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Friday 18 May 2018

श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु

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श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु

।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं । यक्षिणी-नायिकानां तु,

संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।

हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,

यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –



ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं । यक्षिणि स्वयमायाति,

कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।

हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय ही सिद्धि मिलती है ।



सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,

यक्षिणी-वशमानयेत् ।।

हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में प्रकाशित किया गया है ।

इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश में होती है ।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,

श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री

अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे

विनियोगाय नमः सर्वांगे ।


।। मूल पाठ ।।
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।

मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।

चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।

केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।

स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।

किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।

विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।

अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।

मेरे सिर की रक्षा यक्षिणि, ललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्या, मुख की श्री धनदा

और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें । आँखों की रक्षा वरदा,नासिका की

भक्त-वत्सला करे । धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग

की रक्षा करे । कन्धों की रक्षा किलालपा, गले की कमलानना करें । दोनों

भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें । विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया

सदा मेरी रक्षा करें । अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।



भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।

अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया ।।

धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।

शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।

निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।

प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।

लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।

शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका ।।

पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।

महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।

क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।

सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।

हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा नितम्ब-स्थल की

रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें । गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका

और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें । सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान,

जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी (जो सभी मन्त्रों की

माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें । मेरे सारे शरीर

की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें । अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली

धनदा प्रान्तर (लम्बे और सूनसान मार्ग, जन-शून्य या विरान सड़क, निर्जन

भू-खण्ड) में रक्षा करें । लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली

खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे

महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें । वरदा मेरी रक्षा करें । सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें

। महान संकट के समय, युद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका

क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें । सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें ।



इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।

अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात् ।।

पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।

वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।

अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।

यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा ।।

अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।

पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।

स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।

भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः ।।

ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है । इसके स्मरण मात्र

से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है । कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार

वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है है और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी

शास्त्रों का



Ruchi Sehgal

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