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Tuesday, 6 November 2018

रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्त्रोत की महिमा

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मंत्र व स्तोत्र में बड़ी शक्ति होती है अपने आराध्य का ध्यान अपनी तरफ खीचने की | स्तोत्र का पाठ करना कृपा सागर में दुबकी लगाने जैसा ही है | प्रत्येक देवी देवताओं के वेदों व पुराणों में उल्लेखित अलग अलग स्त्रोत हैं |

हम यहा शिवजी की आराधना में बनाये गये शिव तांडव स्त्रोत की बात कर रहे है जो महाविद्वान लंकापति राक्षक राज रावण ने कुछ पलो में ही बना दिया था | यह स्त्रोत इतना चमत्कारी और प्रभावशाली है की इसके पाठ से मनुष्य अपने जीवन से दुखो को भगा कर सुखी जीवन प्राप्त कर सकता है | शिवतांडव स्तोत्र अद्वितीय काव्य रचना है जो इसे अन्य स्त्रोत से अलग दिखाती है |
रावण ने कब और क्यों किया था शिव तांडव स्रोत


शास्त्रों के अनुसार एक बार रावण ने अहंकार में शिव के वास कैलाश पर्वत को ही उठा लिया और उसे लंका ले जाना चाहा | यह बात शिव को क्रोधित करने लगी | उन्होंने अहंकारी रावण को सबक सिखाने के लिए अपने अंगूठे से कैलाश को दबा दिया | इस तरह रावण का हाथ इस पर्वत के निचे दब गया | लाख प्रयास के बाद भी वो कुछ नही कर सका | इसी वेदना में उसने भोले भंडारी की मंद मंद प्रशंसा करने के लिए 17 श्लोको से युक्त शिव तांडव स्त्रोत रच डाला | शिव तो है ही भोले उन्हें अपने भक्त का श्लोक बहूत ही प्यारा लगा और उन्होंने रावण को उस पर्वत से निकाल दिया और उन्हें आशीष दिया की यह तुम्हारा स्त्रोत अजर और अमर रहेगा और जो भी इसका पाठ करेगा उसे मेरी कृपा प्राप्त होगी |



शिवतांडव स्तोत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति से होने वाले लाभ निम्न है :-
1) शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को धन सम्पति जैसे भौतिक सुखो के साथ समाज में उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है |

2) शनि काल है और शिव कालो के काल ( महाकाल ) है अत: शनि से पीड़ित लोगों को इसके पाठ से लाभ मिलता है |

3) नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि कलाओ में जुड़े लोगों को शिवतांडव स्तोत्र से अच्छा लाभ मिलता है

4) | इस स्तोत्र के नियमित पाठ से वाणी सिद्धि की भी प्राप्ति होती है |
5) आपके जीवन में किसी भी सिद्धि की महत्वकांक्षा हो तो इस स्तोत्र के जाप से आसानी से प्राप्त की जा सकती है |

6) कालसर्प से पीड़ित लोगों को यह स्त्रोत काफी मदद करता है |

7) शिवतांडव स्तोत्र का प्रदोष काल में पाठ (गायन) करने से शिवजी की कृपा से रथ, गज, वाहन, अश्व आदि से संपन्न होकर लक्ष्मी सदा स्थिर रहती है |


सोने की लंका का बनना और भस्म होना पार्वती की इच्छा

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माँ पार्वती के लिए बनी थी सोने की लंका :
हम सभी जानते है की सतयुग काल में रावण की एक सोने की लंका थी जिसे हनुमान जी ने अपनी पुंछ में आग लगाकर जला दिया था | पर क्या आप जानते है की यह लंका शिवजी के आदेश पर माँ पार्वती के लिए बनाई गयी थी ??

जाने इसके पीछे की कथा :
हम जानते है की मोह माया से बहूत दूर रहने वाले शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास करते है | बहुत ही सादा जीवन और तपस्या में लीन रहने वाले भोलेनाथ को स्वर्ण से ज्यादा भस्म प्यारी है |
एक बार शिव शक्ति से मिलने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आये | पर कैलाश पर ठण्ड ज्यादा होने की वजह से लक्ष्मी जी उस ठण्ड से ठिठुरने लगी | उन्होंने पार्वती से व्यंग में कहा की आप खुद राजकुमारी होते हुए इस तरह का जीवन कैसे व्यतीत कर सकती है | जाते जाते उन्होंने पार्वती जी और शिवजी को बैकुण्ठ आने का न्योता भी दिया |

कुछ दिनों बाद आमंत्रण पर शिवजी पार्वती के साथ बैकुण्ठ धाम पहुँचे | पार्वती जी उनके वैभव को देखकर चकित हो गयी | अब उनकी लालसा बढ़ गयी की उनका भी एक वैभवशाली महल हो | कैलाश पहुँचने पर माँ पार्वती शिवजी से हठ करने लगी की उनके लिए भी एक भव्य महल का निर्माण कराया जाये |

तब शिवजी ने विश्वकर्मा को एक भव्य स्वर्ण महल बनाने का कार्य दिया | विश्वकर्मा ने आदेश अनुसार लंका का स्वर्ण महल बनाया जो उस समय सबसे भव्य था | पार्वती के निवेदन पर सभी देवी देवताओ और महान ऋषियों को उस जगह आमंत्रित किया गया |




विश्रवा नामक महर्षि ने उस नगर की वास्तुप्रतिष्ठा की। और दान के रूप में यह महल ही शिवजी से मांग लिया | भोले बाबा ने बस वो नगरी उन्हें दान में दे दी |

इस तरह अपने सपनो के महल को दान में जाता देख माँ पार्वती को क्रोध आ गया और उन्होंने विश्रवा को श्राप दे दिया एक दिन यह नगरी आग की लपटों में भस्म हो जाएगी |


क्यों है शंख से शिव पूजा वर्जित

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क्यों है शंख से शिव पूजा वर्जित
हिन्दू धर्म में आरती के समय शंख का उपयोग महत्वपूर्ण माना जाता है | सभी सभी देवी-देवताओं को शंख से जल चढ़ाया जाता है आपको जानकर अचरज होगा की पुराणों में किसी भी शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित माना गया है।
ऐसा क्यों है और इसके पीछे की कथा जानते है क्यों शिवलिंग पर शंख से जल नही चढ़ाया जाता |

शिवपुराण की कथा से जाने शंख और शिव के सम्बन्ध के बारे में  
एक बार इस धरा पर महादैत्य दंभ हुआ था | उसके कोई पुत्र नही था अत: उसने भगवान् विष्णु की घोर तपस्या करके एक महाबली पुत्र का वरदान माँगा जिसे कोई देवता हरा ना सके | विष्णु के आशीष से उसे पुत्र रत्न प्राप्त हुआ जो महाबली था | उसका नाम शंखचूड रखा गया | धीरे धीरे उसने सभी जगह अपना लोहा मनवाकर अपना शासन हर जगह कर लिया |
शंखचूड ने भी ब्रह्मा की घोर तपस्या करके और भी असीम शक्तिया प्राप्त कर ली थी उसमे एक था श्रीकृष्णकवच | ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। तुलसी बहूत ही पतिव्रतता नारी थी जिसकी पतितत्व शक्ति से उसके पति शंखचूड को और भी अधिक शक्ति मिलती थी | एक तरह विष्णु और ब्रह्मा का आशीष एक तरह तुलसी की भक्ति से उसे असीम शक्ति प्राप्त होने से वो अजेय ही हो गया था |
देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था अत: उन्होंने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब विष्णु ने छल का सहारा लेकर ब्राह्मण रूप बनाकर पहले शंखचूड से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया और फिर उसी का वेश बनाकर उसकी पत्नी तुलसी का शील हरण कर लिया | इस तरह शंखचूड निर्बल हो गया | यह देखकर शिव शंकर ने उसे भस्म करके जगत में शांति पनपा दी |

इसी शंखचूड की हड्डियों से शंख का निर्माण हुआ जिसका जल उन्हें आराध्य विष्णु और माँ लक्ष्मी को चढ़ाना शुभ माना जाता है | पर शिव ने उसका वध किया था अत: शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल नही चढ़ाया जाता है |