Monday, 10 September 2018
शंख की उत्पत्ति
शंख की उत्पत्ति:-
शंख की उत्पत्ति संबंधी पुराणों में एक कथा वर्णित है। सुदामा नामक एक कृष्ण भक्त पार्षद राधा के शाप से शंखचूड़ दानवराज होकर दक्ष के वंश में जन्मा। अन्त में [विष्णु] ने इस दानव का वध किया। शंखचूड़ के वध के पश्चात् सागर में बिखरी उसकी अस्थियों से शंख का जन्म हुआ और उसकी आत्मा राधा के शाप से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन में श्रीकृष्ण के पास चली गई।
भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से छठवां रत्न शंख था। अन्य 13 रत्नों की भांति शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद थे। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है।
इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है। शंख की उत्पत्ति के संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु आग से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है।
भागवत पुराण के अनुसार, संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुर को मार गिराया। उसका खोल शेष रह गया। माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शंखासुर नामक असुर को मारने के लिए श्री विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया था। शंखासुर के मस्तक तथा कनपटी की हड्डी का प्रतीक ही शंख है। उससे निकला स्वर सत की विजय का प्रतिनिधित्व करता है।
शिव पुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने विष्णु के लिए घोर तप किया और तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। विष्णु ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने एक महापराक्रमी तीनों लोको के लिए अजेय पुत्र का वर मांगा और विष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए। तब दंभ के यहां शंखचूड का जन्म हुआ और उसने पुष्कर में ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा और शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्मा ने तथास्तु बोला और उसे श्री कृष्ण कवच दिया फिर वे अंतध्र्यान हो गए। जाते-जाते ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा की आज्ञा पाकर तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वर के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था अत: उन्होंने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब विष्णु से ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया और शंखचूड का रूप धारण कर तुलसी के शील का अपहरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत: शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।
प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है। निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली, होली, महाशिवरात्रि, नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है। रुद्र, गणेश, भगवती, विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल, दूध, घी, शहद, गुड़, पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है। इसका धूप, दीप, नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए।
शंखराज सबसे पहले वास्तु-दोष दूर करते हैं। मान्यता है कि शंख में कपिला (लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन करने से असाध्य रोग एवं दुःख-दुर्भाग्य दूर होते हैं। विष्णु शंख को दुकान, ऑफिस, फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहाँ के वास्तु-दोष दूर होते हैं तथा व्यवसाय आदि में लाभ होता है। शंख की स्थापना से घर
कुछ पालतू जानवर जो लाते है खुशहाली
लोग अपने घरों में कुत्ता, बिल्ली, गिलहरी, खरगोश जैसे पालतू जानवरों को रखते हैं। लोग शौक ने इन जानवरों को अपने घरों में रखते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई बार ये पालतू जानवर भी आपके लिए अशुभ होते हैं। उन्हें रखते से आप आर्थिक तंगी, मानसिक परेशानी और शारीरिक कष्ठों जैसे परेशानियों से जूझते हैं। जबकि कुछ ऐसे पशु-पक्षी हैं जिन्हें पालने से घर का वातावरण खुशहाल, समृद्ध घर आती है।
इन जानवरों को घर में रखने से घर वैभव से युक्त रहता है। उनके घर में आने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि कौन से जीव-जन्तु ऐसे हैं जिन्हें घर पर रखना शुभ हैं और किन्हें रखना अशुभ। स्लाइड के माध्यम से जानें, कौन से जीवों को घर में रखना चाहिये।
कुत्ता
हिंदू धर्म के मुताबिक कुत्ते को भैरव का सेवक माना जाता है। ऐसे में अगर आप अप ने घर में कुत्ते को पालते हैं और प्रतिदिन उसे भोजन करवाते हैं तो आपके घर में धन-दौलत की प्राप्ति होगी।
मेंढ़क
वास्तु शास्त्र के मुताबिक अगर आप अपने घर में मेंढ़क रखते हैं या फिर उसके रूप में पीतल का मेढ़क बना रखते हैं तो आपके घर से बीमारी कोसों दूर रहेगी। रोज दफ्तर निकलने से पहले मेढ़क को देखकर निकलना बेहद शुभकारी होता है।
तोता
ज्योतिष के मुताबिक अगर आप अपने घर में तोता पालते हैं तो वो आपके घर पर आने वाली परेशानियों को पहले भी भांप जाता है।
घोड़ा
वास्तु शास्त्र के मुताबिक घोड़ा ऐश्वर्य का प्रतीक है। ऐसे में घर में घोड़े की प्रतिरूप रखना या फिर घोड़ा रख ना शुभकारी होता है।
कछुआ
ज्योतिष के मुताबिक घर में कछुआ रखना बेहद शुभ होता है। चूंकि कछुआ दशावतारों में से एक है, इसलिए इसे लक्ष्मी का प्रतिनिधि माना जाता है। घर में तांबे का कछुआ रखने से वैभव की प्राप्ति होती है।
मछली
चाइनीज वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में सुनहरे रंग की मछली रखना सुखदायक होता है। कहा जाता है कि घर में मछली रख ने से घर में शांति आती है।
खरगोश
वास्तु के मुताबिक घर में खरगोश पालने से समृद्धि आती है और ये जानवर आपके बच्चों के लिए शुभकारी होता है।
ये 5 काम, बना सकते है आपको कंगाल
अगर जीवनभर करते रहे यही 5 काम, हमेशा बने रहेंगे कंगाल
हिंदू धर्म ग्रंथों में जीवनशैली से जुड़ी अनेक बातों का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसी जीवनशैली का अनुसरण करते हुए हमारे पूर्वजों ने कुछ नियमों और कर्तव्यों को परंपरा का रूप दे दिया। लेकिन कुछ लोग इन अच्छी परंपराओं का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। इन परंपराओं का पालन नहीं करने पर मनुष्य कभी भी गरीबी से मुक्त नहीं हो पाता है। तो आईए जानें, वो 5 बातें जिसके के चलते मनुष्य आजीवन परेशानियों से घिरा रहता है। इन कार्यों से दूरी बनाकर हम सभी सुखी और समृद्ध जीवन बिता सकते हैं।
1- बृहस्पतिवार को दाढ़ी बनाना
गुरुवार का दिन भगवान विष्णु का माना गया है। इस दिन सेविंग करने वाले व्यक्ति से देवी लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं। ऐसे में गरीबी उस व्यक्ति का कभी साथ नहीं छोड़ती जो गुरूवार को शेविंग करते हैं। मंगलवार, गुरूवार और शनिवार को भी सेविंग नहीं करनी चाहिए।
2-रात में नाखून काटना
कुछ लोगों की आदत होती है कि वो रात के समय ही खाली होने पर अपने नाखून काटते हैं। रात में नाखून काटने को अपशकुन माना गया है। रात में नाखून काटने वाले व्यक्ति के घर लक्ष्मी कभी निवास नहीं करती हैं।
3- रात में तुलसी को स्पर्श करना
संध्याकाल में दीपक जलाने के बाद रात में तुलसी का स्पर्श करना महापाप माना गया है। रात को ना ही तुलसी के पत्ते तोड़ने चाहिए और ना ही छूने चाहिए। ऐसा करने से महालक्ष्मी नाराज हो जाती हैं।
4- शाम को झाड़ू लगाना
कुछ लोगों की पुरानी आदत होती है कि वो घर में शाम को झाड़ू लगाते हैं। ऐसा करने से घर में दरिद्रता आती है। ऐसा करने वाले जीवनभर अमीर नहीं बन पाते हैं। अतः शाम के वक्त कभी भी झाड़ू नहीं निकालना चाहिए।
5-गृहलक्ष्मी का अपमान
पुराणों में कहा गया है कि जिस घर में महिला का सम्मान किया जाता है वहां देवता निवास करते हैं। इससे बात से समझ सकते हैं कि किसी स्त्री के अपमान करने पर आप कितना सुखी रह सकते हैं। जी हां, चाहे आपकी पत्नी हो या किसी दूसरे घर की स्त्री, उसका अपमान करने से घर में दरिद्रता और अशांति हमेशा बनी रहेगी।