Friday, 18 May 2018
रंभा अप्सरा साधना
अप्सरा साधना—-
मन्त्र जाप के समय कमरे की सुगन्ध तेजी से बढ़ेगी,पायलों की आवाज, घुँघरू की आवाजें सुनाई पड़ती है।
कभी कभी तीव्रता से सफेद प्रकाश आता है पूरा कमरा प्रकाश वान हो जाता है।
साधना के बीच मे अप्सरा दर्शन भी देती है,मन्द मन्द मुस्कान के साथ, प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करती हुई,अधोवस्त्र धारण किये हुए।
अंतिम दिन जब साधक अप्सरा मन्त्र जाप करता है तो अप्सरा साधक से बात करती है तब साधक अप्सरा से वचन लेकर उसे अपनी प्रेमिका के रूप में बाँध देता है।
अप्सरा से सम्भोग का वचन न ले नही तो हानिकारक सिद्ध हो सकता है साधक के लिये।
पत्नी रूप में भी इसको सिद्ध कर सकते है।
रम्भा
अप्सरा सिद्ध साधक के शरीर से हमेशा सुगन्ध आती रहती है मानो उसने कोई इत्र लगा रखा हो।
साधक या साधिका के शरीर मे बहुत तेज आता है,नवयौवन आता रहता है,बुढ़ापा पास नही आता है।
ऐसे साधक के पास आकर्षण शक्ति आ जाती है।जिसको एक बार निगाह मिलाकर देख ले वह प्राणी वशीभूत हो जाता है।
इस साधना की विशेषता यह है इस सिद्ध मन्त्र से मिठाई पढ़ कर किसी को दी जाय तो वह वश में हो जाता है।
जब भी साधक बन्द आँखो से अप्सरा को बुलाता है तो अप्सरा साधक को अपने साथ प्रेमक्रीड़ा मे ले जाती है और वह दुनिया इस देह की दुनिया से 10000 गुना ज्यादा सुंदर होती है।
साधना विधि
यह साधना 21 दिन की है।
22वे दिन साधक या साधिका को हवन करना होता है।
साधक को साधना कक्ष में गुलाबी रंग का कलर करना चाहिये।
साधक को यह साधना रात्रि 11 बजे से आरम्भ करनी चाहिये।
साधक को माथे पर चन्दन का सुगन्धित तिलक लाल ,गुलाबी वस्त्र,गुलाबी आसन, बाजोट पर गुलाबी कपड़ा प्रयोग करना चाहिये।
यह साधना पूर्ण परीक्षित और वर्तमान में सिद्ध प्रयोग है।
इस साधना में साधक को प्रारम्भ में स्नान करके पश्चिम दिशा की ओर मुख करके 21 माला मन्त्र जाप करना होता है।
जाप की माला लाल मूंगे की होनी चाहिये नही तो रुद्राक्ष की माला से भी इस अप्सरा को सिद्ध किया जा सकता है।
यह साधना किसी भी होली दीपावली,नवरात्रों,ग्रहण काल,शिवरात्रि अथवा शुक्रवार से प्रारम्भ की जा सकती है।
गुलाबी वस्त्र पहनकर माथे पर लाल चंदन का तिलक लगाकर ,गुलाबी आसन पर बैठकर अपने सामने बाजोट अर्थात लकड़ी की चौकी पर गुलाबी वस्त्र डालकर उसके ऊपर एक काँसे की थाली में लाल गुलाब की पंखुड़ियां डाले।
अप्सरा रम्भा की फ़ोटो फ्रेम सहित रखे।फल फूल मिठाई चढ़ाए।अप्सरा को तिलक लगाएं।
प्रथम दिन से लेकर 21वे दिन तक एक माला अप्सरा के फोटो पर चढाए या टांग दे।
इस साधना में भयानक अनुभव नही होते है किंतु कभी कभी कुछ आत्माए साधक को परेशान करती है।21 वे दिन साधक एक माला साथ मे रखे।
जब अप्सरा से वचन हो जाये तो उसे माला पहना दे।एक बात साधको को बता दूं कि यह माला मानसिक रूप से पहनाई जाती है।
साधक को भोजन केवल खीर का एक टाइम दोपहर को करना चाहिये।इसके अलावा कुछ नही खाना होता है।
मन्त्र जाप के समय साधक को अपनी बन्द आँखो में रम्भा अप्सरा की फोटो का प्रतिबिम्ब रखे।मन शांत रखे।
साधना में पवित्रीकरण,वास्तुदोष पूजन,सुरक्षा मन्त्र ,संकल्प,गुरुमन्त्र,शिव मन्त्र,गणेश मन्त्र का ध्यान कर अप्सरा साधना शुरू करे।
,,मन्त्र-
ॐ क्ष म र म रम्भा अप्सराये नमः।
यह साधना दीक्षित साधक ही सिद्ध करे, तभी फलीभूत होगी।यह साधना बहुत तीव्र और सरल है।पल भर में साधन मात्र से सिद्धि देने वाली है।
Ruchi Sehgal
Sabar Matangi Bandhi Moksh Sadhna
साबर मातंगी बंधी मोक्ष साधना –
यह साधना बहुत ही तीक्ष्ण है | इसे बहुत साधकों ने परखा है | मेरी स्वयं की अनुभूत की हुई साधना है | इस के बहुत लाभ हैं | यह आपके जीवन में आने वाली विकट परिस्थिति को आपके अनुकूल करती है | पितृ बाधा से मुक्ति दिलाती है | ग्रह बाधा को शांत करती है | कई बार तो साधना करते करते पितृ आत्माओं से शाक्षातकार हो जाता है और कई बार अगर उनकी कोई इच्छा अधूरी हो तो वो स्वप्न या किसी भी माध्यम से बता देते हैं | कई साधकों को तो इससे मातंगी का प्रत्यक्ष दर्शन भी हुआ है | यह आपकी निष्ठा पर है | इस से रुके हुए काम स्वयं चलने लग जाते हैं | आमदनी के नये आयाम शुरू हो जाते हैं !
विधि
इसे नवरात्री में करें तो ज्यादा उचित है | फ़िर भी आप शुक्लपक्ष की प्रथम तिथि से शुरू करके पूर्णिमा तक कर सकते हैं | पूर्णिमा को हवन के लिए आम की लकड़ी जला के १०८ आहुति डालें और नवरात्री को संपन्न करने वाले साधक अष्टमी को हवन कर सकते हैं |
इसे करने के लिए शुद्ध घी की ज्योत लगाकर जप शुरू करें और संभव ना हो तो किसी भी माता के मंदिर में जा कर जप कर सकते हैं | वहाँ ज्योत में घी डाल सकते हैं |
हवन के लिए किसी पात्र में अग्नि जलाकर घी से प्रथम पाँच आहुति प्रजापति के नाम से डालें और फिर गुरु मन्त्र की और नवग्रहों के नाम की और बाद में मातंगी साबर मन्त्र की १०८ आहुति डालें और हवन के बाद एक सूखे नारियल में छेद करके उस में घी डालें और उसे मौली बांध कर उसका पूर्ण आहुति के रूप में पूजन करें | तिलक आदि लगाएं और खड़े हो कर अपने परिवार के सभी सदस्यों का हाथ लगाकर अग्नि में प्रार्थना करते हुए अर्पित करें और फिर जो भी आपने भोग बनाया है, उसे अर्पित करें और गुरु आरती संपन्न कर सभी सदस्यों को प्रशाद वितरित करें |
जप संख्या — आपने सर्वप्रथम शुद्ध धुले हुए वस्त्र पहनकर गुरु पूजन करें | मन्त्र को लिख कर गुरु चरणों में अर्पित करें और पूजन कर प्रार्थना कर ग्रहण करें | इस प्रकार मन्त्र दीक्षा हो जाती है |
श्री गणेश को याद करते हुए भोग के लिए दो लड्डू ज्योत के पास रखें और सफलता के लिए प्रार्थना करें | एक पात्र में जल भी रख दें और ज्योत के सामने मात्र २१ बार मन्त्र जपें | आप चाहें तो १०८ बार भी कर सकते हैं | वो आपकी इच्छा पर है | नौ दिन जप करना है नवरात्री में और समाप्ति पर हवन सामग्री में घी और शक्कर मिला कर हवन करना है | भोग में आप शुद्ध मिठाई भी अर्पित कर सकते हैं |
मातंगी यंत्र को भी अपने सामने स्थापित कर सकते हैं | यंत्र का पूजन पंचौपचार से करलें | सर्व प्रथम यंत्र को दूध से स्नान करा लें | फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ और कपड़े से साफ कर बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछा कर उसपर यंत्र की स्थापना करें | यंत्र का पूजन कुंकुम, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य के लिए मिठाई और फल से करें | फिर निम्न मंत्र की एक माला जप करें | जप से पहले आप गुरु मंत्र का एक माला जप कर लें और सद्गुरु जी को जप समर्पित कर दें | साधना पूरी होने पर समस्त पूजन सामग्री जलप्रवाह कर दें | माला गले में पहन लें और यंत्र पूजन स्थान में स्थापित कर लें |
साबर मन्त्र
ॐ नमोस्तुते भगवते पारशिव चन्द्राधरेन्दर पद्मावती सह्ताये में अभीष्ट सिद्धि , दुष्ट ग्रह भस्म भक्षम स्वाहा | स्वामी प्रसादे करू करू स्वाहा | हिल हिली मतंगनी स्वाहा | स्वामी प्रसादे करू करू स्वाहा |
Om Namostute Bhagwate Paarshiv Chandradhrender Padmawati Sahtaaye mein Abhisht Siddhi, Dusht Grah Bhasm Bhaksham Swaha. Swami Prasaade Kru Kru Swaha. Hil Hili Matangni Swaha. Swami Prasaade Kru Kru Swaha.
ॐ
Ruchi Sehgal
Sammohan Sadhna
कृष्ण सम्मोहन बाण साधना
महा भारत में जब पांडव अज्ञात वास बनवास काट रहे थे तो एक बार वृह्नाल्ला बने अर्जुन को अपने गुरु जनों और कौरव सेना का सामना करना पड़ा | अर्जुन नहीं चाहते थे कि उन्हें कोई पहचाने इसलिए गुरुजनों का सामना नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने सम्मोहन बाण का इस्तेमाल कर सभी को सुला दिया और अपने भेद को भी छुपा लिया | कालान्तर में ऐसी विद्याएँ लुप्त होती गई जो गुरुकुल में शाश्त्रों की शिक्षा देते वक़्त प्रदान की जाती थी | जिनमें अस्त्र शस्त्र आदि विद्या भी दी जाती थी | सद्गुरु जी ने सभी विद्याओं को पुनर्जीवित कर इस धरा पर स्थापित किया | उन्होंने इन विद्याओं का ही नहीं बल्कि पुरे जीवन का मर्म समझाया जिसे प्राप्त करना हर साधक का लक्ष्य बन गया |
कुछ ऐसे दुर्लभ प्रयोग व साधनाएं होती हैं जिन्हें सहज प्राप्त करना संभव नहीं होता पर अगर जीवन के कठोर धरातल पर आगे बढना है तो इन साधनाओं को जीवन में महत्वपूर्ण स्थान देना ही होगा | आज हमारे गुरु जी को गये कितने साल हो गये हैं और आज फिर उन विद्याओं को लुप्त होने से बचाने की कोशिश की जरूरत है इसलिए सभी से कहता हूँ कि सिर्फ दीक्षा पर ही डिपेंड ना होयें | आगे बढ़कर साधनाओं को अपनाएं जो हमारे गुरुओं ने हीरक खंडो से भी ज्यादा मूल्यवान मोती लुटाये हैं उन्हें अपने जीवन में धारण करें तभी हमारे गुरुजनों का सपना पूरा कर पाओगे | अपनी सोच को बदलें और दूसरों के लिए आदर्श साबित हों नहीं तो आने वाली पीढियां धिक्कारेंगी कि आपने उनके लिए क्या किया | हमारे गुरुजन हम सभी को साधना की बहुत बड़ी विरासत देकर गये फिर क्यों नहीं उसे अपना रहे | इसके लिए साधक का भाव रखते हुए अपने और अपने माहोल को बदलने की कोशिश करें |
जहाँ बात सम्मोहन की हो तो श्री कृष्ण जी का चित्रण अपने आप हो जाता है और सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है और जीवन में प्रेम की लहर दौड़ जाती है, शरीर में रोमांच पैदा होने लगता है, हवा से संगीत तरंगें प्रवाहित होने लगती है, सारा वातावरण एक महक से भर उठता है, बादलों की गड़गड़ाहट से मेघ संगीत लहरी बजने लगती है यह सभी सम्मोहन तो है जो प्रकृति हमेशा करती है और आप सम्मोहित होते चले जाते हैं | दृश्य आप को अपनी ओर आकर्षित करते हैं | प्रकृति का यही गुण अपनाकर साधक श्रेष्ट बन जाता है और प्रकृति से एकाकार हो जाता है तो जीवन में सुगंध व्याप्त होती ही है | जब तक प्रकृति तत्व आप में नहीं आता कैसे एक अप्सरा और यक्षिणी को बुला पाओगे, संभव ही नहीं है | कैसे किन्नरी को अपने बस में कर पाओगे, इस तत्व के बिना नहीं हो सकता क्योंकि एक प्रकृति ही है जो सबको अपनी ओर आकर्षित करती है | जहाँ सन्यासी प्रकृति को पूरी तरह अपना लेते हैं तभी तो श्रेष्ठ बन पाते हैं और प्रकृति उन्हें स्वयं पालने लगती है | अगर साधक बन कर इस तथ्य को अपनाओगे तो सहज ही समझ जाओगे कि प्रकृति क्या चाहती है आपसे | आप त्राटक करते हो या कोई साधना उसमें प्रकृति को ही निहारते हो | उसी प्रकृति में व्याप्त सुगंध आपकी आँखों के रास्ते आपमें भी व्याप्त हो जाती है | प्रकृति को निहारना ही अभ्यास है और अपना लेना सम्मोहन और प्रेम का संगीत या प्रकृति संगीत सुनना क्रिया है, उसे समझ लेना सम्मोहन है अब सवाल यह है कि ऐसा क्या करें कि प्रकृति का संगीत समझ आ जाये और सम्मोहन की क्रिया अपने आप संपन्न हो जाये जैसे प्रकृति में स्वयं ही होती है | उच्च कोटि के फकीरों और संतो में एक कहावत कही जाती है "कुदरत नार फकीरी की " अर्थात कुदरत या प्रकृति को अपना लेना ही जीवन की पूर्णता है और यही श्री कृष्ण जी का दिव्य सन्देश है क्योंकि वो बार-बार कहते हैं कि अर्जुन तुम मुझे पहचानो, मैं नदियों में गंगा नदी हूँ, दरखतों में पीपल हूँ आदि आदि | ऐसे बहुत उदाहरण देकर अर्जुन को समझाया | क्योंकि श्री कृष्ण पूर्ण सम्मोहन का रूप हैं और प्रकृति को अपना चुके थे तभी जर्रे जर्रे में व्याप्त हैं | इसलिए कृष्ण नाम से बड़ा कोई सम्मोहन मंत्र नहीं है | यहाँ एक सम्मोहन बाण साधना दे रहा हूँ जो गोपनीय तो है ही और अपने आपमें पूर्ण सम्मोहन लिए हुए है | मेरी स्वयं की परखी हुई है |
साधना विधि
1. इसे अष्टमी या श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन और बंसंत पंचमी से शुरू किया जा सकता है | यह 21 दिन की साधना है |
2. इसमें जाप वैजयन्ति माला से करें |
3. मन्त्र जाप 21 माला क है |
4. जप के वक़्त शुद्ध घी की ज्योत लगा दें |
5. गुरु पूजन, गणेश पूजन और श्री कृष्ण पूजन अनिवार्य है |
6. भोग के लिए दूध का बना प्रशाद मिश्री में छोटी इलायची मिलाकर पास रख लें |
7. हो सके तो षोडश प्रकार से पूजन करें नहीं तो मिलत उपचार जैसा आपको आता है कर लें |
8. वस्त्र पीले और आसन पीला हो |
9. दिशा उत्तर रहेगी |
10. साधना के अंत में पलाश की लकड़ी ड़ाल कर उसमें घी से दस्मांश हवन करना है | ऐसा करने से साधना सिद्ध हो जाती है और आपकी आँखों में सम्मोहन छा जाता है |
इसका प्रयोग भलाई के कार्यो में लगाएं, यह अमोघ शक्ति है |
मन्त्र
|| ॐ कलीम कृष्णाय सम्मोहन बाण साध्य हुं फट ||
||Om kleem krishnaye smmohan baan sadhya hum phat ||
हवन करते वक़्त मन्त्र के अंत में स्वाहा लगा लें |
Ruchi Sehgal