Friday, 17 August 2018
जन्म-कुंडली में बिज़नेस योग
जन्म-कुंडली में बिज़नेस योग :-
कुंडली में कर्म (कार्य) का स्थान दसवां भाव होता है। अगर किसी व्यक्ति का दसवां भाव मजबूत और अच्छा है तो उस व्यक्ति का बिज़नेस अच्छा चलने की संभावना ज्यादा रहती हैं। इसके साथ ही दशमांशा भी देखा जाना चाहिए | युति,डिग्री,दृष्टि,दशा बिज़नेस में लाभ और हानि को दर्शाते हैं | किसी एक भाव या एक ग्रह से अंतिम परिणाम पर नहीं पहुंचा जा सकता | कुंडली को हमेशा पूर्ण -रूप से ही देखा जाना चाहिए |
कुंडली के योग जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं :-
१)अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलता है।
२)अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी-नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।
३)जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय के अच्छे संयोग बन जाते हैं।
४)कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। इस योग में जातक का बिज़नेस अच्छा चलता है और उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।
५)ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी सातवीं दृष्टी अगर दसवें भाव पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।
६)राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह कर्म भाव अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।
जातक की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो | या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं |
विवाह में बाधा/देरी : जन्म-कुंडली के योग
विवाह में बाधा/देरी : जन्म-कुंडली के योग :
जन्म कुंडली का सातवां भाव विवाह, पत्नी, भागीदारी एवं गुप्त व्यापार का कहा गया है। सातवां भाव यदि पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता है उसमें अशुभ योग पड़े हैं तो विवाह में विलंब होगा। कन्या की कुंडली में विवाह कारक बृहस्पति होता है और पुरूष की कुंडली में विवाह का विचार शुक्र से किया जाता है। यदि दोनों ग्रह शुभ हों और उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो विवाह का योग जल्दी बनता है। विवाह देरी से कराने में बहुत से ग्रह कारक होते हैं। यह ध्यान में रखना चाहिए कि पुरुषों के लिए पत्नी कारक ग्रह शुक्र है जबकि स्त्रियों के लिए पति कारक ग्रह बृहस्पति है। मांगलिक दोष में चाहे पुरुष हो या स्त्री दोनों का विवाह विलंब से होता है।
विवाह में बाधा का कारण निम्नलिखित हैं :-
1. शनि, सूर्य या मंगल सप्तमस्थ होने के कारण विवाह में बाधा आती है।
2. यदि किसी कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल, शनि व शुक्र के साथ युति कर रहा हो तो कन्या का विवाह बड़ी उम्र में होता है।
3. यदि कन्या की कुंडली में लग्न में मंगल, सूर्य व बुध हो और गुरु द्वादश भाव में हो तो कन्या का विवाह देरी से होता है।
4. यदि कुंडली में शनि व सूर्य पारस्परिक दृष्टि संबंध रखते हों व लग्न या सप्तम भाव प्रभावित हो रहा हो तो विवाह की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।
जन्म-कुंडली में प्रेम-विवाह योग: प्रेम-विवाह ( LOVE MARRIAGE )
जन्म-कुंडली में प्रेम-विवाह योग:
प्रेम-विवाह ( LOVE MARRIAGE ) :-
बहुत से जातक-जातिका यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि उनका प्रेम विवाह(लव-मैरिज) होगा या नहीं,विवाह को लेकर उनके मन में कई प्रकार की शंकाएं होती हैं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा। इसके लिए अक्सर मुझे इनबॉक्स में या मोबाइल पर सम्पर्क करते रहते हैं | बच्चों के माता-पिता भी उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं की उनको प्रेम-विवाह की अनुमति दे या न दें |
जब तक दो लोगों की कुंडली में मंगल व शुक्र में आकर्षण नहीं होगा, तब तक उनमें प्रेम नहीं हो सकता ।
जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह पंचम के साथ संबंध बनाता हो अथवा 5 का 2, 7, 11 से संबंध हो तो विवाह होता है। परन्तु यदि प्रेम विवाह कारक ग्रह 1, 4, 6, 8, 10, 12 से जुड़ा हो तो प्रेम विवाह नहीं होता है अथवा विवाह कारक एवं अकारक दोनों से संबंध बनता हो तो ऐसा प्रेम विवाह नहीं चलता है।
* किसी भी जातक की कुंडली में पंचम भाव से प्रेम संबंधों का पता चलता है जबकि सप्तम भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में घनिष्ठ स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह भी संभव है।
१) शुक्र सप्तमेश से संबंधित होकर पंचम भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
२)पंचमेश व सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
३) मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।
४) जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।
५) जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।
६) जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।
७)जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।
८) पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।
९) सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।
१०) पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।
११) जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।
१२) शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।
१३)लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एकसाथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।
१४) सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।
१५) जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।
इसके इलावा नवमांश को.दशा को व् अन्य ग्रहों की शुभ,अशुभ दृष्टि देख-कर ही अंतिम निर्णय तक पहुंचा जा सकता है, इसके लिए अनुभवी ज्योतिष से ही परामर्श करें, कुंडली मिलान अवश्य करवा लें, यदि कुंडली मिलान में समस्या हो तो उसका उपचार करवाने के बाद ही शुद्ध-लग्न महूर्त में ही विवाह किया जाना चाहिए ।