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Tuesday, 22 May 2018

पुतली तंत्र (क्रमांक 3) समुद्र मंथन का रहस्य

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पुतली तंत्र (क्रमांक 3) समुद्र मंथन का रहस्य


शरीररूपी समुद्र से अमृत और विष की प्राप्ति

पुतली तंत्र के क्रमांक १ एवं २ में वर्णित विवरणों के साथ अभिचार कर्म में कुछ अन्य सूत्र भी जानना जरूरी है. ये विवरण तिथियों एवं दिशाओं से सम्बंधित हैं. ये विवरण केवल अभिचार कर्म के लिए ही नहीं हैं. इनको जान कर सामन्य स्त्री-पुरूष भी अपने शरीर में अमृत उत्पादन बढ़ा कर दिव्य सक्तियों को प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें किसी सिद्धि की आवश्यकता नहीं है.



षट्कर्म के देवता

शांति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण – ये छै षट्कर्म कहे जाते हैं. इनके देवता क्रमश:- रति, वाणी यानी सरस्वती, रमा, जेष्ठा, दुर्गा एवं महाकाली हैं.

यहाँ एक बात स्पष्ट समझनी चाहिये. कोई भी देवी-देवता ऐसे नहीं हैं, जिनकी सिद्धि के बाद षट्कर्म नहीं किये जा सकतें हों. केवल मन्त्रों में अंतर आ जाता है. पर छै कर्मों में उनके रूप एक से नहीं होते. शान्ति में सौम्य, वशीकरण में मादक, मोहक, स्तम्भन में जड़, विद्वेषण में कुटिल, उच्चाटन में क्रूर और मारण में उग्र होता है.

देवता के मूल मन्त्र की सिद्धि होने पर भी इनके मन्त्रों की सिद्धि अलग से करनी होती है, क्योकि ये मूल मन्त्र से बदले होते हैं.

ऋतुकाल एवं दिशाओं का समायोजन

उपर्युक्त दिए क्रम से षट्कर्म के लिए – ईशान, उत्तर, पूर्व, नैरित्य, वायव्य, एवं दो अंतिम के लिए आग्नेय प्रशस्त होती हैं.

ऋतू का क्रम हेमंत, वसंत, शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा एवं शरद है. ऋतुएं वर्ष में छै होतीं हैं. एक ऋतु दो महीने की होती है, जो ज्योतिष से जानी जा सकती है; मगर एक दिन-रात में भी ये सुर्योदय काल से चार चार घंटे के अंतराल से बंटी होतीं है.

मन्त्रों का संयोजन

ग्रंथन-इसका उपयोग शांति कर्म में होता है . फिर साध्य  के नाम का एक अक्षर करके मन्त्र का समायोजन किया जाता है .

विदर्भ-यह वशीकरण में प्रयुक्त किया जाता है. इसमें मन्त्र के दो अक्षरों के बीच साध्य के नाम का एक अक्षर होता है.

सम्पुट-नाम के आदि और अंत में मन्त्र लिखने या जपने को कहते हैं. यह स्तम्भन में प्रशस्त है.

रोधन- यह विद्वेषण में प्रयुक्त होता है. इसमें नाम के आदि, मध्य और अंत में मन्त्र लिखा जाता है.

योग- उच्चाटन में इसका प्रयोग होता है. इसमें मन्त्र के अंत में नाम लिखा जाता है.

पल्लव- नाम पहले, मन्त्र बाद में हो तो इसे पल्लव कहा जाता है. यह मरण में प्रयुक होता है.

जन साधरण के लिए उपयोग

कोई भी स्त्री पुरुष अपने शरीर के के अमृत विन्दुओं का प्रतिदिन नहाते समय या पूजा के समय जल से “हूँ अस्त्राय फट” मन्त्र से न्यास करे, तो १०८ दिन में सौन्दर्य, स्वास्थ्य, चमक के साथ अपने उर्जा समीकरण के अनुसार कई दिव्य शक्तियों को प्राप्त करेगा.

इसी प्रकार रोग दूर करने में, औषधि खाने में, रतिकाल में, भोजन में इनका उपयोग करके विलक्ष्ण शक्ति की प्राप्ति की जा सकती है.



Ruchi Sehgal

पुतली तंत्र – ४ जादू टोना

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पुतली तंत्र – ४ जादू टोना
किया-कराया; जादू-टोना; काला-जादू

अन्य विधि में जानकारियों का प्रयोग

पुतली तंत्र की विधि थोड़ी जटिल है और उसे वन शीट नें बताना भी पडेगा, इसलिए उसे भाग ५ में बताने की मजबूरी है. ये चार भाग जाने बिन आप पुतली तंत्र की पूरी वैज्ञानिकता नहीं समझ सकते और ना ही प्रयोग कर सकते है. ये जानकारियां सभी विधि के अभिचार कर्म के प्राण हैं. इनके बिना अभिचार  कर्म अपनें प्राणों का भी खतरा मोल लेना है. अभिचार भी शायद ही सफल हो.



इन जानकारियों का गृहस्थ जीवन में सामान्य उपयोग

१ गुदामार्ग पर दो मिनट पानी की तेज धार डालते हुए” हूँ अस्त्राय फट “मन्त्र जपते श्वास लेने से और रात में सरसों तेल की पर्याप्त मात्र मालिश करने से श्वांस की बिमारी दूर होती है.

२  सर के चाँद में, कान में तेल दाल कर “अंह:” मन्त्र जपते सोने वाला [गहरी श्वास खींचते समय अं और छोड़ते समय ह :], श्वास, कास, मानसिक तनाव के विकारों से मुक्त हो कर आयु, नीद, भगवत कृपा और सफलता प्राप्त करता है.

३ शिर के चाँद में औषधियों के (विकार के अनुसार) आद्र कल्क बाँध कर सोने से कठिन रोगों से मुक्ति मिलती है.

४ तलवों को साफ़ करके मदिरा से मालिश करके औषधियों का लेप लगाने और शिर को साफ़ कारके उप्रुक्त तेल मर्दन करने से राहू दोष दूर होता है और मष्तिष्क के रोग मिटते हैं.

५  नाभि में तेल डाल कर मालिश करने से (औषधि युक्त) उदार रोग, गर्भाशय विकार, मोटापा, वायुप्रकोप मिटता है.

६ दांत में कीड़े हों तो कान में मदार के रस और घी (बराबर) को गर्म करके आधा आधा घंटा पर डालने से दन्त शूल दो मिनट में मिटता है और कीड़े के दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है.

७ स्नान के समय का प्रयोग हम पहले बता आयें हैं.

८ प्रति दिन अमृत विन्दु पर केवल मन्त्र से न्यास करने पर ही दिव्य अनुभूतियाँ होने लगती हैं, चाहे किसी इष्ट का शान्ति भाव का मन्त्र हों.

९ शिर के चाँद पर तेज धर पानी डालने से भी (शिव मन्त्र) श्वास के रोग मिटते है.

अभिचार जर्म में इन जानकारियों  का उपयोग

पूजा, न्यास, अभिषेक, गुरुदीक्षा, चक्र पूजा, जप तप, सभी प्रकार के अभिचार कर्म मे इन गणनाओं की जरूरत होती है. शांति कर्म में अमृत योग, वशीकर्ण में अमृत योग, मारण, उच्चात्तन में विष योग की गणना की जाती है. इसी प्रकार ज्योतिष से मजबूत और कमजोर समय को निकाला जाता है. मर्म विन्दु का प्रयोग अभिचार की प्रकृति के अनुसार निकाला जाता है. पुतली तंत्र में तो इसके बिना एक कदम चलना भी खतरनाक है.



Ruchi Sehgal

पुतली तंत्र (क्रमांक ५) निर्माण एवं प्रयोग विधि

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पुतली तंत्र (क्रमांक ५) निर्माण एवं प्रयोग विधि
किया-कराया; जादू-टोना; काला-जादू

निर्माण के पदार्थ

साध्य के बाल, प्रयोग किये अधोवस्त्र, कुम्हार के चाक की मिट्टी, साध्य के नक्षत्र वृक्ष की छाल, उड़द का आटा, पीपल, काली मिर्च, और गेरू –



ये शुभ कार्य के लिए प्रयुक्त होता है. अशुभ कार्य के लिए रसोई की कालिख, चिता की राख, सेंधा और समुद्री नमक, हींग, सोंठ, लहसुन भी मिलाया जाता है. बाल को छोड़ कर सभी को कूट कर पुतली बनाई जाती है. बाल से काट कर रोम और सर सहित अन्य बालों का प्रत्यारोपण किया जाता है.

निर्माण मान

सोलह से बारह अंगुल तक व्यक्ति की औसत लम्बाई के अनुसार. नारी में चौदह से बारह अंगुल तक. इसे १६ भाग में बाँट कर, २ में सिर, १ में गर्दन, ६ में कंधे से कमर तक, ६ में जन्घसे पैर तक, ३ पर संधि घुटना दे कर बनाए. यह काम रात में गुप्त रूप से करना चाहिए. सभी अंगो को स्पष्ट चिकना बनाना चाहिए. साध्य से मिलता बनाना चाहिए. चार पुतली बनायीं जाती है.

प्राण प्रतिष्ठा विधान

यंत्र -वृत्त, उसके ऊपर वृत्त उसके ऊपर एक बड़ा वृत्त, उस पर कमल के दस दल, उसमें दसों प्राण शक्ति के नाम. नीचे मध्य से प्राण लिख कर क्रम में धनंजय तक, उसके बाहर चतुरस्त्र. लेखन चन्दन – रक्त चन्दन.

प्राण शक्ति के नाम -प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान, नाग,कुर्म, कृकर, देवदत्त, धनन्जय

न्यास – षडंग न्यास – य से स तक के वर्ण से. पहले दो वर्ण, फिर उसमें का अंतिम वर्ण और अगला वर्ण, फिर उसमें का अंतिम और अगला, इसी क्रम से.

ह्री श्रीं यराभ्या हृदये नम :[क्रमश :]

पूजन – ह्रीं श्रीं …….. पादुका पूजयामि. दसों प्राणशक्ति के नाम क्रमश: खाली स्थान में दे दे कर. यंत्र के मध्य में प्राण शक्ति की तीन तीन मन्त्रों से पूजा करके मन्त्र जपें. पूर्व मुखी हो कर मन्त्र जपने की संख्या १२५००० है. दशांस से हवन करें. हवन में मदिरा, मांस, तिल, सरसों तेल, त्रि मधु लोग, तेजपत्ता, कपूर, दालचीनी प्रयुक्त करें.

मन्त्र – अमुष्य प्राण इह प्राणा अमुष्य जीव इह स्थित अमुष्य सर्वेन्द्रियानि अमुष्य, वांमन: प्राणा इहायान्तु स्वाहा

रूप ध्यान –अत्यंत चमकीले सूर्य जैसा विन्दु मध्य में.

पुतली प्राण प्रतिष्ठा

त्वक, स्रइं, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र, ओज इन धातुओं को एक एक करके य से स तक विन्दु लगा कर प्रारंभ में दे कर बाद में “प्रतिष्ठित भव:” कहें. इस समय पुतली को यंत्र के मध्य में रखें. चारो को. ऐसा ९ b करके तब प्राण प्रतिष्ठा मन्त्र १०८० की संख्या में जप करें. मन्त्र पूर्व के अनुसार सिद्ध होना चाहिए .

प्रति दिन इस सख्या में मन्त्र जपने पर एक महीने में यह अभिचार के योग्य होती है. इस पर सभी तरह के प्रयोग किये जा सकते हैं. कुछ के प्रयोग आगे बाते जाएंगे.



Ruchi Sehgal