संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।
हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,
यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –
ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं । यक्षिणि स्वयमायाति,
कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय ही सिद्धि मिलती है ।
सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,
यक्षिणी-वशमानयेत् ।।
हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में प्रकाशित किया गया है ।
इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश में होती है ।
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,
श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री
अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे
विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
।। मूल पाठ ।।
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
मेरे सिर की रक्षा यक्षिणि, ललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्या, मुख की श्री धनदा
और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें । आँखों की रक्षा वरदा,नासिका की
भक्त-वत्सला करे । धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग
की रक्षा करे । कन्धों की रक्षा किलालपा, गले की कमलानना करें । दोनों
भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें । विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया
सदा मेरी रक्षा करें । अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।
भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।
अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका ।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा नितम्ब-स्थल की
रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें । गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका
और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें । सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान,
जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी (जो सभी मन्त्रों की
माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें । मेरे सारे शरीर
की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें । अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली
धनदा प्रान्तर (लम्बे और सूनसान मार्ग, जन-शून्य या विरान सड़क, निर्जन
भू-खण्ड) में रक्षा करें । लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली
खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे
महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें । वरदा मेरी रक्षा करें । सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें
। महान संकट के समय, युद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका
क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें । सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें ।
इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात् ।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा ।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः ।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।
हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है । इसके स्मरण मात्र
से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है । कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार
वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है है और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी
शास्त्रों का
Ruchi Sehgal